Navratri 2022 : इस मंदिर में 16 दिनों का नवरात्र, मां दुर्गा रसोई में स्वयं जाती हैं, पूरे साल चावल दाल का भोग
शारदीय नवरात्र सोमवार से शुरू हो रहा है। मां दुर्गा की उपासना का मौका साधकों के लिए बेहद खास होता है। नौ दिवसीय नवरात्र के मौके पर झारखंड स्थित शक्तिपीठ में नौ के बदले 16 दिनों का आयोजन होता है। navratri 2022 jharkhand
चतरा (झारखंड), 24 सितंबर : Navratri 2022 26 सितंबर से शुरू हो रहा है। नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है। जगत जननी जगदंबा की उपासना करने वाले भक्तों के लिए नौ दिनों का समय काफी खास होता है। देशभर में अलग-अलग शक्तिपीठ और आदिशक्ति देवी दुर्गा के मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। मां दुर्गा की उपासना के लिए झारखंड में भी कई स्थानों से जुड़ी खास मान्यताएं हैं। ऐसी ही जगहों में शामिल है चतरा का उग्रतारा मंदिर। झारखंड के उग्रतारा मंदिर में नौ दिनों का नहीं, 16 दिनों का अनुष्ठान किया जाता है। भगवती दुर्गा की उपासना के लिए चतरा में भक्तों का तांता लगा रहता है। जानिए, उग्रतारा मंदिर से जुड़ी खास मान्यता- (फोटो सौजन्य-फेसबुक @shrishridurgajimharani)
मां भगवती के नौ स्वरूपों की उपासना
नवरात्र में कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा की उपासना शुरू होगी। भगवती के उपासक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करते हैं। आदिशक्ति दुर्गा के नौ स्वरूपों की वंदना के लिए श्लोक लिखा गया है।
प्रथमं शैलपुत्री च, द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं चंद्रघंटेति, कूष्मांडेति चतुर्थकम्, पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च, सप्तमं कालरात्रीति, महागौरी ति चाष्टमम, नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:।
आम दिनों में भी आते हैं श्रद्धालु
झारखंड के चतरा जिले में देवी दुर्गा का उग्रतारा स्वरूप विराजमान है। इस स्थान से जुड़ी खास बात ये है कि आम तौर पर नौ दिनों का नवरात्र विजयादशमी के साथ समाप्त हो जाता है। हालांकि, चतरा के उग्रतारा मंदिर में 16 दिनों का नवरात्र होता है। शक्तिपीठ के रूप में जाना जाने वाला उग्रतारा मंदिर में नवरात्र से इतर आम दिनों में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर की एक और खास बात यहां 500 साल पुरानी पोथी से होने वाली पूजा है। कैथी लिपि में लिखी गई 200 पन्नों की पुस्तक वर्तमान पुजारी गोविंद वल्लभ मिश्र के पूर्वजों ने स्याही और मोरपंख से लिखी है।
मां दुर्गा का प्राचीन मंदिर पहाड़ी पर स्थित
श्रद्धालु चतरा के इस मंदिर को मां उग्रतारा नगर मंदिर के नाम से भी जानते हैं। मंदागिरी पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में 16 दिनों का नवरात्र मनाने की परंपरा है। इस मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होने को लेकर खास मान्यताएं हैं। मां दुर्गा के भक्त झारखंड के अलावा पड़ोसी राज्यों से भी बड़ी संख्या में मां उग्रतारा के दरबार में हाजिरी लगाने आते हैं।
जीवितपुत्रिका व्रत के अगले दिन से दुर्गा पूजा
भाद्रपद मास के अंतिम दिन यानी महालया के बाद शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर शारदीय नवरात्र नवमी तिथि तक चलता है। विजयादशमी के दिन रावण दहन के साथ उत्सव समाप्त होता है। चतरा के उग्रतारा मंदिर में नवरात्र जीवितपुत्रिका व्रत के अगले ही दिन से शुरू हो जाता है। श्रद्धालु मां उग्रतारा के दरबार में दुर्गा पूजा शुरू कर देते हैं। इसलिए नवरात्र 16 दिनों का होता है।
विजयादशमी का त्योहार 16 दिनों की पूजा के बाद
अष्टभुजी मां दुर्गा के दरबार उग्रतारा मंदिर चतरा में श्रद्धालुओं के बीच लाल पुष्प चढ़ाने की परंपरा है। मान्यता है कि भगवती के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। प्राचीन शक्तिपीठ मां उग्रतारा नगर मंदिर में विजयादशमी का त्योहार 16 दिनों की पूजा के बाद मनाया जाता है। विजयादशमी के दिन देवी भगवती को पान अर्पित करने की भी परंपरा है।
देवी दुर्गा की विदाई से जुड़ा रोचक प्रसंग
पान अर्पित करने से जुड़ी रोचक लोकश्रुति है कि लोग देवी के चरणों में पान अर्पित करने के बाद इसके गिरने की प्रतीक्षा करते हैं। स्थानीय लोग और पूजा अर्चना के जानकारों का मानना है कि माता को अर्पित किया गया पान गिरने पर ही प्रतिमा का विसर्जन होता है। पान गिरने को मां दुर्गा की अनुमति के रूप में देखा जाता है। लोगों का कहना है कि कई वर्षों के शारदीय नवरात्र में पान गिरने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा है।
शिकार खेलने गए राजा को मिली प्रतिमा
प्राचीन काल की लोकश्रुति के बारे में स्थानीय लोग बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यहां एक राजा हुए थे। राजा शिकार खेलने जंगल में गए। आज के संदर्भ में इस जगह को लातेहार जिले में बताया जाता है। मनकेरी जंगल में शिकार खेलने गए राजा को जब प्यास लगी तो प्यास बुझाने के लिए उन्होंने तालाब किनारे पड़ाव डाला। पानी पीने के दौरान राजा के हाथ में देवी की प्रतिमा आई। उन्होंने प्रतिमा वापस तालाब में डाल दी और आगे बढ़ गए।
राजमहल में बना मां दुर्गा का मंदिर, चावल दाल का भोग
लोकश्रुति है कि राजमहल पहुंचने के बाद राजा को सपने में मां दुर्गा ने महल में पहुंचाने का आदेश दिया। सुबह राजा ने तालाब से प्रतिमा दोबारा निकाली और पूरे विधि-विधान से अपने महल में माता के मंदिर की स्थापना कराई। इस मंदिर के भोग को लेकर भी विशेष आकर्षण है। लोगों और श्रद्धालुओं की आस्था के हिसाब से मां उग्रतारा मंदिर चतरा में पूरे साल चावल-दाल का भोग अर्पित किया जाता है। मंदिर में पूजा करने आने वाले भक्तों के बीच चावल-दाल का भोग वितरण किया जाता है।
किसी और मंदिर में ऐसी परंपरा नहीं
मां उग्रतारा की उपासना और पूजा-अर्चना में जुटे पुजारी प्रतिदिन माता की प्रतिमा उठाकर रसोई में ले जाते हैं। रसोई में माता को भोग समर्पित किया जाता है। भोग लगाने के बाद माता की प्रतिमा दोबारा मंदिर में स्थापित कर दी जाती है। संभवत: ऐसी परंपरा किसी और मंदिर में नहीं है जहां माता की प्रतिमा उठाकर रसोई ले जाई जाए और वापस मंदिर में स्थापित कर दी जाती हो।
रानी अहिल्याबाई ने भी दुर्गा पूजा की
चतरा का उग्रतारा मंदिर एक और कारण से लोकप्रिय है। आजादी के पहले रानी अहिल्याबाई बंगाल यात्रा पर जाने के दौरान उन्हें इस प्राचीन शक्तिपीठ की जानकारी मिली। लोगों का कहना है कि अहिल्याबाई बंगाल जाने से पहले चतरा के उग्रतारा मंदिर पूरी टीम के साथ पहुंचीं। स्थानीय लोग अपने पूर्वजों के हवाले से ये प्रकरण विस्तार से सुनता हैं।