Ruma Devi Barmer : रूमा देवी बनीं Rajeevika ब्रांड एंबेसडर, अब बदलेंगीं 20 लाख महिलाओं की तकदीर
जयपुर, 14 दिसम्बर। संघर्ष, मेहनत और कामयाबी की मिसाल राजस्थान के बाड़मेर की रूमा देवी के कंधों पर एक और जिम्मेदारी आ गई है। भारत-पाकिस्तान बॉर्डर से लगते सूबे राजस्थान के बाड़मेर, बीकानेर और जैसलमेर जिले के 75 गांवों की 22 हजार महिलाओं की तकदीर बदलने वालीं रूमा देवी को अब राजस्थान सरकार के ग्रामीण विकास विभाग से राजीविका की ब्रांड एंबेसडर ( Ruma Devi brand ambassador of Rajeevika ) बनाया गया है।
रूमा देवी, ब्रांड एंबेसडर राजीविका
14 दिसम्बर को खुद रूमा देवी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करके जानकारी दी है कि राजीविका की ब्रांड एंबेसडर के रूप में वे राजस्थान की बीस लाख से अधिक महिलाओं के लिए रोजगार अवसर उपलब्ध करवाने के लिए काम करेंगीं। ये बीस लाख महिलाएं प्रदेशभर के विभिन्न जिलों से राजीविका से जुड़ी हुई हैं।
Ruma
Devi
:
ग्रामीण
छात्रों
को
25-25
हजार
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छात्रवृत्ति
दे
रही
हैं
रूमा
देवी,
जानिए
आवेदन
का
तरीका
रूमा देवी का इंटरव्यू
वन इंडिया हिंदी से बातचीत में रूमा देवी बताती हैं कि राजीविका की ब्रांड एंबेसडर बनने के बाद उनका प्रयास रहेगा कि राजस्थान के गांवों से अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद देश दुनिया में लोकप्रिय बने जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित हो सके। मंगलवार को रूमा देवी ने जयपुर में राजस्थान ग्रामीण आजीविका परिषद के समूह संबल संवाद कार्यक्रम में विभिन्न जिलों से आई बहनों से वार्ता भी की। प्रमुख सचिव अर्पणा अरोड़ा, ग्रामीण विकास विभाग सचिव केके पाठक ने राजीविका की नई ब्रांड एंबेसडर रूमा देवी का सम्मान किया।
विदेशों में उपलब्ध हो रहा मार्केट
रूमा देवी ने बताया कि उनसे जुड़ी 22 हजार महिलाओं द्वारा तैयार किए गए कपड़ों की विदेशों में डिमांड बढ़ती जा रही है। इनक कपड़ों का लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में भी प्रदर्शन हो चुका है। अब राजीविका से जुड़ी महिलाओं द्वारा किए गए कपड़ों की डिमांड बढ़ाने के लिए वे काम करेंगीं।
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कौन हैं रूमा देवी?
रूमा देवी राजस्थान के बाड़मेर जिले की रहने वाली हैं। राजस्थानी हस्तशिल्प जैसे साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य कपड़े तैयार करने में इनको महारत हासिल है। इनके बनाए गए कपड़ों के ब्रांड विदेशों में भी फेमस हैं। ये भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित बाड़मेर, जैलसमेर और बीकानेर जिले के करीब 75 गांवों की 22 हजार महिलाओं को रोजगार मुहैया करवा रही हैं। इनके समूह द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो के फैशन वीक्स में भी प्रदर्शन हो चुका है।
5 साल की उम्र में मां की मौत
वर्तमान में रूमा देवी भले ही हजारों महिलाओं का जीवन संवार रही हों, मगर इनके खुद के जीवन की शुरुआत ही संघर्ष से हुई। बाड़मेर जिले के गांव रातवसर में खेताराम व इमरती देवी के घर नवम्बर 1988 में रूमा देवी का जन्म हुआ। पांच साल की उम्र में रूमा ने अपनी मां को खो दिया। फिर पिता ने दूसरी शादी कर ली। 7 बहन व एक भाई में रूमा देवी सबसे बड़ी हैं।
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बैलगाड़ी पर 10 किमी दूर से लाती थीं पानी
रूमा देवी अपने चाचा के पास रहकर पली-बढ़ी। गांव के सरकारी स्कूल से महज आठवीं कक्षा तक पढ़ पाई। राजस्थान में पेयजल की सबसे अधिक किल्लत बाड़मेर है। यहां भूजल स्तर पाताल की राह पकड़ चुका है। ऐसे में रूमा ने वो दिन भी देखें जब इन्हें बैलगाड़ी पर बैठकर घर से 10 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था।
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कैसे बदली रूमा की तकदीर?
बाड़मेर में 1998 में ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान बाड़मेर (जीवीसीएस) नाम से एनजीओ बना, जिसका मकसद था राजस्थान के हस्तशिल्प उत्पादों के जरिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना। वर्ष 2008 में रूमा देवी भी इससे संस्थान से जुड़ी और जमकर मेहनत की। हस्तशिल्प उत्पादों के नए नए डिजाइन तैयार किए। बाजार में मांग बढ़ाई। वर्ष 2010 में इन्हें इस एनजीओ की कमान सौंप दी गई। अध्यक्ष बना दिया गया। एनजीओ का मुख्य कार्यालय बाड़मेर में ही है।
क्या काम करता है रूमा देवी का एनजीओ?
ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के सचिव विक्रम सिंह बताते हैं कि हमारे एनजीओ से आस-पास के तीन जिलों की करीब 22 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं। ये महिलाएं अपने घरों में रहकर हस्तशिल्प उत्पाद तैयार करती हैं। बाजार की डिमांड के हिसाब से इन्हें ट्रेनिंग और तैयार उत्पाद को बेचने में मदद एनजीओ द्वारा की जाती है। सभी महिलाओं के कामकाज का सालाना टर्न ओवर करोड़ों में है।
रूमा देवी का परिवार
महज 17 साल की उम्र में रूमा देवी की शादी बाड़मेर जिले के ही गांव मंगल बेरी निवासी टिकूराम के साथ हुई। इनके एक बेटा है लक्षित, जो अभी स्कूल की पढ़ाई कर रहा है। टिकूराम नश मुक्ति संस्थान जोधपुर के साथ मिलकर काम करते हैं। रूमा देवी ने बाड़मेर में मकान बना रखे हैं जबकि इनका बचपन गांव रावतसर की झोपड़ियों में बीता।
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