पाकिस्तान की कोरोना वायरस से निपटने की रणनीति क्या नाकाम हो रही है ?
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अब तक पाकिस्तान की रणनीति हर्ड इम्युनिटी तक पहुँचने और दान की गई कोरोना वैक्सीन पर निर्भर करने की रही है.
पाकिस्तान फ़िलहाल कोरोना महामारी की एक और लहर से जूझ रहा है. साल 2020 में महामारी शुरू होने के बाद से ये तीसरी बार है, जब पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़े हैं.
इस साल फरवरी से पाकिस्तान सरकार ने स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना की वैक्सीन लगाने के अभियान की शुरुआत कर दी है. इस महीने से वहाँ 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी कोरोना वैक्सीन दी जा रही है.
लेकिन दूसरे देशों की तुलना में पाकिस्तान अभी काफ़ी पीछे है और दक्षिण एशिया की बात करें, तो इनमें पाकिस्तान वो देश है, जहाँ अब तक सबसे कम लोगों को कोरोना की वैक्सीन दी गई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार जहाँ 12 मार्च तक पाकिस्तान में कोरोना वैक्सीन की 304,000 डोज़ लोगों को दी गई थी, वहीं 22 मार्च तक यहाँ 515,138 लोगों को कोरोना का टीका दिया जा चुका है.
जहाँ तक बात है दूसरे मुल्कों से कोरोना वैक्सीन ख़रीदने की तो, पाकिस्तान ने अपनी 22 करोड़ की आबादी तक कोरोना वैक्सीन पहुँचाने के लिए बड़ी संख्या में वैक्सीन नहीं ख़रीदी है. वैक्सीन के लिए वो अपने पुराने और भरोसेमंद मित्र चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम पर निर्भर कर रहा है.
कोवैक्स कार्यक्रम के तहत संगठन दुनिया के सभी मुल्कों तक समान रूप से वैक्सीन पहुँचाने के कोशिश कर रहा है. संगठन का मानना है कि जब तक दुनिया के सभी लोग कोरोना से सुरक्षित न हो जाएँ, इसका ख़तरा बना रहेगा.
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अब तक पाकिस्तान की रणनीति हर्ड इम्युनिटी तक पहुँचने और दान की गई कोरोना वैक्सीन पर निर्भर करने की रही है. लेकिन हाल में जिस तरह कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी आई है, दुनिया के कई मुल्कों में कोरोना वायरस के नए स्ट्रैन सामने आए हैं और देश सख़्त लॉकडाउन लगाने के पक्ष में नहीं है, ऐसा लगता है कि अब तक कोरोना वायरस से लड़ाई की जो रणनीति अपनाई जा रही थी, वो नाकाम हो रही है.
हालाँकि सरकार ने इस बात से इनकार कर दिया है कि महमारी से निपटने के लिए उनके पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है.
जॉन्स हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार, पाकिस्तान में कोरोना संक्रमण के अब तक 6,40,988 मामले दर्ज किए गए हैं. यहाँ इस वायरस के कारण अब तक 14,028 मौतें हुई हैं. यहाँ मार्च के महीने में संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ना शुरू हो गए हैं.
कोरोना टीकाकरण की रणनीति
पाकिस्तान के आला अधिकारियों का कहना है कि सरकार देश में टीकाकरण अभियान के लिए 'मिक्स एंड मैच' की रणनीति पर काम करेगी.
दिसंबर 2020 में स्वास्थ्य मामलों में प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार और स्वास्थ्य मंत्री फ़ैसल सुल्तान ने कहा था कि सरकार "चीन, रूस और यूरोप" से कोरोना की वैक्सीन लेने की योजना बना रही है.
अंग्रेज़ी भाषा के अख़बार द न्यूज़ में छपी एक ख़बर के अनुसार उनका कहना था कि टीकाकरण के लिए सरकार "मिक्स एंड मैच" की रणनीति पर काम करेगी यानी टीकाकरण अभियान के तहत किसी व्यक्ति को दो अलग-अलग कंपनियों की कोरोना वैक्सीन की डोज़ दी जा सकती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की संसदीय सचिव डॉक्टर नौशीन हामिद ने मार्च में एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि सरकार की योजना साल 2021 के आख़िर तक 7 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने की है.
इससे पहले एक फरवरी को उर्दू टेलीविज़न चैनल दुनिया न्यूज़ के एक कार्यक्रम में नौशीन हामिद ने दावा किया था कि पाकिस्तान की जनसंख्या 20 करोड़ से अधिक है और इनमें से क़रीब 10 करोड़ लोग 18 साल से कम उम्र के हैं और उन्हें वैक्सीन लगवाने की कोई ज़रूरत नहीं है.
उनका कहना था, "ऐसे में हमें क़रीब 10 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने की ज़रूरत है. और अगर इनमें से 70 फ़ीसदी लोगों को हम वैक्सीन दे सकें, तो ये हर्ड इम्युनिटी हासिल करने के लिए काफ़ी होगा."
उनका ये बयान इस आधार पर था कि कुल आबादी के एक बड़े हिस्से को टीका देकर उन्हें सुरक्षित करना कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए पर्याप्त होगा.
हालाँकि आबादी के कितने हिस्से को टीका दिया जाए, इसे लेकर कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि ये कुल आबादी का 70 से 90 फ़ीसदी तक होना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकाकरण के ज़रिए हर्ड इम्युनिटी हासिल करने की दलील का समर्थन करता है.
जियो न्यूज़ नाम के उर्दू टेलीविज़न चैनल के एक टॉक शो में योजना मंत्री असद उमर ने दावा किया था कि कोई भी देश 18 साल से कम उम्र के लोगों को कोरोना की वैक्सीन नहीं दे रहा है औ इसलिए पाकिस्तान को इस उम्र के लोगों को वैक्सीन देने की ज़रूरत नहीं होगी. असद उमर पाकिस्तान की कोरोना वायरस टास्क फ़ॉर्स के प्रमुख हैं.
ऐसे में जैसा डॉक्टर नौशीन हामिद पहले ही बता चुकी हैं, कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस से लड़ने की पाकिस्तान की रणनीति के अनुसार यहाँ 31 फ़ीसदी लोगों को वैक्सीन दी जाएगी. ये ख़ुद सरकार के अनुसार हर्ड इम्युनिटी हासिल करने के लिए बनाए गए 70 फ़ीसदी के बेंचमार्क से काफ़ी कम है.
वैक्सीन के लिए समझौते
अब तक ये भी स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान कितनी वैक्सीन ख़रीदना चाहता है और क्या उसके पास टीकाकरण अभियान के तहत अपना लक्ष्य पूरा करने की कोई रणनीति भी है.
अपने टीकाकरण अभियान के लिए पाकिस्तान चीन द्वारा डोनेट की गई कोरोना वैक्सीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम के ज़रिए मुफ्त में मिलने वाली वैक्सीन पर निर्भर कर रहा है.
पाकिस्तान की मीडिया में 16 मार्च को ऐसी ख़बर देखने को मिली, जिनमें कहा गया था कि सरकार ने चीनी कंपनी साइनोफ्राम से पाँच लाख कोरोना वैक्सीन ख़रीदने के लिए समझौता किया है. लेकिन जियो न्यूज़ टेलीविज़न चैनल ने ख़बर दी कि पाकिस्तान ने ये वैक्सीन ख़रीदी नहीं है, बल्कि ये वैक्सीन चीन ने दान में दी है.
इसी तरह 10 मार्च को भी पाकिस्तानी मीडिया में ख़बर आई कि पाकिस्तान सरकार ने कॉन्विडेकिया कोरोना वैक्सीन की 60 हज़ार डोज़ ख़रीदने के लिए चीनी वैक्सीन निर्माता कैनसाइनो बायोलॉजिक्स से करार किया है. द न्यूज़ अख़बार ने एक अधिकारी का नाम बिना बताए लिखा कि ये वैक्सीन पाकिस्तान में ही बनाई जाएगी.
लेकिन 22 मार्च को समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में लिखा कि कमर्शियल बिक्री के लिए एक निजी कंपनी कॉन्विडेकिया कोरोना वैक्सीन का आयात कर रही है.
फरवरी की 14 तारीख को ब्रितानी हाई कमिशन ने कहा कि इस साल जून तक पाकिस्तान को विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोवैक्स कार्यक्रम के तहत ऑक्सफ़र्ड और एस्ट्राज़ेनेका की बनाई वैक्सीन की 1.7 करोड़ डोज़ दी जाएगी.
इस बीच पाकिस्तान पहला ऐसा देश बन गया है, जिसने निजी कंपनियों को कोरोना वैक्सीन आयात करने की इजाज़त दे दी है. इसी साल मार्च में यहाँ रूस की बनाई स्पूतनिक वैक्सीन की 50,000 डोज़ की एक खेप पहुँची. ये वैक्सीन बाज़ार में बिकने के लिए थी.
मीडिया में आ रही रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने वैक्सीन की दो डोज़ की क़ीमत 8,449 पाकिस्तानी रुपए यानी 54.16 डॉलर रखी है.
हो सकता है कि पाकिस्तान का संपन्न वर्ग निजी कंपनियों से कोरोना वैक्सीन ख़रीद सके, लेकिन देश के अधिकांश लोगों की औसत मासिक आय 17,500 रुपए है और उनके लिए महंगी वैक्सीन ख़रीदना शायद संभव न हो सके.
रणनीति
टीकाकरण को लेकर पाकिस्तान सरकार की रणनीति अलग लग सकती है, लेकिन इसका आधार हर्ड इम्युनिटी को लेकर समझ है.
5 मार्च को स्वास्थ्य मंत्रालय के एक आला अधिकारी आमिर अशरफ़ ख़्वाजा ने संसद की पब्लिक अकाउंट्स कमेटी को बताया था कि इस साल कोविड-19 टीका ख़रीदने की सरकार की कोई योजना नहीं है और कोविड-19 महामारी से निपटने की सरकार की योजना के अनुसार वो हर्ड इम्युनिटी और दान की गई वैक्सीन पर निर्भर करेगी.
ख़्वाजा ने कहा था कि जून 2020 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक सर्वेक्षण किया था, जिसके अनुसार कुल आबादी के क़रीब 15 फ़ीसदी हिस्से को टीके की ज़रूरत नहीं है. मंत्रालय के अनुसार इतने लोगों के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी तैयार हो गई हैं और इस कारण ये संक्रमण के ख़तरे से बाहर हैं.
पाकिस्तान में कोरोना महामारी की शुरुआत के दौर से ही हर्ड इम्युनिटी पर चर्चा शुरू हो गई थी. पाकिस्तान से छपने वाले अंग्रेज़ी भाषा के अख़बार डॉन ने मई 2020 में बिना नाम बताए एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा था कि "जब सभी लोगों में हर्ड इम्युनिटी आ जाएगी, तो ये वायरस अपने आप ही ख़त्म हो जाएगा."
यहाँ के स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी बड़े पैमाने पर फैले कोविड-19 ये जुड़े मिथकों को और फैलाया कि पाकिस्तनियों में कोविड-19 की प्रतिरोधक शक्ति अधिक है और गर्म मौसम में इस वायरस का फैलना रुक जाएगा.
कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के स्थानीय मीडिया में रिपोर्ट आ रही हैं कि पाकिस्तान सरकार ने कहा है कि "पूर्ण लॉकडाउन किसी मुश्किल का हल नहीं है."
वहीं अधिकारी भी इस बात से इनकार करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना से लड़ने के लिए सरकार केवल दान की गई वैक्सीन पर निर्भर कर रही है.
योजना मंत्री असद उमर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि पाकिस्तान ने चीन की कंपनी साइनोफार्म और कैनसाइनो बायोलॉजिक्स से 10 लाख कोरोना वैक्सीन की डोज़ खरीदी है और इस महीने के आख़िर तक वैक्सीन पाकिस्तान पहुँच जाएगी.