पुतिन के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाले अब क्यों कर रहे हैं आलोचना?
यूक्रेन में लंबा खिंचता युद्ध अब रूसी राष्ट्रपति पुतिन के नज़दीकी सहयोगियों को भी विचलित कर रहा है. उनमें से कुछ तो अब सीधे रूस के मिलिट्री सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं.
यूक्रेन के ख़िलाफ़ लगभग ठहर चुके युद्ध को लेकर रूस के सैन्य नेतृत्व को तीव्र आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. रूसी सैन्य नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों में दो प्रमुख मुखर नेता हैं- चेचन्याई नेता रमज़ान कादिरोव और भाड़े के सैनिकों के समूह वैगनर के संस्थापक येवगेनी प्रिगोझिन शामिल हैं. यही वजह है कि दोनों बेहद महत्वपूर्ण भी हैं.
दिलचस्प ये है कि ये दोनों औपचारिक रूप से रूस की किसी भी सैन्य विंग या सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुख नहीं हैं. इसके बाद भी दोनों को रूसी सेना के कमांडरों की एक साथ आलोचना करने और एक-दूसरे के विचारों की प्रशंसा करने की भी अनुमति दी गई है.
यूक्रेन के साथ मौजूदा संघर्ष ने रूसी सेना की प्रभावी छवि को बहुत नुक़सान पहुंचाया है. रूस की सरकारी टीवी ने घोषणा की थी कि रूस की सेना महज़ तीन दिनों में यूक्रेन पर क़ब्ज़ा जमा लेगी, लेकिन इसमें उसे कामयाबी नहीं मिली है और तो और यूक्रेन की सीमा में बड़े क्षेत्रों में उसे पीछे भी हटना पड़ा है.
यूक्रेन में रूसी सेना के नवनियुक्त प्रमुख जनरल सर्गेई सुरोविकिन अब तक केवल यूक्रेन के बिजली स्टेशनों को उड़ाने का दावा कर सकते हैं.
वैसे इन दोनों लोगों की आलोचना के बाद इन लोगों को अब तक चुप नहीं कराया गया है और ना ही इसे रूस के प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल के रूप में देखा जा रहा है, इससे यह ज़ाहिर होता है कि व्लादिमीर पुतिन उनके विचारों को ध्यान में रख रहे हैं.
यूक्रेन में शीर्ष रूसी कमांडरों में शामिल जनरल एलेक्जेंडर लापिन इसके एक उदाहरण के तौर पर देखे जा रहे हैं. अपुष्ट लेकिन मीडिया की विस्तृत रिपोर्टों के मुताबिक़ उन्हें पिछले सप्ताह बर्ख़ास्त कर दिया गया है.
रमज़ान कादिरोव ने महज़ दो दिन पहले उन्हें प्रतिभाहीन कमांडर क़रार देते हुए हाल की हार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था. कादिरोव ने लापिन को अक्टूबर के शुरुआती सप्ताह में पूर्वोत्तर शहर लेयमन के हाथ से निकल जाने के लिए भी ज़िम्मेदार ठहराया था.
चेचन्याई नेता ने सोशल मीडिया पर कहा कि जनरल लापिन को उनके पद से हटा दिया जाना चाहिए और "एक आम नागरिक के रूप में फ़्रंटलाइन पर भेजना चाहिए और उन्हें क़ुर्बानी देकर इस शर्म का हिसाब चुकाना चाहिए."
येवगेनी प्रिगोझिन भी रूसी सेना की आलोचना कर रहे हैं. उन्होंने रूस की जेल में बंद सज़ा पाए क़ैदियों को यूक्रेन में युद्ध में तैनात करने की मांग की है.
ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि शीर्ष स्तर से अनुमति के बिना कोई इस तरह की आलोचना नहीं कर सकता.
येवगेनी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की तारीफ़ करते हुए उन्हें 'ठोस, आत्मविश्वासी, व्यवहारिक और पसंद करने लायक शख़्सियत' बताया है.
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प्रिगोझिन और कादिरोव कौन हैं?
येवगेनी प्रिगोझिन पहली बार 'पुतिन के शेफ़' के तौर पर चर्चित हुए थे, इसकी स्पष्ट वजह भी थी क्योंकि क्रेमलिन के आधिकारिक कार्यक्रमों में भोजन और पेय की आपूर्ति का ज़िम्मा उनके पास ही था.
रूस के दूसरे सबसे बड़े शहर, सेंट पीटर्सबर्ग के एक व्यापारी येवगेनी के बारे में कहा जाता है कि वे 1990 के दशक से व्लादिमीर पुतिन को जानते हैं. यह वह दौर था जब पुतिन मेयर के दफ़्तर में काम करते थे और स्थानीय अधिकारियों में लोकप्रिय येवगेनी के रेस्तरां में अक्सर जाते थे.
2010 के दशक तक, कई पत्रकारीय इंवेस्टीगेशन में उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग के एक कथित ट्रोल फ़ैक्ट्री से संबद्ध बताया गया था. इस ट्रोल फ़ैक्ट्री का काम रूस के राजनीतिक विपक्ष को बदनाम करने और पुतिन शासन की तारीफ़ वाले कंटेंट तैयार करना और इस दिशा में कैंपेन चलाना था.
2016 में, अमेरिकी विशेष सरकारी वकील रॉबर्ट म्यूलर की एक जांच के अनुसार, ट्रोल फ़ैक्ट्री अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में हस्तक्षेप करने के लिए रूस के प्रयास का हिस्सा थी. हालांकि प्रिगोझिन ने ट्रोल फ़ैक्ट्री से किसी तरह के जुड़ाव से इनकार किया है.
कई वर्षों तक उन्होंने वैगनर ग्रुप नामक एक भाड़े के सैनिक भर्ती करने वाली कंपनी से भी किसी तरह के जुड़ाव से इनकार किया था.
वैगनर पहली बार 2014 में पूर्वी यूक्रेन में उभरा और इसके लड़ाके बाद में सीरिया और कई अफ़्रीकी देशों में दिखाई दिए. हाल ही में उन्होंने वैगनर के पीछे होने की बात स्वीकार की, जो यूक्रेन के ख़िलाफ़ मौजूदा युद्ध में सबसे अधिक प्रभावी रूसी इकाइयों में शामिल है.
सेंट पीटर्सबर्ग के गवर्नर एलेक्ज़ेंडर बेग्लोव के साथ भी वे सालों से सार्वजनिक बहस में शामिल हैं. उन्होंने बेग्लोव पर "यूक्रेनी सेना की मदद करने" का आरोप तक लगाया है.
पुतिन के कुछ सहयोगी ही चेचन्याई राष्ट्रपति रमज़ान कादिरोव जितने वफ़ादार हैं जिन्हें रूसी नेता ने 2007 में उत्तरी काकेशस क्षेत्र के स्वायत्तशासी गणराज्य पर शासन करने के लिए चुना था.
1990 के दशक में चेचन्या रूस से आज़ादी के लिए लड़ा, लेकिन उसमें कामयाबी नहीं मिली. कादिरोव के शासन के तहत चेचन्या की आज़ादी की सभी कोशिशें बंद हो गईं जबकि क्षेत्र में मानवाधिकार का हनन होने लगा. कादिरोव की निजी सेना जिसे कादिरोव्त्सी कहा जाता है, पर व्यापक तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे हैं.
वह शुरू से ही यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के मुखर समर्थक रहे हैं. इतना ही नहीं अपनी कादिरोव्त्सी सैन्य इकाइयों को भी उन्होंने यूक्रेन भेजा है और दावा किया कि उनके लड़ाके रूसी सैन्य बल में शामिल सबसे अच्छी तरह से प्रशिक्षित, सबसे बहादुर और क्रूर सैनिकों में हैं.
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कादिरोव की निजी सेना के लड़ाके कठोर हो सकते हैं, लेकिन कुछ विश्लेषक उन्हें टिकटॉक सैनिकों के तौर पर चिह्नित करते हैं, यानी ऐसे सैनिक जो वास्तविकता में लड़ने के बदले सोशल मीडिया पर अपने कारनामों के वीडियो पोस्ट करने में दिलचस्पी लेते हैं.
वहीं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि चेचन्याई सैनिकों में बड़ी संख्या में वैसे सैनिक हैं जिन्हें उनकी इच्छा के विपरीत भर्ती किया गया है. आरोपों के मुताबिक़ इन लोगों के परिवार वालों से जबरन वसूली या शारीरिक यातना दिए जाने की धमकी देकर इन्हें भर्ती किया गया है.
पुतिन शासन उनकी वफ़ादरी की सराहना करता रहा है, इसका एक संकेत उन्हें ब्रिगेडियर जनरल से कर्नल जनरल के तौर पर पदोन्नत किए जाने से भी मिलता है.
दोनों की इतनी अहमियत क्यों है?
इन दोनों को पहले कभी एक-दूसरे के सहयोगी के तौर पर नहीं देखा गया, लेकिन अब कादिरोव और प्रिगोझिन के सुर आपस में मिले दिखते हैं.
चेचन्याई नेता ने सेंट पीटर्सबर्ग के व्यवसायी को 'जन्म से एक योद्धा' और उनके वैगनर भाड़े के सैनिकों को 'रूस के निडर देशभक्त' की संज्ञा दी है. इसके जवाब में प्रिगोज़िन ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा है, 'रमज़ान, तुम अपने सर्वश्रेष्ठ आक्रामक अंदाज़ में हो.'
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ये दोनों सैन्य प्रतिष्ठान की आलोचना करते हैं जिसका प्रतिनिधित्व रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और उनके डिप्टी और सेना प्रमुख जनरल वालेरी गेरासिमोव करते हैं. बहुत संभव है कि यूक्रेन में विफलताओं के लिए ज़िम्मेदार लोगों के नाम लेने और उन्हें शर्मसार करने का माहौल बनाकर दोनों शीर्ष नेतृत्व के और भरोसेमंद साबित होने की कोशिश कर रहे हों.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ना तो चेचन्याई नेता और ना ही वैगनर प्रमुख, अकेले दम पर इतने प्रभावी हो सकते हैं, जितने वे एक साथ होने पर दिख रहे हैं. सरकारी शीर्ष अधिकारियों के बीच दोनों ख़ासे अलोकप्रिय हैं और दोनों को बाहरी के तौर पर देखा जाता है.
लेकिन अगर वे सेना में शामिल हो जाते हैं तो दोनों मतभेद की स्थिति में राष्ट्रपति पुतिन के निकटतम लोगों को चुनौती देने की स्थिति में आ सकते हैं.
रूसी राजनीतिक विश्लेषक अब्बास गैलियामोव का कहना है कि युद्ध का सामना कर रहे देश में कादिरोव और प्रिगोझिन का व्यवहार बेहद असामान्य है.
उन्होंने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रपति पुतिन द्वारा स्थापित संघीय व्यवस्था की वर्टिकल प्रणाली सेना में काम नहीं कर रही है जहां इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है."
अब्बास गैलियामोव के मुताबिक़, यह आराजकता का माहौल भी दर्शाता है जहां विभिन्न सैन्य इकाइयों के कमांडर एक टीम के रूप में लड़ने के बजाए एक-दूसरे से बहस कर रहे हैं.
अमेरिकन इंस्टीट्यूट फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ वॉर के विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति पुतिन के क़रीबी लोग व्यापक तौर पर दो गुट में बंटे हुए हैं. एक गुट वह है जो पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से बची-खुची संपत्ति को बचाने के लिए युद्ध को रोकने के पक्ष में है और दूसरा गुट इसे जारी रखने के पक्ष में है.
रूस के ये दोनों प्रभावी लोग चाहते हैं कि युद्ध जारी रहे. शायद यही संदेश रूस के शीर्ष नेता भी सुनने के लिए उत्सुक हैं और इसी वजह से उन्होंने ने दोनों को अपने क़रीब रखा है.
(आंद्रेई ज़खारोव और इल्या बारबानोव द्वारा अतिरिक्त रिपोर्टिंग के साथ)
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