सऊदी अरब के बिछड़ने से क्यों डरते हैं ट्रंप
हालिया वक़्त में ट्रंप प्रशासन ने इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट पर कड़े तेवर अपनाए हैं. दरअसल अफ़गानिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों के कथित कब्ज़े के मामले में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) मुक़दमा चलाने पर विचार कर रहा है.
इसके जवाब में सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने आईसीसी को दिए जाने वाले फ़ंड पर प्रतिबंध लगाने और इनके न्यायधीशों पर अमरीकी कोर्ट में आपराधिक मामले चलाने की चेतावनी दी है.
ये ऐसा वक़्त है जब अमरीका में एक अदूरदर्शी स्थिति बनी हुई है. ट्रंप प्रशासन पर दुनिया भर में हो रही नाइंसाफ़ी की वारदातों पर तमाशबीन बनकर देखते रहने के आरोप लग रहे हैं.
अमरीका इस मामले में अकेला नहीं है. चीनी इंटरपोल के प्रमुख मेंग हॉन्गवी को चीन प्रशासन के नज़रबंद करने का मामला या सैलिसबरी में केमिकल हमले में क्रेमलिन के संलिप्त होने के सुराग़ हो. इन सभी मामलों पर सरकारों ने चुप रहना ही ठीक समझा.
इसी कड़ी में बड़ा मामला सऊदी अरब के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी के लापता होने का है. जमाल ख़ाशोज्जी दो अक्टूबर को तुर्की के अंकारा स्थित सऊदी अरब के वाणिज्यिक दूतावास गए और वहां से वापस नहीं लौटे. लेकिन अब तक राष्ट्रपति ट्रंप ने इस मुद्दे पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा, जिससे लगे कि वो मानवाधिकारों को लेकर चिंतित हैं.
दुनिया भर के देशों में अधिनायकवाद चरित्र वाले सत्ता पर क़ाबिज हो रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय नियमों को धत्ता बता रहे हैं. यह एक नए युग की शुरुआत है, जहां मूल्यों पर हित हावी हैं.
पारंपरिक तौर पर अमरीका हमेशा नियमों का पालन करने वाला देश रहा है. इसे नेतृत्व का नैतिक उदाहरण माना जाता रहा है. दुनिया भर के देशों की ग़लत गतिविधियों पर अमरीका लगभग मुखर होकर सामने आया है.
लेकिन हाल के वक़्त में डोनल्ड ट्रंप ने अपनी भूमिका से लोगों को निराश किया है. इसके साथ ही एक ख़तरा ये भी पैदा हो रहा है कि क्या ट्रंप के देशभक्ति के सिद्धांत के ज़रिए अमरीका दुनिया में एक नकारात्मक संदेश तो नहीं दे रहा.
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क्या अमरीका में लाल, सफ़ेद और नीले रंग के झंडे के साथ दिया गया 'अमरीका फर्स्ट' का नारा दुनिया को एक हरी झंडी तो नहीं दे रहा जिसकी आड़ में बाक़ी देश अपनी मनमानी कर सकें.
आख़िर खुलकर क्यों नहीं बोल रहे ट्रंप?
बुधवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी अरब के पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी के संदिग्ध परिस्थिति में लापता होने के मामले को 'बेहद गंभीर' बताया. कहा गया कि अमरीका इस मामले में रियाद के साथ उच्च स्तर पर अपनी चिंता ज़ाहिर कर चुका है.
अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन और ट्रंप के दामाद जैरेड कशनर ने सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से इस मामले में बात की और व्हाइट हाउस के अधिकारी जल्द ही जमाल ख़ाशोज्जी की मंगेतर हदीजे जेनगीज़ से मुलाक़ात करेंगे.
इन सब के बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी अरब की निंदा या आलोचना नहीं की है. इसके अलावा रैलियों में अपनी राय खुलकर रखने वाले ट्रंप ने लोवा की रैली में एक बार भी लापता पत्रकार का ज़िक्र नहीं किया.
https://twitter.com/realDonaldTrump/status/1052268011900555265
इससे साफ़ है कि व्हाइट हाउस किसी भी तरह के जजमेंट और रियाद से जवाब मांगने पर कोई जल्दबाज़ी नहीं चाहता. ट्रंप अपने क़रीबी सऊदी पर किसी भी तरह की तीखी टिप्पणी करने से बचना चाहते हैं.
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फॉरेन रिलेशन कमिटी के प्रमुख बॉब कॉरकर का कहना है, ''अगर सऊदी इस मामले में दोषी पाया जाता है इसके परिणाम बुरे होंगे.''
इसके अलावा गोल्फ़ बडी की प्रमुख लिंडसे ग्राहम कहती हैं, ''व्हाइट हाउस से इस पूरे मामले पर बड़ा बयान ना आने की एक वजह ये भी है कि इसका परिणाम अमरीका-सऊदी के रिश्तों के लिए भयानक हो सकता था.''
अपने पहले सऊदी अरब के दौरे पर राष्ट्रपति ट्रंप ने सऊदी नेताओं के साथ एक रौशनी से भरे ग्लोब पर हाथ रखा था. यहीं से दोनों देश के नेताओं के दोस्ती का सफ़र शुरू हुआ.
अमरीका ने सऊदी अरब के यमन में की गई बमबारी को भी अपना समर्थन दिया. बुधवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने 33 वर्षीय प्रिंस सलमान की तारीफ़ में उन्हें 'एक भला आदमी' बताया था.
मज़बूत नेताओं पर ट्रंप की टिप्पणी
ट्रंप की विदेश नीति का एक सबसे अहम हिस्सा ये है कि वे दुनिया के तमाम शक्तिशाली नेताओं की तारीफ़ करते हैं. मसलन किम जोंग उन को बेहतरीन शख़्स बताने जैसे बयान.
किम जोंग उन एक ऐसे शासक हैं जिन पर नृशंस हत्या और हिंसा के कई आरोप लगते रहे हैं. इसके वाबजूद ट्रंप ने अपनी वर्जिनिया की रैली में कहा कि उन्हें किंम जोंग उन से 'प्यार' हो गया.
इतना ही नहीं ट्रंप मिस्र के निरंकुश शासक अब्देल फ़तेह अल-सीसी को भी 'बेहतरीन शख्स' बता चुके हैं. ऐसे कई विवादित नेताओं के नाम ट्रंप की लिस्ट के हिस्सा हैं.
ट्रंप प्रशासन की आवाज़ संयुक्त राष्ट्र में रखने वाली निकी हेली के इस्तीफ़े से भी ट्रंप प्रशासन को झटका लगा है. इस साल के अंत तक उनके पद छोड़ने के बाद इस प्रशासन से एक ऐसी आवाज़ भी छिन जाएगी जो अंतरराष्ट्रीय नियमों की बड़ी रक्षक मानी जाती रही हैं.
निकी हेली मॉस्को और दमिष्क की बड़ी आलोचक रही हैं. लेकिन उन्हें भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल से अमरीका के हटने के फ़ैसले पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा.
जब अमरीका ने अपनाया कड़ा रुख़
ऐसा भी नहीं है कि अमरीका ने किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर हरकत नहीं की है. असद शासन के केमिकल हमलों के ख़िलाफ़ अमरीका के हवाई हमले उसकी प्रतिक्रिया का एक हिस्सा है.
हालिया वक़्त में ट्रंप प्रशासन ने इंटरनैशनल क्रिमिनल कोर्ट पर कड़े तेवर अपनाए हैं. दरअसल अफ़गानिस्तान में तैनात अमरीकी सैनिकों के कथित कब्ज़े के मामले में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) मुक़दमा चलाने पर विचार कर रहा है.
इसके जवाब में सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने आईसीसी को दिए जाने वाले फ़ंड पर प्रतिबंध लगाने और इनके न्यायधीशों पर अमरीकी कोर्ट में आपराधिक मामले चलाने की चेतावनी दी है.
राष्ट्रपति ट्रंप आजकल अपने घरेलू दुश्मनों को ही आड़े हाथों ले रहे हैं. वे पत्रकार ख़ाशोज्जी के विषय पर कुछ भी साफ़ तौर पर नहीं बोल रहे हैं.
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