रूस के ख़िलाफ़ जंग में यूक्रेन को पश्चिमी देश दे रहे हैं कौन-कौन से हथियार?
पश्चिमी देशों ने हथियारों और दूसरे साजो-सामानों से यूक्रेन की खूब मदद की है. लगभग 30 देशों ने यूक्रेन को युद्ध के हथियार और मिलिट्री उपकरण मुहैया कराए हैं.
रूस और यूक्रेन के बीच जंग को अगले महीने एक साल पूरा हो जाएगा. ये जंग जब शुरू हुई थी तो लग रहा था कि रूस के सामने यूक्रेन को घुटने टेकने में देर नहीं लगेगी लेकिन यूक्रेन डटा हुआ है.
इस बीच, पश्चिमी देशों ने यूक्रेन की हथियारों और दूसरे साजो-सामान से खूब मदद की है. लगभग 30 देशों ने भारी तादाद में यूक्रेन को युद्ध के हथियार और मिलिट्री उपकरण मुहैया कराए हैं.
इसी सप्ताह अमेरिका ने यूक्रेन को बख्तरबंद गाड़ियों समेत दो अरब डॉलर की मदद की है.
ब्रिटेन ने कहा है कि वो यूक्रेन को अपने 'चैलेंजर 2 टैंक' भेजेगा. भारी दबाव के बाद जर्मनी भी 'लेपर्ड 2 टैंक' यूक्रेन भेजने के लिए तैयार हो गया है.
यूं तो पश्चिमी देश यूक्रेन को लगातार हथियार भेज रहे हैं. लेकिन युद्ध के लगातार बदलते माहौल में यूक्रेन की जरूरतें भी बदल रही हैं.
आइए देखते हैं कि यूक्रेन को फिलहाल कौन से हथियारों की सप्लाई की जा रही और उसे अभी और किन-किन हथियारों और साजोसामान की उसे ज़रूरत है.
टैंक
यूक्रेन की मांग के बाद ब्रिटेन इसे 14 'चैलेंजर 2 टैंक' देने को राजी हो गया है. 'चैलेंजर 2' ब्रिटिश आर्मी का मुख्य युद्धक टैंक है.
'चैलेंजर 2 टैंक' 1990 के दशक में बनाए गए थे. लेकिन ये ब्रिटेन के दूसरे टैंकों से काफी उन्नत हैं.
यूक्रेन मौजूदा युद्ध से पहले वारसा संधि के तहत मिलने वाले टी-72 (T-72) टैंकों का इस्तेमाल करता रहा है.युद्ध शुरू होने के बाद उसे पोलैंड, चेक रिपब्लिक और दूसरे देशों से 200 से ज़्यादा टी-72 टैंक मिले हैं.
रूसी हमले के कुछ महीनों के बाद पश्चिमी देश नेटो स्टैंडर्ड के हथियार के बजाय वारसा-यूक्रेन संधि के मुताबिक़ हथियारों की सप्लाई करने लगे थे. क्योंकि यूक्रेन के पास इन हथियारों को इस्तेमाल के दौरान काम आने वाला ट्रेनिंग दल, स्पेयर पार्ट्स और मेंटनेंस क्षमता मौजूद हैं.
अगर यूक्रेन को नैटो स्टैंडर्ड के टैंक दिए जाएं तो उसे लॉजिस्टिक सपोर्ट की एक पूरी रेंज की जरूरत पड़ेगी, जो अभी उसके पास नहीं है.
जर्मनी 'लेपर्ड 2' टैंक दे रहा है. दरअसल 'लेपर्ड 2' का रखरखाव आसान है और दूसरे कुछ यूरोपीय टैंकों की तुलना में इसे चलाने में ईंधन भी कम खर्च होता है. इस समय यूरोप के कई देश इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
लड़ाकू वाहन
सेना में काम करने वाले पेशेवर विशेषज्ञों के मुताबिक़ युद्ध के मैदान में काफी विस्तृत रेंज के साजोसामान, समन्वय के मुताबिक तैनाती और अहम लॉजिस्टिक सपोर्ट की भी जरूरत होती है तभी सफलता मिलती है.
यूक्रेन को हाल में जो युद्धक वाहन दिए गए गए हैं, उनमें स्ट्राइकर शामिल है. गुरुवार को अमेरिका ने एलान किया है उसने यूक्रेन को 90 स्ट्राइकर भेजे हैं.
इसके अलावा अमेरिका से यूक्रेन को और 59 ब्रेडली इन्फैंट्री लड़ाकू विमान भेजे गए हैं. इराक में अमेरिकी फौज ने इसका काफ़ी इस्तेमाल किया गया है.
एयर डिफेंस
अमेरिका ने 21 दिसंबर को एलान किया था कि वह यूक्रेन को अपनी 'पैट्रियट मिसाइलों' की खेप भेज रहा है.
इसके बाद गुरुवार को जर्मनी और नीदरलैंड ने भी कहा कि वो यूक्रेन को 'पैट्रियट लॉन्चर' और मिसाइलें देंगे.
इस बेहतरीन सिस्टम की रेंज 100 किलोमीटर तक है. हालांकि ये इस बात पर निर्भर है कि सिस्टम से फायर की जाने वाली मिसाइलें कैसी हैं. इसे चलाने के लिए यूक्रेनी फौज को ट्रेनिंग की जरूरत होगी. जर्मनी में एक अमेरिकी बेस में ये ट्रेनिंग दी जा सकती है.
लेकिन इस सिस्टम को ऑपरेट करना काफी महंगा है. एक 'पैट्रियट मिसाइल' 30 लाख डॉलर की पड़ती है.
युद्ध की शुरुआत से यूक्रेन सोवियत युग के ज़मीन से हवा में मार करने वाले सिस्टम 'एस-300' का इस्तेमाल कर रहा है.
अमेरिका ने यूक्रेन को 'नैसेम्स मिसाइलें' भी दी हैं. पहली 'नैसेम्स मिसाइल' नवंबर में यूक्रेन पहुंची थी.
इसके अलावा ब्रिटेन ने 'स्टारस्ट्राइक' समेत कई एयर डिफेंस सिस्टम दिए हैं. ये शॉर्ट रेंज में नीचे उड़ान भरने वाले विमानों को भेदने में कारगर हैं.
जर्मनी ने 'आईआरआईएस-टी एयर डिफेंस सिस्टम' मुहैया कराए हैं. यह 20 किलोमीटर ऊंचाई पर आने वाली मिसाइलों को ध्वस्त कर सकता है.
लंबी रेंज के रॉकेट
अमेरिका ने यूक्रेन को जो लंबी रेंज के रॉकेट लॉन्चर दिए हैं उनमें 'एम142 हाई मोबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट सिस्टम' यानी 'हिमार्स' शामिल हैं. कुछ यूरोपीय देशों ने भी ऐसे ही मिलते-जुलते एयर सिस्टम भेजे हैं.
यूक्रेन को रूसी सेना को पीछे हटाने में जो सफलता मिली है, उसमें इसकी अहम भूमिका मानी जा रही है. खासकर दक्षिण इलाके खेरसोन में मिली सफलता में इसका बड़ा हाथ रहा है.
'हिमार्स' के साथ खास बात ये है कि ये गोला-बारूद इस्तेमाल करने के हिसाब से अपनी रेंज बदल देता है. हालांकि ये माना जा रहा है कि यूक्रेन को ये मिसाइलें देने वाले देशों ने लंबी रेंज में इस्तेमाल होने वाला गोला-बारूद नहीं भेजा है.
'हिमार्स सिस्टम' इसके समकक्ष रूसी सिस्टम की तुलना में ज्यादा सटीक हमले करता है.
होवित्ज़र
लड़ाई के कुछ महीनों बाद लड़ाई का केंद्र यूक्रेन की राजधानी कीएव से देश के पूरब में केंद्रित हो गया था. यहां यूक्रेन को आर्टिलरी की काफी जरूरत थी.
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका उन देशों में शामिल थे जिन्होंने यहां 'एम 777 होवित्जर तोप' और उसमें इस्तेमाल होने वाला गोला-बारूद भेजा था.
'एम 777' की रेंज भी रूस के 'जियेतसिंत-बी होवित्ज़र' के बराबर है. रूस की 'डी-30 टो गन' की तुलना में इसकी रेंज लंबी है.
एंटी टैंक हथियार
टैंकों को एक ही वार में उड़ाने वाले हज़ारों एनलॉ हथियार विकसित किए गए.
बड़ी तादाद में ये हथियार यूक्रेन को मुहैया कराए गए.
माना जाता है रूसी सेना को आगे बढ़ने से रोकने में इसने अहम भूमिका अदा की है.
रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट के जस्टिन ब्रोंक का कहना है, "युद्ध के शुरुआती चरणों में ज़मीन पर रूसी सेना के वर्चस्व को तोड़ने में इस हथियार का काफी बड़ा रोल रहा है."
ड्रोन
अब तक के युद्ध में ड्रोन का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हुआ है. ड्रोन का इस्तेमाल निगरानी, निशाना लगाने और हैवी लिफ्ट ऑपरेशन में खूब हुआ.
तुर्की ने अपने 'बेरक्तार टीबी2 ड्रोन' यूक्रेन को सप्लाई किए थे. तुर्की की मैन्यूफैक्चरर्स कंपनी ने यूक्रेन के समर्थन में चलाए गए क्राउड फंडिंग ऑपरेशन में 'बेरक्तार टीबी2 ड्रोन' डोनेट किया था.
विश्लेषकों का कहना है कि 'टीबी2 बेरक्तार ड्रोन' काफी सफल साबित हुए हैं. ये ड्रोन 25 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ते हुए तेजी से नीचे उतरते और लेजर गाइडेड मिसाइलों के जरिये रूसी ठिकानों पर हमले करते हैं.
माना जाता है कि इन ड्रोन्स ने रूसी हेलीकॉप्टरों, नौसैनिक जहाजों और मिसाइल सिस्टमों को भारी नुकसान पहुंचाया.
ये ड्रोन रूसी सैन्य अड्डों की सटीक लोकेशन में भी ढूंढ निकालने में काफ़ी कामयाब रहे हैं. इसकी वजह से रूसी सेना के कई ठिकाने तबाह हुए हैं.
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