क्या है चीन की 'सलामी स्लाइसिंग पॉलिसी'? जिससे नेपाल के क्षेत्र पर किया कब्जा और भारत पर है खतरा
चीन की सलामी स्लाइसिंग पॉलिसी क्या है, जिसके जरिए उसने नेपाल के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है और भारत की चिंता बढ़ा रहा है।
नई दिल्ली, नवंबर 01: भारत समेत दूसरे हिमालयन देशों के लिए चीन लगातार मुसीबत का सबब बना हुआ है और पिछले साल भारत के साथ चीनी सेना की हिंसक झड़प भी हो चुकी है। लेकिन, इन सबके बीच पता चला है कि, चीन ने फिर से 'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' का इस्तेमाल दूसरे देशों की जमीन काटने के लिए कर रहा है। सिर्फ भारत के खिलाफ ही नहीं, बल्कि नेपाल और भूटान जैसे छोटे देशों के खिलाफ भी चीन इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। ऐसे में आईये जानते हैं कि, आखिर 'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' क्या है और इससे हिमालय देशों पर कितना खतरा मंडरा रहा है?
चीन का 'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक'
चीन सलामी-स्लाइसिंग तकनीक का प्रभावी ढंग से उपयोग न केवल सीमावर्ती इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कर रहा है, बल्कि धीरे-धीरे दूसरे देश की जमीन को भी काट रहा है और अपने हिस्से में मिलाने की कोशिश कर रहा है। बीजिंग ने भूटानी जमीन और नेपाल के हुमला क्षेत्र पर इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कब्जा कर लिया है। चीन ने तिब्बत में अपनी सैन्य सुविधाओं को भी मजबूत किया है, जबकि इस क्षेत्र में सैन्य बुनियादी ढांचे की वृद्धि देखी जा रही है। जिसमें हेलिपोर्ट और मिसाइल बेस बनाना भी शामिल हैं। आईएफएफआरएस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, भारत से लगती सीमा पर तिब्बत के पास रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर या तो चीन कब्जा कर चुका है, या फिर चीन उन क्षेत्रों पर अपना दावा पेश कर चुका है।
भूटान और नेपाली जमीन पर कब्जा
भारत और चीन के बीच तो सीमा को लेकर विवाद हो ही रहे हैं और भारत के साथ तो चीन की सेना की झड़प भी हो चुकी है, लेकिन दिक्कत ये है कि, जो नेपाल आंख मूंदकर चीन पर भरोसा कर रहा है, उसकी जमीन पर भी चीन कब्जा कर रहा है और नेपाल के कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता हों, या फिर नेपाली कांग्रेस के नेता, उन्हें बीजिंग के सुरसा जैसे मुंह की कोई चिंता नहीं है। नेपाल के हुमला क्षेत्र पर चीन का कब्जा 'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' का ही एक हिस्सा है। वहीं, भूटान की जमीन पर भी चीन इसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कब्जा कर चुका है।
'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' क्या है?
'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' के तहत चीन पहले रेशमकीट की तरफ जमीन के हिस्से को कुतरना शुकब करता है और धीरे-धीरे उसे निकल जाता है, और चीन की इस हरकत से दूसर देश या तो अनजान रहते हैं, या फिर कई बार अनजान बने रहते हैं। लेकिन, एक बार कब्जा करने के बाद चीन उस क्षेत्र पर अपना दावा पेश करते हुए उन इलाकों पर हड़प लेता है। नेपाली गृह मंत्रालय द्वारा गठित एक पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की पुष्टि हो गई है कि, नेपाल के हुमला जिले के एक बड़े हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया है। नेपाली गृहमंत्रालय द्वारा गठित पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि, चीन ने अपनी उपस्थिति दिखाने के प्रयास में हुमला जिले में नेपाल के क्षेत्र में बाड़ और तार लगा दिए हैं।
नेपाल के बड़े हिस्से पर चीन की नजर
नेपाली गृह मंत्रालय का हवाला देते हुए नेपाली समाचार पत्र काठमांडू पोस्ट ने बताया है कि, हुमला जिले में नेपाल-चीन सीमा पर कई क्षेत्रों की पहचान की गई है, जहां चीन ने कब्जा कर लिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, सीमा स्तंभ संख्या 4 से 13 तक चीन ने बाड़ेबंदी कर दी है और गृहमंत्रालय की टीम ने हुमला में नेपाल-चीन सीमा पर एक दर्जन से ज्यादा उन समस्याओं की पहचान कर रिपोर्ट सौंपी है, जिन्हें चीन ने बनाया है। कमेटी ने एक दर्जन से ज्यादा सिफारिशें नेपाली गृह मंत्रालय को की हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 1963 के बाद से सीमा प्रोटोकॉल ने स्तंभ संख्या 5 (2) से 'किट खोला' के मध्य तक के क्षेत्र को दोनों देशों के बीच की सीमा के रूप में चिह्नित किया है और यह क्षेत्र नेपाल का है। नेपाल के जमीन पर कब्जे के बाद अब चीन की सीमा से लगने वाले दूसरे देश भी उस गर्मी से परेशान नजर आ रहे हैं, क्योंकि चीन का ये भूख कभी खत्म होने वाला नहीं है।
'सलामी-स्लाइसिंग तकनीक' का इस्तेमाल
सैन्य भाषा में देखें तो 'सलामी स्लाइसिंग' शब्द को एक रणनीति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसमें विरोध को दूर करने और नए क्षेत्रों का अधिग्रहण करने के लिए खतरों और गठबंधनों की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है और उसके जरिए नये क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया जाता है। इस प्रक्रिया को शुरू में काफी गुप्त और योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया जाता, लेकन बात में काफी आक्रामक तरीके से कार्रवाई की जाती है, जिससे दुश्मन खेमे में अचानक खलबली मच जाती है। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर अपमानजनक रूप से किया जाता है। चीन के संदर्भ में, सलामी स्लाइसिंग दक्षिण चीन सागर और हिमालयी क्षेत्रों में क्षेत्रीय विस्तार की अपनी रणनीति को दर्शाता है। कई लोगों का मानना है कि डोकलाम गतिरोध हिमालय में चीन की सलामी स्लाइसिंग की रणनीति का परिणाम था।
चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति
पूरी दुनिया में चीन एकमात्र ऐसा देश है, जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी अपनी सीमा का लगातार विस्तार कर रहा है और अपने पड़ोसी देशों से युद्ध कर रहा है। चीन ने यह विस्तार क्षेत्रीय और समुद्री दोनों क्षेत्रों में किया है। तिब्बत का अधिग्रहण, अक्साई चिन पर कब्जा और पैरासेल द्वीपों का विलय चीनी विस्तारवादी नीति के कुछ ताजा और ज्वलंत उदाहरण हैं। चीन अपने पड़ोस में एक क्षेत्र का अधिग्रहण करने के लिए एक विशेष पैटर्न का अनुसरण करता है। चीन पहले एक क्षेत्र पर दावा करता है और सभी प्लेटफार्मों और सभी संभावित अवसरों पर अपना दावा बार-बार दोहराता रहता है। यह दूसरे पक्ष के दावे को इस हद तक विवादित करने वाला एक प्रचार शुरू करता है कि, विचाराधीन क्षेत्र को चीन और दूसरे देश के बीच विवाद के रूप में मान्यता मिल जाती है। विवाद को सुलझाने में चीन अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताकत का इस्तेमाल अपने हिस्से को हासिल करने के लिए करता है।
सलामी स्लाइसिंग का कब से इस्तेमाल
जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने 1948 में मुख्य भूमि चीन में कुओमिन्तांग शासन को समाप्त कर दिया, उस वक्त तिब्बत बौद्ध भिक्षुओं के एक समूह द्वारा शासित एक स्वतंत्र देश था। जिसके बाद चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने तिब्बत पर आक्रमण किया और पूरे देश पर कब्जा कर लिया। चीन ने दावा किया कि, तिब्बत प्राचीन काल में चीन का हिस्सा था। तिब्बत के साथ-साथ चीन ने तिब्बत के पठार के पश्चिमी छोर पर लद्दाख के पूर्व में स्थित शिनजियांग पर भी कब्जा कर लिया। इन दो क्षत्रों ने चीनी क्षेत्र को दोगुना कर दिया। 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया और भारतीय क्षेत्र के अंदर सैकड़ों किलोमीटर की घुसपैठ की। कुछ हफ्तों के बाद चीन ने पूर्वी क्षेत्र से अपनी सेना वापस ले ली। लेकिन, इसने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया और उसे चीन का हिस्सा घोषित कर दिया।
सलामी स्लाइसिंग का भारत पर इस्तेमाल
भारत-चीन सीमाओं के साथ, बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश के 90,000 वर्ग किमी पर दावा कर रखा है और चीन इसे दक्षिण तिब्बत कहता है। इसके साथ ही चीन ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के छोटे क्षेत्रों पर भी अपना दावा कर रखा है। चीन पहले ही पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में काराकोरम के उत्तर में लगभग 6,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का अधिग्रहण कर चुका है। चीन डोकलाम पठार पर नजर गड़ाए हुए है क्योंकि इससे उसे सिलीगुड़ी कॉरिडोर या 'चिकन नेक' पर नजर रखने में फायदा होगा, जो पूर्वोत्तर भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।
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