चीन के पड़ोस में किम-ट्रंप की मुलाकात का क्या मतलब
उन्होंने आगे कहा, "व्यापक संहार के हथियारों पर रोकथाम के प्रति वियतनाम की प्रतिबद्धता रही है. उसने उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों का भी समर्थन किया है. अमरीका इन बातों को समझता है."
अमरीका-उत्तर कोरिया का ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वियतनाम अपनी कूटनीतिक क्षमता के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए बेकरार है. विदेशी निवेश लुभाने के लिए भी उसके पास यह एक मौक़ा है.
ये मार्च, 1965 की बात है जब वियतनाम के डानांग शहर में पहली बार अमरीकी फ़ौज ने कदम रखे थे.
दक्षिण पूर्वी एशिया में पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच की जंग में अमरीकी दखलअंदाज़ी की यह एक तरह से शुरुआत थी.
अब तकरीबन 40 साल बाद यही शहर वियतनाम के पुराने दुश्मन रहे अमरीका और शीत युद्ध के दिनों के साथी उत्तर कोरिया की मेज़बानी की तैयारियां कर रहा है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन से दूसरी मुलाक़ात की तस्दीक कर दी है.
ये मुलाक़ात 27 और 28 फ़रवरी को वियतनाम में होगी.
हालांकि मुलाक़ात की जगह को लेकर फिलहाल कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गई है लेकिन माना जा रहा है कि डानांग या हनोई में से किसी एक को चुना जा सकता है.
वियतनाम ही क्यों?
आखिरकार इस मुलाक़ात के लिए वियतनाम को ही क्यों चुना गया, इसके पीछे भी वजहें हैं.
साम्यवादी शासन लेकिन पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाला वियतनाम अमरीका और उत्तर कोरिया दोनों का ही क़रीबी मुल्क है.
कार्ल थायेर ऑस्ट्रेलिया की साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में वियतनाम मामलों के जानकार हैं. उनका कहना है कि वियतनाम की स्थिति एक ऐसे तटस्थ मेज़बान की है जो अमरीका और उत्तर कोरिया की सभी कसौटियों पर खरा उतरता है.
प्रोफ़ेसर कार्ल थायेर ने बीबीसी की वियतनामी सेवा से कहा, "ट्रंप-किम की दूसरी मुलाक़ात के लिए वियतनाम के चयन का फ़ैसला महज सांकेतिक नहीं है."
"वियतनाम के नाम पर बनी सहमति का सबब इससे भी समझा जा सकता है कि शिखर सम्मेलन के लिए सुरक्षित माहौल मुहैया कराने की वियतनाम की काबिलियत की कद्र दोनों ही देश करते हैं."
"अमरीका और उत्तर कोरिया दोनों को ही इस बात पर यकीन है कि वियतनाम एक तटस्थ मेज़बान है."
वियतनाम के नाम पर किम क्यों हुए रज़ामंद
किम जोंग उन के लिए वियतनाम का फासला चीन के ऊपर से एक सुरक्षित उड़ान भर का है. चीन और वियतनाम दोनों ही ऐसे मुल्क हैं जिनसे उत्तर कोरिया के अच्छे रिश्ते हैं.
थायेर की राय में "किम जोंग उन पहली बार वियतनाम की यात्रा करेंगे. इस यात्रा को वे यह साबित करने के मौके के तौर पर भी देख रहे हैं कि उत्तर कोरिया कोई अलग-थलग पड़ा देश नहीं है."
प्रोफ़ेसर थायेर कहते हैं, "अमरीका के ख़िलाफ़ पहले लड़ाई लड़ने और फिर उसके साथ कूटनीतिक रिश्तों की बहाली का वियतनाम का इतिहास, मुक्त व्यापार समझौतों के लिए वार्ता... ऐसी तमाम बातें हैं जिनमें उत्तर कोरिया के निज़ाम की दिलचस्पी हो सकती है."
सिंगापुर के ISEAS-युसोफ इशाक इंस्टीट्यूट में वियतनाम मामलों के जानकार ले होंग हीप ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को बताया, "किम जोंग उन खुद भी वियतनाम की कहानी को देखने के लिए उत्सुक होंगे. ये उनके लिए एक अच्छा प्रेरणा स्रोत हो सकता है कि वे कैसे उत्तर कोरिया को आगे ले जा सकते हैं."
ट्रंप की सहमति का मतलब?
अगर किम जोंग उन वियतनाम की आर्थिक सफलता से प्रेरित हो सकते हैं तो ये वो बात होगी जो अमरीका के पक्ष में जा सकती है. साल 1986 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत के बाद से ही वियतनाम ने समाजवाद की तरफ़ ले जानी वाली बाज़ार अर्थव्यवस्था खड़ी करने का लक्ष्य रखा है.
आज वियतनाम एशिया की सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. पिछले साल अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने अपनी वियतनाम यात्रा के दौरान कहा था कि किम जोंग उन अगर अवसर का फ़ायदा उठा सकें तो वे उत्तर कोरिया में चमत्कार कर सकते हैं.
ट्रंप ने साल 2017 में एपेक सम्मेलन के दौरान वियतनाम यात्रा की थी और प्रोफ़ेसर थायेर का मानना है कि वियतनाम एक 'कम्फ़र्ट ज़ोन' की तरह महसूस कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा, "व्यापक संहार के हथियारों पर रोकथाम के प्रति वियतनाम की प्रतिबद्धता रही है. उसने उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों का भी समर्थन किया है. अमरीका इन बातों को समझता है."
अमरीका-उत्तर कोरिया का ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वियतनाम अपनी कूटनीतिक क्षमता के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए बेकरार है. विदेशी निवेश लुभाने के लिए भी उसके पास यह एक मौक़ा है.
शिखर सम्मेलन के लिए वियतनाम के चयन की घोषणा का दक्षिण कोरिया ने भी स्वागत किया है.
ये भी पढ़ेंः