यूक्रेन में रूस के खिलाफ कैसे अमेरिका लड़ रहा प्रॉक्सी वार! बाइडेन का ये खेल पड़ेगा दुनिया को भारी?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शनिवार को यूक्रेन को अमेरिकी सहायता में 40 बिलियन अमरीकी डालर का समर्थन करने वाले कानून पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद यूक्रेन को 40 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद देने का रास्ता साफ हो गया है।
नई दिल्ली, मई 22: कुछ लोग इस बात से असहमत हो सकते हैं, कि 30 सदस्य देशों वाला सैन्य संगठन रूस की क्षमता और धैर्य का परीक्षण करने के लिए यूक्रेन का उपयोग कर रहा है। हथियारों, धन की बढ़ती आपूर्ति और यहां तक कि गुप्त रूप से यूक्रेन में सैनिकों को भेजने से संकेत मिलता है, कि नाटो रूस के खिलाफ चतुराई से यूक्रेन को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर एक छद्म युद्ध लड़ रहा है। 24 फरवरी को शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त होने के कोई संकेत नहीं दिखा रहा है, क्योंकि नाटो यूक्रेन के रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए यूक्रेन को अरबों डॉलर के हथियारों की आपूर्ति कर रहा है और अमेरिकी राष्ट्रपति ने 40 अरब डॉलर की एक सहायता राशि और साइन की है, जिसे मिलाकर कुल अमेरिकी सहायता रूस के रक्षा बजट से भी ज्यादा हो गया है। ऐसे में सवाल ये पूछे जा रहे हैं, कि क्या वो अमेरिका है, जो हाई लेवल पर प्रॉक्सी वार लड़ रहा है।
56 अरब डॉलर की सहायता
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शनिवार को यूक्रेन को अमेरिकी सहायता में 40 बिलियन अमरीकी डालर का समर्थन करने वाले कानून पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद यूक्रेन को 40 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद देने का रास्ता साफ हो गया है। इस अमेरिकी कानून को अमेरिका की दोनों राजनीतिक पार्टियों ने समर्थन किया था और संसद में इस कानून को पारित कर दिया गया है। अमेरिका ने कहा है कि, इस कानून का पास होना यूक्रेन की मदद करने के अमेरिकी संकल्प की प्रतिबद्धता को जताता है। अमेरिकी अधिकारियों ने इसके साथ ही यूक्रेन में लंबे वक्त चलने वाले संघर्ष की चेतावनी दी है। इससे पहले अमेरिका यूक्रेन को पहले ही 13.6 अरब डॉलर की सहायता दे चुका है और ये तमाम अमेरिकी मदद फरवरी में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद दिए गये हैं। यानि, अमेरिका अभी तक यूक्रेन को मदद के नाम पर 53.6 अरब डॉलर की सहायता दे चुका है।
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रूस के रक्षा बजट से ज्यादा
भारत के मशबूर रक्षा विशेषज्ञ और विदेश मामलों के जानकर ब्रह्मा चेलानी सवाल उठाते हुए पूछते हैं, कि क्या ये अमेरिका का प्रॉक्सी वार नहीं है? ब्रह्रा चेलानी ने एक ट्वीट के जरिए सवाल उठाते हुए पूछा है कि, ‘बाइडेन के 40 अरब डॉलर के नए पैकेज पर हस्ताक्षर के साथ, यूक्रेन के लिए अमेरिकी सहायता अब 56.44 अरब डॉलर हो गई है। यह राशि रूस के 2022 के रक्षा बजट (51.3 बिलियन डॉलर) के मुकाबले थोड़ा ज्यादा है। यह अफगानिस्तान में अमेरिकी युद्ध की औसत वार्षिक लागत का लगभग दोगुना है'। उन्होंने कहा कि, रूस के साथ संघर्ष में अब तक का कुल अमेरिकी निवेश दर्शाता है, कि यह छद्म युद्ध अमेरिका द्वारा (अफगानिस्तान में) किए गए पिछले प्रमुख प्रत्यक्ष युद्ध की तुलना में पहले से ही महंगा है। और अमेरिका पर भी इसका असर पड़ रहा है और अमेरिका में महंगाई काफी ज्यादा बढ़ रही है और बाजार गिर रहे हैं।
यूक्रेन को उकसा रहे हैं पश्चिमी देश
यूक्रेन संकट के बीच कई ऐसे मौके आए, जहां लगा कि शायद अब ये युद्ध खत्म हो जाएगा और खुद यूक्रेनी राष्ट्रपति ने अपने बयानों में दोनों देशों की बातचीत को सकारात्मक बताया। लेकिन, उनके ऐसे बयानों के बाद युद्ध और भी ज्यादा बढ़ ही गया। ऐसे में सवाल पूछे जा रहे हैं, कि आखिर कौन सी ऐसी शक्ति है, जो युद्ध को खत्म नहीं होने देना चाह रहा है। लड़ाई जारी रखने के लिए यूक्रेन को पश्चिमी उकसावे केवल घातक हथियारों और धन की आपूर्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रूस को हमलावर के रूप में सेंसर करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी-नियंत्रित मीडिया सहित हर अंतरराष्ट्रीय मंच का उपयोग कर रहा है। जारी सशस्त्र संघर्ष को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को वार्ता की मेज पर एक साथ लाने का बहुत कम प्रयास किया गया है। इसके बजाय, पश्चिमी नेता, राष्ट्राध्यक्ष और मशहूर हस्तियां यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की, उनकी सरकार और सशस्त्र बलों के रूस से लड़ने के लिए मनोबल बढ़ाने के लिए नियमित रूप से यूक्रेन का दौरा कर रहे हैं।
यूक्रेन बना नेताओं का पर्यटन स्थल
यूक्रेन के राष्ट्रपति की पत्नी ओलेना ज़ेलेंस्का से मुलाकात करने के लिए 8 मई को पश्चिमी यूक्रेन के उज़होरोड में गोपनीयता की आड़ में अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी जिल बाइडेन पहुंची थी। इसके साथ ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, यूरोपीय संघ के अध्यक्ष वेन डेरेन उर्सुला के साथ साथ दर्जनों वैश्विक नेता राजनीतिक पर्यटन करने यूक्रेन पहुंच चुके हैं और किसी भी नेता ने शांति की बात नहीं की है, बल्कि रूस को सबक सिखाने की ही बात की है। अमेरिका चाहता है, कि यूक्रेन युद्ध तब तक जारी रहे, जब तक रूस बिना शर्त पीछे नहीं हट जाता और अपने सहयोगी के खिलाफ सैन्य दुस्साहस के लिए उसकी कीमत नहीं चुकाता। पूर्व अमेरिकी सीनेटर कर्नल रिचर्ड ब्लैक (रिटायर्ड) ने हाल ही में अमेरिका पर एक खतरनाक खेल खेलने का आरोप लगाया और कहा, कि ये दुनिया को परमाणु युद्ध की ओर ले जा सकता है।
जारी है विध्वंसक हथियारों की सप्लाई
पश्चिमी शक्तियों द्वारा यूक्रेन को बड़े पैमाने पर हथियारों की सप्लाई जारी है। शुरुआत में, नाटो के सदस्यों ने अपनी आपूर्ति को पारंपरिक रक्षात्मक हथियारों तक सीमित रखा था, लेकिन अब ब्रिटेन ने यूक्रेन को हजारों NLAW एंटी टैंक मिसाइलें और कुछ Starstreak एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलें भेजीं हैं। NLAW का मतलब नेक्स्ट जेनरेशन लाइट एंटी-टैंक वेपन या नेक्स्ट जेनरेशन लाइट एंटी-आर्मर वेपन है, जिसका वारहेड वजन 1.8 किलोग्राम और अधिकतम फायरिंग रेंज 1,000 मीटर है। इसके साथ ही, अमेरिका ने जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें और स्टिंगर एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें भेजीं। स्लोवाकिया ने अपना एस-300 एंटी-एयरक्राफ्ट सिस्टम भेजा जो 400 किलोमीटर दूर तक के विमानों को नष्ट कर सकता है। अमेरिका और तुर्की दोनों ने मिसाइलों से लैस ड्रोन भेजे थे, जो रूसी सेना में तबाही मचा रही हैं।
घातक हथियारों की भी आपूर्ति
कई नाटो देश अब यूक्रेन को भारी और अधिक घातक हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं, ताकि उसकी सेना रूसी सेना को पीछे धकेल सके। अमेरिका अब हेलीकॉप्टर, लंबी दूरी के तोपखाने और बख्तरबंद कर्मियों के वाहक भेज रहा है। इसके साथ ही, फ्रांस और नीदरलैंड स्व-चालित बंदूकें भेज रहे हैं। जर्मनी एंटी-एयरक्राफ्ट टैंक भेज रहा है। कनाडा तोपखाने और चेक गणराज्य T-72 टैंक और बख्तरबंद पैदल सेना वाहक की आपूर्ति कर रहा है। यहां तक कि ऑस्ट्रेलिया भी कथित तौर पर बख्तरबंद वाहन भेज रहा है। पश्चिमी शक्तियों द्वारा यूक्रेन को जारी बड़े पैमाने पर हथियारों की खेप देर से दोनों असमान ताकतों के बीच युद्ध के पैटर्न में एक स्पष्ट अंतर बना रही है। ऐसा लगता है कि पश्चिमी देश, रूस को यह तय करने के लिए मजबूर कर रहे हैं, कि वह युद्ध को कैसे समाप्त करना चाहता है और यूक्रेन से पीछे हटना चाहता है। यह यूक्रेन को एक लंबा और निर्णायक युद्ध लड़ने के लिए राजी कर रहा है।
क्या संघर्ष बढ़ाना है नाटो का मकसद?
इसके अलावा नाटो के पास हाई अलर्ट पर 100 लड़ाकू जेट हैं और 120 जहाज हैं, जिनमें विमान वाहक पोत भी शामिल हैं, जो सुदूर उत्तर से पूर्वी भूमध्य सागर तक समुद्र में गश्त कर रहे हैं। इसके अलावा नाटो ने एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड में स्थापित किए गए मौजूदा चार बहुराष्ट्रीय युद्ध समूहों और रोमानिया में एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड में शामिल होने के लिए यूरोप में और अधिक सैनिक भेजने के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध है। अब सवाल यह है कि अगर संघर्ष को और आगे बढ़ाना था, तो नाटो और रूस के युद्ध के मैदान में आमने-सामने होने की स्थिति में कौन हारेगा? रूस ने नाटो को चेतावनी दी है कि इस लड़ाई से परमाणु युद्ध का खतरा उत्पन्न हो सकता है। जिसे नाटो ने नजरअंदाज कर दिया है। लिहाजा, डर इस बात का है, कि आखिर रूस का धैर्य कब तक काम करेगा और अगर रूसी धैर्य खत्म होता है, तो फिर इसके क्या घातक अंजाम होंगे?
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