Apple की मोनोपॉली खत्म, टाइप-C चार्जर को EU ने दी मान्यता, भारत में इस फैसले का क्या असर होगा?
यूरोपियन संघ ने संसद में मंगलवार को यूनिवर्सल चार्जर नियम लागू कर दिया है। इस नियम के मुताबिक कंपनियों को मोबाइल, टैबलेट, कैमरे, लैपटॉप, स्मार्ट वाच आदि के लिए एक समान टाइप-C चार्जर देना होगा।
बर्लिन, 05 अक्टूबरः यूरोपियन संघ ने संसद में मंगलवार को यूनिवर्सल चार्जर नियम लागू कर दिया है। इस नियम के मुताबिक कंपनियों को मोबाइल, टैबलेट, कैमरे, लैपटॉप, स्मार्ट वाच आदि के लिए एक समान टाइप-C चार्जर देना होगा। यानी कि अब एपल जैसी कंपनी को भी अपनी हर डिवाइस के लिए एक समान चार्जर देना होगा। एपल का नाम खास तौर पर इसलिए क्योंकि एपल ही वह कंपनी है जो इस नियम के खिलाफ थी। एपल अपने iPhone के फोन में USB-C टाइप चार्जर नहीं बल्कि लाइटनिंग चार्जर का इस्तेमाल करता है।
एक समान चार्जर के पक्ष में तगड़ा समर्थन
नए नियम के मुताबिक 2024 तक सभी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों को अपने डिवाइस में टाइप-C चार्जिंग पोर्टल जोड़ना होगा। इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ के 27 देशों के कानूनविदों ने वोटिंग की, जिसमें कंपनियों को एक समान चार्जर देने के लिए तगड़ा समर्थन मिला। इस तगड़े समर्थन का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 602 कानूनविदों में से 581 ने एकसमान चार्जर के पक्ष में मत दिया। इसके विरोध में सिर्फ 13 वोट पड़े। वहीं 8 लोग वोटिंग से दूर रहे।
टाइप-C चार्जर ही क्यों?
USB टाइप-C के बस एक चार्जर से हर डिवाइस चार्ज हो सकता है। जाहिर है कि टाइप-C चार्जर को इसकी सुलभता के लिए और इसे अपेक्षाकृत तेज मानते हुए अपनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2023 के शुरुआत से इसके लिए एक लिखित कानून बन जाएगा और, 2024 के अंत तक यूरोपियन यूनियन के सभी देशों से बाकी सभी चार्जर समाप्त हो जाएगा। यह प्रस्ताव पहली बार यूरोपीय आयोग ने ही 2021 में दिया था। यूरोपीय संघ का मानना है कि एक समान चार्जर नियम लागू हो तो लोगों को नए चार्जर पर गैरजरूरी खर्च नहीं करना होगा। इससे यूरोप के 45 करोड़ उपभोक्ताओं को सलाना 250 मिलियन यूरो यानी लगभग दो अरब रुपये की बचत होगी।
ई-वेस्ट में आएगी कमी
इसके साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे में भी सालाना 11,000 टन की कमी आएगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक एक स्मार्टफोन को बनाने में करीब 86 किलो और एक लैपटॉप को बनाने में लगभग 1,200 किलो अदृश्य कचरा निकलता है। 2019 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि 2018 में मोबाइल फोन के साथ बेचे जाने वाले 50 फीसदी चार्जर में यूएसबी माइक्रो-यूएसबी कनेक्टर था, जबकि 29 फीसदी में USB-C टाइप कनेक्टर था और 21 प्रतिशत में लाइटनिंग कनेक्टर था। यानी कि 21 फीसदी चार्जर सिर्फ एपल के थे।
फैसले के खिलाफ क्यों थी एपल?
इस फैसले से सबसे अधिक दुखी एपल कंपनी हुई है। एपल अपनी विशिष्टता के लिए जानी जाती है। इसके अधिकांश ग्राहक, आम लोगों के सामने अपनी खास मौजूदगी दर्ज करा सकें, एपल फोन खरीदते हैं। क्योंकि यह कंपनी न सिर्फ अपने डिवाइस को बाकी कंपनियों से अलग रखती है, बल्कि इसकी कीमत भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसलिए एपल लंबे समय से इस विचार का विरोध करते हुए आया है। एपल का तर्क है कि एकसमान चीजों का निर्माण करना, इनोवेशन को प्रभावित करता है। कंपनी का यह भी तर्क था कि उपयोगकर्ताओं को नए चार्जर में बदलने के लिए मजबूर करने से इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पहाड़ बन सकता है। हालांकि, ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी अभी कुछ मॉडल्स का परीक्षण कर रही है, जो अपने USB-C कनेक्टर के साथ ही चलेंगे।
इस फैसले का भारत पर क्या असर होगा?
यूरोपियन यूनियन के इस फैसले का भारत पर कोई असर नहीं होने वाला है। लेकिन पश्चिम, पूरब से आगे है। वह पहले नियम बनाते हैं जिसके बाद बाकी देश उनके कदमों को फॉलो करते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि देर-सवेर भारत में भी एक समान चार्जर नियम लागू किया जाएगा। हालांकि केंद्र सरकार और इंडस्ट्री स्टेकहोल्डर के बीच आज 17 अगस्त को कॉमन मोबाइल फोन चार्जर को लेकर बैठक भी हो चुकी है। ऐसा भी तर्क दिया जा रहा है कि जब एपल जैसी कंपनी यूरोपियन यूनियन के देशों के लिए कोई एक चार्जर बनाएगी, तो वही चार्जर वह बाकी दुनिया के देशों के लिए भी बनाना चाहेगी, ताकि उसका खर्च कम हो सके।
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