ताइवान संकट के बीच पहली बार भारतीय शिपयार्ड पर पहुंचा अमेरिकी युद्धपोत, भारत ने कहा, 'रेड लेटर डे'
हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला, स्वतंत्र और किसी भी तरह के चीनी दबाव से मुक्त रखने के लिए भारत और अमेरिका के बीच अप्रैल महीने में ऐतिहासिक समझौता हुआ था।
कट्टुपल्ली, अगस्त 08: ताइवान स्ट्रेट में युद्ध जैसे हालात के बीच पहली बार अमेरिकी नौसेना का युद्धपोत किसी भारतीय बंदरगाह पर पहुंचा है। अप्रैल महीने में दोनों देशों के रक्षा और विदेश मामलों के मंत्रियों के बीच 2 + 2 वार्ता में दोनों देशों के बीच समझौता होने के बाद पहली बार अमेरिकी नौसेना का एक युद्धपोत भारतीय बंदरगाह पर पहुंचा है, जिसका मकसद यात्रा के बीच युद्धपोत का मरम्मत करना बताया गया है। दोनों देशों के बीच ये समझौता हुआ है, कि दोनों देशों की नौसेना अपने अपने युद्धपोत को एक दूसरे के बंदरगाह पर मरम्मत करने, तेल भरने और कुछ और अलग काम करने के लिए डॉक हो सकते हैं।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बड़ा कदम
हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला, स्वतंत्र और किसी भी तरह के चीनी दबाव से मुक्त रखने के लिए भारत और अमेरिका के बीच अप्रैल महीने में ऐतिहासिक समझौता हुआ था, जिसमें रक्षा सहयोग बढ़ाने, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा हितों को स्वीकार करने और क्षेत्र में बढ़ते चीनी सैन्य प्रभाव पर चर्चा के बाद आया है। रिपोर्ट के मुताबिक, यूएस नेवी शिप (USNS) चार्ल्स ड्रू, चेन्नई के कट्टुपल्ली में एलएंडटी के शिपयार्ड में मरम्मत और संबद्ध सेवाओं के लिए पहुंचा है, जो इस बंदरगाह पर 11 दिनों तक रह सकता है। आने वाले दिनों में इस तरह की घटनाएं आम हो जाने की उम्मीद है, भारत अपनी जहाज निर्माण क्षमताओं का प्रदर्शन करने के लिए उत्सुक है।
भारत ने कहा, 'रेड लेटर डे'
भारत के रक्षा सचिव अजय कुमार ने इस आयोजन को भारतीय उद्योग और द्विपक्षीय रक्षा संबंध, दोनों के लिए 'रेड लेटर डे' करार दिया है। उन्होंने कहा कि, "भारत की पहल भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने में भी विशेष महत्व रखती है। यह गहरे जुड़ाव के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है।" उन्होंने कहा कि, अमेरिका के साथ रक्षा उद्योग सहयोग पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है और दोनों देश अपने संबंधों के पैमाने और दायरे का विस्तार कर रहे हैं। आपको बता दें कि, एलएंडटी शिपयार्ड अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है और इसमें एक अद्वितीय शिप लिफ्ट क्षमता है, जो इसे एक ही समय में कई प्लेटफार्मों पर काम करने में सक्षम बनाती है। इसने पहले ही नौसेना और तटरक्षक बल के लिए जहाजों का निर्माण कर लिया है, और निर्यात के ऑर्डर भी हासिल कर लिए हैं।
वैश्विक मानकों पर खरा उतरता है शिपयार्ड
एलएंडटी कार्यकारी परिषद के सदस्य जेडी पाटिल ने कहा कि, अमेरिकी नौसेना के मरीन सीललिफ्ट कमांड ने भारत में चुनिंदा शिपयार्ड का कठोर मूल्यांकन किया था और कट्टुपल्ली यार्ड को मंजूरी दी थी, जो वैश्विक मानकों पर खरा उतरता है और इसक इन्फ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक मान्यता मिली हुई है। आपको बता दें कि, भारत में छह प्रमुख शिपयार्ड हैं, जिनमें ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां हैं, और इनका कारोबार 2 अरब डॉलर के करीब है। परमाणु पनडुब्बियों से लेकर विध्वंसक जहाज और यहां तक कि एक एयरक्राफ्ट कैरियर का भी निर्माण इन्हीं शिपयार्ड्स में किए गये हैं। इनके अलावा भी अलग अलग जहाजों का निर्माण इन शिपयार्ड्स में किए जाते हैं।
रक्षा निर्यात बढ़ा रही है सरकार
भारत सरकार रक्षा निर्यात को बढ़ाने पर भी ध्यान दे रही है, जो 2015-16 में 1500 करोड़ रुपये से बढ़कर पिछले वित्तीय वर्ष में लगभग 13,000 करोड़ रुपये हो गया है। अमेरिका सैन्य निर्यात के लिए एक प्रमुख गंतव्य है, जिसमें कई कंपनियां बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी प्रमुख कंपनियों को घटकों और उपकरणों की आपूर्ति करती हैं।
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