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यूक्रेन, गेहूं बैन, और अब अफगानिस्तान पर भी बदले सुर, अचानक भारत की इतनी तरफदारी क्यों कर रहा चीन?

भारत में इस वक्त शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के द्वारा एससीओ शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें भारत और चीन के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसी देश भाग ले रहे हैं।

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बीजिंग, मई 18: किसी भी वैश्विक मंच पर या वैश्विक मुद्दे पर चीन भारत के पक्ष में नजर आए, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। लेकिन, अगर चीन बार बार भारत का पक्ष लेने लगे, भारत की नीतियों की तारीफ करने लगे, भारत की शान में कसीदे पढ़ने लगे, तो आश्चर्य होने के साथ साथ शक भी होने लगता है, कि आखिर ये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को हो गया है। यूक्नेन युद्ध पर भारत की तारीफ करने के बाद चीन ने भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले की भी तारीफ की है और अब अफगानिस्तान के मुद्दे पर भी चीन भारत की तरफदारी कर रहा है।

अफगानिस्तान पर बोला चीन

अफगानिस्तान पर बोला चीन

भारत में इस वक्त शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के द्वारा एससीओ शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें भारत और चीन के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तमाम पड़ोसी देश भाग ले रहे हैं। एससीओ शिखर सम्मेलन को लेकर चीन ने कहा है कि, नई दिल्ली में आयोजित इस बैठक को चीनी विशेषज्ञों ने एशिया में शांति और सुरक्षा की दिशा में उठाए गये बड़े कदम के संकेत के तौर पर मान रहे हैं। चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि, नाटो के विस्तार की वजह से एशिया और यूरोप एक टकराव की स्थिति में फंस गया है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि, मध्य एशिया में भारत, चीन, पाकिस्तान और अन्य एससीओ सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल सोमवार को विभिन्न क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति से निपटने में सहयोग बढ़ाने के लिए एकत्र हुए हैं और ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि, एससीओ शिखर सम्मेलन का आयोजन कर भारत अफगानिस्तान के मुद्दे पर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, जो एशिया में शांति की दिशा में बढ़ने का एक संकेत है।

अफगानिस्तान पर भारत की तारीफ

अफगानिस्तान पर भारत की तारीफ

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान में अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग के हवाले से लिखा है कि, मंगलवार को ग्लोबल टाइम्स को बताया कि बैठक में आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक कट्टरता को रोकने में एससीओ की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। 2001 में स्थापित, एससीओ क्षेत्रीय आतंकवादी खतरों से निपटने और राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए चीन द्वारा शुरू किया गया पहला क्षेत्रीय संगठन है। कियान ने कहा कि बैठक से पता चलता है कि अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति को बिगड़ने से फैलने से रोकने और हिंसक आतंकवादी ताकतों को रोकने के लिए सभी क्षेत्रीय देशों में एक साथ काम करने के लिए एक समान हित और आम सहमति है।

अफगानिस्तान में कदम पसार रहा भारत- चीन

अफगानिस्तान में कदम पसार रहा भारत- चीन

ग्लोबल टाइम्स से बात करते हुए चीन के सुरक्षा विशेषज्ञ ने कहा कि, हालांकि एससीओ की बैठक में तालिबान शामिल नहीं है, क्योंकि भारत कभी भी तलिबान के साथ सहज नहीं रहा है, लेकिन एससीओ सम्मेलन की सक्रिय मेजबानी करके अब ऐसा प्रतीत होता है, कि अफगानिस्तान में भारत अपनी उपस्थिति बढ़ाएगा और अफगानिस्तान की स्थिति पर एक प्रमुख राष्ट्र के तौर पर अपना प्रभाव डालेगा। चीनी विशेषज्ञ ने ये भी कहा कि, रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के बीच इस बैठक में ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था, क्योंकि यूरोप की स्थिति ने एशियाई देशों को याद दिलाया, कि उन्हें व्यापक सुरक्षा की अवधारणा का पालन करना चाहिए, बातचीत और परामर्श के माध्यम से समस्या का समाधान करना चाहिए, और तब किसी भी असहमति को संघर्ष की तरफ बढ़ने से हम रोक पाएंगे। इस प्रकार भारत में आयोजित की जा रही यह बैठक सुरक्षा के लिए एशिया की खोज का उदाहरण है।

भारत के गेहूं प्रतिबंध पर आया साथ

भारत के गेहूं प्रतिबंध पर आया साथ

ऐसा पहली बार है, जब चीन ने अफगानिस्तान में भारत की महत्वपूर्ण स्थिति की स्वीकार की है और माना हो, कि अफगानिस्तान में भारत भी एक पक्ष है। इससे पहले चीन ने भारत सरकार के गेहूं निर्यात पर लगाए गये प्रतिबंध को भी सही कदम ठहराया था। ग्रुप ऑफ सेवन (जी 7) देशों की भारत की आलोचना के बाद चीनी राज्य मीडिया ने भारत के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का बचाव किया था और चीनी सरकार के आउटलेट ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि, 'भारत को दोष देने से खाद्य समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि यूरोप को भी विकल्प खोजना चाहिए'। ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा है कि, यदि कुछ पश्चिमी देश संभावित वैश्विक खाद्य संकट के मद्देनजर गेहूं के निर्यात को कम करने का खुद भी फैसला लेते हैं, तो वे भारत की आलोचना करने की स्थिति में नहीं होते हैं, क्योंकि इस वक्त भारत भी देश के अंदर अपनी खाद्य आपूर्ति को सुरक्षित करने के दबाव का सामना कर रहा है।

भारत की विदेश नीति की तारीफ

भारत की विदेश नीति की तारीफ

इससे पहले पिछले महीने ग्लोबल टाइम्स ने भारत की विदेश नीति की भी जमकर तारीफ की थी और कहा था कि, यूक्रेन मुद्दे पर भारत ने अमेरिका के दोमुंहे रवैये को बेनकाब कर दिया है। पिछले महीने 11 अप्रैल को ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि, भारत के साथ 2+2 बैठक से पहले अमेरिका बार बार इस बात को रेखांकित कर रहा था, कि अमेरिका और भारत 'सामान्य मूल्यों और लचीले लोकतांत्रिक संस्थानों' को साझा करते हैं, और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने साझा हितों और प्रतिबद्धताओं की पुष्टि करते हैं। लेकिन, इस बैठक के दौरान दोनों देशों के बीच रूस-यूक्रेन संघर्ष पर ही चर्चा करने में काफी वक्त बिताया गया और नई दिल्ली ने जो रूख दिखाया है, वो साफ जाहिर करता है, कि नई दिल्ली की प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से वाशिंगटन से अलग है।

‘प्रतिबंध में शामिल नहीं भारत’

‘प्रतिबंध में शामिल नहीं भारत’

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि, भारत सहित ब्रिक्स देशों ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में भाग लेने से इनकार कर दिया है। भारत ने रूस के साथ व्यापार को निलंबित तो नहीं ही किया, बल्कि भारत ने रूस से ऊर्जा आयात में वृद्धि ही कर दी है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि, क्वाड का सदस्य देश होते हुए भी भारत मे अमेरिका की नीति का अनुसरण नहीं किय, जिससे अमेरिका को शर्मिंदगी उठानी पड़ी है। इससे यह भी पता चलता है कि वाशिंगटन रणनीतिक महत्वाकांक्षाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिसके दायरे में वो देशों को नियंत्रित करना चाहता है, लेकिन अब अमेरिका के पास कुछ ही 'उपग्रह राज्य' हैं। लेकिन, भारत ने अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का पालन किया और अमेरिका की बात मानने से इनकार कर दिया और भारत ने ना ही रूस की आलोचना की और ना ही रूस से व्यापार कम किए।

बार बार भारत की तरफदारी क्यों?

बार बार भारत की तरफदारी क्यों?

पिछले दो महीने में तीन बड़े मुद्दों पर आखिर चीन ने भारत का पक्ष क्यों लिया है, ये एक बड़ा सवाल है। वहीं, चीन के विदेश मंत्री ने भी भारत का दौरा किया था और भारत के साथ संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश की थी। वहीं, कई विशेषज्ञों का कहना है कि, चीन भारत की बार बार इसलिए तरफदारी कर रहा है, क्योंकि वो इस साल के अंत में चीन में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बीजिंग बुलाना चाहता है, जिसमें शामिल होने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी आएंगे और चीन की कोशिश ये है, कि विश्व के तीन शक्तिशाली नेताओं को एक साथ लाकर वो पश्चिम को संदेश दे सके, कि चीन विश्व का सुपरपॉवर बन चुका है या बनने वाला है। हालांकि, इस बात की उम्मीद काफी कम है, कि भारतीय प्रधानमंत्री चीन का दौरा करेंगे।

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English summary
First praising India's foreign policy, then praising India's ban on wheat and now considering India as an important side on Afghanistan... Why is China continuously favoring India?
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