पुतिन के दांव से यूरोप में दरार, इटली में हो सकता है बड़ा राजनीतिक परिवर्तन, रोक पाएंगे बाइडेन?
अपनी एकता के लिए जाना जाने वाला यूरोप पर अब इस युद्ध के कारण दो फाड़ हो जाने का खतरा मंडरा रहा है।
मास्को, 13 सितंबरः रूस द्वारा यूक्रेन पर युद्ध थोपे जाने के 200 दिन पूरे हो चुके हैं। इस युद्ध दोनों ही देशों को खासा नुकसान का सामना करना पड़ा है। लेकिन इसके इतर यूरोप को भी इस युद्ध का उतना ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। अपनी एकता के लिए जाना जाने वाला यूरोप पर अब इस युद्ध के कारण दो फाड़ हो जाने का खतरा मंडरा रहा है। पूर्व जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के जाने के बाद खुद को यूरोप के शीर्ष नेता के रूप में पेश करने वाले फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने इस महीने की शुरुआत में कहा, कि उन्हें यूरोप की एकता की सबसे अधिक चिंता है।
यूरोपीय संघ के भीतर दिखने लगीं दरारें
मैक्रोन ने कहा कि रूस द्वारा छेड़े गए युद्ध का प्राथमिक उद्देश्य यूरोप की एकता को तोड़ना भी है। इस साल की शुरुआत में रूस की आक्रामकता के सामने उल्लेखनीय एकता प्रदर्शित करने के बाद, यूरोपीय संघ के भीतर दरारें दिखाई देने लगी हैं। एक तरफ, मैक्रोन ने बाल्टिक और पूर्वी यूरोप में कई नेताओं को नाराज कर दिया, जब उन्होंने उन्हें युद्धोन्मादी के रूप में चित्रित किया और जोर देकर कहा कि "हमारे पूर्वी किनारों पर कुछ राज्यों" को रूस के खिलाफ "अकेले कार्य" करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
कई छोटे देश बने यूक्रेन के मददगार
ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ-स्तरीय निर्णय लेने के हाशिये पर दशकों बिताने के बाद, बाल्टिक और पूर्वी यूरोप हाल के महीनों में महाद्वीपीय राजनीति में एक बड़ी आवाज हासिल करने में कामयाब रहे हैं। युद्ध के बाद बाल्टिक और पूर्वी यूरोपीय देशों की भूमिका बड़ी हुई है। प्रति व्यक्ति आधार पर एस्टोनिया यूक्रेन को सहायता देने में सबसे बड़ा मददगार है। 23% मुद्रास्फीति दर से पीड़ित होने के बावजूद, महाद्वीप पर सबसे अधिक, एस्टोनियाई लोगों ने क्रेमलिन के खिलाफ प्रतिबंधों की एक नई लहर का समर्थन किया है। वहीं पोलैंड ने भी अपने हथियारघर यूक्रेन के लिए खोल रखे हैं। वह नाटो गठबंधन में अमेरिका के बाद यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा मददगार है।
रूसी नागरिकों का वीजा बंद करेंगे बाल्टिक देश
मॉस्को के प्रभाव क्षेत्र में सदियों बिताने के बाद, यूरोपीय संघ के पूर्वी हिस्से के सदस्यों ने आम तौर पर एक सख्त रुख की वकालत की है, जिसमें रूसी नागरिकों के खिलाफ वीज़ा प्रतिबंध लागू करना शामिल है। पिछले हफ्ते, लातवियाई विदेश मंत्री एडगर्स रिंकेविक्स ने घोषणा की कि एस्टोनिया और लिथुआनिया सहित बाल्टिक देश, शेंगेन वीजा रखने वाले रूसी नागरिकों के लिए, कुछ अपवादों के साथ, अपनी सीमाओं को लगभग पूरी तरह से बंद करने के लिए तैयार हैं। पिछले हफ्ते आठ बाल्टिक और नॉर्डिक विदेश मंत्रियों ने एक संयुक्त समझौते की घोषणा की कि "सैद्धांतिक रूप से" यूरोपीय संघ में रूसी नागरिकों के प्रवेश को भारी रूप से प्रतिबंधित करता है।
प्रतिबंध से बढ़ रही यूरोप में मुद्रास्फीति
एक तरफ तो पूर्वी यूरोप रूस के खिलाफ एकजुट दिखते हैं मगर कुछ देशों की स्थिति दर्शाती है कि यदि इस संकट का समाधान जल्द नहीं हुआ तो आने वाले समय में यूरोप दो फाड़ हो सकता है। इसकी वजह भी है। रूस के प्रतिबंधों से पूरे यूरोप में मुद्रास्फीति बढ़ रही है और प्रमुख देशों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। रूस को लेकर नरम रूख रखने वाले राजनीतिज्ञ पूरे महाद्वीप में जमीन हासिल कर रहे हैं। यूरोप में कई ऐसी राजनीतिक पार्टियां हैं जो रूस से सहानुभूति रखती हैं और प्रमुख देशों में खासकर इटली में मजबूत होती जा रही हैं।
इटली में बन सकती है 'पुतिन' की सरकार
नवीनतम सर्वेक्षणों से पता चलता है कि जियोर्जिया मेलोनी, माटेओ साल्विनी (उत्तरी लीग) और सिल्वियो बर्लुस्कोनी (फोर्ज़ा इटालिया) के नेतृत्व में अति दक्षिणपंथी गठबंधन इस महीने के अंत में रोम की कमान संभालने के लिए तैयार है। मुख्यधारा के मतदाताओं पर जीत हासिल करने के लिए, मेलोनी ने यूक्रेन संकट को लेकर पारंपरिक लाइन पर हैं। मेलोनी और उनके सहयोगी रूस पर प्रतिबंधों को नरम करने के पक्ष में हैं। इसके साथ ही दक्षिणपंथी गठबंधन चाहता है कि यूरोपीय लीग इस प्रतिबंधों के एवज में इटली के व्यवसायियों को मुआवजा भी दे।
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