क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की बीस साल बाद सत्ता में वापसी: कहां से चले, कहां आ गए

पिछले दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में जो सकारात्मक बदलाव हुए, उनमें एक स्वतंत्र लोकल मीडिया का अपने पैरों पर खड़ा होना भी था. भले ही उन पर चरमपंथियों ने हमले किए हों लेकिन बीते सालों में मीडिया संगठनों पर कोई बंदिश नहीं रही थी.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
काबुल का मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल
BBC
काबुल का मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल

छठी क्लास में पढ़ने वाली कुछ लड़कियां बड़ी बेकरारी से हाथ हिलाकर अपने टीचर का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रही थीं. वे फारसी व्याकरण के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देना चाहती थीं.

ये दृश्य काबुल के मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल का है. साल 2001 में अमेरिका के हमले और तालिबान की हार के बाद ये उन स्कूलों में था जिसे सबसे पहले लड़कियों के लिए खोला गया था.

उस वक़्त इस स्कूल में एक ही कमरा हुआ करता था और बच्चे मिट्टी के फर्श पर बैठ कर पढ़ाई किया करते थे.

साल 1996 में जब काबुल पर तालिबान का निज़ाम था तो लड़कियों के तालीम हासिल करने पर रोक लगा दी गई थी. महिला शिक्षकों के लिए ये फरमान जारी किया गया कि वे अपने घरों में ही रहें.

आइशा मिस्बाह उन्हीं में से एक थी. अब वो इस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस हैं और बड़े गर्व से स्कूल में नए बने क्लासरूम्स दिखाती हैं.

लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत

आइशा मिस्बाह बताती हैं कि जिन बच्चों को उन्हें पढ़ाया है, उनमें से कई डॉक्टर और इंजीनियर हैं, यहां तक कि कइयों ने स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का करियर चुना है.

वो कहती हैं, "ये हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हमारे बच्चे बेहद प्रतिभाशाली हैं. वे इतने क्रिएटिव हैं और इतनी ख़ूबसूरत चीज़ें बनाते हैं कि हम भी चौंक जाते हैं. मुझे उम्मीद है कि तालिबान ये सब जारी रहने देगा."

अफ़ग़ानिस्तान की बागडोर दूसरी बार संभालने के बाद तालिबान ने लड़कियों को स्कूल जाने की इजाज़त दी है.

हालांकि तालिबान ने फिलहाल प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले लड़के-लड़कियों दोनों को पढ़ने की इजाज़त दी है. लेकिन सेकेंडरी स्कूल के टीचर नए क़ायदे क़ानूनों के जारी होने का इंतज़ार कर रहे हैं.

कुछ ग्रामीण इलाकों से ऐसी रिपोर्टें मिल रही हैं कि तालिबान कमांडरों ने लड़कियों को केवल तभी तक स्कूल जाने की इजाज़त दी है जब तक कि वे किशोर उम्र की नहीं हो जातीं.

तालिबान के वादों पर भरोसा नहीं

विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक़ अब तक लगभग 40 फ़ीसदी अफ़ग़ान लड़कियां प्राइमरी स्कूल तक पहुंच पाई हैं. तालिबान की पिछली हुकूमत के दौर से ये आंकड़े कहीं ज़्यादा हैं. लेकिन मध्य एशिया के दूसरे देशों के बनिस्बत लड़कियों की शिक्षा की स्थिति अफ़ग़ानिस्तान में ख़राब है.

स्वास्थ्य क्षेत्र का भी यही हाल है. नवजात बच्चों की मौत और प्रसव के दौरान महिलाओं के मरने के मामलों में कमी तो आई है लेकिन हालात अभी भी भयावह ही हैं.

तालिबान ने ये बात ज़ोर देकर कही है कि महिलाओं को काम करने की इजाज़त दी जाएगी. लेकिन लोग उनके इस वादे पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. ख़ासकर तालिबान के ये कहने के बाद कि स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के अलावा दूसरी महिलाओं को सुरक्षा व्यवस्था में सुधार होने तक घर पर ही रहना चाहिए.

नब्बे के दशक में महिलाओं को काम करने देने से रोकने के लिए तालिबान ने इन्हीं दलीलों का सहारा लिया था.

मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल के खेल के मैदान में तीन बड़े टेंट लगाए गए हैं
BBC
मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल के खेल के मैदान में तीन बड़े टेंट लगाए गए हैं

हर तरफ़ फैला भ्रष्टाचार

लेकिन काबुल के मानोउचेहरी प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के सामने दूसरी समस्याएं भी हैं. इस स्कूल के खेल के मैदान में तीन बड़े टेंट लगाए गए हैं. इनमें बच्चों के बैठने के लिए डेस्क और ब्लैकबोर्ड का इंतज़ाम किया गया है.

इस स्कूल में बच्चों की संख्या इतनी ज़्यादा है कि लगभग आधे बच्चों को क्लासरूम के बाहर पढ़ाई करनी पड़ रही है.

पिछली सरकारों ने स्कूल की स्थिति सुधारने को लेकर की गई मांगों को अनसुना कर दिया था. जब ग़ैर-सरकारी संस्थाओं ने मदद की पेशकश की तो उनसे कहा गया कि वे अपना पैसा पहले शिक्षा मंत्रालय को दें.

पिछले दो दशकों से हर तरफ़ फैले भ्रष्टाचार ने अफ़ग़ानिस्तान को अपनी गिरफ़्त में ले रखा था. इसका मतलब था कि अंतरराष्ट्रीय मदद के नाम पर आ रही अरबों डॉलर की रकम ज़रूरतमंद लोगों तक हमेशा नहीं पहुंच पाती थी.

लेकिन यहां की शिक्षा व्यवस्था ने हालात को नया रुख़ देने की कोशिश की है. अफ़ग़ान नौजवानों की नई पीढ़ी अब अपने विचारों को खुलकर जाहिर कर रही है. अब ये लोग तालिबान के ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठा रहे हैं.

अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान
BBC
अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान

'हमें मौत का डर नहीं'

काबुल में पिछले दिनों हुए एक विरोध प्रदर्शन के दौरान एक महिला प्रदर्शनकारी ने मुझसे कहा, "हम उन लोगों में से नहीं हैं जिन्होंने 20 साल पहले अपने घुटने टेक दिए थे."

एक और महिला ने जोशीले अंदाज़ में कहा, "हमें मौत का डर नहीं है. हम उस नई पीढ़ी से हैं जो यहां अमन लाएंगे."

तालिबान की नई हुकूमत का एलान कर दिया गया है. सरकार में ज़्यादातर लोग तालिबान से ही जुड़े हैं. सरकार के सभी सदस्य मर्द हैं. इनमें से कई लोग तालिबान की पिछली हुकूमत के दौरान आला ओहदों पर थे.

ये वही दौर था जो शरिया क़ानून को कड़ाई से लागू करने के लिए बदनाम हुआ था.

अफ़ग़ानिस्तान के ग्रामीण इलाकों के ज़्यादातर लोग सामाजिक रूप से अधिक पारंपरिक माहौल में रहे हैं. हालांकि साल 2001 के बाद बड़े शहरों में पली-बढ़ी पीढ़ी को ज़्यादा सामाजिक आज़ादी नसीब हुई है. लेकिन युद्ध से प्रभावित हुए लोगों की तकलीफ़ों से उनकी तुलना करें तो ये बेमानी लगता है.

अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान
BBC
अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान

हिंसा पर लगाम लगने की उम्मीद

अफ़ग़ानिस्तान में कम ही लोग ऐसे होंगे जिन पर इस जंग का कोई असर नहीं पड़ा है, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी रही हो.

ग्रामीण इलाकों में रहने वाले इस रक्तपात की चपेट में आए हैं. उनमें से कुछ शायद तालिबान का स्वागत करें, इस उम्मीद से कि इससे हिंसा पर लगाम लगाई जा सकेगी. अफ़ग़ानिस्तान में अमन की कीमत अगर सांस्कृतिक तानाशाही से है तो कुछ लोग इसके लिए भी तैयार हैं.

तालिबान के काबुल पर अधिकार करने के बाद हफ़्ता भर भी नहीं बीता था कि काबुल के एक स्नूकर (बिलियर्ड) क्लब में शहर के मध्य वर्ग से ताल्लुक रखने वाले कुछ नौजवानों से मेरी मुलाक़ात हुई.

उनमें से कुछ छात्र थे, कुछ कारोबारी. नाम न जाहिर करने की शर्त पर उन्होंने बताया कि तालिबान को लेकर उनकी राय अच्छी नहीं है.

एक ने कहा कि वे 'जॉम्बी' की तरह लगते हैं. उसने फिक्र जताई कि तालिबान के लोग जल्द ही पुरुषों को ये कहने लगेंगे कि उन्हें दाढ़ी बनानी चाहिए या नहीं, या फिर किस तरह की हेयरस्टाइल रखनी चाहिए.

राजनेताओं से नाराज़गी

कुछ लोगों ने ये सवाल उठाया कि इतने सारे खुदकुश हमलों को अंज़ाम देने वाले संगठन पर वे कैसे भरोसा कर सकते हैं? हालांकि वे अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक वर्ग को लेकर भी तल्ख थे.

स्नूकर क्लब के इन नौजवानों का कहना था कि देश छोड़कर भागने वाले पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को 'गिरफ़्तार किया जाना' चाहिए. एक नौजवान ने पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी पर लाखों डॉलर लेकर भागने का आरोप लगाते हुए कहा, "उन्होंने देश के नौजवानों का भविष्य बेच दिया."

हालांकि अशरफ़ ग़नी ने पैसे लेकर देश छोड़ने के आरोपों को खारिज किया है. ये नौजवान लोग तालिबान के आने के बाद काबुल में रुकने का फ़ैसला करने वाले राजनेताओं से भी नाराज़ थे.

एक नौजवान ने कहा, "वे देश के आम लोगों की तकलीफ़ें कम करने की कोशिशें नहीं कर रहे थे. बल्कि उनकी कोशिश अपनी और अपने रिश्तेदारों की ज़ेब भरने की रही है."

अफ़ग़ानिस्तान में हुए पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों पर विवादों का साया रहा है. यहां वोटिंग में धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए.

स्वतंत्र मीडिया

पिछली लोकतांत्रिक व्यवस्था में भले ही कितनी ही खामियां क्यों न रही हों, ये नौजवान इसकी ग़ैरमौजूदगी पर अफसोस जता रहे थे.

उनका कहना था, "हमने कड़ी मेहनत की थी. हम पढ़े-लिखे हैं. हम इस देश की स्थिति बदल सकते थे लेकिन अब हम कुछ नहीं कर सकते हैं."

पिछले दो दशकों में अफ़ग़ानिस्तान में जो सकारात्मक बदलाव हुए, उनमें एक स्वतंत्र लोकल मीडिया का अपने पैरों पर खड़ा होना भी था.

भले ही उन पर चरमपंथियों ने हमले किए हों लेकिन बीते सालों में मीडिया संगठनों पर कोई बंदिश नहीं रही थी. सरकारों की तरफ़ दबाव की सूरत में भी पत्रकारों ने उसका सामना किया था.

उदाहरण के लिए पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने एक कथित 'फ़ेक न्यूज़' के लिए जिम्मेदार लोगों को गिरफ़्तार करने का हुक्म दे दिया था.

इस रिपोर्ट में ये दावा किया गया था कि साल 2020 में सरकार ने ताखर प्रांत पर हवाई हमले का आदेश दिया था जिसमें कई आम नागरिकों की मौत हुई थी. माना जाता है कि इस हमले में 12 बच्चे मारे गए थे.

अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान
MARCUS YAM/LOS ANGELES TIMES/SHUTTERSTOCK
अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान

'इस्लामिक मूल्यों' और 'राष्ट्रीय हितों' की लक्ष्मण रेखा

बीते दिनों तालिबान को लेकर भी ऐसी ही चिंताएं जाहिर की गई थीं. लोगों का कहना है कि तालिबान अपने ख़िलाफ़ नकारात्मक ख़बरों को स्वीकार नहीं करेगा.

शुरू में तालिबान ने ये दावा किया कि वो स्वतंत्र मीडिया को काम करने की तब तक इजाज़त देगा जब तक कि पत्रकार 'इस्लामिक मूल्यों' और 'राष्ट्रीय हितों' की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघते हैं.

लेकिन पिछले दिनों तालिबान के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित हुए विरोध प्रदर्शनों को कवर करने वाले पत्रकारों को हिरासत में लेने और उन्हें बुरी तरह से पीटे जाने की रिपोर्टें सामने आई हैं.

इस हफ़्ते की शुरुआत में 22 वर्षीय ताक़ी दरयाबी और उनके एक सहयोगी को तालिबान के लड़ाके उठाकर ले गए. वे एक पुलिस स्टेशन को कवर कर रहे थे.

ताक़ी दरयाबी ने बीबीसी को बताया, "वहां एक कमरे में सात से दस लोग थे. उन्होंने मेरी पिटाई शुरू कर दी. मुझे डंडों से मारा." उनकी पीठ और चेहरे पर चोट के साफ़ निशान मौजूद थे.

"तालिबान के एक सदस्य ने मुझसे कहा कि शुक्र मनाओ मैंने तुम्हारा सिर धड़ से अलग नहीं कर दिया. अब चूंकि तालिबान यहां मौजूद हैं तो कोई सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता है. अतीत में हमने उन्हें लोगों की हत्याएं करते, अगवा करते और पत्रकारों को मारते-पीटते देखा है. उन्हें हमें आज़ादी से काम करने की इजाज़त देनी चाहिए."

अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान
BBC
अफ़ग़ानिस्तान, काबुल, तालिबान

काबुल का 'बुश बाज़ार'

अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की क्या विरासत रह जाएगी? इस बात को लेकर यहां गहरे मतभेद हैं.

यहां अमेरिकी प्रभाव के प्रतीक चिह्नों का धूमिल होना पहले ही शुरू हो चुका है. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर बसाए गए 'बुश बाज़ार' में कभी मिलिट्री के सामान बेचे जाते थे लेकिन अब यहां चीन में बनी चीज़ें बिकने लगी हैं.

इस बाज़ार में ताक़तवर अफ़ग़ान लोगों के सिक्योरिटी गार्ड खरीदारी किया करते थे लेकिन अब इनके ग्राहक तालिबान लड़ाके हैं.

खोश्त प्रांत के फतीह इस बाज़ार में बूट तलाश रहे हैं. वो अमेरिकी बूट खोज रहे थे लेकिन उन्हें निराशा हासिल हुई. वे कहते हैं, "अब यहां सब कुछ चीनी है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Taliban return to power in Afghanistan after 20 years
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X