भारत से मिली ड्रैगन को टक्कर तो ताइवान ने भी उठाया सिर, पासपोर्ट से हटाएगा 'रिपब्लिक ऑफ चाइना'
नई दिल्ली। भारत ने लद्दाख क्षेत्र में जोरदार टक्कर मिलने के बाद ड्रैगन की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। अमेरिका ने क्वॉड देशों की बैठक जल्द ही दिल्ली में होने की बात कही है जिससे चीन की चिंता पहले ही बढ़ी हुई है। अब चीन जिस ताइवान पर अपना दावा करता है वह भी चीन के खिलाफ बड़ा कदम उठाने जा रहा है। ताइवान ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा है कि वह अपने पासपोर्ट को फिर से डिजाइन करेगा। ताइवान का कहना है कि वह इस बात से तंग आ चुका है कि उसे हर जगह पहुंचने पर चीन समझा जाता है।
चीन के चंगुल से निकलना चाहता है ताइवान
ताइवान का ये काम इसकी संप्रभुता की दिशा में बढ़ने को लेकर बड़ा कदम माना जा रहा है। ताइवान हमेशा से चीन की वन चाइना नीति का विरोधी रहा है। ताइवान ने कहा है कि कहा कि कोरोना वायरस महामारी के दौरान उसके नागरिकों को दूसरे देशों में प्रवेश के दौरान काफी दिक्कतें हुईं क्योंकि उन्हें चीन का नागरिक समझा जाता है। दरअसल ताइवान के पासपोर्ट के कवर पर ऊपर अंग्रेजी में रिपब्लिक ऑफ चाइना लिखा होता है जबकि नीचे की तरफ ताइवान लिखा होता है। इससे ताइवान के लोग जहां भी जाते हैं ये ही समझा जाता है कि ये चीन से आए हुए हैं।
बता दें कि ताइवान ने शुरू से ही ऐहतियान ऐसे कदम उठाए जिसके चलते वहां कोरोना वायरस की स्थिति काफी नियंत्रण में है। वहीं चीन को लेकर आरोप हैं कि उसने जानबूझकर शुरुआत में मामलों को छिपाए रखा यही वजह है कि आज पूरी दुनिया में कोरोना के मामले तेजी से बढ़े हैं। यही वजह है कि कई देश चीन के नागरिकों को लेकर काफी सतर्कता बरत रहे हैं। इसे लेकर ताइवान के लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
नये पासपोर्ट में होगा ये बड़ा बदलाव
ताइवान का नया पासपोर्ट जनवरी में सामने आ सकता है। ताइवान के नए पासपोर्ट में अंग्रेजी में लिखे गए रिपब्लिक ऑफ चाइना को हटा दिया जाएगा। हालांकि चीनी भाषा में लिखा गया शब्द नहीं हटाया जाएगा। वहीं नीचे लिखे गए ताइवान को और बड़ा कर दिया जाएगा। ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा कि नये पासपोर्ट की जरूरत इसलिए है ताकि ताइवान के नागरिकों को चीनी नागरिक समझने की गलतफहमी से बचा जा सके। वू ने कहा कि कोरोना महामारी के दौर में हमारे लोग उम्मीद करते हैं कि हम ताइवान को वैश्विक परिदृश्य में अधिक स्पष्ट रूप से सामने ला सकें।
ताइवान ने पहले भी की पासपोर्ट बदलने की कोशिश
हालांकि ताइवान प्रशासन भले इसे कोरोना महामारी की वजह से नियम बदलने की बात कर रहा है लेकिन जानकार समझते हैं कि ये अपनी संप्रभुता की दिशा में उठाया गया कदम है। ये पहली बार नहीं है जब ताइवान ने पासपोर्ट को लेकर बदलने की कोशिश की हो। इससे पहले ताइवान के लोग पासपोर्ट के ऊपर स्टिकर लगाकर यात्रा करते थे। 2015 के बाद से कई ताइवानी नागरिक पासपोर्ट में जहां अंग्रेजी में रिपब्लिक ऑफ चाइना लिखा होता है वहां पर रिपब्लिक ऑफ ताइवान लिखा स्टिकर लगा देते थे। इसे लेकर चीन ने विरोध जताया और कई नागरिकों की एंट्री रद्द कर दी। मकाऊ और हांग कांग में ने भी ऐसे स्टिकर लगे नागरिकों पर रोक लगाई थी। 2015 में सिंगापुर ने तीन नागरिकों को वापस भेज दिया था जिन्होंने स्टिकर लगाया था।
क्या है ताइवान की स्थिति ?
चीनी प्रशासन का मानना है कि ताइवान उसका क्षेत्र है। चीन किसी भी देश को ताइवान से राजनयिक संबंध रखने का विरोध करता है। चीन ये भी कहता रहा है कि जरूरत पड़ने पर ताइवान पर ताकत के बल पर कब्जा किया जा सकता है। वहीं ताइवान के लोग खुद को एक अलग देश के रूप में देखना चाहते हैं। चीन में हांग कांग की तरह ही ताइवान को लेकर भी एक देश दो व्यवस्था वाले मॉडल को लागू किए जाने की बात की जाती है लेकिन वर्तमान में ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने इस मॉडल को नकार दिया है। सांई इंग-वेन ताइवान को एक संप्रभु देश के तौर पर देखती हैं और वन चाइना पॉलिसी का विरोध करती हैं। यही वजह है कि चीन वेन की नीतियों से अपनी नाराजगी जाहिर करता रहा है। 2016 में वेन के सत्ता में आने के बाद से ही चीन ताइवान से बात करने से इनकार करता रहा है।
चीन की स्थापना के साथ ही दोनों में हुई दुश्मनी
1683 से 1895 तक ताइवान पर चीन के चिंग राजवंश का शासन रहा था। 1895 में जापान के हाथों चीन को हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद जापान ने ताइवान पर नियंत्रण स्थापित कर लिया जो कि द्वितीय विश्व युद्ध तक चलता रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों के हाथों जापान की हार के बाद ये तय किया गया कि ताइवान को उस समय चीन पर शासन कर रहे राजनेता और मिलिट्री कमांडर च्यांग काई शेक को सौंप दिया जाय। कुछ साल बाद च्यांग काई शेक को कम्युनिष्ट सेना के हाथों बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। तब शेक और उनके सहयोगी भागकर ताइवान पहुंचे और वहां पर सरकार का गठन किया और इसे ही असली चीन कहा। कई साल तक चीन और ताइवान के कड़वे संबंध के बाद 1980 में दोनों के रिश्ते सुधरने शुरू हुए। चीन चाहता है कि ताइवान वन कंट्री टू सिस्टम के तहत अपने आपको चीन का हिस्सा मान ले तो उसे अधिकार दिए जाएंगे। ताइवान इससे इनकार करते हुए स्वतंत्र देश होने का सपना देखता रहा है।
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