हाजिर है अपना निजी डाटा अपने ही शरीर में छुपा लेने की तकनीक
नई दिल्ली, 23 दिसंबर। त्वचा के नीचे इम्प्लांट की जाने वाली इस चिप को बनाया है डिसरप्टिव सबडर्मल्स नाम की कंपनी ने. हालांकि अभी बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है, फिर भी कई हजार लोगों ने इस चिप को अपने शरीर में इम्प्लांट करवा लिया है.
इस चिप में आपके उपकरणों को अनलॉक करने के कोड, बिजनेस कार्ड, सार्वजनिक यातायात कार्ड जैसी कई तरह की जानकारी डाली जा सकती है. अब इसे लोगों ने कोविड-19 के वैक्सीन पास की तरह भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
त्वचा के अंदर वैक्सीन सर्टिफिकेट
चिप को इम्प्लांट करवा लेने वाली स्टॉकहोम की निवासी अमैंडा बैक कहती हैं, "मुझे लगता है इस चिप को अपने शरीर में इम्प्लांट करवाना और उसमें अपना सारा निजी डाटा रखना मेरी अपनी ईमानदारी का हिस्सा है. मुझे वाकई ऐसा महसूस होता है कि इस तरीके से मेरे डाटा पर मेरा नियंत्रण बढ़ गया है."
स्वीडन में बड़ी संख्या में बायोहैकर हैं जिनका इस बात में दृढ़ विश्वास है कि भविष्य में इंसान टेक्नोलॉजी के साथ पहले से भी ज्यादा जुड़ जाएंगे. डिसरप्टिव सबडर्मल्स के प्रबंधक निदेशक हांस सोबलाद ने बताया, "मैंने अपने हाथ में एक चिप इम्प्लांट करवाया हुआ है और मैंने उसमें अपना कोविड पासपोर्ट डलवा दिया है."
वो कहते हैं, "ऐसा मैंने इसलिए किया ताकि मैं जब चाहूं अपने कोविड पासपोर्ट तक पहुंच सकूं. मैं बस अपने फोन को चिप पर स्वाइप करूं और वो मेरे फोन पर खुल जाए." उन्होंने अपने फोन पर अपने वैक्सीन सर्टिफिकेट का पीडीएफ खुलते हुए भी दिखाया.
सोबलाद ने आगे बताया, "एक चिप को इम्प्लांट करवाने का खर्च 100 यूरो (8500 रुपये) और वो भी तब अगर आप उसके ज्यादा विकसित प्रारूप को इम्प्लांट करवाना चाहते हैं. इसके मुकाबले किसी हेल्थ वेयरेबल की कीमत संभवतः इससे दुगना ज्यादा होगी.
स्वैच्छिक इस्तेमाल जरूरी
और वेयरेबल का आप सिर्फ तीन से चार सालों तक इस्तेमाल कर सकते हैं जबकि एक चिप इम्प्लांट का आप 20, 30, 40 सालों तक इस्तेमाल कर सकते हैं." सोबलाद के लिए कोविड पास इस तकनीक के इस्तेमाल का बस एक उदाहरण है जो "2021-22 की सर्दियों में एक लोकप्रिय चीज रहेगी."
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें "निजता में बहुत रूचि" है. वो यह मानते हैं कि "कई लोग चिप इम्प्लांट को एक डरावनी टेक्नोलॉजी, एक सर्विलांस टेक्नोलॉजी समझते हैं", लेकिन उनके हिसाब से इसे एक सरल से पहचान के टैग की तरह देखना चाहिए.
उन्होंने समझाया, "इनमें बैटरी नहीं होती है. ये खुद कोई सिग्नल नहीं भेज सकते हैं. ये एक तरह से सोए हुए हैं. ये कभी आपकी लोकेशन नहीं बता सकते. ये तभी जागृत होते हैं जब आप अपने स्मार्टफोन से इनको छूते हैं."
सोबलाद ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी इम्प्लांट स्वैच्छिक हैं और अगर किसी ने इन्हें कैदियों के लिए या वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों के लिए अनिवार्य करने की कोशिश की तो "आप मुझे बैरिकेडों पर पाएंगे. कोई भी किसी को चिप इम्प्लांट करवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है."
सीके/एए (एएफपी)
Source: DW