मुंबई के 26/11 हमले के मास्टरमाइंड डेविड कोलमैन हेडली की कहानी
14 वर्ष पूर्व 26 नवंबर 2008 को 10 हमलावरों ने मुंबई के कई स्थानों पर हमला किया था जिसमें 166 लोग मारे गए थे. इस हमले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी डेविड कोलमैन हेडली ने. रेहान फ़ज़ल बता रहे हैं डेविड हेडली की कहानी विवेचना में....
कहा जाता है कि जब डेविड हेडली ने पहली बार सितंबर, 2006 में ताज होटल में प्रवेश किया तो वहाँ की समृद्धि और वहाँ काम करने वाले लोगों के व्यवहार को देखकर महसूस किया कि इस शानदार जगह को तबाह करना आसान नहीं होगा.
टॉवर लॉबी में 'फ़्रांजेपानी' की मादक महक और सी लाउंज की खिड़कियों से गेटवे ऑफ़ इंडिया के दृश्य ने उसे करीब-करीब विश्वास दिला दिया कि इस होटल को नष्ट करने के बारे में सोचना ग़लत है.
मुंबई की अपना पहली यात्रा के दौरान हेडली के पास ताज में रुकने लायक पैसे नहीं थे.
वहाँ से साढ़े चार मील दूर भूलाभाई रोड पर अपना ठिकाना कायम करने के बाद हेडली करीब-करीब रोज़ ताज होटल जाता था.
वहाँ के वेटरों, मैनेजरों और मेहमानों ने उसे अक्सर हार्बर बार में फ़्रेंच शैम्पेन का ग्लास हाथ में लिए देखा. हेडली की कोई अनदेखी नहीं कर सकता था.
एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क मुंबई हमलों पर अपनी किताब 'द सीज, द अटैक ऑन द ताज' में लिखते हैं, "हेडली 6 फ़ीट 2 इंच लंबा था. उसके लंबे सुनहरे बाल पोनी टेल में बँधे रहते थे. वो अक्सर मुड़ी-तुड़ी अरमानी जींस और कमीज़ में नज़र आता था और उसके कंधों से एक चमड़े की जैकेट लटकती रहती थी."
"उसकी कलाई में करीब 9 लाख रुपए की रोलेक्स घड़ी बँधी रहती थी. मुंबई में वो डेविड के नाम से मशहूर था लेकिन अपनी बहन शेरी, सौतेले भाइयों हमज़ा और दानियाल, पत्नियों पोर्शिया, शाज़िया और फ़ैज़ा और सबसे अच्छे दोस्त तहव्वुर राना के लिए वो पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी था जिसका असली नाम था दाऊद सलीम जिलानी."
पिता पाकिस्तान के मशहूर ब्राडकास्टर
दाऊद या कहें डेविड के पिता सैयद सलीम जिलानी पाकिस्तान के नामी ब्रॉडकास्टर थे. वो जब कुछ सालों के लिए वॉयस ऑफ़ अमेरिका में काम करने के लिए वॉशिंगटन गए थे तो उनकी मुलाकात 19 साल की सेरिल से हुई थी जो मेरीलैंड विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं.
दोनों ने शादी करने का फैसला किया और पाकिस्तान आ गए लेकिन ये शादी अधिक दिनों तक नहीं चली और सन् 1966 में सेरिल और जिलानी के बीच तलाक़ हो गया.
सेरिल वापस अमेरिका लौट आईं और दाऊद अपने पिता और अपनी सौतेली माँ के साथ लाहौर में ही रहा. लेकिन जब दाऊद 16 साल का हुआ तो वो भी अपनी माँ के पास अमेरिका चला गया.
सन 1984 में उसका फिर पाकिस्तान से आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ. इस बीच उसका संपर्क ड्रग तस्करों से हुआ और वो हेरोइन तस्करी के काम में लग गया.
चार वर्ष बाद कस्टम अधिकारियों ने उसे फ़्रैंकफ़र्ट हवाई अड्डे पर दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ लिया. उसके पिता ने उससे अपने सारे संबंध तोड़ लिए.
जर्मन अधिकारियों ने उसे अमेरिका को सौंप दिया. वहाँ उसने अमेरिकियों से एक सौदा किया जिसके तहत तय हुआ वो उनके लिए मुख़बिर का काम करते हुए पाक-अमेरिकी हेरोइन नेटवर्क में घुसपैठ कर उनकी गुप्त सूचना ड्रग इन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) तक पहुँचाएगा.
अल क़ायदा और लश्कर से सहानुभूति
अगस्त, 1999 में दाऊद की पाकिस्तान वापसी हुई. उसके लिए इस यात्रा का हवाई टिकट अमेरिकी सरकार ने खरीदा.
एड्रियन लेवी और कैथी क्लार्क लिखते हैं, "उसने घुसपैठ के बिल्कुल किताबी तरीके पर अमल किया. उसने एक पारंपरिक पाकिस्तानी महिला शाज़िया अहमद से शादी की.
उसने अपने पिता की मदद से जो अब तक रेडियो पाकिस्तान के महानिदेशक बन चुके थे, लाहौर नहर के पास के इलाके में एक घर ख़रीदा.
साल 2000 के अंत में जब अल-क़ायदा ने यमन में अमेरिकी पोत यूएसएस कोल पर हमला किया तो डेविड ने लश्कर जिहाद फ़ंड में 50 हज़ार रुपए का चंदा दिया और जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद का भाषण सुनने गया. लश्कर के लोग गोरी चमड़ी होने के नाते कोलमेन को शक की निगाह से देखते थे."
अगले ढाई सालों तक दाऊद कभी पाकिस्तान में रहता तो कभी अमेरिका में. इन दोनों जगह वो अलग-अलग ज़िंदगी जी रहा था.
इस बीच वो पूरी तरह से लश्कर के संपर्क में आ चुका था और लाहौर से 15 किलोमीटर दूर मुरीदके में लश्कर के कैंप में ट्रेनिंग ले रहा था.
इस बीच उसने शलवार कमीज़ पहनना शुरू कर दिया था, शराब, टीवी और मोबाइल फ़ोन से मुंह मोड़ लिया था.
मशहूर डेनिश पत्रकार कारे सोरेन्सन अपनी किताब 'द माइंड ऑफ़ अ टेररिस्ट द स्ट्रेंज केस ऑफ़ डेविड हेडली' में लिखते हैं-
"दाऊद का सपना था कि कश्मीर में लड़ने के लिए भेजा जाना लेकिन लश्कर के नेता ज़की-उर-रहमान लखवी की नज़र में इस अभियान के लिए दाऊद की उम्र कुछ ज़्यादा हो चुकी थी. उसने लश्कर के कमांडर साजिद मीर से कहा कि वो भारत पर हमले की बड़ी योजना में हेडली को भी शामिल करे. लश्कर को एक ऐसे शख़्स की ज़रूरत थी जो लंबे अरसे तक कैमरे और नोटबुक के साथ मुंबई आ-जा सके और जिसे लोगों से घुलने-मिलने से कोई परहेज़ न हो."
डेविड कोलमैन हेडली के नाम से नया पासपोर्ट
जून, 2006 में दाऊद को आधिकारिक रूप से इस अभियान में शामिल कर लिया गया.
उससे कहा गया कि वो एक अमेरिकी पर्यटक का वेश बनाए जो घूमने के लिए मुंबई जाकर वहाँ सारी जानकारी जमा करे.
इसके लिए दाऊद पहले अमेरिका गया जहाँ उसने दाउद नाम छोड़कर नया नाम डेविड कोलमैन हेडली धारण किया. उसने इस नए नाम से एक नया पासपोर्ट बनवाया.
कारे सोरेन्सन लिखते हैं, "जब हेडली पाकिस्तान लौटा तो साजिद मीर ने उसे सलाह दी कि नमाज़ में सजदा करते हुए अपने माथे को धीमे से ज़मीन से छुआए ताकि उसके माथे पर वो निशान न बन पाए जो पाँच वक़्त नमाज़ियों के माथे पर बन जाता है."
"इसके बाद हेडली को इस रोल के लिए एक एडवांस ट्रेनिंग दी गई. उसको सिखाया गया कि गुप्त संदेश को किस तरह एक ड्राफ्ट के तौर पर सेव किया जाए और पढ़ने वाले व्यक्ति को संदेश न भेजकर उसे ईमेल एड्रेस और पासवर्ड भेज दिया जाए."
उन्होंने आगे लिखा है, "हेडली के हैंडलर्स ने उसे मुंबई में ख़र्चे के लिए 25 हज़ार डॉलर भी दिए. जब हेडली भारत जाने के लिए तैयार हुआ तो उसे एक दस डिजिट का एक नंबर दिया गया जिसके पहले तीन डिजिट थे 646 जो अमेरिका में मैनहटन का एरिया कोड था."
"लेकिन ये नंबर डायल करते ही कॉल पाकिस्तान में उसके हैंडलर्स को फ़ॉरवर्ड हो जाती थी. हेडली को बताया गया कि अगर उसे उनसे संपर्क करना हो तो इस नंबर का इस्तेमाल करे."
राहुल भट्ट और विलास वरक से दोस्ती
हेडली ने पहली बार सितंबर, 2006 में मुंबई में क़दम रखा, उसने एसी मार्केट के अपना दफ़्तर बनाया. हेडली ने अपनी कंपनी का नाम रखा 'फ़र्स्ट वर्ल्ड' जिसका काम था अमेरिका में काम करने वाले लोगों को वीज़ा दिलाने में मदद करना. उसने एक भारतीय सेक्रेटरी को नौकरी पर रखा और अपनी कंपनी के बारे में अख़बारों में इश्तहार दिए.
हेडली 'फ़ाइव फ़िटनेस हेल्थ क्लब' जाने लगा जहाँ उसकी मुलाकात शिवसेना के सदस्य विलास वरक से हुई. विलास के ज़रिए वो मशहूर प्रोड्यूसर महेश भट्ट के बेटे राहुल भट्ट से मिला.
बाद में राहुल भट्ट ने एक किताब लिखी 'हेडली एंड आई.' इस किताब में उन्होंने लिखा, "हेडली के बारे सबसे पहले जिस चीज़ ने मेरा ध्यान खींचा वो थी उसकी आंखें. उसकी एक आँख भूरी थी तो दूसरी हरी. उसका लहजा दोस्ताना था. मुझे उसके हाथों की मज़बूत और आत्मविश्वास से भरी पकड़ ने प्रभावित किया था. वो काला चश्मा लगाए हुआ था जिसे बाद में उसने उतार दिया था. उसके सिर पर एक टोपी थी और वो हॉलीवुड के अभिनेता स्टीव सीगल की कार्बन कॉपी लगता था. उसने मुझे बताया था कि वो भेलपूरी और पानीपूरी का दीवाना है."
50 घंटे का वीडियो शूट किया
पर्यटन का बहाना बनाकर हेडली ने राजधानी दिल्ली का भी दौरा किया था. वो ख़ास तौर से नेशनल डिफ़ेंस कालेज के पास गया था और उसको उसने अपने पीले रंग के 'गार्मिन' जीपीएस में कैद कर लिया.
बाद में वो मुंबई के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में एक फ़ैशन शो भी देखने गया था. सोरेंसन लिखते हैं, "वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को भी उसने अपने निशानों की सूची में शामिल कर लिया था. उसने गेटवे ऑफ़ इंडिया और पुलिस मुख्यालय की तस्वीरें भी ली थीं. उसने मुंबई से ही हमले में शामिल होने वाले दस लोगों के लिए बैकपैक खरीदे थे."
"वो तीन बार ताज होटल में रुका था और सिर्फ़ तफ़रीह के लिए उसने होटल से यादगार के तौर पर एक तौलिया और कॉफ़ी कप भी चुराया था. उसने भारत में हमले के लिए 20 से अधिक स्थानों का चुनाव किया था और अकेले मुंबई में उसने 50 घंटों के वीडियो शूट किए थे."
हेडली की खींची तस्वीरों और वीडियो का उसके हैंडलर्स ने बहुत बारीकी से अध्ययन किया था और उसकी बताई हर जगह को गूगल अर्थ मैप से देखा गया था ताकि पूरे अभियान का जायज़ा लिया जा सके.
उन लोगों ने ताज होटल का एक ढाँचा भी तैयार किया था जहाँ घुसने और निकलने के एक-एक रास्ते के बारे में विस्तार से चर्चा हुई थी.
मुंबई में हमलावरों के उतरने की जगह चुनी
इस हमले में हेडली ने ही उस जगह को चुना था जहाँ चरमपंथियों को हमले के लिए मुंबई में उतरना था.
उसने कई अमेरिकी और ब्रिटिश पर्यटकों के साथ एक फ़ेरी पर ताज होटल के आसपास के इलाके का दो बार चक्कर लगाया था लेकिन उसको उसके सवालों का जवाब नहीं मिला था. फिर वो मछुआरों के एक गाँव में चला गया था.
सोरेंसन लिखते हैं, "एक मछुआरे ने ही उसे अगले दिन बहुत सुबह आने की सलाह दी थी ताकि वो मुंबई के आसपास के समुद्र का असली अनुभव उठा सके. शुरू में तय किया गया था कि सभी हमलावर गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास उतरेंगे लेकिन हेडली की निगाह उस इलाके में कई गन बोट्स पर गई थी जिस पर सुरक्षा गार्ड्स तैनात थे."
"बीच से लगा हुआ मछुआरों का छोटा सा गाँव उतरने के लिए बेहतर जगह थी. वहाँ आसपास कुछ लोग ज़रूर थे लेकिन वो उन लोगों में से नहीं थे जो कुछ अजूबा देखकर सवाल पूछें या पुलिस को बुलाएँ. हेडली ने उस गाँव को इसलिए भी चुना कि वो दूर-दराज़ के इलाके में नहीं था और जहाँ उतरकर तेज़ी से मुख्य सड़क पर जाया जा सकता था और टैक्सी से मिनटों में बिना किसी रुकावट के किसी भी स्थान पर पहुँचा जा सकता था."
शुरू में जब हमले की साज़िश चल रही थी तो इस पर गंभीरता से विचार किया गया था कि हमलावरों को हमले के बाद भारत से बाहर निकाल लिया जाए.
ये सोचा गया था कि हमले के बाद हमलावर किसी बस को हाइजैक कर भारत की उत्तरी सीमा या कश्मीर की तरफ़ बढ़ेंगे या फिर वो अंधेरे में अफ़रा-तफ़री का फ़ायदा उठाते हुए बोट के ज़रिए ही भारतीय सीमा के बाहर निकल जाएंगे.
ये भी सोचा गया कि वो कुछ हफ़्तों तक मुंबई के एक फ़्लैट में छिपे रहेंगे और बाद में उन्हें वहाँ से निकाल लिया जाएगा.
सोरेंसन लिखते हैं, "बाद में मिले कुछ सुरागों से पता चलता है कि हमलावर अंत तक मान कर चल रहे थे कि वो पाकिस्तान वापस जाएंगे. यही कारण था कि आदेश होने के बावजूद उन्होंने उस नौका को नहीं डुबोया था जिस पर सवार होकर उन्होंने मुंबई तक का सफ़र तय किया था लेकिन उनके हैंडलर्स को पता था कि उनमें से कोई भी शख़्स बच नहीं पाएगा."
दो बार हमले की तारीख़ टली
सितंबर, 2008 में हेडली को साजिद मीर से संदेश मिला कि हमला 29 सितंबर को किया जाएगा लेकिन जब दस हमलावरों के दल ने मुंबई की अपना यात्रा शुरू की तो कुछ ही देर बाद बीच समुद्र में उनकी नौका डूब गई. वो सब इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने लाइफ़ जेकेट्स पहनी हुई थी. कुछ दिनों बाद उन्होंने एक नई नौका और नए हथियारों के साथ अपनी यात्रा फिर से शुरू की तो उसमें भी कुछ अड़चन आ गई.
साजिद मीर इस बारे में हेडली को लगातार सूचना देता रहा लेकिन नवंबर के मध्य में हेडली के पास साजिद के पास से एक नया संदेश आया कि जल्द ही हमले का तीसरा प्रयास किया जाएगा.
26 नवंबर की शाम उसे एक और संदेश मिला जिसमें कहा गया था, हमला शुरू हो चुका है. हेडली ने अगले तीन दिन अपने टीवी के सामने बिताए.
बाद में उसने अमेरिका की जेल में भारतीय जाँच एजेंसी के अधिकारियों लोकनाथ बेहेरा, साजिद शापू और स्वयंप्रकाश पाणि का बताया, "26 नवंबर को जब मैं टीवी के सामने बैठा हुआ था, अचानक ख़बर आई कि मुंबई पर दस लोगों ने हमला बोल दिया है. वो दस लोग काम सिर्फ़ इसलिए अंजाम दे पाए क्योंकि मैंने उन्हें वहाँ का एक-एक ब्योरा दिया था. मैं उन लोगों से अपने जीवन में कभी भी नहीं मिला था."
हेडली की अमेरिका में गिरफ़्तारी
हमले के चार महीने बाद मार्च 2009 में हेडली ने एक बार फिर मुंबई की यात्रा की. इस बार वो चर्चगेट के होटल आउटरेम में ठहरा जहाँ वो पहले एक बार ठहर चुका था.
3 अक्तूबर, 2009 को जब हेडली शिकागो से पाकिस्तान जाने के लिए फ़िलाडेल्फ़िया हवाई अड्डे पर विमान में बैठ रहा था, उसे गिरफ़्तार कर लिया गया.
बाद में भारत के पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने साफ़ तौर पर कहा कि हेडली के डबल एजेंट होने की संभावना विश्वास करने योग्य है.
कुछ दिनों के लिए हेडली के दोस्त रहे राहुल भट्ट ने लिखा, "इसका सबसे बड़ा सबूत था कि हेडली न सिर्फ़ अपना नाम बदलवाने में सफल रहा बल्कि उसने उस नाम से नया पासपोर्ट भी बनवा लिया. पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई तो यहाँ तक कहते हैं कि हेडली संभवत अकेला अमेरिकी था जिसके पासपोर्ट पर उसके पिता सलीम गिलानी का नाम अंकित नहीं था."
"वो तीन चार सालों के अंदर आठ या नौ बार भारत और पाकिस्तान के अंदर और बाहर गया. पूरी दुनिया जानती है कि 9/11 के बाद अमेरिका अपनी सुरक्षा के प्रति इतना सजग था कि अमेरिका से पाकिस्तान जाने वाले हर यात्री पर नज़र रखी जा रही थी. ये समझ में नहीं आने वाली बात है कि इस बीच अमेरिकी प्रशासन ने एक बार भी हेडली से सवाल-जवाब करने की ज़रूरत नहीं समझी."
भारत और अमेरिका के बीच प्रत्यर्पण संधि में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति भारत में कोई अपराध करता है और अगर उसे अमेरिका की धरती पर पकड़ा जाता है तो भारत उसके प्रत्यर्पण की माँग कर सकता है लेकिन हेडली ने संभवत अमेरिका से एक सौदा किया कि वो उनके साथ पूरा सहयोग करेगा बशर्ते उसे भारत या पाकिस्तान प्रत्यर्पित न किया जाए और अमेरिका इसके लिए राज़ी भी हो गया.
पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई कहते हैं, "ये जगज़ाहिर है कि उसकी गिरफ़्तारी के बाद भारतीय अधिकारियों को हेडली से सवाल-जवाब करने की अनुमति मिलने में बहुत अधिक समय लगा और तब भी उन्हें सीमित सवाल पूछने की ही छूट मिली."
"अमेरिकियों को इस बात का अंदाज़ा था कि अगर हेडली से और सवाल पूछे गए तो अमेरिकियों की भूमिका पर पर्दा डालना मुश्किल हो जाएगा."
डेविड कोलमैन हेडली को इस समय अमेरिका की एक जेल में 35 साल के लिए बंद रखा गया है.
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