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अफ़ग़ानिस्तान की ये महिला जज कैसे तालिबान को चकमा देकर देश से भाग निकलीं?

तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा किया तो 200 से अधिक महिला जज किसी ख़ुफ़िया जगह पर छिप गई थीं. इनमें से 26 महिला जज हाल ही में देश से भागने में सफल हुई हैं.

By BBC News हिन्दी
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तालिबान ने जब अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा किया तो 200 से अधिक महिला जज किसी ख़ुफ़िया जगह पर छिप गई थीं. चरमपंथियों ने देश की जेलों को खोल दिया था और इसमें क़ैद सज़ायाफ़्ता वो लोग भी आज़ाद हो गए थे जिन्हें कभी महिला जजों ने सज़ाएं दी थीं.

इनमें से 26 महिला जज हाल ही में देश से भागने में सफल हुई थीं. बीबीसी ने उनसे बात की है और जाना है कि वो कहां पर किस तरह से सुरक्षित घरों में रह रही हैं. ग्रीस में हम इन महिला जजों से मिलने गए जहां पर वे अस्थाई वीज़े पर रह रही हैं. उनकी सुरक्षा के लिए सभी के नाम बदल दिए गए हैं.


जज सना ग्रीस में अस्थाई आवास में रह रही हैं
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जज सना ग्रीस में अस्थाई आवास में रह रही हैं

आधी रात को फ़ोन बजा. पिक-अप की लोकेशन की पुष्टि हो गई थी और अब निकलने का समय था.

काली चादर में लिपटी जज सना सड़क पर आईं उनके साथ उनके दो बच्चे भी थे. दोनों के पास एक-एक बैग था जिसमें दो जोड़ी कपड़े, पासपोर्ट, फ़ोन, नक़दी और यात्रा के लिए जितना हो सके उतना खाना था.

सना उस दिन को याद करते हुए कहती हैं, "जब हम निकले तो हमें मालूम नहीं था कि हम कहां जा रहे हैं."

"हमसे कहा गया था कि रास्ते में सुरक्षा का ख़तरा होगा, लेकिन हमने इसे स्वीकार किया क्योंकि हम जानते थे कि सिर्फ़ यही बाहर निकलने का एक रास्ता है."

एक कार में जब वो और उनके बच्चे सवार हुए तो सना ने पलटकर उस शहर को देखा जहां पर वो पैदा हुई थीं, पली-बढ़ी थीं और अपने परिवार की शुरुआत की थी. लेकिन अब वो कैसे ज़िंदा रहेंगी यह उस समय एक अनजान शख़्स के हाथ में था जो उन्हें बाहर निकाल रहा था. उनको कोई आइडिया नहीं था कि वो कहां जा रही हैं, लेकिन वो जानती थीं कि वो कम से कम यहां नहीं रुक सकती हैं.

वो कहती हैं, "जब देश छोड़ते वक़्त मैंने अपने बच्चों को देखा तो यह मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़राब लम्हा था."

"मैं बहुत नाउम्मीद थी. मैं सोच रही थी कि क्या मैं उन्हें कभी अफ़ग़ानिस्तान से ज़िंदा बाहर निकाल पाऊंगी?"

सना का कहना था कि बीते तीन महीनों से उन्हें वो लोग ढूंढ रहे थे जिन्हें उन्होंने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसक अपराधों के लिए जेल भेजा था. देश में बढ़त बना लेने के बाद तालिबान ने जेलों को खोल दिया था और उनमें वो हज़ारों अपराधी भी थे जो बदला लेना चाहते थे.

सना कहती हैं, "मैं कोर्ट में काम करती थी जहां पर हत्या, सुसाइड, रेप और दूसरे अपराधों को मैंने डील किया था. मैंने जो सज़ाएं दी थीं वो लंबी और गंभीर थीं."

"लेकिन उनके रिहा होने के बाद उनमें से हर कोई कह रहा था कि वो हमें ढूंढ निकालेंगे और मार देंगे."


जन सना अपने दो बच्चों के साथ अफ़ग़ानिस्तान से भागीं और उनके पास सिर्फ़ चार बैग थे
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जन सना अपने दो बच्चों के साथ अफ़ग़ानिस्तान से भागीं और उनके पास सिर्फ़ चार बैग थे

बीबीसी की एक हालिया इन्वेस्टिगेशन में पाया गया था कि 220 से अधिक महिला जज किसी ख़ुफ़िया जगह पर छिपी हुई हैं क्योंकि उन्हें डर है कि तालिबान शासन में उनसे बदला लिया जाएगा. अफ़ग़ानिस्तान की ख़ुफ़िया जगहों से बात करते हुए उनमें से अधिकतर महिलाओं का कहना था कि उन्हें रोज़ाना हत्या की धमकी मिलती है.

इन आरोपों पर तालिबान प्रवक्ता के सेक्रेटरी बिलाल करीमी ने बीबीसी से कहा था, "महिला जजों को किसी भी महिला की तरह बिना डर के जीना चाहिए. किसी को उन्हें धमकी नहीं देनी चाहिए. हमारी स्पेशल मिलिट्री यूनिट इन शिकायतों की जांच करना चाहेगी और अगर कोई उल्लंघन हुआ है तो कार्रवाई होगी."

करीमी ने तालिबान के उस वादे को भी दोहराया जिसमें उसने कहा है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान की पिछली सरकार के सभी कर्मचारियों को 'आम माफ़ी' दे दी है.

लेकिन सना बीते कुछ महीनों को भयावह अनुभव बताती हैं.

वो कहती हैं, "हम हर दो या तीन दिन में अपनी जगह बदलते थे, हम कभी किसी सुरक्षित घर में जाते थे और कभी होटलों में."

"हम वापस घर नहीं लौट सकते थे. हमारे ख़ुद के घर पर छापेमारी की गई थी."

जब देश छोड़ा

पिक-अप पॉइंट छोड़ने के बाद सना और उनके परिवार ने एक दूसरी ज़मीन के लिए यात्रा शुरू की. सना कहती हैं कि वो रेगिस्तान के रास्ते बिना सोये 10 से अधिक घंटों तक यात्रा करते रहे. हर आधे घंटे के बाद उन्हें तालिबान का एक चेकपॉइंट मिलता था जहां पर हथियारबंद पुरुष होते थे और यात्रियों की जांच करते थे.

सना ने पूरे रास्ते अपने छोटे बच्चे को अपनी गोद में ले रखा था. उनको नहीं पता था कि वो ज़िंदा निकल पाएंगी.

रोते हुए वो कहती हैं, "अगर उन्हें पता चल जाता कि वो जज रही हैं तो तुरंत वो हमारी हत्या कर देते."

"पहले मैंने अक़्सर उन मामलों में सज़ाएं दी थीं जिनमें पति के दुर्व्यव्हार से तंग आकर महिलाओं ने आत्महत्याएं की थीं. मैं हमेशा सोचती थी कि किस मोड़ पर आकर महिला मौत को चुनती है. लेकिन जब मैं उम्मीद हारने लगी तो मैं भी उस मोड़ पर पहुंच गई. मैं मौत को गले लगाने के लिए तैयार हो गई थी."

रेगिस्तान से सुरक्षित निकलने के बाद सना और उनके बच्चों ने हवाई पट्टी पर पहुंचने से पहले एक हफ़्ते से अधिक समय एक घर में बिताया.

वो कहती हैं कि जैसे ही विमान हवा में उड़ा तो पूरा कैबिन रोने लगा क्योंकि वो सब निकल चुके थे.


ग्रीस का यह अस्थाई अपार्टमेंट बहुत साधारण है जिसमें बंक बेड्स, एक टेबल और कुर्सियां हैं
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ग्रीस का यह अस्थाई अपार्टमेंट बहुत साधारण है जिसमें बंक बेड्स, एक टेबल और कुर्सियां हैं

शरण

एथेंस पहुंचने के बाद सभी 26 जजों और उनके परिवार के सदस्यों को शहर के अपार्टमेंट में छोड़ने से पहले कोविड-19 का टेस्ट किया गया. अस्थाई वीज़ा योजना के तहत ग्रीस प्रशासन ने जजों को 14 दिनों के लिए खाना और घर देने का वादा किया है.

दो सप्ताह बाद क्या होगा यह किसी को नहीं पता है. जजों को सलाह दी गई है कि वो किसी तीसरे देश में शरण के लिए आवेदन करें.

आसमां उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने ब्रिटेन में शरण के लिए आवेदन किया है. अफ़ग़ानिस्तान में जज के तौर पर 25 साल के अनुभव के बाद यह उनके साथ पहली बार नहीं है जब वो तालिबान के डर से भागी हैं.

सोवियत सेना के पीछे हटने के बाद 1996 में तालिबान ने देश पर क़ब्ज़ा कर लिया था तब आसमां और उनका परिवार अफ़ग़ानिस्तान से भाग गया था.

आसमां कहती हैं, "यह दूसरी बार है जब हम तालिबान का क़ब्ज़ा देख रहे हैं. जब वो पहली बार सत्ता में आए तब मैं जज थी."

"तब भी महिला जज ही थीं जिन्हें सबसे पहले समाज से बाहर कर दिया गया था."

2001 में अमेरिकी और नेटो सेनाओं के आने के बाद आसमां घर वापस लौटीं और जज के तौर पर वापस काम शुरू किया. दो महीने पहले इतिहास ने अपने आप को फिर दोहराना शुरू किया.


इस महीने की शुरुआत में बैलोस तूफ़ान के दौरान ग्रीस का एक्रोपोलिस ऑफ़ एथेंस
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इस महीने की शुरुआत में बैलोस तूफ़ान के दौरान ग्रीस का एक्रोपोलिस ऑफ़ एथेंस

सना ने भी तालिबान का उदय पहले भी देखा है. 90 के दशक में वो लॉ स्कूल से बस ग्रैजुएट ही हुई थीं तब वो सत्ता में आ गए थे. वो कहती हैं कि पांच साल के लिए उन्हें जबरन घर में रहना पड़ा और काम छोड़ना पड़ा.

वो कहती हैं, "महिला जज बनना ही अपने आप में बड़ी जंग है."

"सबसे पहले उसे अपने परिवार को पढ़ाई कराने के लिए राज़ी करना होता है. उसके बाद जब वो यूनिवर्सिटी जाती है और उसे नौकरी मिलती है तो उसे हर क़दम पर ख़ुद को साबित करना पड़ता है."

"लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के दर्द को समझने के लिए महिला जजों की ज़रूरत है. जिस तरह से बीमारी को ठीक करने के लिए डॉक्टर की ज़रूरत होती है उसी तरह से महिला जज महिलाओं की मुश्किलों को समझती है और वो भेदभाव को मिटाने में मदद कर सकती है."

"महिलाओं को किसी अपराध को रिपोर्ट करने को भी शर्म से जोड़ दिया जाता है. लेकिन महिलाओं के रिश्तेदार तब अधिक समर्थन करते हैं जब महिला जज मौजूद होती है."

जो पीछे छूट चुके हैं

ग्रीस के अपने छोटे से अपार्टमेंट में सना अपना फ़ोन देख रही हैं. घर की अपनी पुरानी तस्वीर को दिखाते हुए वो गर्व से कहती हैं कि क़ानूनन यह संपत्ति उनकी है, न कि उनके पति की.

वो कहती हैं कि उनके घर से भागने के बाद तालिबान का एक बड़ा कमांडर उनके घर में रहता है, उनकी कार चलाता है और उनका सब सामान उसके पास है.

प्रवासी समूह के रूप में रह रहे इन जजों के पास घर से आ रही ख़बरें कम ही सकारात्मक होती हैं. एक व्हाट्सऐप ग्रुप में 28 प्रोफ़ाइल पिक्चर का एक कोलाज शेयर हो रहा है जिस पर एक महिला जज का कहना है कि यह उन पूर्व पुरुष अभियोजकों की तस्वीरें हैं जिनकी हत्या उन लोगों ने की है जिनको उन्होंने जेल भेजा था.


सना ग्रीस में अपने घर पर हैं. हर दिन प्रशासन परिवारों के लिए पका हुआ खाना लाता है और उसे बांटा जाता है
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सना ग्रीस में अपने घर पर हैं. हर दिन प्रशासन परिवारों के लिए पका हुआ खाना लाता है और उसे बांटा जाता है

ग्रीस आने वाली सभी महिला जजों में सबसे युवा महिला जज बेहद दुखी हैं.

तालिबान के क़ब्ज़े से पहले एक जूनियर जज नरगिस प्रांतीय परिवार कोर्ट में पांच से कम साल काम किया था. उनकी पूरी यूनिवर्सिटी की पढ़ाई और कामकाज अमेरिका समर्थित अफ़ग़ान सरकार में ही हुआ है.

नरगिस कहती हैं, "तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के लिए तरक़्क़ी करना और जो उन्होंने बीते 20 सालों में हासिल किया था वो बनाए रखना असंभव है."

बाक़ी वो महिलाएं जो उम्रदराज़ हैं और जिन्होंने तालिबान के उदय और फिर उनके पतन को देखा है उनको बहुत उम्मीदें हैं.

आसमां कहती हैं, "अफ़ग़ानिस्तान की महिलाएं वो महिलाएं नहीं हैं जो 20 साल पहले थीं."

"उन महिलाओं की ओर देखिए जिन्होंने तालिबान के आने के पहले दिन ही अपने अधिकारों और शिक्षा की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया."

"इस स्तर पर भी पहुंच पाना आसान नहीं है. लेकिन आज हमारे देश में हर बेटी अपने पैरों पर खड़ी है."


हाल ही में ग्रीस पहुंचीं नरगिस शहर को देख रही हैं
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हाल ही में ग्रीस पहुंचीं नरगिस शहर को देख रही हैं

सना ने भी अपनी उम्मीद को खोज लिया है. वो कहती हैं कि उन्होंने और उनकी साथी महिला जजों ने जो क़ानून बनाए उन्हें इतिहास से आसानी से मिटाया नहीं जा सकेगा. तालिबान उन्हें शायद नज़रअंदाज़ करे लेकिन उन्हें मिटा नहीं सकता है.

जिन रिकॉर्ड को हमने हासिल किया उन्हें ढूंढा जा सकता है, साझा किया जा सकता है

वो संविधान का हवाला दे रही थीं. अनुच्छेद 22 के तहत अफ़ग़ानिस्तान के सभी नागरिक, पुरुष और महिला, सभी के समान अधिकार हैं. अनुच्छेद 43 के तहत शिक्षा अफ़ग़ानिस्तान के सभी नागरिकों का अधिकार है और अनुच्छेद 48 के तहत काम करना हर अफ़ग़ान का अधिकार है.

सना ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का उन्मूलन अधिनियम बनाने में मदद की थी जो क़ानून के रूप में 2009 में पास हुआ था और इसमें महिलाओं के ख़िलाफ़ 22 तरह के कृत्यों को अपराध माना गया है जिनमें रेप, जबरन शादी, महिलाओं को संपत्ति लेने से रोकना, महिलाओं या लड़कियों को स्कूल या काम पर जाने से रोकना शामिल है.

तालिबान ने सभी कामकाजी महिलाओं और छात्राओं को तब तक स्कूल या काम से दूर रहने को कहा है जब तक कि काम की जगहें या सीखने का वातावरण 'सुरक्षित' न हो जाए. उनका कहना है कि यह अस्थाई प्रबंध हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई वक़्त तय नहीं किया है.

भविष्य में महिलाएं कब जज या मंत्री की भूमिका निभा पाएंगी? इस सवाल पर करीमी ने बीबीसी से कहा कि वो इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं क्योंकि 'महिलाओं के काम के लिए परिस्थितियां और मौक़ों पर अभी भी चर्चा जारी है.'

सना ग्रीस में अपने नए घर से अपने पुराने घर में जारी एक दर्दनाक अन्याय को देख रही हैं.

वो कहती हैं, "फ़िलहाल महिलाएं अपने घरों में फंसी हुई हैं और जिन अपराधियों को हमने क़ैद किया था वो अब आज़ाद हैं."

उन्होंने संकल्प लिया है कि वो अन्याय के ख़िलाफ़ विदेश से भी लड़ती रहेंगी और 'हर अफ़ग़ान महिला का समर्थन करेंगी.'

"अफ़ग़ानिस्तान मुल्क सिर्फ़ तालिबान या किसी एक ख़ास समूह से जुड़ा हुआ नहीं है. यह हर अफ़ग़ान का है."


तस्वीरें डेरिक इवांस.

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English summary
story of judge of Afghanistan who escape from the country
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