श्रीलंका की सात राजनीतिक पार्टियों ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखककर क्यों मदद मांगी है?
श्रीलंका की इन सात राजनीतिक पार्टियों ने अपनी चिट्ठी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के श्रीलंका दौरे का भी जिक्र किया है, जब 13 मार्च 2015 को पीएम मोदी ने श्रीलंका का दौरा किया था।
कोलंबो, जनवरी 11: श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है और आशंका जताई गई है कि इस साल श्रीलंका दिवालिया हो सकता है। इस बीच श्रीलंका में राजनीतिक संकट बढ़ने के संकेत दिखाई दे रहे हैं और श्रीलंका में रहने वाले तमिलों का मुद्दा एक बार फिर से गरमाता हुआ दिखाई दे रहा है और श्रीलंका की सात राजनीतिक पार्टियों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मदद मांगी है।
भारतीय पीएम को चिट्ठी
श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में श्रीलंकाई तमिलों का प्रतिनिधित्व करने वाली सात राजनीतिक पार्टियों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक संयुक्त पत्र लिखा है, जिसमें संविधान में 13 वें संशोधन के प्रावधानों को पूरी तरह से लागू करने के लिए उनकी मदद मांगी गई है। आपको बता दें कि, 29 जुलाई 1987 को भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते के तहत श्रीलंका के संविधान में 12ए यानि 12वां संशोधन किया गया था और अब श्रीलंका की सात राजनीतिक पार्टियों ने भारतीय प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मांग की है, कि वो श्रीलंका सरकार से उन संशोधन को लागू करने के लिए कहें, जिसे श्रीलंकन सरकार लागू नहीं कर रही है।
तमिलों के लिए समझौता
जिस वक्त श्रीलंका गृहयुद्ध में झुलस रहा था और राजनीतिक हालात बेहद खराब थे, उस वक्त भारत और श्रीलंका के बीच तमिलों को लेकर समझौता किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, 29 दिसंबर 2020 को इस लेटर का ड्राफ्ट तैयार किया गया था और 6 जनवरी 2022 को संबंधित सात पार्टियों से इस चिट्ठी को अनुमोदित किया गया था। इस चिट्ठी पर जिन सात राजनीतिक पार्टियों ने दस्तखत किए हैं, उनके नाम TNA, ITAK, TELO, PLOTE, EPRLF, TMP और TNP हैं। श्रीलंका के तमिल भाषी लोगों के सामने आने वाली प्रमुख समस्याओं की रूपरेखा के साथ पत्र को कोलंबो में भारतीय उच्चायोग के अच्छे कार्यालयों के माध्यम से प्रधान मंत्री मोदी को भेजा जाएगा।
चिट्टी में क्या लिखा गया है?
श्रीलंका की सात राजनीतिक पार्टियों द्वारा पीएम मोदी को लिखी गई चिट्टी में लिखा गया है कि, ''1948 में जब से श्रीलंका को अंग्रेजों से आजादी मिली, तमिल भाषी लोग सत्ता में आने वाली सभी सरकारों से सार्थक सत्ता बंटवारे की मांग कर रहे हैं। तमिल भाषी लोगों का राजनीतिक नेतृत्व उनकी वैध आकांक्षाओं को मान्यता देते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार समाधान चाहता था। हालाँकि आंतरिक रूप से और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सहायता से समाधान खोजने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन तमिल भाषी लोगों का राष्ट्रीय प्रश्न आज तक अनसुलझा है।''
भारत सरकार से अपील
चिट्ठी में आगे लिखा गया है कि, ''भारत सरकार पिछले 40 वर्षों से इस प्रयास में सक्रिय रूप से लगी हुई है और हम भारत द्वारा व्यक्त की गई दृढ़ प्रतिबद्धता के लिए आभारी हैं जो एक उचित और स्थायी समाधान खोजने के लिए है, जो तमिल भाषी लोगों की गरिमा, आत्म-सम्मान के साथ जीने की वैध आकांक्षाओं को पूरा करता है। सम्मान, शांति और सुरक्षा। हम एक संघीय ढांचे पर आधारित राजनीतिक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं जो हमारी वैध आकांक्षाओं को मान्यता देता है। तमिल भाषी लोग हमेशा श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में बहुसंख्यक रहे हैं।''
समझौते का दिलाया याद
श्रीलंका की राजनीतिक पार्टियों ने भारत-श्रीलंका के बीच हुए समझौते का जिक्र करते हुए लिखा है कि, ''भारत सरकार ने 1983 में इस मुद्दे पर बातचीत की पेशकश की थी, जिसे श्रीलंका सरकार ने स्वीकार कर लिया था और परिणामस्वरूप 29 जुलाई 1987 को भारत-लंका समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके बाद श्रीलंका के संविधान में 13 वां संशोधन पेश किया गया और एक प्रांतीय परिषद की स्थापना की गई। इस प्रणाली के तहत प्रांतों को शक्तियों के हस्तांतरण की परिकल्पना की गई थी। लेकिन संशोधन को केन्द्रीय संविधान में पेश किया गया था, जिससे इस संशोधन को पॉवर ट्रांसफर के बजाय विकेंद्रीकरण में से एक बना दिया गया था।''
सुरक्षा का आश्वासन मांगा
इस चिट्ठी में श्रीलंका की सातों तमिल पार्टियों ने पीएम मोदी को संबोधित करते हुए श्रीलंका सरकार के द्वारा तमिलों से किए गये वादों की याद दिलाया है और इस चिट्ठी में लिखा है कि, ''साल 2009 में एलटीटीई से जंग के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे और तत्कालीन यूनाइटेड नेशंस के महासचिव वान की-मून के साथ मिलकर एक संयुक्त बयान जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि, श्रीलंका के राष्ट्रपति संविधान के 13वें संशोधन को लागू करवाने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसमें लिखा है कि, श्रीलंका के विकास और शांति के लिए सभी तमिल पार्टियों समते तमाम पक्षों से बातचीत की जाएगी।'' आपको बता दें कि, इससे पहले साल 2010 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी श्रीलंका को लेकर बयान दिया था और 13वें संशोधन को लागू करने की मांग की थी।
पीएम मोदी उठा चुके हैं मुद्दा
आपको बता दें कि, श्रीलंका की इन सात राजनीतिक पार्टियों ने अपनी चिट्ठी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के श्रीलंका दौरे का भी जिक्र किया है, जब 13 मार्च 2015 को पीएम मोदी ने श्रीलंका का दौरा किया था और उस वक्त पीएम मोदी ने कहा था कि, वो भारतीय राज्यों को ज्यादा से ज्यादा मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं और हम केन्द्रीय ढांचे में विश्वास रखते हैं, लिहाजा, राज्यों के अधिकार में ज्यादा से ज्यादा बढ़ोतरी की जा रही है। इसके साथ ही जब श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे ने 29 नवंबर को भारत का दौरा किया था, उस वक्त भी पीएम मोदी ने उम्मीद जताते हुए कहा था कि, ''हमें विश्वास है कि, श्रीलंका की सरकार, समानता, न्याय, शांति और सम्मान और तमिलों की मांगों को पूरा करने की दिशा में काम करेगी और सुलह की प्रक्रिया को आगे ले जाएगी''। आपको बता दें कि, इसी में संविधान संशोधन 13A भी शामिल है। जिसमें लिखा है कि, भारत उत्तर और पूर्वी राज्यों के साथ ही पूरे श्रीलंका के विकास के लिए एक विश्वसनीय भागीदार बनेगा''।
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