गद्दाफ़ी के बेटे सैफ़ अल इस्लाम ज़िंदा हैं और वो लीबिया वापस चाहते हैं: रिपोर्ट
लीबिया के तानाशाह शासक रहे मुअम्मर अल गद्दाफ़ी के बेटे ने न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए इंटरव्यू में कहा कि अब अतीत में लौटने का समय आ गया है और वो राजनीतिक वापसी के लिए तैयार हैं.
लीबिया के तानाशाह शासक रहे मुअम्मर अल गद्दाफ़ी के बेटे सैफ़ अल इस्लाम का कहना है कि वो देश में फिर से "एकता बहाल" करना चाहते हैं.
49 वर्षीय इस्लाम ने अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उत्तरी अफ़्रीका के देश लीबिया और राजनीति से जुड़ी कई बातें कीं.
उन्होंने लीबिया में राष्ट्रपति चुनाव में अपनी दावेदारी की संभावना से भी इनकार नहीं किया.
अब से करीब एक दशक पहले साल अगस्त 2011 में लीबिया की राजधानी त्रिपोली पर विद्रोहियों ने नियंत्रण कर लिया था. इसके बाद अक्टूबर 2011 में गद्दाफ़ी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी.
कभी अपने पिता के उत्तराधिकारी माने जाने वाले सैफ़ अल इस्लाम का कहना है कि पिछले 10 साल में लीबिया के नेताओं ने वहाँ के लोगों को "दुख के सिवाय कुछ नहीं दिया है."
'लीबिया घुटनों पर है...न पैसा है और न सुरक्षा'
कई बरसों के बाद सामने आए इस्लाम ने कहा, "अब अतीत में लौटने का समय आ गया है. देश अपने घुटनों पर है...न पैसा है, न सुरक्षा है. यहाँ कोई ज़िंदगी ही नहीं है."
उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स को यह इंटरव्यू एक शानदार दोमंज़िला विला के कंपाउंड के अंदर दिया.
इस्लाम ने इस इंटरव्यू में कहा कि अब वो एक आज़ाद व्यक्ति हैं और राजनीतिक वापसी की तैयारी कर रहे हैं.
उन्होंने यह भी दावा किया कि पहले उन्हें क़ैद करने वाले लोग अब उनके 'दोस्त' बन गए हैं.
इस्लाम ने कहा कि लीबियाई विद्रोहियों को आख़िरकार यह अहसास हो गया कि वो उनके ताकतवर सहयोगी बन सकते हैं.
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'लोगों के दिमाग से खेलना होगा, स्ट्रिपर की तरह पेश आना होगा'
हालाँकि लीबिया की राजनीति में इस्लाम की वापसी आसान नहीं होगी. उन पर आईसीसी में मानवता के ख़िलाफ़ युद्ध अपराध का मुक़दमा तो चल ही रहा है, त्रिपोली कोर्ट की सज़ा भी उन पर बरक़रार है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि इन सभी बाधाओं के बावजूद मुअम्मर गद्दाफ़ी के बेटे सैफ़ अल इस्लाम 'अडिग' नज़र आते हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे भरोसा है कि अगर लीबिया के लोग बहुमत से उन्हें अपना नेता चुन लें तो इन क़ानूनी मसलों से निबटा जा सकता है."
इस्लाम ने कहा, "मैं 10 साल से लीबिया के लोगों से दूर रहा हूँ. वापसी के लिए संगीत की धुन पर कपड़े उतारने वाले स्ट्रिपर की तरह धीरे-धीरे काम करना होगा. लोगों के दिमाग के साथ थोड़ा खेलना होगा."
साल 2011 में जब वो अपनी जान बचाने के लिए भागते फिर रहे थे तब लीबिया में लोगों के घरों में छिपना उन्हें अजीब नहीं लगा?
इस सवाल के जवाब में इस्लाम ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा, "हम मछली की तरह हैं और लीबिया के लोग हमारे लिए समंदर की तरह है. उनके बिना हम मर जाएंगे. उन्हीं से हमें सपोर्ट मिलता हैं. हम यहीं छिपते हैं और यहीं लड़ते हैं. लीबिया के लोग हमारे समंदर हैं."
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अब तक कहाँ थे सैफ़ अल इस्लाम?
सैफ़ अल इस्लाम ने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से पीएचडी की है. पिछले कई वर्षों से वो कहाँ थे, इस बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं है.
इस्लाम पर युद्ध अपराधों का आरोप है और इसलिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईएसीसी) को भी उनकी तलाश थी.
साल 2011 में त्रिपोली पर विद्रोहियों के नियंत्रण के बाद वो करीब तीन महीने तक फरार रहे थे लेकिन फिर विद्रोहियों ने उन्हें क़ैद कर लिया था.
विद्रोहियों ने उन्हें लगभग छह साल तक ज़िन्टान शहर में क़ैद करके रखा था लेकिन साल 2017 में उनकी रिहाई की ख़बर आई थी.
हालाँकि यह मालूम नहीं चल पाया था कि उन्हें किस आधार पर रिहा किया गया है और रिहा होने के बाद वो कहाँ हैं.
साल 2015 में उन्हें त्रिपोली की एक कोर्ट ने मौत की सज़ा सुनाई थी लेकिन इस चरमपंथी समूह ने उन्हें सौंपने से इनकार कर दिया था.
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कभी सुधारवादी चेहरा माने जाते थे इस्लाम
आज से कई साल पहले सैफ़ अल इस्लाम को उनके तानाशाह पिता गद्दाफ़ी के सुधारवादी चेहरे के रूप में देखा जाता था क्योंकि उन्होंने पश्चिमी देशों से लीबिया के सम्बन्ध सुधारने में अहम भूमिका निभाई थी.
मगर इसके बाद साल 2011 में उन पर भीड़ को हिंसा के लिए भड़काने और प्रदर्शनकारियों की हत्या के आरोप लगे.
मुअम्मर गद्दाफ़ी और उनका परिवार करीब चार दशक तक लीबिया की सत्ता पर काबिज़ था लेकिन फिर साल 2011 में आई अरब क्रांति के बाद वहाँ भी विद्रोह भड़का.
इसी क्रम में विद्रोहियों ने राजधानी त्रिपोली पर नियंत्रण कर लिया और फिर भीड़ ने गद्दाफ़ी को पीट-पीटकर मार डाला था.
इस हमले में गद्दाफड़ी के सात बेटे भी मारे गए लेकिन इस्लाम किसी तरह बच निकले थे.
इस इंटरव्यू से पहले सैफ़ अल इस्लाम को आख़िरी बार साल 2014 में देखा गया था जब वो त्रिपोली की अदालत में ख़ुद पर चल रहे मुक़दमे की सुनवाई के लिए ज़िंटान शहर से वीडियो लिंक के ज़रिए पेश हुए थे.
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