Science: महासागरों में हजारों वायरस चला रहे अपना रहस्यमयी साम्राज्य, खोज करने वाले वैज्ञानिकों के हाथ-पैर फूले
इन वायरसों की खोज करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि, ये वायरस दुनिया की पारिस्थितिक तंत्र पर भारी प्रभाव डाल सकते हैं, जो कि खुद को "रीप्रोग्रामिंग" करते रहते हैं।
नई दिल्ली, जून 18: कोराना वायरस ने इंसानों को किस तरह से बेबस कर रखा है, इसे हम पिछले दो सालों में काफी अच्छी तरह से जान और समझ चुके हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने खोज के बाद खुलासा किया है कि, हजारों रहस्यमय वायरस दुनिया के महासागरों में छिपे हुए हैं और अपना साम्राज्य चला रहा है। वैज्ञानिकों ने बताया कि, इनमें से दर्जनों ऐसे वायरस हैं, जो इंसानों के लिए अत्यंत ही खतरनाक है और वैज्ञानिकों ने दूसरी सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात ये कही है, कि समुद्र का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है, जहां वायरस मौजूद नहीं हैं।
जर्नल साइंस में वैज्ञानिकों की खोज प्रकाशित
इन वायरसों की खोज करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि, ये वायरस दुनिया की पारिस्थितिक तंत्र पर भारी प्रभाव डाल सकते हैं, जो खुद को "रीप्रोग्रामिंग" करते रहते हैं। जर्नल साइंस में 9 जून को प्रकाशित नये शोध में समुद्र में हुकूमत करने वाले इन वायरसों के बारे में खुलासे किए गये हैं। वैज्ञानिकों को समुद्र में डीएनए के साथ साथ आरएएन युक्त वायरस भी मिले हैं। इंसानों को बीमार करने वाले वायरस ज्यादातर आरएनए युक्त वायरस होते हैं। उदाहरण के लिए, कोरोनावायरस और इन्फ्लूएंजा वायरस, दोनों आरएनए-आधारित हैं। हालांकि, जब समुद्र में आरएनए वायरस की बात आती है, तो वैज्ञानिक केवल उस विविधता के बारे में जान रहे हैं जो इंसानों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन उनके बारे में अभी तक रिसर्च नहीं किया गया है।
वैज्ञानिकों को रिसर्च में क्या पता चला?
नए अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों का कहना है कि, 'हम निश्चित रूप से सुनिश्चित हैं कि समुद्र में अधिकांश आरएनए वायरस माइक्रोबियल यूकेरियोट्स को संक्रमित कर रहे हैं, इसलिए कवक और प्रोटिस्ट, और कुछ हद तक, अकशेरुकी इससे संक्रमित हो रहे हैं। इस रिसर्च को लिखने वाले सह लेखक गिलर्मो डोमिंगुएज़-ह्यूर्टा, जो पोस्टडॉक्टरल थे और जो ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (ओएसयू) में वायरल पारिस्थितिकी में रिसर्च कर रहे हैं, उन्होंने लाइव साइंस से बात करते हुए कहा कि, यूकेरियोट्स जटिल कोशिकाओं वाले जीव हैं जो अपनी आनुवंशिक सामग्री को एक नाभिक के अंदर रखते हैं।
वातावरण करते हैं प्रभावित
टेनेसी नॉक्सविले विश्वविद्यालय में एक्वाटिक माइक्रोबियल पारिस्थितिकी अनुसंधान समूह के मुख्य जांचकर्ता स्टीवन विल्हेम ने कहा कि, ये वायरस समुद्र में मौजूद कवक और प्रोटिस्ट, जो शैवाल और अमीबा में मौजूद रहते हैं, उनकी वजह से ये काफी मात्रा में कार्बन डॉयऑक्साइड वायुमंडल में बाहर निकालते रहते हैं और इसलिए समुद्र में कार्बन जमा होता जाता है और इससे समुद्र का वायुमंडल गंभीर प्रभावित होता है। इसके साथ ही ये वायरस समुद्री जीवों को संक्रमित करते रहे है और आरएनए वायरस से उत्पन्न होने वाले कार्बन समुद्र के पानी के साथ बहते रहते हैं, जो और भी जीवों को प्रभावित करते हैं।
हर तरफ से सिर्फ वायरस ही वायरस
इस साल की शुरुआत में, डोमिंगुएज़-हुएर्टा और उनके सहयोगियों ने दुनिया के महासागरों में 5,500 से अधिक पहले से अज्ञात आरएनए वायरस खोजने में कामयाबी हासिल की थी। उस अध्ययन के लिए, जिसे साइंस मैग्जीन में 7 अप्रैल को प्रकाशित किया गया था, उस टीम ने 35,000 पानी के नमूनों का विश्लेषण किया था और ऐला करने के लिए तारा ओशन्स कंसोर्टियम द्वारा पांच महासागरों में 121 स्थानों से पानी के सैंपल लिए गये थे। महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के ये पानी के नमूने प्लवक से भरे हुए थे, ये एक छोटे जीव हते हैं, जो धारा में बहते रहते हैं और अक्सर आरएनए वायरस के लिए मेजबान के रूप में काम करते हैं। इन प्लवक के भीतर वायरस का पता लगाने के लिए, शोधकर्ताओं ने प्लवक की कोशिकाओं में सभी आरएनए के माध्यम से आनुवंशिक कोड के एक विशिष्ट स्निपेट को खोजने के लिए RdRp जीन के जरिए रिसर्च किया था।
ध्रुवीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा वायरस
रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने अलग अलग समुद्री हिस्सों को चार प्रमुख क्षेत्रों में क्रमबद्ध किया। आर्कटिक, अंटार्कटिक, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय एपिपेलैजिक। जिसका अर्थ है, समुद्र की सतह के करीब, और समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय मेसोपेलैजिक, जिसका मतलब ये हुआ कि, समुद्र में करीब 656 से 3,280 फीट (200 से 1,000 मीटर) नीचे ये वायरस मिले है। दिलचस्प बात यह है कि गर्म पानी में संक्रमित करने के लिए वायरसों के होस्ट की विविधता होने के बाद भी ध्रुवीय क्षेत्रों में वायरस की विविधता सबसे अधिक दिखाई देती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि, अगर इनमें से कुछ काफी खतरनाक वायरस किसी ना किसी तरह से इंसानों के बीच आ गये, तो भीषण कहर बरपा सकते हैं।