सऊदी अरब ने लिया अहम फ़ैसला, क्या ग़रीब इस्लामिक देश होंगे प्रभावित
सऊदी अरब की इस घोषणा के बाद पाकिस्तान में उम्मीद जगी थी कि आर्थिक बदहाली से निपटने में मदद मिलेगी. लेकिन सऊदी अरब ने 18 जनवरी को जो घोषणा की वह उसके हालिया निर्देश के उलट दिख रहा है.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान ने इस महीने 10 जनवरी को पाकिस्तान में निवेश 10 अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए विचार करने की बात कही थी.
सऊदी क्राउन प्रिंस ने इसके अलावा सऊदी डिवेलपमेंट फ़ंड यानी एसडीएफ़ से कहा था कि वह पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में डिपॉज़िट पाँच अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए अध्ययन करे.
सऊदी अरब की इस घोषणा के बाद पाकिस्तान में उम्मीद जगी थी कि आर्थिक बदहाली से निपटने में मदद मिलेगी. लेकिन सऊदी अरब ने 18 जनवरी को जो घोषणा की वह उसके हालिया निर्देश के उलट दिख रहा है.
सऊदी अरब ने कहा है कि वह अब किसी भी देश को वित्तीय मदद बिना शर्तों के नहीं करेगा. सऊदी अरब की नीति में यह बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है. सऊदी ने कहा है कि आर्थिक मदद इस शर्त पर होगी कि अगला देश अपनी अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के लिए ठोस फ़ैसले ले.
सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जादान ने बुधवार को स्विट्ज़रलैंड के दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकनॉमिक फ़ोरम में कहा, ''जिस तरह से हम आर्थिक मदद कर रहे थे, उसे बदलने जा रहे हैं. हम अब तक बिना किसी शर्त के सीधे डिपॉज़िट कर देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. हम इसके लिए कई वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. हमें इस मामले में सुधार की ज़रूरत थी.''
इसे भी पढ़ें:-पाकिस्तान को इस बार क्या सऊदी अरब और चीन भी नहीं बचा पाएंगे
कई मुल्कों का मददगार
खाड़ी के देशों में सऊदी अरब की पहचान मज़बूत सुन्नी मुस्लिम बहुल देश के रूप में है. सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश है और वह अपने इलाक़े में तंगहाल अर्थव्यवस्था वाले देशों को आर्थिक मदद करता रहा है.
सऊदी, अरबों डॉलर उन देशों के केंद्रीय बैंकों में डिपॉज़िट करता रहा है. सऊदी अरब के इस रुख़ को वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत और पिछले साल ऊर्जा राजस्व में आई गिरावट से जोड़कर देखा जा रहा है.
सालों से सऊदी अरब की मदद मिस्र को मिलती रही है. सऊदी अरब ने बहरीन को भी आर्थिक संकट से निकाला था. इसके अलावा सऊदी पाकिस्तान को आर्थिक संकट से निकालता रहा है.
{image-"पाकिस्तान पर दुनिया का क़र्ज़ क़रीब 100 अरब डॉलर है और इस वित्तीय वर्ष में 21 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकाना है. अगले तीन सालों तक क़रीब 70 अरब डॉलर का क़र्ज़ पाकिस्तान को चुकाना है.", Source: मिफ़्ताह इस्माइल, Source description: पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री, Image: मिफ़्ताह इस्माइल hindi.oneindia.com}
अब सऊदी अरब के नए रुख़ को इस बात के सबूत के तौर पर देखा जा रहा है कि वह अपनी पहले की नीतियों से सहमत नहीं था. यूक्रेन पर रूसी हमले के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पुराने नियम तेज़ी से अप्रासंगिक हो रहे हैं.
यूक्रेन संकट का मिस्र पर बहुत बुरा असर पड़ा है. मिस्र अरब दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश है और वह विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है. वही हाल पाकिस्तान का है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार चार अरब डॉलर हो गया है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री देश दर देश आर्थिक मदद मांगते चल रहे हैं.
इसे भी पढ़ें:-सऊदी अरब के लिए पाकिस्तान बोझ है या उसकी ताक़त
मिस्र और पाकिस्तान को मदद की आस
मिस्र और पाकिस्तान दोनों ख़ुद को बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की शरण में हैं. इसके अलावा दोनों देशों ने सऊदी अरब से भी मदद मांगी है.
अतीत में सऊदी अरब पाकिस्तान और मिस्र को डिपॉज़िट और ऊर्जा आपूर्ति के ज़रिए मदद करता रहा है. अब कहा जा रहा है सऊदी अरब क़र्ज़ के बदले निवेश पर ज़ोर दे रहा है. सऊदी के अलावा गल्फ़ के अन्य शक्तिशाली देश यूएई और क़तर भी मिस्र और पाकिस्तान को मदद करते रहे हैं.
ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ सऊदी अरब ने मिस्र को फिर से पाँच अरब डॉलर का डिपॉज़िट किया है, लेकिन यह 10 अरब डॉलर के निवेश क़रार का हिस्सा है.
{image-"जिस तरह से हम आर्थिक मदद कर रहे थे, उसे बदलने जा रहे हैं. हम अब तक बिना कोई शर्त के सीधे डिपॉजिट कर देते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब मदद सशर्त होगी.", Source: मोहम्मद अल-जादान, Source description: सऊदी अरब के वित्त मंत्री, Image: सऊदी अरब hindi.oneindia.com}
सऊदी ने मिस्र के इन्फ़्रास्ट्रक्चर, रीयल एस्टेट और फ़ार्मा में निवेश करने का क़रार किया है. मंगलवार को एक इंटरव्यू में सऊदी के वित्त मंत्री ने कहा था कि वह मिस्र की मदद करते रहेंगे, लेकिन केवल सीधे डिपॉज़िट के ज़रिए नहीं बल्कि निवेश के माध्यम से.
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री और सिटीग्रुप इमर्जिंग मार्केट्स इन्वेस्टमेंट के पूर्व प्रमुख यूसुफ़ नज़र ने ट्वीट कर कहा है, ''मैंने पिछले साल जून में ही लिखा था कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी अहमियत खोता जा रहा है. सऊदी अरब और चीन भी हमारी मदद के लिए परेशान नहीं हैं. पश्चिम से तो हमें उपेक्षा मिल ही रही है. हमें इस मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए कि हम परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं.''
इसे भी पढ़ें:-सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने की पाकिस्तान के लिए बड़ी घोषणा, क्या होगा असर
मुंबई और कराची की तुलना
यूसुफ़ नज़र ने पाकिस्तानी पत्रकार आस्मां शिराज़ी के टीवी शो में गुरुवार को कहा, ''शहबाज़ शरीफ़ सरकार का यह आकलन ग़लत साबित हुआ है कि वह विदेशों से 9 से 10 अरब डॉलर का जुगाड़ कर लेंगे. अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है. हम ख़ुद को परमाणु शक्ति वाला देश बताते रहे. पाकिस्तान को ख़ुद को बचाना है तो आईएमएफ़ से तत्काल डील फ़ाइनल करे. पाकिस्तान की एक्सचेंज रेट की नीति ग़लत है. जो अमीर हैं, उन पर तीन गुना तक टैक्स बढ़ाया जाए.''
यूसुफ़ नज़र का कहना है, ''आईएमएफ़ से डील में देरी पाकिस्तान के लिए ख़तरनाक हो सकती है. हमें इस मामले में निर्णायक होना चाहिए. दुनिया हमारे यहाँ राजनीतिक स्थिरता का इंतज़ार नहीं करेगी. इसमें 40 साल भी लग सकते हैं. कुछ क़दम हम उठाएं तो ख़तरनाक स्थिति से बच सकते हैं. रुपया खुले बाज़ार में जाने दिया जाए. पेट्रोल की क़ीमत 350 रुपए तक बढ़ाई जाए. रक्षा और सरकारी ख़र्चों में कटौती की जाए और अमीरों पर टैक्स बढ़ाया जाए.''
{image-"पाकिस्तान आईएमएफ़ से फंड लेने के लिए उसकी शर्तों के हिसाब से आर्थिक सुधार की बात मान लेता है लेकिन आईएमएफ़ प्रोग्राम ख़त्म होते ही फिर से पुरानी राह अपना लेता है.", Source: मलीहा लोधी, Source description: पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक, Image: मलीहा लोधी hindi.oneindia.com}
यूसुफ़ नज़र ने पाकिस्तान में सुधार के लिए बृहन्मुंबई नगर निगम और कराची नगर निगम की तुलना करते हुए एक डेटा पेश किया है.
नज़र ने लिखा है, ''मुंबई की आबादी 1.8 करोड़ है जबकि कराची की जनसंख्या कम से कम दो करोड़ है. मुंबई नगर निगम का सालाना बजट 5.7 अरब डॉलर है जबकि कराची नगर निगम का बजट मुश्किल से 14 करोड़ डॉलर है. मुंबई नगर निगम में एक लाख 40 हज़ार कर्मचारी काम करते हैं और कराची नगर निगम में क़रीब 17 हज़ार. पाकिस्तान पहले स्थानीय व्यवस्था को दुरुस्त करे.''
इसे भी पढ़ें-मोदी की हिन्दुत्व वाली छवि खाड़ी के इस्लामिक देशों में बाधा क्यों नहीं बनी
क्या डिफ़ॉल्ट कर जाएगा पाकिस्तान?
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है, ''अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पाकिस्तान अगले साल तक डिफ़ॉल्ट कर सकता है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि क़र्ज़ माफ़ी और उसे चुकाने की अवधि बढ़ाना तकनीकी रूप से डिफ़ॉल्ट होना ही है. बस फ़र्क़ यह होता है कि इस डिफ़ॉल्ट वाली स्थिति में श्रीलंका की तरह हालात नहीं होते हैं. श्रीलंका पिछले साल डिफ़ॉल्ट कर गया था. डिफ़ॉल्ट होने का मतलब होता है कि तय समय पर क़र्ज़ नहीं चुकाना. इसके बाद दुनिया भर की आर्थिक एजेंसियां निगेटिव ग्रेड देना शुरू कर देती हैं.''
कहा जा रहा है कि सऊदी अरब के नए फ़ैसले से पाकिस्तान आईएमएफ़ की शर्तों को मानने के लिए मजबूर होगा. यूसुफ़ नज़र का कहना है कि अब खाड़ी के देश पाकिस्तान में सीधे कैश देने से बच रहे हैं और सब निवेश के ज़रिए मदद करने की पेशकश कर रहे हैं. लेकिन निवेश से तत्काल के संकट का समाधान नहीं होगा क्योंकि निवेश का असर लंबी अवधि में दिखता है.
आईएमएफ़ के अनुमान के मुताबिक़, पाकिस्तान का विदेशी क़र्ज़ इस साल जून में वित्तीय वर्ष के अंत तक क़रीब 138 अरब डॉलर हो जाएगा. अनुमान के मुताबिक़ इनमें से 103 अरब डॉलर सरकारी क़र्ज़ है.
पाकिस्तान को इस साल 21 अब डॉलर का क़र्ज़ अदा करना है और जून 2026 तक कुल 75 अरब डॉलर. इस वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा आठ अरब डॉलर रह सकता है जो पिछले वित्तीय वर्ष में 17 अरब डॉलर था. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने डॉलर बचाने के लिए आयात में भारी कटौती की है इसलिए घाटा कम हुआ है.
कहा जा रहा है कि सऊदी अरब के नए फ़ैसले से पाकिस्तान और मिस्र सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे. मिस्र भयावह आर्थिक संकट से गुज़र रहा है. मिस्र के पाउंड में पिछले साल मार्च से क़रीब 50 फ़ीसदी की गिरावट आई है.
मिस्र के सरकारी डेटा के अनुसार, महंगाई दर भी बढ़कर 24.4 फ़ीसदी हो गई है. मिस्र का विदेशी क़र्ज़ क़रीब 170 अरब डॉलर हो गया है. कई विश्लेषकों का कहना है कि मिस्र का संकट इतना गहरा है कि मुल्क बिखर सकता है. मिस्र की मीडिया में कहा जा रहा है कि इसके बावजूद ये तथ्य राष्ट्रपति अल-सीसी को बहुत चिंतित नहीं कर रहा है.
इसे भी पढ़ें:-इस्लाम ज़रा सी बात पर ख़तरे में आ जाता है, मिफ़्ताह इस्माइल ने ऐसा क्यों कहा
अल सीसी की आर्थिक नीति
ये भी कहा जा रहा है कि खाड़ी के देश मिस्र की समस्या को लेकर गंभीर नहीं हैं. जैसे पाकिस्तान को लेकर कहा जा रहा है कि खाड़ी के देश अब वैसा उत्साह नहीं दिखा रहे हैं. 2013 में तख़्तापलट के बाद अल सीसी सत्ता में आए थे और तब से सऊदी अरब, यूएई और कुवैत ने मिस्र को अच्छी-ख़ासी मदद की थी.
खाड़ी के देश अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को भी मिस्र की मदद के लिए आश्वस्त करते रहे हैं. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. कहा जा रहा है कि अल-सीसी खाड़ी के देशों की निराशा को ख़त्म करने में नाकाम रहे हैं.
अरब के विश्लेषकों का मानना है कि मिस्र खाड़ी के देशों के लिए बोझ बनता जा रहा है, इसलिए अब बहुत उत्साह नहीं दिखा रहे हैं. यह भी कहा जा रहा है कि खाड़ी के देश अब अल-सीसी से बात करने की बजाय वहां की फ़ौज से बात कर रहे हैं.
कुवैत के सांसद ओसामा अलशाहीन ने हाल ही में अपनी सरकार को मिस्र की मदद को लेकर चेताया था. अरब के जाने-माने पत्रकार अम्र अदीब ने भी अल-सीसी की आर्थिक नीतियों की आलोचना की थी.
इन्हें भी पढ़ें-
- सऊदी अरब 'पाकिस्तान की परवाह किए बिना' क्यों आ रहा है भारत के क़रीब
- धनवान सऊदी अरब बलवान क्यों नहीं बन पा रहा?
- सऊदी अरब के शाही घराने में सत्ता संघर्ष की भीषण कहानी
- क्या सऊदी अरब का पूरा कुनबा बिखर जाएगा?
- सऊदी अरब का परमाणु सपना और अमरीका की परेशानी
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)