भारत और रूस के रिश्तों में नई जान डालेगी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डील, जानिए कैसे
नई दिल्ली। यूं तो रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पहले भी भारत दौरे पर आ चुके हैं लेकिन इस बार उनका यह दौरा काफी अलग है। इस बार पुतिन के 'दिल्ली दर्शन' पर अमेरिका तक की नजरें हैं। पिछले कुछ माह से भारत, रूस और अमेरिका तक बस एक ही शोर सुनाई दे रहा है और वह है एस-400 एयर डिफेंस एंड मिसाइल सिस्टम की भारत और रूस के बीच होने वाली डील का। भारत और रूस के बीच हाल के वर्षों में हुई कुछ बड़े रक्षा सौदों में यह सौदा सबसे बड़ा और रणनीतिक साबित होने वाला है। सबसे दिलचस्प बात है कि यह रक्षा सौदा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका की तरफ से लगातार नई दिल्ली पर डील की वजह से संभावित प्रतिबंधों का दबाव बनाया जा रहा है। इन सबके बीच यह डील कहीं न कहीं मॉस्को और नई दिल्ली के बीच पिछले कुछ वर्षों में आई दूरी को पाटने का काम कर सकती है।
क्या है एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम
जो मिसाइल डिफेंस सिस्टम किसी भी बैलेस्टिक मिसाइल के हमले के खिलाफ किसी रक्षा कवच का काम करती है। रूस की एस-400 को जिसे ट्राइम्फ कहते हैं, नाटो ने एसए-21 ग्रोवलर नाम दिया है। इसे अभी तक जमीन से हवा तक हमला करने वाले दुनिया में सबसे खतरनाक सिस्टम के तौर पर माना जाता है। यह मिसाइल सिस्टम अमेरिका के टर्मिनल हाई ऑल्टीट्यूट एरिया डिफेंस सिस्टम यानी थाड से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है। यह सिस्टम 400 किलोमीटर की दूरी से आने वाले हर तरह के एयरक्राफ्ट, यूएवी के अलावा बैलिस्टक और क्रूज मिसाइल को पहचान कर उन्हें ध्वस्त कर सकता है। इसके साथ ही साथ ही एस-400 अमेरिकी जेट जैसे एफ-35 के खिलाफ भी मोर्चा ले सकती है और साथ ही साथ एक साथ छह ऐसे जेट्स को मार सकती है। इन सिस्टम को शहरों और न्यूक्लियर पावर प्लांट्स जैसे संवेदनशील ठिकानों की सुरक्षा के अलावा युद्ध के दौरान भी तैनात किया जा सकता है। निश्चित तौर पर यह डील भारत की सेनाओं को शक्तिशाली बनाएगी और साथ ही साथ ही दुश्मनों के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगी।
सीरिया में हुई तैनात
साल 2007 में यह सिस्टम ऑपरेशनल हुआ था और साल 2015 में रूस ने इसे सीरिया में तैनात किया था। इसकी तैनाती का मकसद रूस और सीरिया के नेवी बेसेज की सुरक्षा करना था। इसके अलावा इसे क्रीमिया में भी रूस ने तैनात किया है। पाकिस्तान या चीन की तरफ से अगर कोई मिसाइल हमला भारत पर होता है तो यह सिस्टम उसे कुछ ही सेकेंड्स में फेल कर देगा। इन सबके अलावा भारत और रूस के रक्षा संबंधों में इस सिस्टम की डील फिर से नई जान डाल सकती है। भारत की सेनाओं के पास इस समय 60 प्रतिशत से ज्यादा हथियार और रक्षा उपकरण रूस के हैं इनमें परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बी आईएनएस चक्र के अलावा, सुपरसोनिक ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल, मिग और सुखोई फाइटर जेट्स, टी-72 और टी-90 टैंक्स के अलावा आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट कैरियर सबसे अहम हैं।
अमेरिका की वजह से आई दूरी
साल 2005 में भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों में उस समय दूरी आनी शुरू हो गई जब अमेरिका के साथ डिफेंस डील्स होनी शुरू हुईं। अमेरिका और भारत जहां इस समय करीब हैं तो वहीं भारत और रूस के बीच एक अजीब सी दूरी है। सोवियत दौर के समय के साथी भारत और रूस के बीच इस समय 10 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है तो वहीं अमेरिका के साथ भारत के व्यापार के आंकड़ें ने 100 बिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लिया है यानी पूरा 10 गुना ज्यादा। आज भारत, अमेरिका का सबसे बड़ा रक्षा साझीदार है। साल 2012 से 2016 तक भारत और अमेरिका के बीच 14 प्रतिशत तक का रक्षा कारोबार हुआ तो वहीं रूस के साथ रक्षा कारोबार का आंकड़ा 68 प्रतिशत रहा।
भारत को हमेशा पड़ेगी रूस की जरूरत
भले ही भारत और अमेरिका करीब आते जाएं लेकिन यह भी सच है कि भारत को हमेशा रूस की जरूरत पड़ेगी क्योंकि रक्षा उपकरणों के लिए स्पेयर पार्ट्स के लिए मॉस्को की तरफ देखना पड़ेगा। इसके अलावा जो टेक्नोलॉजी अमेरिका, भारत को देने से हिचकिचाता है, वह टेक्नोलॉजी रूस से भारत को मिल सकती है। इसके साथ ही रूस, यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) का स्थायी सदस्य है। अगर भारत और रूस के बीच यह डील अपने मुकाम पर पहुंच गई तो फिर एक नया संदेश दुनिया को जाएगा, खासतौर पर अमेरिका को। यह डील न सिर्फ नई दिल्ली और मॉस्को को करीब लाएगी बल्कि एक बार फिर से दोनों को रणनीतिक तौर पर एक-दूसरे की अहमियत बताने के लिए काफी होगी।