क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ब्रिटेन में रिकॉर्ड संख्या में भारतीय मूल के सांसद और मंत्री, फिर भी नस्ली भेदभाव?

बोरिस जॉनसन के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री और गृह मंत्री भारतीय मूल के हैं फिर क्यों भारतीय मूल के लोगों से भेदभाव की बातें हो रही हैं.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
प्रीति पटेल और बोरिस जॉनसन
Reuters
प्रीति पटेल और बोरिस जॉनसन

पिछले हफ़्ते पाकिस्तानी मूल के साजिद जावीद मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बनकर वापस लौटे. उनके मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) जैसी दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में से एक शामिल है.

प्रधानमंत्री पद के बाद ब्रिटेन का दूसरा सबसे अहम मंत्रालय वित्त है. भारतीय मूल के युवा ऋषि सुनक देश के वित्त मंत्री हैं और महत्वपूर्ण गृह मंत्रालय की बागडोर भारतीय मूल की प्रीति पटेल के हाथों में है.

इसके अलावा दिसंबर 2019 में हुए संसदीय चुनाव में 15 भारतीय मूल के और इतने ही पाकिस्तानी मूल के उम्मीदवारों की जीत हुई. चार बांग्लादेशी महिला उम्मीदवार भी विजयी रहीं.

2019 में ब्रितानी संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स की 650 सीटों के लिए चुनाव हुए थे जिनमे हर 10 सीटों में से एक पर उन जातीय अल्पसंख्यक उम्मीदवारों की जीत हुई.

देश में आम तौर पर इन्हें बीएएमई ग्रुप यानी काले, एशियाई और जातीय अल्पसंख्यक के रूप में जाना जाता है. ब्रिटेन में नस्ली तौर पर अल्पसंख्यकों की आबादी 14 प्रतिशत के क़रीब बताई जाती है.

इतने सारे काले, एशियाई और अल्पसंख्यक सांसद ब्रिटेन की संसद में पहले कभी नहीं चुने गए.

नारायण मूर्ति के दामाद बने ब्रिटेन के वित्त मंत्री

ब्रिटेन में भारतीय मूल के मंत्री बनने पर ख़ुशी क्यों

बोरिस सरकार में वित्त मंत्री ऋषि सुनक
PA Media
बोरिस सरकार में वित्त मंत्री ऋषि सुनक

नस्ली भेदभाव कम हो रहा है?

'ब्लैक लाइव्स मैटर' अभियान और सरकारी-ग़ैर-सरकारी दफ्तरों, संस्थाओं और खेलों की दुनिया में विविधता लाने की कोशिश के तहत ब्रिटेन की संसद और मंत्रिमंडल में भी जातीय अल्पसंख्यकों की भागीदारी बढ़ी है. विपक्षी लेबर पार्टी के भारतीय मूल के सांसद नवेन्दु मिश्रा कहते हैं कि यह सही दिशा में एक क़दम है.

तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि ब्रिटेन में नस्ली भेदभाव ख़त्म हो रहा है या कम हो गया है? विशेषज्ञ कहते हैं ऐसा सोचना नासमझी होगी. ट्विटर और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म पर काली नस्ल के खिलाड़ियों को नस्लवादी अक्सर ट्रोल करते रहते हैं. कभी सामने से उन्हें उनके मुंह पर बंदर तक कह डालते हैं.

इन दिनों ब्रिटेन में कोरोना वायरस के डेल्टा वैरिएंट के बढ़ने के कारण भारतीय मूल के लोगों के ख़िलाफ़ नस्ली भेद्बभाव के मामले बढे हैं.

नवेन्दु मिश्रा कहते हैं, "द इंडियन वेरिएंट' जैसे शब्द भेदभाव का एक उदाहरण है, जहां इसका व्यापक उपयोग वायरस के घातक प्रसार को भारतीय लोगों से जोड़ता है, यह निश्चित रूप से हानिकारक है."

उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, "कुछ मंत्रियों ने ऐसी नीतियां बनाई हैं जो इस देश में अल्पसंख्यकों के लिए हानिकारक हैं- निर्वासन और COVID-19 नीतियां, जिन्होंने जातीय असमानताएं पैदा की हैं, इसके कई उदाहरण हैं. हालांकि आम तौर पर, ब्रिटिश समाज दशकों पहले की तुलना में अधिक सहिष्णु है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि नस्लवाद मौजूद नहीं है. सोशल मीडिया ने इसे और अधिक प्रचलित बना दिया है, कई लोग असंवेदनशीलता दिखाते हैं. यही कारण है कि हमें एक अपडेटेड हेट क्राइम रणनीति की आवश्यकता है, जो ठीक से यह बताए कि सरकार इससे कैसे निपटना चाहती है."

और शायद इसीलिए 22 जून को सांसद नवेन्दु मिश्रा ने ब्रिटेन की संसद में एक प्रस्ताव रखा जिसमें देश में 'भारत विरोधी नस्लवाद में वृद्धि' की निंदा की गई.

उन्होंने इस प्रस्ताव को हाउस ऑफ कॉमन्स में 'अर्ली डे मोशन' (ईडीएम) की तरह पेश किया. ब्रिटिश संसद में, ईडीएम का उपयोग सांसदों के विचारों को दर्ज करने या विशिष्ट घटनाओं या अभियानों पर ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जाता है.

मोईन अली पर तस्लीमा की टिप्पणी से गरमाया 'इस्लामोफ़ोबिया' का मुद्दा

डैरेन सैमी: मुझे 'कालू' कहने वाले खिलाड़ी माफ़ी मांगें

संसद में प्रस्ताव

उनका ये प्रस्ताव भारतीय मूल के ब्रितानियों के विचारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए पिछले साल स्थापित थिंक टैंक 'द 1928 इंस्टीट्यूट' की एक हाल की रिपोर्ट पर आधारित है.

इसने मई में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें दावा किया गया था कि 80 प्रतिशत भारतीय मूल के लोगों को अपनी भारतीय पहचान के कारण पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ा है और हिंदू विरोधी भावनाएं सबसे ज्यादा प्रचलित हैं.

इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया, "यह ज़रूरी है कि भारत विरोधी नस्लवाद, विशेष रूप से हिंदूफोबिया से निबटने पर ध्यान दिया जाए."

'1928 इंस्टीट्यूट' के सह-संस्थापक अरुण वैद ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि हिंदूफोबिया ब्रिटिश समाज की एक सच्चाई है. लेकिन वो कहते हैं, "हिंदूफोबिया की हमारी धारणा पारंपरिक सांस्कृतिक-भौगोलिक अर्थ में 'हिंदू' शब्द का उपयोग करती है. इस प्रकार, हिंदूफोबिया, जो स्वदेशी भारतीय ज्ञान और संस्कृति के औपनिवेशिक चित्रण से उभरता है, ग़लतबयानी, बहिष्कार, उपहास और हिंसा के रूप में प्रकट हो सकता है."

वो भारतीय मूल के लोगों के ऊँचे सरकारी पदों पर पहुँचने का स्वागत करते हैं और उनके अनुसार ये प्रेरणादायक भी है.

हालांकि वो कहते हैं, "भारत विरोधी नस्लवाद अभी भी मौजूद है और कुछ ख़ास क्षेत्रों में केंद्रित है.". दक्षिण एशिया के लोग मंत्री बनने का मतलब ब्रिटेन में नस्ली भेदभाव कम होने का नतीजा निकालने वालों से वो पूछते हैं कि जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि अमेरिका में नस्लीय भेदभाव कम हो गया है."

ब्रिटेन में भारतीय समुदाय

ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की आबादी 14 लाख के क़रीब है जो देश की कुल आबादी का केवल 2.3 प्रतिशत है लेकिन ये ब्रिटेन का सबसे बड़ा जातीय समुदाय है.

ये 1950 और 1960 के दशकों में ब्रिटेन के कपड़ों के मिलों में काम करने आये थे. कुछ भारतीय मूल के लोग अफ्रीका से आकर ब्रिटेन में बस गए थे.

ब्रितानी समाज के सभी क्षेत्रों में भारत और दक्षिण एशिया से आकर बसे लोग मिल जाएंगे. उद्योग, व्यापार, क्रिकेट और शिक्षा के क्षेत्रों में इन्होंने काफ़ी कामयाबी हासिल की है.

लेकिन ये कहना ग़लत नहीं होगा कि दक्षिण एशिया से आए लोगों को सियासत में कामयाबी अधिक मिली है. साजिद जावीद का ही उदाहरण ले लीजिये. वो पहले वित्त मंत्री रह चुके हैं. उनके पिता पाकिस्तान से आए थे और ब्रिटेन में बस ड्राइवर की नौकरी किया करते थे.

वो प्राइवेट स्कूल नहीं गए लेकिन अपनी योग्यता के दम पर वो डॉएच बैंक में मैनेजिंग डायरेक्टर के ओहदे पर पहुंच गए. पिछले 11 सालों से राजनीति में हैं. उनके लिए एक ही पद बचा है जहां तक वो पहुंचना चाहेंगे और वो है प्रधानमंत्री का पद.

भारतीय मूल की प्रीति पटेल भी वर्किंग क्लास बैकग्राउंड से आती हैं. उनके बारे में भी ये कहा जा सकता है कि गृह मंत्रालय के बाद प्रधानमंत्री का पद हासिल करना ही उनकी असली तरक़्क़ी कही जाएगी. ऋषि सुनक अभी 40 साल के हैं और वो वित्त मंत्री के पद पर हैं, उनका लक्ष्य भी देश की सबसे ऊँची कुर्सी ही होगी.

नस्लवाद के विरोध का सही तरीक़ा क्या है? क्या आप नस्लवाल विरोधी हैं?

'मेरे परदादा ग़ुलाम बेचा करते थे...लाइसेंस था उनके पास'

भारतीय मूल के लोगों के साथ भेदभाव

नवेन्दु मिश्रा के माता-पिता उत्तर प्रदेश के हैं और वो केवल 30 वर्ष की उम्र में ही सांसद बन गए. वो भारतीय मूल के लोगों की कामयाबी की एक मिसाल हैं. लेकिन वो कहते हैं कि नस्लवाद बाहर से नहीं दिखता है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, "भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ नस्लवाद अक्सर छिपा हुआ होता है. मेरे साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, कुछ लोगों में विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के बारे में ज्ञान का पूर्ण अभाव है."

सिख समुदाय के एक धार्मिक गुरु अमरजीत सिंह चीमा फ़ोन पर मैनचेस्टर शहर से बताते हैं कि वो बचपन से भेदभाव का शिकार रहे हैं.

वो कहते हैं, "जब मैं स्कूल में था तो मेरी पगड़ी और लंबे बाल का बच्चे मज़ाक़ उड़ाते थे. जब मैं बड़ा हुआ तो यहाँ के बड़े-बुज़ुर्ग मुझे जिज्ञासा से देखते थे. शॉपिंग करने बाजार जाता था तो लोग मुझे घूरकर देखते थे. जब 9/11 हुआ तो मुझे मेरी लंबी दाढ़ी और पगड़ी के कारण ओसामा के नाम से भी पुकारा गया."

लेकिन उनके मन में कोई खटास नहीं है और स्थानीय लोगों के ख़िलाफ़ कोई शिकायत भी नहीं है.

वो कहते हैं, "मैं यहीं पैदा हुआ. ये मेरा देश है. एक समय था ये गोरे लोग हमारे खाने का मज़ाक़ उड़ाते थे और हमें 'पाकी' या 'चटनी' जैसे नस्ली तंज़ वाले शब्द कहकर छेड़ते थे. अब करी और बिरयानी गोरों को पसंद है. अब ये हम जैसे सिख और तालिबान के बीच फ़र्क़ जानते हैं. उन्होंने हमें अपना लिया है और हम भी यहीं के होकर रह गए हैं."

अमरजीत सिंह चीमा के मुताबिक़ पहले नस्ली भेदभाव स्थानीय लोगों की नादानी या कम जानकारी होने के कारण था लेकिन अब ऐसा नहीं है. "मेरे परिवार वाले मैनचेस्टर की मिलों में काम करने आए थे. उन्हें अंग्रेजी बोलनी भी नहीं आती थी. हमारे रहने-सहने का अंदाज़ भी अलग था. भेदभाव करने वाले भी हैं जो चाहते हैं कि हम अपने देश लौट जाएँ लेकिन ये मुट्ठी भर हैं."

प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की सरकार ने नस्लवाद को जड़ से उखाड़ने का बीड़ा उठा रखा है. लेकिन फिलहाल उन्हें बहुत सफलता नहीं मिली है.

पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने ब्रिटिश समाज को बहुसांस्कृतिक घोषित किया जिसमें उन्हें कामयाबी मिली लेकिन बहुत थोड़ी सी. अब ब्रिटिश सरकार विविधता पर भी ज़ोर दे रही है और विशेषज्ञ कहते हैं कि फिलहाल यही सही रास्ता है इस मसले को हल करने का.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
record number of Indian-origin MPs and ministers in Britain but racial discrimination?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X