आम आदमी के लिए आएगा रमज़ान का चांद: वुसअत का ब्लॉाग
आज शाम चांद नज़र आ जाएगा और कल से रमज़ान शुरु हो जाएगा.
आज शाम चांद नज़र आ जाएगा और कल से रमज़ान शुरु हो जाएगा.
सरकारी दफ्तरों में कल तक इसलिए काम नहीं हुआ क्योंकि गर्मी बहुत है. कल से इसलिए नहीं होगा क्योंकि रोज़ा रख के काम कौन करता है.
वैसे तो मैं उपवास भी कह सकता हूं, पर मेरे कई दोस्त बुरा मान सकते हैं. क्योंकि रोज़ा मुसलमान रखते हैं और उपवास हिंदू.
जो रोज़ा रखते हैं वो फास्टिंग नहीं कर सकते, क्योंकि फास्टिंग तो क्रिश्चियन करते हैं.
यूं तो एक साल में 12 चांद होते हैं लेकिन इनमें से 10 चांद जनता देखती है और रमज़ान और ईद के चांद केवल चांद देखने वाली कमेटी को नज़र आते हैं.
1400 वर्ष पहले चूंकि विज्ञान नहीं था इसलिए चांद ज्ञान की मदद से देखा जाता था.
पर आज पहली तारीख़ का चांद किस दिन किस समय नज़र आएगा, उसकी अगले सौ वर्ष तक की जंत्री बनाना संभव है.
इसीलिए भारत और पाकिस्तान को छोड़ कर लगभग हर मुस्लिम देश में रमज़ान और ईद का एक ही चांद नज़र आता है.
और जो व्यक्ति सरकारी चांद से हट कर दूसरा चांद देखने की कोशिश करें, उसे सरकारें दिन में तारे दिखा देती हैं.
वैसे तो चांद देखने का इस्लामी तरीक़ा ये है कि उसे नंगी आंख से दिखाई देना चाहिए, मगर पहली तारीख़ के चांद की उम्र सिर्फ़ बीस-पच्चीस मिनट ही होती है.
पुराने ज़माने में जब इतना प्रदूषण नहीं था तब रेगिस्तान में पहली का चांद हर कोई आसानी से देख सकता था.
पर आज तो धुंए और धूल के कारण चांद तो रहा एक तरफ़, ख़ुद नीला आकाश देखना ही कठिन है.
इसीलिए अब चांद देखने के लिए मौसम विभाग के सांइस चार्ट और विमानों की मदद ले कर ये मसला आसानी से हल हो सकता है.
पर अपने उपमहाद्वीप में उलेमा हज़रात चांद देखने के लिए सिर्फ़ उस हद तक आधुनिक उपकरणों की मदद लेते हैं, जहां तक चांद देखने का उनका हक़ ख़त्म न हो.
उन्हें चांद देखने के लिए किसी ऊंची बिल्डिंग का छत पर अंग्रेज़ की बनाई लिफ्ट के ज़रिए पहुंचने या अंग्रेज़ी दूरबीन के इस्तेमाल में कोई आपत्ति नहीं. पर अंग्रेज़ों के बनाए मौसम विभाग की भविष्यवाणी और चांद के वैज्ञानिक चार्ट पर उनका बिल्कुल भी ऐतबार नहीं.
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ऐतबार कर लिया तो फिर चांद देखने के लिए मौलवी हज़रात की ज़रूरत क्या रहेगी?
जहां तक आम नागरिक का मामला है तो उसके लिए चांद देखना बिल्कुल ज़रूरी नहीं.
जिस दिन नींबू दो सौ रूपये किलो की बजाय साढ़े चार सौ रूपये किलो और इफ्तारी के पकौड़ों का बेसन डेढ़ सौ रूपये किलो से उछल के साढ़े तीन सौ रूपये के पायदान पर पहुंच जाए समझिए रमज़ान शुरु हो गया.
यानी रमज़ान उस महीने को कहते हैं जिसमें रोज़ेदार सवाब कमाए और दुकानदार पैसा.
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