
गलवान घाटी में भारतीय जवानों से जान बचाकर भागा था चीन ओलंपिक का मशालवाहक Qi Fabao-रिपोर्ट
नई दिल्ली, 3 फरवरी: चीन ने विंटर ओलंपिक में अपनी सेना के जिस गलवान कमांडर को मशालवाहक बनाकर अंतरराष्ट्रीय खेल के मंच को राजनीति का अखाड़ा बनाने की कोशिश की है, एक ऑस्ट्रेलियाई अखबार की रिपोर्ट के बाद उसकी बची-खुची नाक भी कट गई है। असल में पीएलए के की फाबाओ को मशालवाहक बनाकर चीन ने यह प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की थी कि गलवान में वह भारतीय सैनिकों से नहीं पिटा है, जैसा कि पूरी दुनिया समझ रही है। लेकिन, ऑस्ट्रिलेयाई अखबार ने ना सिर्फ उसके प्रोपेगेंडा का पर्दाफाश कर दिया है, बल्कि यह भी बताया है कि उस दिन मुश्किल से उसके कथित मशालवाहक की जान बच पाई थी और उसके पीछे पूरी चीन की सेना विवादित स्थल से उलटे पांव लौटने को मजबूर हो गई थी।

गलवान में जान बचाकर भागा था चीन का मशालवाहक-रिपोर्ट
चीन में हो रहे विंटर ओलंपिक 2022 में बुधवार को ड्रैगन ने पीएलए के जिस कमांडर की फाबाओ को मशालवाहक के रूप में उतारकर बड़ा राजनयिक बवाल खड़ा किया है, वह दरअसल जून 2020 में भारतीय सैनिकों की गिरफ्त में आ गया था। ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार क्लाक्सॉन लगातार गलवान घाटी को लेकर चीन के झूठे प्रोपेगेंडा की पोल खोल रहा है। अब इसने एक इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि जब 15-16 जून, 2020 की दरमियानी रात में चीन के सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में अचानक भारतीय सैनिकों पर हमला बोलने की कोशिश की थी, तो भारतीय जवानों ने उसके गलवान कमांडर को ही धर-दबोचा था और वहां से जान बचाकर भागने को मजबूर कर दिया था।

गलवान झड़प की शुरुआत में ही डूब गए थे 38 चीनी सैनिक-रिपोर्ट
रिपोर्ट के मुताबिक उस रात जब अंधेरे में चीन की सेना गलवान नदी पार करने की कोशिश कर रही थी तो हिंसक झड़प की शुरुआत की स्थिति में ही 38 चाइनीज जवान नदी के बहाव में डूब गए थे। चीन के सैनिकों की अगुवाई तब यही की फाबाओ कर रहा था, जिसे उस रात भारतीय सैनिकों पर धोखे से हमले का जिम्मेदार माना गया है। इस वारदात में भारतीय सेना के कर्नल बी संतोष बाबू और बाकी जवान शहीद हो गए थे, जो वहां ऑपरेशन स्नो लेपर्ड के लिए तैनात थे। यह रिपोर्ट सोशल मीडिया शोधकर्ताओं के एक अज्ञात समूह ने तैयार किया है, जिसने चीन के कई स्रोतों का इस्तेमाल किया है, जिसमें चीनी मीडिया रिपोर्ट भी शामिल हैं, जिसे बाद में चीन ने डिलीट करवा दिया था।

गलवान घाटी में कैसे शुरू हुआ विवाद ?
क्लाक्सॉन की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 22 मई, 2020 को कर्नल संतोष बाबू की अगुवाई में भारतीय सेना एक अस्थाई पुल बना रही थी। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 'हालांकि, पीएलए खुद बफर जोन में अपने निर्माण कर रही थी, लेकिन भारतीय सेना के अस्थाई पुल बनाने का चीन की ओर से जोरदार विरोध शुरू हो गया।' उसी साल 6 जून को पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के जवान पुल को हटाने के लिए आ गए। रिपोर्ट में कहा गया है कि उस दिन के गतिरोध के दौरान दोनों ओर के अधिकारी, 'बफर जोन लाइन से जो सैनिक पार कर गए थे, उन्हें पीछे करने के लिए राजी हो गए' और 'लाइन को पार कर जो भी निर्माण हुआ था उसे भी खत्म करने के लिए तैयार हो गए।'

15 जून, 2020 वाली रात को झड़प कैसे हुई ?
दोनों पक्ष के बीच सहमति बनने के बावजूद चीनी सैनिकों ने बफर जोन में निर्माण करना जारी रखा। तब जाकर 15 जून, 2020 की रात भारतीय सेना के जवान गलवान घाटी के विवादित क्षेत्र से चीन के अतिक्रमण को हटाने के लिए पहुंचे। वहां उनका सामना पीएलए के तत्कालीन गलवान कमांडर कर्नल की फाबाओ (मशालवाहक) और 150 चाइनीज जवानों के साथ हुआ, जो बातचीत की जगह इस मुद्दे को लड़कर सुलझाने के लिए तैयार होकर आए थे।(यह तस्वीर सौजन्य-क्लाक्सॉन)

भारतीय सैनिकों के हत्थे चढ़ गए थे कर्नल की फाबाओ-रिपोर्ट
रिपोर्ट के अनुसार, 'जैसे ही कर्नल फाबाओ ने हमला किया, भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें तत्काल घेर लिया। उन्हें बचाने के लिए पीएलए के बटालियन कमांडर चेन होंगजुन और जवान चेन शिआनग्रोन ने भारतीय सैनिकों के साथ लोहे की पाइप, डडों और पत्थरों से लड़ाई शुरू कर दी (जब चीन की सेना के तीन जवान मारे गए), पीएलए के जवान घबराकर पीछे हट गए।' जानकारी के मुताबिक पीछे हटते हुए अपने सैनिकों की मदद करके उन्हें वापसी का रास्ता दिखाने के लिए वैंग झुओरान आगे आया, मरने वालों में एक इसकी मौत की भी पुष्टि हो चुकी है। उस वक्त चीन की सेना का क्या हाल था, इसका खुलासा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, 'पीएलए के जवानों के पास इतना भी वक्त नहीं रह गया था कि वह पानी से बचाव वाले पैंट पहन सकें। उन्होंने वैंग की अगुवाई में गहरी अंधेरी रात में ही नदी के बर्फीले पानी को पार करने का फैसला किया। अचानक नदी में ज्यादा पानी आ गया और जख्मी कॉमरेड फिसलने लगे और नीचे की ओर डूबते चले गए। '

'कर्नल की फाबाओ के सिर में लगी थी चोट'
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कर्नल की फाबाओ को 'भारतीय सेना के एक जवान ने सिर में मारा' और 'गंभीर तौर पर घायल अवस्था में वापस लौटे।' इसकी एक तस्वीर भी पहले से सामने आ चुकी है, जिसे फाबाओ के होने का ही दावा किया जा रहा है। पीएलए का एक और जवान शिआओ सियुआन जो 'शिंजियांग मिलिट्री रीजन स्थित फ्रंटियर डिफेंस के 363वें रेजिमेंट के मोटर इंफेंट्री बटालियन' का था, वह 'इस घटना को रिकॉर्ड' कर रहा था। इस संघर्ष में वह बुरी तरह से जख्मी हुआ था। चीन ने गिने-चुने सैनिकों को ही आधिकारिक तौर पर मृत घोषित किया है, बाकी के बारे में उसने कभी कुछ नहीं बताया है।
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अमेरिका ने चीन की चालबाजी पर क्या कहा है ?
गुरुवार को अमेरिका ने की फाबाओ को विंटर ओलम्पिक 2022 का मशालवाहक बनाने के फैसले की निंदा की है। अमेरिका के विदेशी संबंधों पर सीनेट कमिटी के रैंकिंग मेंबर जिम रिस्च ने भारत पर हमला करने वाले मिलिट्री के सदस्य को विंटर ओलंपिक गेम्स का मशाल थमाने के लिए सख्त आलोचना की है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है, 'यह शर्मनाक है कि बीजिंग ने ओलंपिक 2022 के लिए एक ऐसे मशालवाहक को चुना है, जो उस मिलिट्री कमांड का हिस्सा था, जिसने 2020 में भारत पर हमला किया था और जो उइगरों के खिलाफ नरसंहार चला रहा है। अमेरिकी उइगरों की आजादीऔर भारत की संप्रभुता का समर्थन करता रहेगा। '