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'लाल' नेपाल से कैसे डील करेगा 'भगवा' भारत

नए संविधान के बाद नेपाल में हुए पहले चुनाव में कम्युनिस्टों ने अभूतपूर्व जीत हासिल की है.

By BBC News हिन्दी
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नेपाली वोटर
Getty Images
नेपाली वोटर

275 सीटों वाली प्रतिनिधि सभा में 165 सीटें प्रत्यक्ष चुनाव (फर्स्ट पास्ट दि पोस्ट) के ज़रिये तथा 110 सीटें समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से तय होनी हैं. 165 सीटों के लिए हुए प्रत्यक्ष चुनाव में नेकपा (एमाले) और नेकपा (माओइस्ट सेंटर) यानी माओवादियों को अब तक 114 सीटें हासिल हो चुकी हैं और 7-8 सीटों पर उनकी बढ़त जारी है.

अभी कुछ सीटों की मत-गणना बाकी है. इनमें एमाले की 76 और माओवादियों की 38 सीटें हैं.

दोनों ने क्रमश: 103 और 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. देश की सबसे पुरानी और भारत समर्थक समझी जाने वाली नेपाली कांग्रेस के सबसे ज़्यादा 153 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन उसे महज़ 21 सीटों पर ही कामयाबी मिली.

नेपाली कांग्रेस की इतनी बुरी हालत पहले कभी नहीं हुई थी. राजतंत्र और हिन्दू राष्ट्र समर्थक पार्टियों को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है. राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को केवल एक सीट मिली है जबकि हिन्दू राष्ट्र और राजतंत्र के प्रबल समर्थक कमल थापा चुनाव हार गए हैं.

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'हिन्दू हृदय सम्राट'

नेपाली वोटर
PRAKASH MATHEMA/AFP/GETTY IMAGES
नेपाली वोटर

अब इन पार्टियों को समानुपातिक प्रतिनिधित्व के खाते से ही कुछ मिलने की उम्मीद है. देश के कुल सात प्रदेशों के चुनाव नतीजे भी कमोबेश ऐसे ही हैं. केवल 2 नंबर के प्रदेश में वामपंथियों की स्थिति कमज़ोर है—शेष छह प्रदेश में भी वामपंथियों की ही सरकार बनेगी.

तो अब यह तय हो गया कि केंद्र में एमाले के नेता के पी ओली के नेतृत्व में अगर दो-तिहाई नहीं तो पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी. नेपाल के लिए यह बहुत शुभ संकेत है क्योंकि 2008 से, जब से गणतंत्र की स्थापना हुई, अब तक किसी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया. अब नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू हो सकेगा.

नेपाल में वामपंथियों की ये जीत ऐसे समय हुई है जब भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता पर काबिज होती जा रही हैं. भारत में भी आज वही लोग सत्ता में हैं जो नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना संजोये हुए हैं और जो नेपाल के राजा को अभी भी 'हिन्दू हृदय सम्राट' मानते हैं.

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मधेस की समस्या

केपी ओली
Reuters
केपी ओली

इस चुनाव ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. इस चुनाव ने भारत सरकार की नेपाल नीति के खोखलेपन को भी पूरी तरह उजागर कर दिया.

इस वर्ष अक्टूबर में जब दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने मोर्चा बनाया, उस समय भी भारत सरकार की तरफ से अनौपचारिक तौर पर भरपूर कोशिश हुई कि यह मोर्चा न बने, लेकिन माओवादी नेता प्रचंड और एमाले नेता ओली ने इस असंभव समीकरण को संभव बना कर सबको हैरानी में डाल दिया.

बहुतों ने कयास लगाया कि हो सकता है कि सीटों के बंटवारे के सवाल पर यह एकता टूट जाए (जिस तरह बाबूराम भट्टराई टूट कर मोर्चे से अलग चले गए) लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

सितम्बर 2015 में भारत सरकार के विदेश सचिव जयशंकर ने नेपाल जाकर प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से मिलकर दबाव डालने की कोशिश की थी कि वे संविधान जारी करने का काम मुल्तवी कर दें. इसके लिए उन्होंने मधेस की समस्या को बहाना बनाया था जबकि वजह कुछ और थी.

इसका खुलासा कुछ दिनों बाद ही भाजपा नेता भगत सिंह कोश्यारी के एक इंटरव्यू से हुआ जिसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह खुद उन्होंने और सुषमा स्वराज ने प्रचंड से 'अनुरोध' किया था कि वे संविधान में से 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द निकाल दें. लेकिन प्रचंड ने उनके सुझाव पर ध्यान नहीं दिया.

भारत और नेपाल

आश्चर्य नहीं कि संविधान 20 सितम्बर को जारी हुआ और 21 सितम्बर की रात से ही नेपाल की नाकेबंदी कर दी गई. नेपाली जनता ने इसे नाराज़गी में उठाया गया भारत सरकार का कदम माना जब कि भारत सरकार का कहना था कि संविधान से असंतुष्ट मधेसी जनता ने यह कदम उठाया है.

उस समय के पी ओली प्रधानमंत्री थे, जो दशकों से भारत के क़रीबी माने जाते थे, लेकिन ओली की अपील पर भी मोदी सरकार ने ध्यान नहीं दिया और नेपाली जनता नाकेबंदी का दंश झेलती रही.

अंततः ओली ने अपने दूसरे पड़ोसी चीन से मदद की गुहार की और फिर ओली को मोदी सरकार ने अपनी काली सूची में दर्ज कर लिया.

जुलाई 2016 में नेपाली कांग्रेस और प्रचंड की पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए ओली की नौ महीने पुरानी सरकार गिरा दी, प्रचंड प्रधानमंत्री बने और सितम्बर में भारत सरकार का आतिथ्य स्वीकार किया.

नेपाली जनता ने इसे मोदी सरकार की अक्षम्य कार्रवाई माना.

ओली को ज़बरदस्त समर्थन मिलने के पीछे यह समूची पृष्ठभूमि है. और जो लोग इस एकता के भविष्य को लेकर शंकालु हैं उनके दिमाग में भी ये घटनाएं हैं. इसीलिये मैं मानता हूँ कि इस मतदान के ज़रिए नेपाल की जनता ने अपनी संप्रभुता को भी 'एसर्ट' किया है.

ओली के नेतृत्व में बनने वाली सरकार ने अगर थोड़ा लचीलापन दिखाते हुए मधेसी जनता की वाजिब समस्याओं का समाधान ढूंढ लिया तो यह उसकी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी.

BBC Hindi
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English summary
Lal will deal with Nepal saffron India
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