धर्मगुरू जो खुद को बताता था गौतम बुद्ध का अवतार, एक ही इशारे पर 918 लोगों ने ले ली थी अपनी जान
8 नवम्बर, 1978 को एक सनकी आदमी जिम जोंस के बहकावे में आकर 918 लोगों ने खुद ही अपनी जान ले ली थी। 9/11 के हमले से पहले यह अमरीकी इतिहास की सबसे बड़ी मानव क्षति थी।
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कोई किसी का कितना बड़ा भक्त हो सकता है? इतना कि उसके एक इशारे पर मौत को गले लगा ले?
आज कहानी एक ऐसे ही धर्मगुरू की जो खुद को इंसान नहीं, भगवान कहता था। उसने एक धर्म बनाया था जिसे वह 'कल्ट' कहता था। वो कहता था वो एक नई दुनिया बसाएगा, जहां सब बराबर होंगे। वह कहता था कि अगर दुखों से मुक्ति चाहिए तो आपको आत्महत्या करनी होगी। और आखिरकार उसकी बातों में आकर एक ही दिन एक ही समय में 918 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। इस सामूहिक खुदकुशी के पीछे जिस शख्स का हाथ था, लोग उसे जिम जोन्स के नाम से जानते थे।
बचपन से ही अजीब था जिम जोन्स
जिम जोन्स का जन्म इंडियाना में एक गरीब परिवार में हुआ था। वह बेहद बुद्धिमान लेकिन अजीब बर्ताव वाला लड़का था। वह धर्म में घनघोर आस्था रखता था। हालांकि उसकी मान्यताएं पेंटेकोस्टलिज्म जैसी करिश्माई ईसाई परंपराओं में थीं। जब वह बड़ा हुआ तो उसने अपने सारे दांत उखाड़वा लिए और सड़कों पर प्रवचन सुनाने लगा। वह नस्लीय समानता के प्रवचन देता। उसकी पेंटेकोस्टलिज्म, नए युग की अध्यात्मिकता और कट्टरपंथी सामाजिक न्याय की दलीलों को सुनकर लोग आकर्षित होने लगे।
पीपल्स टेंपल की स्थापना
जोन्स ने अपने फलते-फूलते चर्च को पीपल्स टेंपल नाम दिया। पीपल्स टेम्पल ने समाजवाद और समुदायवाद वकालत की। जब जोन्स 30 साल का हुआ तो वह अपने पीपल्स टेंपल को कैलिफोर्निया लेकर चला आया। यहां आकर उसने पारंपरिक ईसाई शिक्षाओं से संबंध तोड़ लिया और खुद को मसीहा बताने लगा। उसने दावा किया कि वह यीशु और गौतम बुद्ध जैसी शख्सियतों का अवतार है। वह दुनिया में समाजवाद लाने का दावा करने लगा। कार्ल मार्क्स की बात पर सहमति जताते हुए वह कहता था कि धर्म एक अफीम है मगर उसका धर्म, धर्म नहीं बल्कि एक कल्ट है, जो कि समाजवाद को और सुंदर बनाता है।
कैसे प्रभावशाली बना जिम जोन्स?
कैलिफोर्निया आने के 5 साल में ही पीपल्स टेंपल ने जबरदस्त प्रभाव बना लिया था। अश्वेतों के प्रति उग्र समर्थन ने जिम जोंस को बेशुमार लोकप्रियता दिलाई। एंजेला डेविस और हार्वे मिल्क जैसे वामपंथी आइकन जिम जोन्स के घनघोर समर्थक बन गए और ब्लैक पैंथर्स जैसे अश्वेत नागरिकों के समूहों के समर्थन ने जोंस को बेहद ताकतवत बना दिया। अश्वेतों और वामपंथियों के समर्थन की वजह से अब जिम जोंस राजनीतिक रूप से बेहद ताकतवर हो गया था ऐसे में उस पर लगाम लगाना आसान नहीं रह गया था।
बढ़ता गया पीपल्स टेंपल का प्रभाव
पीपल्स टेंपल पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया। इस टेंपल की शरण में आने वाले अनुयायियों से ये उम्मीद की जाती थी कि वे खुद को पूरी तरह से चर्च के यूटोपियन प्रोजेक्ट के लिए समर्पित कर दें। यानी कि परिवार से संबंध तोड़ लें, अपनी सारी संपत्ति चर्च के हवाले कर दें और पीपल्स टेंपल में रहकर वहां के लिए काम करें। उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे अपने बच्चों को कम्यून के भीतर ही पालेंगे। इतना ही नहीं पीपल्स टेंपल के सदस्यों को उनकी निष्ठा साबित करने के लिए एक झूठे कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। इस कागज पर लिखा होता कि उन्होंने अपने ही बच्चों से छेड़छाड़ की थी। ऐसा कहा जाता है कि चर्च ने इसे संभावित ब्लैकमेल के लिए रखा था।
गुयाना के जंगलों में बसाया जॉनस्टाउन
ये वो दौर था जब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध चरम पर था। किसी को अंदाजा नहीं था कि कब कौन देश पहले हमला कर दे और सब कुछ तबाह हो जाए। ईश्वर होने का दावा करने वाले जोंस को खुद इसका सबसे अधिक डर था। ऐसे में वह पीपल्स टेंपल को गुयाना लेकर चला गया। यहां एक जंगल में उसने विशाल क्षेत्र में अपना पीपल्स टेंपल स्थापित किया। इसका नाम उसने 'जॉनस्टाउन' रखा। अब वह निश्चिंत था कि परमाणु युद्ध में भी उसका साम्राज्य बचा रह सकता है, क्योंकि यह वह जगह थी जिसका दुनिया के दूसरे लोगों से कोई संपर्क नहीं था।
जॉनस्टाउन में भक्तों का शोषण
जॉनस्टाउन में भक्तों की असली परीक्षा शुरू हुई। जिम जोन्स तो सनकी था ही, उसके अधिकारी भी उतने ही सनकी थे। वहां भक्तों का शोषण शुरू हो गया। उनसे दिन के 10 से 11 घंटे आश्रम का काम करवाना शुरू कर दिया। आश्रम से किसी के भी बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया। जो भी आश्रम छोड़कर जाता, उन्हें जिम जोन्स के खास गार्ड्स पकड़ लेते और खूब यातना देते। इससे लोगों के दिलों में डर बैठ गया। कुछ लोग इसलिए भी नहीं भागते क्योंकि आश्रम में उनके साथ उनके छोटे बच्चे भी थे। बच्चों से मिलने पर भी जिम जोन्स ने पाबंदी लगा रखी थी। सिर्फ एक-दो घंटों के लिए वे अपने बच्चों से मिल सकते थे।
जॉनस्टाउन की जांच करने पहुंचे सांसद
एक दिन जान जोखिम में डालकर एक दंपत्ति वहां से भागने में सफल हुआ। वे अमेरिका पहुंचे और एक सांसद लियो रेयान को जॉनस्टाउन के अत्याचारों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि जिम जोन्स अब सनकी अपराधी बन चुका है। इसलिए वहां फंसे लोगों को बचाना चाहिए। इसके बाद सांसद लियो रेयान ने फैसला किया कि वह खुद उस आश्रम में जाएंगे और पता लगाएंगे कि आखिर जिम जोन्स ऐसा क्यों कर रहा है। 17 नवंबर 1978 में सांसद लियो रेयान जब टीम के साथ आश्रम पहुंचे, तो जिम जोन्स ने उनका जबरदस्त स्वागत किया। उन्हें पूरा आश्रम घुमाया।
जिम जोंस के इशारे पर सांसद की हत्या
आश्रम का माहौल सामान्य ही था लेकिन सासंद ने लोगों के चेहरों को देख समझ लिया कि दाल में कुछ काला है। जिम जोन्स को भी यह समझ आ चुका था कि सांसद को असलियत समझ आ गयी है। उसके इशारे पर सांसद और उसके सभी चार गार्ड्स को मार डाला गया। हालांकि जिम को अंदेशा हो गया था कि आने की राह बेहद कठिन है। सांसद के मरने की खबर जैसे ही अमेरिका पहुंचती, सेना उसके आश्रम पर हमला कर देती। जिम ने तुरंत माइक उठाया और आश्रम में मौजूद सभी लोगों को एक मैदान में इकठ्ठा कर भाषण देना शुरू कर किया।
आत्महत्या के लिए लोगों को उकसाया
जिम जोंस ने लोगों से कहा कि कुछ ही समय में अमेरिकी सेना आश्रम पर हमला कर देगी और हम सब मारे जाएंगे। अमेरिकी सैनिकों के हाथों मरने से अच्छा है कि हम सब खुद ही अपनी जान ले लें। उसने कहा कि अगर हम सैनिकों के हाथों मारे जाते हैं, तो हमें कोई याद नहीं रखेगा। मगर, हम खुद अपनी देंगे, तो इतिहास हमें याद रखेगा। उस समय आश्रम में जिम जोन्स के कुल 908 फॉलोअर्स मौजूद थे और बाकी उसके परिवार वाले थे। सभी के लिए बड़े-बड़े बर्तनों में अंगूर का जूस बनाया गया। फिर उसमें सायनाइड मिला दिया गया।
234 बच्चों की भी हुई मौत
छोटे बच्चे जो इसे पी नहीं सकते थे, उन्हें इंजेक्शन के जरिए ये जहर दिया गया। कहा जाता है कि उस समय आश्रम में 234 बच्चे था। वो सारे के सारे मारे गए। इस जोंसटाउन मास सुसाइड के बाद एक 45 मिनट की ऑडियो रिकॉर्डिंग सामने आई, जिसमें जोंस ने लोगों से कहा कि "मरते समय वो इज्जत से मरें, रोएं-तड़पें नहीं बल्कि चुपचाप जमीन पर लेटकर आंखें बंद कर लें। जिम जोन्स ने खुद जहर नहीं पिया। उसने अपने साथी से कहा कि वह जहर खाकर नहीं मरना चाहता। इसलिए उसने अपने साथी को आदेश दिया कि उसके सिर पर गोली मार दो। साथी ने उसके सिर पर गोली मार दी। इस तरह 18 नवंबर 1978 के दिन कुल 918 लोगों ने अपनी जान दे दी। इस तरह एक सनकी आदमी के बहकावे में आकर 900 से भी अधिक लोग अपनी जान गंवा बैठे।
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