क्या ईरान दिवालिया होने की कगार पर है?
क़ानून व्यवस्था के अध्यक्ष सादिक़ लारिजानी की धमकी भी रंग लाती हुई दिखने लगी है.
जिस दिन उनके विभाग की तरफ़ से चेतावनी जारी की गई, उसी दिन आर्थिक मामलों की अदालत ने 35 लोगों को सज़ा दिए जाने की भी घोषणा की.
इनमें तीन को मौत की सज़ा और बाक़ी 32 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई.
अक्टूबर के पहले हफ़्ते के आख़िर में ईरान के विदेशी मुद्रा और सोना बाज़ार में भारी ख़ामोशी छाई रही.
"इस समय डॉलर का क्या भाव है?" इस साधारण से सवाल का जवाब नामुमकिन की हद तक मुश्किल हो गया है.
डॉलर और रियाल की क़ीमत पता करने की बीबीसी फ़ारसी की कोशिश कुछ इस तरह के सवालों और जवाबों के साथ समाप्त हो गई, जैसे "आप कितना डॉलर ख़रीदना चाहते हैं" या "माफ़ कीजिए हम ये कारोबार नहीं करते हैं."
वे वेबसाइट्स जो आम तौर पर क़ीमतों में उतार-चढ़ाव दिखाते हैं, पहूंच से बाहर हैं.
सोना और करेंसी मार्केट से जुड़ी जानकारियां देने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पूरी तरह से बंद करा दिए गए हैं.
इनकी जानकारियों के आधार पर सोने के भाव और डॉलर-रियाल की क़ीमतों के अंतर का अंदाज़ा लगाया जा सकता था.
करेंसी मार्केट
ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख सादिक़ लारीजानी के पिछले दिनों इंटरनेट और सोशल साइट्स पर अर्थव्यवस्था को लेकर कयास लगाने वालों के ख़़िलाफ़ सख़्त कदम उठाने की बात कही थी.
कुछ वेबसाइट्स का ये कहना है कि इंटरनेट पर इस नाकेबंदी की वजह सादिक़ लारीजानी का यही बयान है.
ये पहली बार नहीं है कि ईरान करेंसी मार्केट में 'क़ीमत' से जुड़ी ख़बर को फैलने से रोकने के लिए संबंधित वेबसाइट्स, करेंसी बाज़ार और ऐसी दूसरी संस्थाओं पर दबाव डालते हैं या बंद कर देते हैं.
लेकिन सवाल ये है कि ईरान की हुकूमत ऐसा क्यों करती है और इससे पहले ऐसे कदमों के क्या नतीजे निकले.
अक्टूबर की शुरुआत में डॉलर की कीमतों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी दर्ज की गई. एक बार तो कुछ घंटों के लिए डॉलर की क़ीमत बीस हज़ार तुमान से भी अधिक हो गई थी.
एक तुमान 10 रियाल के बराबर होता है.
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सेंट्रल बैंक की ज़िम्मेदारी
लेकिन शनिवार को ऐसी ख़बरें सुनने को मिलीं कि बढ़ती क़ीमतों को रोकने के लिए सख़्त क़दम उठाए जाएंगे.
फिर ख़बर आई कि एक्सचेंज मार्केट के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सेंट्रल बैंक को सौंप दी गई और रविवार को क़ीमतें एक बार फिर गिर गईं.
क़ीमत में गिरावट की खबर के साथ-साथ तेहरान के केंद्रीय मुद्रा बाज़ार में भी छाई मंदी की तस्वीर देखने को मिली.
ख़ासकर छोटे निवेशक और कारोबारी परेशान थे और इधर-उधर हाथ पैर मार रहे थे कि किसी तरह से ज़्यादा से ज़्यादा क़ीमत चुका कर अपने डॉलर को रियाल में बदल लें.
हालांकि ईरान में ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जो इस क़िस्म की तस्वीरों को एक पाज़िटिव ट्रेंड बताते हैं और इसे 'सूद ख़ोरों और दलालों' की हार करार देते हैं.
ईरानी इकोनॉमी का हाल
दूसरे देशों की मुद्राएं ईरान के करेंसी बाज़ार में किस रेट पर बिक रही हैं यानी ईरान में इनका एक्सचेंज रेट क्या है?
इस सवाल के जवाब से ईरान की अर्थव्यवस्था की सेहत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
करेंसी मार्केट को प्रभावित करने वाले कारणों में अमरीकी डॉलर, महंगाई दर, इंटरेस्ट रेट, मुल्क का चालू खाता, राजनीतिक स्थिरता और व्यापार की शर्तें अहम हैं.
हालात का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अप्रैल, 2008 के बाद से ईरानी रियाल की क़ीमतों में 70 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है.
अर्थव्यवस्था के कई जानकारों का ये मानना है कि ईरान की इकोनॉमी एक भंवरजाल में फंस गई है जहां वो डूबने के कगार पर खड़ी है.
ईरान की हुकूमत भले ही ये दावा कर रही हो कि आर्थिक संकट को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है और वे बदनियती से बनाई गई अमरीकी नीतियों का शिकार हो गए हैं.
वे ये भी कह रहे हैं कि ईरान पर अमरीकी पाबंदियां भी इसी कड़ी में हैं.
आर्थिक नाकाबंदी
तेहरान मुद्रा बाज़ार में काम कर रहे लोगों ने रॉयटर्स को बताया कि सेंट्रल बैंक ने अक्टूबर की शुरुआत में डॉलर की आपूर्ति बढा दी.
डॉलर की आपूर्ति बढ़ाना एक मात्र असरदार हथियार बचता है सरकार के पास डॉलर की बढ़ती क़ीमत को नीचे लाने के लिए.
दूसरी चीज़ों की तरह करेंसी मार्केट भी डिमांड और सप्लाई के फ़ॉर्मूले पर चलता है, अगर सप्लाई बढ़ती है तो क़ीमत गिरती है जैसा कि बीते हफ़्ते हुआ था.
और दूसरा रास्ता क़ीमत को कंट्रोल करने ये है कि रियाल का मूल्य बढ़े, लेकिन ईरान में महंगाई की जो दर है और वहां के बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों की कमजोर हालत को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लगता.
लेकिन ईरान की सरकार डॉलर की क़ीमत को खुले बाज़ार में भी गिराने के लिए डॉलर की सप्लाई बढ़ा देती है.
ऐसा ही कुछ 2012-13 की आर्थिक नाकाबंदी के दौरान भी कई बार किया गया था.
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आर्थिक कोर्ट का रुख
इसी बीच ईरान के उपराष्ट्रपति मोहम्मद रहीमी ने सादिक़ लारिजानी से सहमति जताते हुए कुछ वेबसाइट्स को करेंसी मार्केट के उतार-चढ़ाव के लिए जिम्मेदार ठहराया.
क़ानून व्यवस्था के अध्यक्ष सादिक़ लारिजानी की धमकी भी रंग लाती हुई दिखने लगी है.
जिस दिन उनके विभाग की तरफ़ से चेतावनी जारी की गई, उसी दिन आर्थिक मामलों की अदालत ने 35 लोगों को सज़ा दिए जाने की भी घोषणा की.
इनमें तीन को मौत की सज़ा और बाक़ी 32 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई.
तेहरान के पुलिस प्रमुख हुसैन रहीमी ने भी कहा है कि 15 वेबसाइट्स की पहचान कर ली गई है जो दिन-रात करेंसी मार्केट में डॉलर की क़ीमत के बारे झूठी ख़बर फैलाते रहते हैं.
"उनमें से कुछ को बुलाया गया है और कुछ को बुलाया जाना बाक़ी है."
डॉलर का भविष्य क्या होगा?
डॉलर की क़ीमत यहां तक इस लिए भी पहूंची कि हसन रूहानी की हुकूमत मुल्क के इतिहास में पहली बार महंगाई दर को लंबे समय के लिए एक डिजिट में रखने में सफल रही.
और इस दौरान डॉलर की क़ीमत भी महंगाई दर के अनुपात में बढ़ी.
इसी बीच अमरीका का ईरान के साथ वार्ताओं से बाहर आया, पहले दौर की आर्थिक नाकेबंदी हुई और इन नाकेबंदियों का असर तेल और बैंक के सेक्टर पर पड़ा.
इन तमाम घटनाओं ने मिलकर ईरान के मुद्रा बाज़ार और उसकी आर्थिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है.
इस आर्थिक स्थिति से निकलने के लिए, जैसे ईरान ने इससे पहले की आर्थिक पाबंदी के दौरान किया था, केवल एक ही रास्ता है कि अपने अमन के ज़माने की विदेश नीति की पैरवी करे और तेल के बदले मिले डॉलर उनके मुल्क में आए.
हालांकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने ईरान के विदेशी मुद्रा भंडार का आंकलन 100 अरब का लगाया है.
मगर ईरान इसको बड़ी एहतियात से खर्च कर रहा है और इसको इससे भी खराब दिन के लिए बचाकर रखना चाहता है.
इसके साथ ही जैसा कि पिछली आर्थिक नाकेबंदियों में देखा गया है कि ईरान सरकार बाज़ार के ख़िलाफ़ कार्रवाई करती आई है, ऐसा लगता है डॉलर की सप्लाई बढ़ा कर क़ीमत को कंट्रोल करने की कोशिश की जाएगी.
मगर इसके बावजूद डॉलर की बढ़ती क़ीमत को ज़्यादा रोका नहीं जा सकता है और न ही अर्थव्यवस्था की बिगड़ी हुई तस्वीर को.
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