हिंद महासागर में चीन को ठोकने के लिए इंडियन नेवी की तैयारी, परमाणु पनडुब्बियों का जखीरा उतारेगा भारत
इंडियन नेवी ने हिंद महासागर में चीन के खिलाफ एयरक्राफ्ट के बजाए न्यूक्लियर पनडुब्बियों का जखीरा उतारने का फैसला किया है।
नई दिल्ली: चीन को रोकने और ठोकने में भारत अब कोई कमी नहीं करना चाहता है। खासकर गलवान घाटी में चीनी सैनिकों को पीटने के बाद अब भारत बिल्कुल भी चीन को बख्शने के मूड में नहीं है। इसके लिए भारतीय सेना समंदर में परमाणु पनडुब्बियों का जखीरा उतारने जा रही है और अगर चीन कोई भी उल्टी-सीधी हरकत करने की कोशिश करता है तो उसे वहीं पर भारतीय सैनिक पीटेंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन नेवी ने चीन के खिलाफ समंदर में 6 विशालकाय न्यूक्लियर हथियारों से लैश पनडुब्बियों को उतारने का फैसला किया है। इंडियन नेवी इन न्यूक्लियर पनडुब्बियों को तीसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की तैनाती से पहले चीन के खिलाफ तैनात करेगी।
न्यूक्लियर पनडुब्बियों की तैनाती
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा मार्च में छापी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन नेवी ने 2032 तक 3 न्यूक्लियर सबमरीनों की तैनाती समंदर में करने का फैसला किया है। इंडियन नेवी को एसएसएन प्रोग्राम यानि न्यूक्लियर पावर्ड अटैक सबमरीन की तैनाती में करीब 2 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा। भारत सरकार की कोशिश है कि इससे पहले की चीन हिंद महासागर की तरफ अपनी गुस्ताख नजरें बढ़ाए उससे पहले हिंद महासागर में इंडियन नेवी को इतना शक्तिशाली कर लिया जाए कि चीन यहां भारत को आंखें दिखाने की हिम्मत तक ना करे।
चीन के खिलाफ नेवी की प्लानिंग
पिछले 20 सालों में केन्द्र में आई सरकारों ने हिंद महासागर में भारत की स्थिति को मजबूत करने पर उतना ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा ये हुआ कि चीनी सेना ने हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों में घुसपैठ को पूरा कर लिया है और अब चीनी वारशिप्स और पनडुब्बियां इन हिस्सों में पेट्रोलिंग करने के लिए आने लगी हैं। लेकिन, अब भारत सरकार ने चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए हिंद महासागर में फिर से अपनी शक्ति को बढ़ाने का फैसला किया है। जिसकी वजह से समंदर में चीन से तनाव काफी बढ़ने लगा है। जिसके बाद केन्द्र की मोदी सरकार ने इंडियन नेवी को बेहद शक्तिशाली बनाने के लिए, खासकर हिन्द महासागर से चीन को खदेड़ने के लिए न्यूक्लियर पनडुब्बियों की तैनाती करने का फैसला किया है।
पुरानी सरकारों की सुस्ती
मोदी सरकार के शासन में आने के बाद भारत ने हिंद महासागर में अपनी रणनीति काफी आक्रामक करने का फैसला किया है। जिसके बाद इंडियन नेवी के सीनियर अधिकारियों के साथ भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ विपिन रावत ने पिछले एक साल से लगातार प्लानिंग की है। न्यूक्लियर सबमरीन प्रोजेक्ट और एयरक्राफ्ट कैरियर प्रोजेक्ट की प्लानिंग काफी पहले की गई थी, लेकिन पहले की सरकारों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। जिसकी वजह से ये प्रोजेक्ट काफी लेट हो गया लेकिन अब सीडीएस रावत ने न्यूक्लियर पनडुब्बियों को लेकर सहमति जता दी है। जिसके तहत एयरक्राफ्ट कैरियर से पहसे भारत न्यूक्लियर पनडुब्बियों की तैनाती करेगा। इसके पीछे दूसरी रणनीति ये है कि चीन ने कई ऐसे मिसाइल बनाए हैं, जिसके जरिए वो एयरक्राफ्ट कैरियर को निशाना बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है, लिहाजा भारत चीन ने चीन के खिलाफ न्यूक्लियर पनडुब्बियों की तैनाती करने का फैसला लिया है।
न्यूक्लियर पनडुब्बियों से फायदा
पनडुब्बियों से किसी भी देश की नेवी को काफी फायदा होता है। समंदर में मौजूद छोटी पनडुब्बियां भी दुश्मनों का काफी नुकसान करने का माद्दा रखती है। भारत सरकार ने अपने सबसे पुराने दोस्त रूस से अकुला क्लास अटैक न्यूक्लियर सबमरीन 2019 में लीज पर लेने के लिए 3 बिलियन डॉलर का कॉन्ट्रेक्ट किया हुआ, जो इंडियन नेवी को 2025 में मिल जाएगी। भारत ने रूस के साथ जिस पनडुब्बी का करार किया है, वो इस वक्त दुनिया में मौजूद सारी पनडुब्बियों से शक्तिशाली है। इसके साथ ही रूस ने भारत में बनने वाले न्यूक्लियर पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल यानि एसएसबीएन में भी महत्वपूर्ण साथ देगा। यानि, रूस की मदद से स्वदेश में ही न्यूक्लियर बैलिस्टिक मिसाइल बनेगा।
न्यूक्लियर पनडुब्बियों को पकड़ना नामुमकिन
न्यूक्लियर पनडुब्बियों की सबसे खास बात ये होती है कि ये समंदर में जबतक चाहे गुप्त रह सकता है और इसका पता लगाना दुश्मनों के लिए नामुमकिन के बराबर होता। न्यूक्लियर पनडुब्बियों का ईंधन उसी में मौजूद न्यूक्लियर एनर्जी से मिलती रहती है, लिहाजा न्यूक्लियर पनडुब्बियों को सतह पर आने की कोई जरूरत ही नहीं होती है। इसके साथ ही इसमें बैट्रीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जिसकी वजह से बैट्रीज को चार्ज करने के लिए एक्ट्रा जेनरेटर चलाने की जरूरत नहीं होती है और सबमरीन से बिल्कुल भी आवाज नहीं निकलती है। लिहाजा, ये कई महीनों तक समंदर के अंदर अपने आप को गुप्त रख सकती है।
हिंद महासागर में भारत की रणनीति
हिंद महासागर विश्व का इकलौता ऐसा समंदर है, जिसका नाम किसी देश के नाम पर है और हिंद महासागर पर भारत का पूरी तरह से प्रभुत्व रहा है। लेकिन, पिछले 20 सालों में चीन किसी भी तरह से हिंद महासागर में दाखिल होना चाहता है। इसके लिए चीन ने श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह 99 सालों के लिए लीज पर ले लिया तो चीन दूसरे रास्तों से भी हिंद महासागर में घुसना चाहता है। लेकिन, पिछले महीने मोदी सरकार ने मॉरीसस और मालदीव के साथ समुंन्द्री समझौता कर चीन को बड़ा झटका दिया है। पहले चीन मालदीव को कर्ज देकर उसे पाकिस्तान की तरह बनाना चाहता था, लेकिन मोदी सरकार ने चीन को उतना मौका नहीं दिया और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मालदीव और मॉरीशश के साथ समुन्द्री समझौता कर चीन की एक और साजिश खत्म कर दी है। वहीं, भारत को अब हिंद महासागर में फ्रांस और अमेरिका ने भी मदद करने का फैसला लिया है। फ्रांस की नेवी हिंद महासागर में अभ्यास के लिए आ चुकी है और अमेरिकन ने भी इंडियन नेवी को अहम रणनीतिक मदद देने वाली है।
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