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भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार दो साल के न्यूनतम स्तर तक पहुंचा, क्या खतरे के निशान की तरफ बढ़ा हिन्दुस्तान?

डॉलर के मजबूत होने के असर से अमीर देश अछूते नहीं हैं। यूरोप में, जो पहले से ही ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के बीच मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा था, वहां 20 वर्षों में पहली बार एक यूरो की कीमत 1 डॉलर से कम हो गई है।

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India's foreign exchange reserves: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम ही होता जा रहा है और 21 अक्टूबर को खत्म हुए हफ्ते के मुताबिक, भारत का विदेशी मुद्रा पिछले दो सालों में सबसे न्यूनतम स्तर तक आ पहुंचा है। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 21 अक्टूबर तक भारत के पास 524.520 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा बचा हुआ था। पिछले हफ्ते के मुकाबले इस हफ्ते विदेशी मुद्रा भंडार में 3.85 अरब डॉलर की और कमी आ गई है।

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Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में रिकार्ड गिरावट,जानें वजह |वनइंडिया हिंदी*Business
कितना हो गया है विदेशी मुद्रा भंडार

कितना हो गया है विदेशी मुद्रा भंडार

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों से पता चलता है कि, 14 अक्टूबर को खत्म हुए सप्ताह में भारत के पास 528.367 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा हुआ था। आरबीआई के लेटेस्ट आंकड़ों के मुताबिक, भारत की विदेशी मुद्रा संपत्ति, जो भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक है, वो 3.59 अरब अमरीकी डॉलर घटकर 465.075 अरब अमरीकी डॉलर हो गई है। वहीं, पिछले हफ्ते सोने के भंडार का मूल्य 247 मिलियन अमरीकी डालर घटकर 37.206 अरब अमरीकी डॉलर हो गया है। आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है कि समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के स्पेशल ड्राविंग राइट्स (एसडीआर) का मूल्य 70 लाख डॉलर बढ़कर 17.440 अरब डॉलर हो गया है।

विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी

विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी

भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार महीनों से गिर रहा है और आरबीआई लगातार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू में आने वाली कमी को रोकने के लिए हस्तक्षेप कर रहा है। वहीं, आरबीआई आगे भी कड़े फैसले लेने वाला है, जिसका असर बाजार पर पड़ेगा। रुपये की कीमत गिरने से बचाने के लिए आरबीआई अभी तक करोड़ों डॉलर खर्च चुका है। इसतके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सामानों की कीमत बढ़ने का भी गंभीर असर भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ा है, क्योंकि विदेशी सामान आयात करने के लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे हैं। प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले, अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपया पिछले कुछ हफ्तों में कमजोर हो रहा है और नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया है।

रुपये की कीमत में भारी गिरावट

रुपये की कीमत में भारी गिरावट

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले हफ्ते रुपया इतिहास में पहली बार 83 के स्तर को पार कर गया था। इस साल अब तक रुपये में करीब 10-12 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। आमतौर पर रुपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई डॉलर की बिक्री सहित लिक्विडिटी मैनजमेंट के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करता है। फरवरी के अंत में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 100 अरब डॉलर की भारी कमी आ चुकी है, जबकि आने वाले वक्त में आशंका यही है, कि ईंधन की कीमत में और इजाफा होने वाला है। तेल बेचने वाले देशों के संगठन ओपेक ने नवंबर महीने से तेल उत्पादन में भारी कटौती की घोषणा कर रखी है, जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत में भारी इजाफा होने की संभावना है और अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत तेल दूसरे देशों से खरीदने वाले भारत पर इसका गंभीर असर पड़ना निश्चित है।

क्यों लगातार मजबूत हो रहा डॉलर?

क्यों लगातार मजबूत हो रहा डॉलर?

डॉलर के लगातार मजबूत होने के पीछे कोई खास रहस्य नहीं हैं। अमेरिका में महंगाई से निपटने के लिए अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इस साल अपनी अल्पकालिक ब्याज दर को अब तक पांच गुना बढ़ा चुका है और संकेत यही मिल रहे हैं, कि इसमें और बढ़ोतरी की संभावना है। इसकी वजह से अमेरिकी सरकार के कॉरपोरेट बॉन्ड के वैल्यू में इजाफा हुआ है, जिसकी वजह से अमेरिका में निवेश करने के लिए निवेशक काफी उत्सुक हो गये हैं, लिहाजा अमेरिका में निवेशक लगातार निवेश कर रहे हैं, लिहाजा डॉलर मजबूत होता जा रहा है। सिर्फ इस साल निवेशक भारतीय बाजार से 26 अरब डॉलर निकालकर उसे अमेरिका में निवेश कर चुके हैं, जिससे रूपये पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यही हाल दुनिया के बाकी देशों में भी हो रहा है। ज्यादातर देशों की मुद्राएं इस वजह से डॉलर के सामने कमजोर हो गईं हैं, खासकर गरीब देशों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है। डॉलर के मुकाबले इस साल भारतीय रुपया करीब 11 प्रतिशत, मिस्र पाउंड 20 फीसदी और तुर्की लीरा में 28 प्रतिशत की गिरावट आई है।

विकसित देशों पर भी गंभीर असर

विकसित देशों पर भी गंभीर असर

डॉलर के मजबूत होने के असर से अमीर देश अछूते नहीं हैं। यूरोप में, जो पहले से ही ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के बीच मंदी की ओर तेजी से बढ़ रहा था, वहां 20 वर्षों में पहली बार एक यूरो की कीमत 1 डॉलर से कम हो गई है। वहीं, यूनाइटेड किंगडम का पाउंड एक साल पहले की तुलना में 18 प्रतिशत गिर गया है। ब्रिटेन की स्थिति तो इतनी खराब हो गई है, कि नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। यूक्रेन में युद्ध के कारण ऊर्जा और कृषि बाजारों में व्यवधान ने COVID-19 मंदी और वसूली से उपजी आपूर्ति बाधाओं को बढ़ा दिया। भारतीय राजधानी नई दिल्ली में, रवींद्र मेहता दशकों से अमेरिकी बादाम और पिस्ता निर्यातकों के ब्रोकर के रूप में फल-फूल रहे हैं। लेकिन रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने कच्चे माल और शिपिंग लागत को भारी स्तर तक बढ़ा दिया है, जिसका गंभीर असर उनके व्यापार पर पड़ा है।

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English summary
Indian forex reserves have reached a two-year low. Is India moving towards the danger mark?
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