कोरोना वायरस ने किया मजबूर तो मोदी सरकार ने तोड़ दी 16 साल पुरानी गर्व करने वाली नीति
भारत ने 16 साल बाद अपनी विदेश नीति बदलते हुए विदेशी मदद लेना स्वीकार किया है। 16 सालों से भारत लगातार विदेशी मदद अस्वीकार करता रहा है।
नई दिल्ली, अप्रैल 29: कोरोना वायरस ने इस साल ऐसा कहर बरपाया कि मोदी सरकार को सालों से चली आ रही गर्व करने वाली प्रथा को तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। 16 सालों के बाद ये पहला मौका है जब भारत ने बाहरी देशों से या तो सहायता मांगी है या फिर किसी भी तरह की सहायता ली है। इससे पहले भारत सरकार ने फैसला किया था कि वो किसी भी आपात स्थिति में किसी भी विदेशी देश से, चाहे वो दोस्त देश ही क्यों ना हो, सरकार किसी भी हाल में मदद नहीं मांगेगी, लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए मोदी सरकार को गर्व करने वाला फैसला तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
16 साल बाद टूटी प्रथा
दरअसल, भारत सरकार ने 2004-05 में तय किया था कि भारत अपनी जरूरतों को खुद पूरा करेगा और आपात स्थिति में भी किसी भी देश की मदद स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन 16 साल बाद जाकर भारत कोरोना वायरस की वजह से ऑक्सीजन, मेडिकल सामाना और दवाईयों की मदद लेनी पड़ रही है। जबकि इससे पहले अगर किसी परिस्थिति में कोई और देश भारत की मदद मानवीय आधार पर करने का प्रयास करता था तो भारत उस मदद को लेने से इनकार कर देता था। लेकिन, 16 सालों के बाद जाकर फिर से भारत ने विदेशी मदद स्वीकार करना शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने विदेशों से मदद लेने की नीति को लेकर कई और बदलाव किए हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 16 सालों के बाद जाकर भारत सरकार को अपनी प्रथा तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
विदेशी मदद स्वीकार
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने अब तक 22 से ज्यादा देशों से मदद स्वीकार की है। इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि 'भारत सरकार को चीन से भी ऑक्सीजन संबंधित उपकरण या जीवन रक्षक दवाओं की मदद लेने में कोई वैचारिक समस्या नहीं है। हालांकि, भारत सरकार अभी तक पाकिस्तान से मदद लेने को लेकर मानिसक रूप से तैयार नहीं है और ज्यादा उम्मीद है कि भारत सरकार पाकिस्तान से किसी भी तरह का मदद नहीं लेगी, लेकिन चीन से सरकार को मदद लेने में ऐतराज नहीं हैं। हालांकि, भारत सरकार ने ऑक्सीजन और दवाईयां खरीदने के लिए चीनी कंपनियों को काफी ऑर्डर दिए हैं, लेकिन ये व्यापार में आता है मदद में नहीं।' इसके साथ ही इस बार केन्द्र सरकार ने राज्यों को भी किसी और देश से किसी भी तरह की मदद लेने की छूट दे दी है। इससे पहले राज्यों को ये आजादी हासिल नहीं थी।
आत्मनिर्भर नीति में बदलाव
मोदी सरकार लगातार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है और सरकार की कोशिश भारत को आत्मनिर्भर बनाने की है, लेकिन भारत सरकार को ये कदम अपनी ही नीति के उलट है। 16 साल पहले मनमोहन सिंह की सरकार ने नीति बनाते हुए विदेशी स्रोतों से मदद नहीं लेने का फैसला किया था, लेकिन अब उस नीति को बदल दिया गया है। 16 साल पहले तक भारत बाहरी देशों से मदद लेता था। भारत सरकार ने इससे पहले 1991 में उत्तरकाशी भूकंप, 1993 में लातूर भूकंप, 2001 में गुजरात भूकंप, 2002 में पश्चिम बंगाल में आए चक्रवात और 2004 में बिहार में आई बाढ़ के दौरान विदेशी मदद को स्वीकार किया था लेकिन 2004 में मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मदद लेने की प्रथा को खत्म करने का फैसला किया और फिर मनमोहन सिंह ने भारत के संदर्भ में ऐतिहासिल बयान दिया था। मनमोहन सिंह ने 2004 में कहा था कि 'अब देश ये महसूस करता है कि वो अपने दम पर किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार है और जरूरत पड़ने पर ही हम मदद लेंगे'। मनमोहन सिंह का ये भाषण पूरी दुनिया में काफी चर्चित हुआ था, जिसे भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण माना गया था।
मदद ना लेने की नीति
मनमोहन सिंह ने 2004 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मदद ना लेने की नीति बनाई और फिर पिछले 16 सालों से भारत किसी और देश की मदद तो करता था लेकिन खुद भारत किसी और देश से मदद नहीं लेता था। इस दौरान भारत ने कई आपदाओं का सामना किया और भारत को मदद भी ऑफर किया गया लेकिन भारत ने मदद लेने से इनकार कर दिया। 2005 में कश्मीर भूकंप, 2013 में उत्तराखंड बाढ़ और हादसा, 2014 में कश्मीर बाढ़, बिहार बाढ़ के दौरान भारत ने विदेश मदद लेने से मना कर दिया था। मोदी सरकार ने भी मनमोहन सरकार द्वारा बनाई गई इस नीति को अपनाया और उसी रास्ते पर सरकार चलती रही, लेकिन इस बार सरकार को विदेश मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
700 करोड़ की मदद ठुकराई
साल 2018 में केरल में भयानक बाढ़ आई थी और आपको याद होगा बाढ़ ने केरल में भयानक तबाही मचाई थी। उस दौरान केरस सरकार को संयुक्त अरब अमीरात ने 700 करोड़ रुपये की मदद की पेशकश की थी। लेकिन मोदी सरकार ने उस वक्त केरल सरकार को मदद लेने से मना कर दिया था। केन्द्र की मोदी सरकार ने 2018 में कहा था कि भारत अपनी मदद नहीं लेने की नीति पर ही चलेगा और किसी भी आपदा में अपनी ताकत से लड़ेगा। भारत सरकार ने साफ कर दिया था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय मदद को स्वीकार नहीं करेगा। हालांकि, उस वक्त मोदी सरकार की मनाही के बाद केन्द्र सरकार और केरल सरकार के बीच मनमुटाव भी हो गया था मगर भारत सरकार अपनी नीति पर कायम रही थी।
20 से ज्यादा देशों से मदद
इस बार कोरोना वायरस काफी विकराल हो चुका है और हर दिन 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौत इस वायरस की वजह से हो रही है। ऐसे में भारत सरकार ने विदेशी मदद को स्वीकार करने का फैसला किया है। अब तक 20 से ज्यादा देश भारत की मदद कर रहे हैं। इन 20 देशों में छोटे देश भी शामिल हैं और विश्व की महाशक्तियां भी भारत की मदद कर रही है। अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब, स्विटजरलैंड, यूएई और फ्रांस जैसे देश लगातार भारत की मदद कर रहे है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक अमेरिका भारत को 6 करोड़ एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की खुराक भी मदद के तौर पर देने वाला है, इसके अलावा भी कई देश ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स और वेंटिलेटर्स भारत भेज रहे हैं। इस वक्त भारत की मदद ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, सऊदी अरब, यूएई, आयरलैंड, स्विटजरलैंड, बेल्जियम. नॉर्वे, रोमानिया, रूस, पुर्तगाल, कक्समबर्ग, स्वीडन, भूटान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, हांगकांग, ताइवान, फिनलैंड और इटली जैसे देश कर रहे है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने इस नीति में बदलाव करने के संकेत उसी वक्त दे दिए थे, जब पीएम केयर फंड के लिए सरकार ने विदेशी मदद के लिए भी ऑप्शन खोल दिया था।
इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के जरिए दान
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार विदेशी प्रतिनिधियों से कह रही है कि वो भारत को मदद करने के लिए इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी को दान दें, जिसके बाद एक एम्पावर्ड ग्रुप उस दान के पैसे को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। हालांकि, भारत सरकार के अधिकारियों को मानना है कि भारत सरकार दूसरे देशों से एक तरह का रिटर्न गिफ्ट ले रही है क्योंकि पिछले साल भारत ने दिल खोलकर बाकी देशों की मदद की थी। पिछले साल जब चीन ने वुहाव में लॉकडाउन लगाया था, उस वक्त चीन की मदद करने वाला सबसे पहला देश भारत ही था। वुहान में कोरोना पीड़ितों की मदद करने के लिए भारत ने चीन में सौ से ज्यादा वेंटिलेटर्स भेजे थे। इसके साथ ही भारत ने पिछले साल भारत ने दुनिया के कई देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा भेजी थी और इस साल भी भारत ने साढ़े 6 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन की खुराक दुनिया के 82 देशों को भेजी है।
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