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राजपक्षे परिवार के ‘पितामह’, श्रीलंका के ‘सम्राट’... महिंदा राजपक्षे कैसे बन गये सबसे बड़े विलेन?

शक्तिशाली राजपक्षे कबीले के 76 वर्षीय पितामह महिंदा राजपक्षे को कभी सभी मौसमों के लिए श्रीलंका के असली नेता के रूप में जाना जाता था, लेकिन अभूतपूर्व आर्थिक संकट में राजपक्षे परिवार को बिखेर दिया है...

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कोलंबो, मई 10: श्रीलंका एक बार फिर से नाजुक स्थिति में फंस गया है और अगर श्रीलंका की लीडरशिप ने देश को बहुत सावधानी से नहीं संभाला, तो भारत का ये पड़ोसी देश एक बार फिर से गृहयुद्ध में दहल सकता है। श्रीलंका की जनता अपने नेताओं के खिलाफ खड़ी हो चुकी है और देश के सत्तापक्ष के सांसद हों या नेता, उनके घरों को जला रही है। एक दिन पहले तक श्रीलंका के प्रधानमंत्री रहे महिंदा राजपक्षे की पुश्तैनी घर को भी प्रदर्शनकारियों ने जला दिया है। ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं, कि आखिर जिस नेता को श्रीलंका की जनता आंखों में बसाकर रखती थी, वो अचानक लोगों की आंखों के किरकिरी कैसे बन गये?

सभी मौसमों के नेता थे महिंदा

सभी मौसमों के नेता थे महिंदा

शक्तिशाली राजपक्षे कबीले के 76 वर्षीय पितामह महिंदा राजपक्षे को कभी सभी मौसमों के लिए श्रीलंका के असली नेता के रूप में जाना जाता था, लेकिन द्वीप राष्ट्र की अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल से शुरू हुआ अभूतपूर्व सरकार विरोधी विरोध एक सुनामी बन चुका है। महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और उनके खिलाफ गुस्से की लहर फैली हुई है देश की जनता कह रही है, कि उन्होंने देश को कैसे डूबोया है, इसका हिसाब उन्हें देना पड़ेगा। 1948 में ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता के बाद से श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है और श्रीलंक के पास विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 50 मिलियन डॉलर बचा है, और स्थिति ये है, कि अब श्रीलंका मुख्य खाद्य पदार्थों के साथ साथ ईंधन के आयात के लिए भुगतान नहीं कर सकता है, लिहाजा देश में खाद्य पदार्थों के साथ साथ ईंधन की कीमतें हद से ज्यादा बढ़ चुकी हैं और ज्यादातर क्षेत्रों में गैस सप्लाई बंद हो चुकी है, लिहाजा लोगों को जंगलों से लकड़ी काटकर लाना पड़ रहा है, ताकि चूल्हा जल सके।

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खत्म होता राजपक्षे परिवार का वर्चस्व!

खत्म होता राजपक्षे परिवार का वर्चस्व!

श्रीलंका की सत्ता पर पिछले कई सालों से गोटाबाया परिवार का ही वर्चस्व रहा है और इस वक्त भी गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति बने हुए हैं और पिछले महीने 9 अप्रैल से पूरे श्रीलंका में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हुए हैं और राजपक्षे परिवार से सत्ता छोड़ने की मांग कर रहे हैं। बढ़ते दबाव में के बीच राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अप्रैल के मध्य में अपने बड़े भाई चमल राजपक्षे और सबसे बड़े भतीजे नमल राजपक्षे को मंत्रिमंडल से हटा दिया। हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं हुए थे, और बात यहां तक पहुंच गई, कि कर्ज में डूबे देश को चलाने में दोनों भाइयों के बीच अनबन की खबरें भी सामने आने लगीं।

महिंदा राजपक्षे का इस्तीफा

महिंदा राजपक्षे का इस्तीफा

महिंदा राजपक्षे बिल्कुल भी इस्तीफा नहीं देना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी के अंदर ही उनका विरोध किया जाने लगा और अंत में छोटे भाई और राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे के कहने पर उहोंने इस्तीफा दे दिया। लेकिन, उनके इस्तीफे के बाद उनके समर्थकों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के कार्यालय के बाहर सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया, जिससे दर्जनों प्रदर्शनकारी घायल हो गए और अधिकारियों को राष्ट्रव्यापी कर्फ्यू लगाने और राष्ट्रीय राजधानी में सेना के जवानों को तैनात करने के लिए मजबूर होना पड़ा। रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 1,000 ट्रेड यूनियन, राज्य सेवा, स्वास्थ्य, बंदरगाहों, बिजली, शिक्षा और डाक सहित कई क्षेत्रों से लेकर अलग अलग विभागों के सरकारी कर्मचारी भी सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल हो गये, जिससे आंदोलन को काफी ज्यादा बढ़ावा मिलने लगा और रूरे श्रीलंका में सरकार विरोधी विरोध प्रदर्शन तेज हो गए। शक्तिशाली राजपक्षे परिवार पर खतरा मंडराने लगा और राष्ट्रपति गोटाबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की कुर्सी डोलने लगी। आखिरकार महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना ही पड़ा।

श्रीलंका के लोगों के थे लाडले

श्रीलंका के लोगों के थे लाडले

यही राजनीति है... जिस महिंदा राजपक्षे को आज देश की जनता एक सेकंड के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, वो कुछ समय पहले तक लोगों के लाडले हुआ करते थे और यही वजह है, कि दो बार श्रीलंका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। हालांकि, साल 2015 में महिंदा राजपक्षे को चुनाव में हार मिली थी, लेकिन साल 2020 में घातक ईस्टर आतंकी हमलों के बाद वो वापस सत्ता में लौट आए, जिसमें 11 भारतीयों सहित 270 लोग मारे गए थे, और देश की सुरक्षा के बारे में कई श्रीलंकाई लोगों के मन में डर पैदा हो गया था और श्रीलंका ने उस वक्त महिंदा राजपक्षे में एक बार फिर से भरोसा जताया, जो एक कड़े प्रशासक माने जाते हैं और जिन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बौद्ध बनाम मुस्लिम की राजनीति को स्थापित कर दिया।

नई पार्टी बनाकर जीते चुनाव

नई पार्टी बनाकर जीते चुनाव

श्रीलंका में महिंदा राजपक्षे के नाम पर वोट पड़ता था और ऐसा कहा जाता था, कि हर सीट से महिंदा राजपक्षे ही चुनाव लड़ने उतरते हैं। उनकी नवगठित श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) ने द्वीप राष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में पूर्ण सत्ता हासिल करने के लिए सबसे कम जीवन काल वाली राजनीतिक पार्टी बनकर इतिहास रचा दिया। अगस्त 2020 में आम चुनावों में अपनी पार्टी की भारी जीत के बाद शक्तिशाली राजपक्षे परिवार ने ना सिर्फ दोबारा सत्ता में लौट आई, बल्कि, राजपक्षे परिवार ने सत्ता पर अपनी पकड़ को काफी ज्यादा मजबूत भी बना लिया। और सरकार में राजपक्षे परिवार के 7 सदस्य शामिल हो गये। राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने की वजह से ही राष्ट्रपति की शक्तियों को बहाल करने और प्रमुख पदों पर परिवार के करीबी सदस्यों को स्थापित करने के लिए संविधान में संशोधन करने की अनुमति मिली।

आर्थिक संकट में देश को फंसाया?

आर्थिक संकट में देश को फंसाया?

एक क्रूर सैन्य अभियान में तमिल टाइगर्स को कुचलने वाले महिंदा राजपक्षे ने 2020 में फिर से प्रधानमंत्री की भूमिका संभाली थी, अपने करियर में चौथी बार प्रधानमंत्री बने थे। और उसी साल कोविड महामारी ने पूरी दुनिया में पैर पसारना शुरू किया। हालांकि, महिंदा राजपक्षे ने 2020 में वैश्विक स्तर पर फैली COVID-19 महामारी के दौर में भी सुरक्षा और स्थिरता की एक छवि बनाए रखी। लेकिन, दुनिया के ज्यादातर हिस्से में लगे लॉकडाउन की वजह से श्रीलंका के पर्यटन उद्योग को नहीं बचा पाए, जिसका योगदान देश की जीडीपी में सबसे ज्यादा है। पर्यटन सेक्टर को लगा झटका अभूतपूर्व था, जिसने देश को ऐतिहासिक आर्थिक संकट में धकेल दिया और आर्थिक स्थिति इस कदर बिगड़ गई, कि लोगों को सौ-सौ ग्राम के हिसाब से दूध खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा। और अंत में महिंदा राजपक्षे को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। माना जाता है, कि अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने के लिए राजपक्षे परिवार ने कई ऐसे फैसले लिए, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंची।

सिर्फ 24 साल की उम्र में बने सांसद

सिर्फ 24 साल की उम्र में बने सांसद

सड़क पर लड़ते हुए वयोवृद्ध राजनेता बने महिंदा राजपक्षे ने सिर्फ 24 साल की उम्र में संसद में प्रवेश किया था और देश में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाता था। हालांकि, साल 1977 में सीट हारने के बाद उन्होंने 1989 में संसद में दोबारा प्रवेश किया और फिर उन्होंने अपना ध्यान कानून में पढ़ाई की तरफ भी लगाया। उन्होंने राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा की सरकार में श्रम मंत्री (1994-2001) और मत्स्य पालन और जलीय संसाधन मंत्री (1997-2001) के रूप में कार्य किया और फिर अप्रैल 2004 के आम चुनाव के बाद उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त कर दिया गया, जब यूनाइटेड पीपुल्स फ्रीडम एलायंस ने बहुमत हासिल किया था।

कैसे श्रीलंका में नायक बने महिंदा?

कैसे श्रीलंका में नायक बने महिंदा?

ये वो दौर था, जब श्रीलंका में लिट्टे संघर्ष चल रहा था और लिट्टे के साथ लगभग 30 साल लंबे खूनी गृहयुद्ध को समाप्त करने में महिंदा राजपक्षे के सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री नाकामयाब हो चुके थे और यहीं से महिंदा राजपक्षे एक नायक बन गए और 2010 में एक प्रचंड जीत के साथ सत्ता में लौटने के लिए उन्होंने अपनी इसी छवि का इस्तेमाल किया, जिसके कारण राजनीतिक विश्लेषकों ने उन्हें "एक आदमी के साथ" करार दिया। 2005 से 2015 तक अपनी अध्यक्षता के दौरान महिंदा राजपक्षे ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली। और तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए महिंदा राजपक्षे ने देश के संविधान को ही बदल दिया। वहीं, उनके तीन भाइयों, गोटाबाया, तुलसी और चमल को उन्होंने प्रभावशाली पदों पर बिठा दिया, जिसके बाद आरोप लगे, कि वह एक पारिवारिक कंपनी की तरह देश चला रहे थे। 2020 की सरकार में राजपक्षे परिवार के सात सदस्यों के हाथ में देश के तमाम बड़े मंत्रालय थे, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और गृहमंत्री का पद भी शामिल था।

2015 चुनाव में कैसे हुए पराजित?

2015 चुनाव में कैसे हुए पराजित?

बढ़ती कीमतों और भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के आरोपों की वजह से साल 2014 के दौरान उनकी घरेलू लोकप्रियता कम होती दिखाई दी, लेकिन जनता का समर्थन पूरी तरह खो दें, उससे पहले ही उन्होंने राष्ट्रपति पद को सुरक्षित करने की कोशिश में समय से पहले ही राष्ट्रपति चुनाव का आह्वान कर दिया। लेकिन उनका ये राजनीतिक दांव उल्टा पड़ गया और उन्हें 2015 के चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा। मैत्रीपाला सिरिसेना, जो पहले राजपक्षे के मंत्रिमंडल के सदस्य थे, उन्होंने महिंदा राजपक्षे को चुनाव में हरा दिया और राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, महिंदा ने चीन के साथ कई प्रमुख बुनियादी ढांचे के सौदे किए थे, जिससे भारत और पश्चिम में चिंता बढ़ गई। श्रीलंका में आर्थिक जानकारों का कहना है, कि महिंदा की वजह से ही देश 'चीनी कर्ज के जाल' में फंस गया है। रणनीतिक हंबनटोटा बंदरगाह, जिसे उनके शासन के दौरान चीन से विशालकाय कर्ज लेकर बनाया गया था, उसे उन्होंने ही साल 2017 में चीन को 99 सालों के लिए लीज पर दे दिया।

संविधान में किया संशोधन

संविधान में किया संशोधन

साल 2015 में महिंदा राजपक्षे चुनाव हार गये थे और एक इंटरव्यू के दौरान चुनाव में हार के लिए उन्होंने भारत की खुफिया एजेंसी रॉ और अमेरिका पर आरोप लगा दिए। लेकिन, साल 2015 में देश के नये राष्ट्रपति बने सिरिसेना ने संविधान को सही करते हुए फिर से पुरानी व्यवस्था लागू कर दी, कि एक शख्स सिर्फ दो बार ही देश का राष्ट्रपति बन सकता है। महिंदा राजपक्षे ने इसे बदल दिया था। हालांकि, अगस्त 2015 में महिंदा राजपक्षे फिर से सांसद बन गये थे, लेकिन उस वक्त उनपर भ्रष्टाचार के कई मुकदमे चल रहे थे, जिसकी वजह से उन्हें गिरफ्तार भी होना पड़ा। उनके खिलाफ कथित हेराफेरी के कई मामले दर्ज थे, जो अभी भी लंबित हैं। लेकिन, सिर्फ 3 साल बाद श्रीलंका की राजनीति ने अबीजोगरीब करवट ली और राष्ट्रपति सिरिसेना ने अक्टूबर 2018 में महिंदा राजपक्षे को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। राष्ट्रपति सिरिसेना ने एक विवादास्पद कदम उठाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया था, जिसने देश एक संवैधानिक संकट में फंस गया और विवाद काफी बढ़ने के बाद 15 दिसंबर को महिंदा राजपक्षे को उस वक्त इस्तीफा देना पड़ा, जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सिरीसेना द्वारा संसद को भंग करने के फैसले को "अवैध" करार दे दिया था।

नई पार्टी बनाकर लड़ा चुनाव

नई पार्टी बनाकर लड़ा चुनाव

दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद महिंदा राजपक्षे सत्तारूढ़ पार्टी से अलग हो गए और उनके भाई तुलसी राजपक्षे की पार्टी एसएलपीपी में शामिल हो गए, और वे औपचारिक तौर पर विपक्ष के नेता बन गए। 21 अप्रैल 2019 को घातक ईस्टर बम विस्फोट श्रीलंका की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। राजपक्षे परिवार के नेतृत्व वाली एसएलपीपी ने सुरक्षा के मोर्चे पर विफलता के लिए राष्ट्रपति सिरिसेना और प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की सरकार को जमकर घेरा और श्रीलंका की राजनीति बौद्ध बनाम मुस्लिम करने की कोशिश की गई। एसएलपीपी ने मनिंदा राजपक्षे के छोटे भाई गोतभाया की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की भी घोषणा की, जिन्होंने लिट्टे के खिलाफ गृहयुद्ध के अंतिम वर्षों में उनके रक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया था। दोनों भाइयों ने श्रीलंकाई लोगों को सुरक्षा का वादा किया, जो बौद्ध-बहुल देश में इस्लामी चरमपंथ से चिंतित हो गए थे। औऱ इसी नारे के साथ गोतभाया ने 2019 में राष्ट्रपति चुनाव जीता था और महिंदा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री बन गये। लेकिन, एक बार फिर से महिंदा राजपक्षे का राजनीति भविष्य अधर में फंस गया है और देखना होगा, कि क्या वो फिर से ताकतवर बनकर वापस लौटते हैं, या फिर देश की जनता अब उन्हें फिर से मौका नहीं देगी।

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English summary
Mahinda Rajapakse... a mighty leader who was the apple of the people's eyes, how did he become the biggest villain?
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