किस हाल में रहती हैं क़तर की महिलाएं, क्या है पुरुष गार्जियन की व्यवस्था?
क़तर में चल रहे फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप के बीच चर्चा कई अन्य मुद्दों पर भी हो रही है.
क़तर में फ़ुटबॉल वर्ल्ड कप चल रहा है. शाम के वक़्त दोहा के समुद्र तट पर संस्कृतियों का मिलन देखा जा सकता है.
क़तर की 'सर्दियों' में जब तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है तो सुकून लेने के लिए परिवार, दोस्त और फ़ुटबॉल प्रसंशक राजधानी के सात किलोमीटर लंबे अल कोर्नीचे अवेन्यू पर जुटते हैं.
यहां पश्चिमी पर्यटकों और स्थानीय क़तर परिवारों के बीच फ़र्क़ साफ़ नज़र आता है.
क़तर में यू तो क़रीब तीस लाख लोग रहते हैं लेकिन स्थानी क़तरी आबादी साढ़े तीन लाख से अधिक नहीं है.
क़तर एक इस्लामी राष्ट्र है और यहां इस्लाम के सिद्धांतों की व्याख्या भी अपनी तरह से है.
एक ओर यहां रूढ़िवादी और पारंपरिक परिवार हैं तो प्रगतिशील और अधिक उदारवादी भी.
क़तर में महिलाओं की भूमिका इसके केंद्र में हैं और इसे लेकर भी बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है.
अल कोर्नीचे बीच पर कुछ महिलाओं नीचे से ऊपर तक काले बुर्के में ढंकी हुई हैं तो कुछ ने रंग-बिरंगे हिजाब पहने हैं.
लेकिन क़तर की महिलाओं के लिए असल मुद्दा पोशाक नहीं है.
क़तर में महिलाओं के लिए एक व्यवस्था है जिसके तहत महिलाएं पुरुषों की गार्जियनशिप (देखभाल) में रहती हैं.
इस व्यवस्था का विरोध करने वालों का कहना है कि इसका मतलब ये है कि महिलाएं ताउम्र नाबालिग ही बनीं रहती हैं.
अपने आप को ज़ैनब (असली नाम नहीं) बताने वाली और क़तर के बाहर रह रहीं एक क़तर मूल की महिला कहती हैं, "क़तर के क़ानून के तहत कई धार्मिक तत्वों ने मुझे इस हद तक मानसिक रूप से परेशान किया कि मैं अपनी आत्महत्या तक के बारे में सोचने लगी थी."
वो कहती हैं, "अपनी ज़िंदगी के हर ज़रूरी और अहम फ़ैसले के लिए अपने पुरुष गार्जियन की लिखित अनुमति लेना अनिवार्य होता है. अगर आपके पास ये अनुमति नहीं है तो आप फ़ैसला नहीं ले सकते हैं, चाहे फिर ये कॉलेज में दाख़िला लेना है, विदेश में पढ़ना हो, शादी करनी हो या फिर तलाक़ लेना हो."
हालांकि क़तर के सभी परिवार इस जटिल व्यवस्था का कड़ाई से पालन नहीं करते हैं.
शाइमा शरीफ़ एंब्रेस दोहा नाम के सांस्कृतिक संगठन की सह-संस्थापक हैं. ये संगठन क़तर में रह रहे प्रवासियों और बाहर से आने वाले लोगों में क़तर के प्रति जागरूकता फैलाने का काम करता है.
शाइमा कहती हैं कि पुरुष गार्जियन का सिद्धांत क़ानून के तहत नहीं बल्कि पारिवारिक व्यवस्था के तहत काम करता है और ये इस पर निर्भर करता है कि कौन परिवार कितना रूढ़िवादी है.
शरीफ़ कहती हैं कि क़तर में उदारवादी माहौल भी है जहां महिलाएं सशक्त महसूस करती हैं.
क्या है ये व्यवस्था?
दोहा की बिन ख़लीफ़ा यूनिवर्सिटी में क़ानून और मानवाधिकारों के प्रोफ़ेसर इलेनी पॉलीमेनोपॉलू कहते हैं कि क़तर एक इस्लामी राष्ट्र है और शरिया यहां के क़ानून का मूल स्रोत है.
वो कहते हैं, "लेकिन शरिया के नियम बेहद विविध हैं, इसे लेकर कई विचारधाराएं भी हैं, कुछ बहुत सख़्तत हैं कुछ उदार हैं, कुछ आधुनिक और सुधारवादी भी हैं."
क़तर के संविधान के अनुच्छेद 35 के तहत क़ानून की नज़र में सब बराबर हैं और उनमें लिंग, नस्ल, भाषा या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
2019 में मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने एक विस्तृत रिपोर्ट में जैनब जैसी कई लड़कियों की आपबीती प्रकाशित की थी.
इस रिपोर्ट में एचआरडब्ल्यू ने कहा था कि पुरुष गार्जियन की व्यवस्था क़ानूनी रूप से स्पष्ट नहीं है.
रिपोर्ट में कहा गया था, "ये कई क़ानूनों, नीतियों और प्रथाओं का मिश्रण है, जिसके तहत बालिग महिलाओं को ख़ास गतिविधियों के लिए पुरुष गार्जियन की अनुमति लेना अनिवार्य होता है. "
पिता, भाई, गॉड फॉदर या पति किसी महिला के पुरुष गार्जियन हो सकते हैं.
हालांकि क़तर की सरकार ने एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट को त्रुटिपूर्ण बताते हुए कहा था कि महिलाओं के बयान क़ानून के तहत नहीं है. हालांकि सरकार ने कहा था कि वो इन आरोपों की जांच करेगी और अगर क़ानून तोड़ने वालों पर मुक़दमें चलाएगी.
प्रोफ़ेसर इलेनी पॉलीमेनोपॉलू कहते हैं, "उदारवादी परिवार की महिलाओं को बहुत कुछ करने की आज़ादी होती है लेकिन बहुत सी महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें घर से बाहर निकलने के लिए भी पुरुष गार्जियन की अनुमति चाहिए होती है. उदाहरण के लिए, यही सबसे बड़ी समस्या है."
वो कहते हैं, "मेरे छात्र अक्सर ये चर्चा करते हैं कि इस क़ानून को कैसे बदला जए, ये इस तरह क्यों काम करता है और उन पर नज़र क्यों रखी जाती है. हालांकि बहुत से छात्र अधिक रूढ़िवादी भी हैं."
बीबीसी ने प्रोफ़ेसर इलेनी पॉलीमेनोपॉलू की कई छात्राओं का साक्षात्कार करने का प्रयास किया लेकिन किसी ने बात नहीं की. वर्ल्ड कप की कवरेज करने आए अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए स्थानीय क़तर निवासियों से बात करना चुनौतीपूर्ण हो गया है.
"पश्चिमी विचार"
जैनब के पिता रूढ़िवादी हैं और इस वजह से वो अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी नहीं जी पाईं.
वो कहती हैं कि क़तर के उदारवादी परिवारों की वो महिलाएं जिन पर बहुत पाबंदियां नहीं हैं उन्हें ये अहसास न हीं हो पाता है कि पुरुष गार्जियन की ये व्यवस्था महिलाओं के लिए कितनी हानिकारक है.
जैनब कहती हैं कि इस व्यवस्था की वजह से क़तर में महिलाओं को शोषण का सामना करना पड़ता है.
वो कहती हैं कि क़तर के क़ानून भी रूढ़िवादी परिवारों के हितों में ही काम करते हैं ताकि उन्हें संतुष्ट रखा जा सके.
वो कहती हैं, "रूढ़िवादी ये मानते हैं कि महिलाधिकार पश्चिमी विचार है और ये इस्लाम के मूल्यों, परंपराओं और संस्कृति के ख़िलाफ़ है."
जैनब ने बीबीसी से कहा कि उसके अनुभवों के बारे में विस्तार से ना लिखा जाए. वो अपनी पहचान को लेकर चिंतित थीं.
जैनब को डर है कि अगर उनके बारे में पता चला तो उनके परिवार को भी दिक्कतें हो सकती हैं.
वहीं विश्व कप से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इस व्यवस्था और अन्य कारणों से जो क़तर की आलोचना की जा रही है उसका कोई आधार नहीं है.
दोहा के एजुकेशन सिटी में रहने वाले छात्र मोसेले कहते हैं, "पश्चिमी संस्थानों को यहां आकर ये बताने की कोई ज़रूरत नहीं है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं."
वो कहते हैं, "ये हमारा देश है. और हमारे पास इसे उस दिशा में आगे बढ़ाने का अवसर है जिस पर हम यक़ीन करते हैं, ना की उस तरीके से जो हम पर थोपा जा रहा है."
क़तर की एक सच्चाई ये भी है कि यहां ऐसी रूढ़िवादी महिलाएं भी हैं जो इस व्यवस्था में यक़ीन रखती हैं और इसका पालन करती हैं.
क़तर में एक दशक से अधिक तक काम करने वाली कोलंबिया की एक महिला बताती हैं कि क़तर की रूढ़िवादी महिलाओं ने कई पार उनके पहनावे के लिए उन्हें टोका और कई जगहों पर जाने के लिए ये कहते हुए रोक दिया कि आपके कपड़े अनुकूल नहीं है.
वो कहती हैं, "अधिकारी आम तौर पर उन्हीं का पक्ष लेते हैं. रूढ़िवादी इसे अपने मूल्यों के ख़िलाफ़ अपराध मान लेते हैं."
वो कहती हैं, मैं क़तर में रहती हूं और मुझे इस बारे में बहुत कुछ नहीं बोलना चाहिए.
सशक्त पीढ़ी
क़तर की सरकार ने एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि महिलाओं का सशक्तीकरण क़तर की कामयाबी और विज़न के केंद्र में है.
"क़तर में, महिलाएं जीवन के हर पहलू में अग्रणी भूमिका में हैं,. इसमें राजनीतिकि, आर्थिक और निर्णय लेने की भूमिका भी शामिल है. लैंगिक बराबरी के सभी सूचकांकों में क़तर इस क्षेत्र में सबसे आगे है. रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी क़तर में क्षेत्र में सबसे ज़्यादा है. वेतन की बराबरी और सरकारी नौकरियों में भी महिलाएं आगे हैं. इसके अलावा यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने में क़तर की महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज़्यादा ह."
शाइमा शरीफ़ क़तर की सशक्त महिलाओं में शामिल हैं और वो इसी तरह की उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित रखना चाहती हैं.
शरीफ़ कहती हैं, "मुझे लगता है कि बहुत से लोगों के मन में ग़लतफहमियां हैं लेकिन जब वो यहां आते हैं तो ये दूर हो जाती हैं. महिलाओं से जुड़े आंकड़े अपने आप में पर्याप्त हैं. क़तर में मास्टर डिग्री और पीएचडी वाली महिलाओं की संख्या इवी लीग यूनिवर्सिटी से भी अधिक है."
वो कहती हैं, "क़तर की महिलाएं बहुत स्मार्ट हैं और पिछले पांच सालों में यहां बहुत कुछ बदल गया है. लैंगिक गैर-बराबरी कम करने के लिए क़तर में बहुत कुछ किया जा रहा है. क़तर में मां बनने वाली महिलाओं का बहुत समर्थन किया जाता है, दुनिया के बहुत से पश्चिमी देशों में भी ऐसी व्यवस्थाएं नहीं हैं."
शरीफ़ उद्यमी हैं और पुरातनविज्ञान में स्नातक हैं. वो कहती हैं कि पश्चिमी मीडिया जब महिलाधिकारों पर बात करता है तो उसे क़तर का ये पक्ष भी दिखाना चाहिए.
वो कहती हैं, "ज़ाहिर है, यहां सबकुछ परफेक्ट नहीं है और हमें भी बहुत सुधार करने हैं. लेकिन हमारे यहां बहुत सी सशक्त महिलाएं हैं जो नेतृत्व का हिस्सा हैं और जो इस तरह के मुद्दों को किनारे कर रही हैं."
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