Special Report: भारत से कोरोना वायरस वैक्सीन रेस में कैसे हार गया चीन?
नई दिल्ली: हर किसी के मन में सवाल है कि आखिर भारत से वैक्सीन रेस में चीन पराजित कैसे हो गया? वैक्सीन बनाने से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक में चीन भारत से काफी पीछे क्यों रह गया? अगर इन सवालों का जबाव जानने की कोशिश करें तो बेहद दिलचस्प जबाव दिखाई देते हैं और सबसे बड़ा जबाव ये है कि चीन के लिए वैक्सीन रेस को जीतना या दुनिया के लिए सबसे पहले वैक्सीन बनाना पहला लक्ष्य था ही नहीं, चीन हमेशा से दुनिया को ब्लैकमेल करने के पीछे लगा रहा।

वैक्सीन रेस और चीन
कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन ने कोरोना वायरस वैक्सीन बनाने में पिछले साल फरवरी में ही कामयाबी हासिल कर ली थी और वो दुनिया के सामने झूठ बोलता रहा। चीन ने फरवरी में वैक्सीन बनाने के बाद उसका ट्रायल पिछले साल मार्च में ही करना शुरू कर दिया था, जब पहली बार भारत जैसे देशों में लॉकडाउन का ऐलान किया गया था। चीन ने फरवरी में वैक्सीन ट्रायल शुरू करने के बाद रिजल्ट मई 2020 में पब्लिश किया था। पिछले साल मई में चीन ने दावा किया था कि वो वैक्सीन बनाने के रेस में सबसे आगे चल रहा है। आपको याद होगा कि पिछले साल मई में चीन ने वैक्सीन बनाने का दावा किया था। लेकिन फिर चीन वैक्सीन बनाने में इतना पीछे क्यों रह गया?

दुनिया से झूठ बोलता रहा चीन!
दिसंबर 2019 में चीन ने आखिरकार कोरोना वायरस को लेकर पहली बार डब्ल्यूएचओ को जानकारी दी थी और जनवरी 2020 में पहली बार चीनी वायरस चीन के बाहर पाया गया। 13 जनवरी 2020 को चीनी कोरोना वायरस का पहसला केस चीन के बाहर दर्ज किया गया था और 11 मार्च 2020 को डब्ल्यूचओ ने कोरोना वायरस को वैश्विक महामारी के कैटोगिरी में शामिल किया था और फिर मई 2020 तक चीन ने पूरी दुनिया की रफ्तार रोक दी थी। चीन की वजह से लाखों लोग मारे जा चुके थे।

वैक्सीन पर तिकड़मबाजी
मई 2020 में चीन ने वैक्सीन बनाने का दावा कर दिया और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि चीन जो वैक्सीन बना रहा है वो पूरी दुनिया के लोगों की भलाई के लिए होगा। लेकिन, इस बार दुनिया चीन की तिकड़मबाजी को समझ चुकी थी। न्यूज चैनल WION की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के साथ कुछ ही देशों ने वैक्सीन का करार किया। ज्यादातर देशों ने चीन से वैक्सीन लेना मना कर दिया और चीन के लिए ये सबसे बड़ा झटका था। जब कुछ ही देशों ने चीन से वैक्सीन का करार किया तो फिर चीन ने वैक्सीन छोटे देशों को डोनेशन के तौर पर बांटने की कोशिश की। चीन की तिकड़मबाजी देखिए, जुलाई 2020 में चीन ने लैटिन अमेरिका और कुछ कैरिबयन देशों को लोन पर वैक्सीन देने की कोशिश की। चीन ने छोटे देशों के साथ अरबों रुपये का वैक्सीन करार करना शुरू कर दिया। हालांकि, क्लियर नहीं हो पाया है कि चीन ने उन देशों को वाकई वैक्सीन दिया या नहीं। लेकिन, मार्च 2021 तक वैक्सीन को लेकर चीन की क्या स्थिति है, आईये देखते हैं।

मार्च 2021 तक चीनी वैक्सीन की स्थिति
पिछले साल मई में वैक्सीन बनाने दावा करने वाला चीन पूरी दुनिया में 20 ऐसे देश नहीं तलाश पाया जिसके साथ उसने चीनी वैक्सीन का करार किया हो। WION की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 195 देशों में से सिर्फ 28 देशों ने ही चीन के साथ वैक्सीन को लेकर करार किया और उनमें भी पाकिस्तान जैसे वो देश शामिल हैं, जिन्हें चीन ने पहले से ही कर्ज के बोझ में दबा रखा है। चीनी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अभी तक अपने देश नें सिर्फ 5 करोड़ से कुछ ज्यादा ही वैक्सीन के डोज लोगों को दिए हैं। चीनी कंपनी सिनोविक ने जिन देशों तक जल्द वैक्सीन देने की बात कहकर करार किया था, उन देशों तक वैक्सीन पहुंचाने में पूरी तरह से नाकामयाब रहा है। इस साल जनवरी तक सिनोविक को जितने ऑर्डर मिले थे उसका आधा वैक्सीन ही बना पाया है और जिन देशों ने चीन के साथ करार किया है वो वैक्सीन के लिए परेशान हो रहे हैं।

चीन से करार करने वाले देश परेशान
जिन देशों ने चीन के साथ वैक्सीन को लेकर करार किया था वो अब काफी निराश हो चुके हैं। उनमें ब्राजील और तुर्की जैसे देश शामिल हैं। ब्राजील ने पहले चीन के साथ वैक्सीन को लेकर करार किया था लेकिन जैसे ही ब्राजील को लगा कि चीन सिर्फ धोखेबाजी कर रहा है, उसने फौरन चीन से डील रद्द कर भारत के साथ वैक्सीन का करार कर दिया। भारत ने ब्राजील को वैक्सीन भेजा था जिसके बाद ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सनारो ने भारतीय प्रधानमंत्री का आभार जताया था। वहीं, वैक्सीन के लिए तुर्की अभी तक परेशान है।

बेहद घटिया है चीनी वैक्सीन
ब्राजील ने चीनी वैक्सीन को घटिया बताकर उससे करार रद्द कर दिया था। जबकि तुर्की ने चीन का साथ देने की कोशिश की और वैक्सीन को कारगर बताया, लेकिन अब तुर्की बार बार चीन के सामने वैक्सीन का रोना रो रहा है। वहीं, साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के अंदर मौजूद हेल्थ वर्कर्स में चीनी वैक्सीन को लेकर काफी डर है। जहां भारत ने अपने शत-प्रतिशत हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीन लगा दिया है वहीं चीन में अभी तक 74 प्रतिशत से कम हेल्थ वर्कर्स ने टीका लगवाया है। कुछ रिपोर्ट्स मे कहा गया है कि चीनी डॉक्टर्स ने चीनी वैक्सीन को पारदर्शी नहीं बताया है। वहीं, वैक्सीन बनाने वाली चीनी कंपनियों पर भी सवाल खड़े किए हैं।

वैक्सीन की रेस में हारा चीन
चीन की एक वैक्सीन ने कैनसिनो ने 60 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों पर वैक्सीन का ट्रायव किया था। वहीं, ब्राजील में ट्रायल के दौरान सिनोवैक वैक्सीन 50 प्रतिशत से कम प्रभावी पाई गई। वहीं, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया में 55 प्रतिशत से कम वैक्सीन का रिजल्ट रहा। पहले चीन ने झूठ बोलकर कई देशों के साथ करार कर लिए लेकिन जैसे ही भारत में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन, यूएस में फाइजर वैक्सीन और दूसरे वैक्सीन्स को हरी झंडी मिली, चीनी वैक्सीन्स का मार्केट से सफाया होने लगा। इन वैक्सीन्स के सामने चीनी वैक्सीन्स धराशाई हो गई। हालांकि, चीन ने वैक्सीन को लेकर प्रोपेगेंडा चलाना चाहा लेकिन उससे चीन को कुछ फायदा नहीं हो पाया और उसके साथ ही चीनी राष्ट्रपति का सारा सम्मान जमीन में मिल गया।

चीन बनना चाहता था ग्लोबल लीडर
दरअसल, पूरी दुनिया में वैक्सीन सप्लाई कर शी जिंनपिंग चीन को ग्लोबल लीडर बनाना चाहते थे लेकिन भारतीय वैक्सीन के आगे शी जिनपिंग का ख्वाब टूटकर रह गया। दूसरी तरफ भारत सरकार की वैक्सीन डिप्लोमेसी ने चीन का काफी नुकसान किया। जबकि चीन चाहता था कि वैक्सीन डिप्लोमेसी के जरिए वो छोटे देशों पर अपना प्रभुत्व जमाता। हालांकि, चीन ने अपने सबसे प्यारे देश पाकिस्तान को भी मुफ्त में वैक्सीन देने से मना कर दिया। इस वक्त WHO की तरफ से 155 वैक्सीन को प्री-क्वालिफाइड श्रेणी में रखा गया है जिनमें चार चीनी वैक्सीन हैं, जबकि भारत के 44 वैक्सीन हैं। और ये सिर्फ नंबर की बात नहीं है, ये विश्वास की बात है, कि दुनिया के विकसित देश, चाहे वो ब्रिटेन हों या फ्रांस, इटली हो या फिर अमेरिका...सभी देशों को वैक्सीन की सप्लाई भारत कर रहा है।
सऊदी
अरब
का
इनकार
तो
मोदी
सरकार
का
करारा
वार,
दोस्ती
में
दादागिरी
नहीं
चलेगी!