क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Special Report: सैन्य शासन के बीच सुबकते म्यांमार को दिल्ली में पढ़ीं आंग सान सू ने कैसे आजादी दिलाई?

म्यांमार लगातार सैन्य शासन से गुजरने वाला देश रहा है। जहां 1988 में म्यांमार की नेता आंग सान सू ने क्रांति का बीज बोया था।

Google Oneindia News

नई दिल्ली: म्यांमार (Myanmar) की राजनीति को अगर सीधे शब्दों में समझना हो तो उसे एक वाक्य में समझा जा सकता है कि म्यांमार में सेना और सरकार का मिलाजुला लोकतंत्र है। म्यांमार लगातार सैन्य शासन से गुजरने वाला देश रहा है। जहां 1988 में म्यांमार की नेता आंग सान सू ने क्रांति का बीज बोया था।

myanmar

Recommended Video

Myanmar में 1 साल के लिए Military का शासन, हिरासत में Aung San Suu Kyi | वनइंडिया हिंदी

आंग सान सू का संघर्ष

आंग सान सू म्यांमार में लोकतंत्र की स्थापना के लिए लड़ने लगी और धीरे धीरे जनता का विश्वास उन्होंने जीत लिया। आंग सान सू ने म्यांमार की जनता को सैनिक तानाशाही शासन से निजात दिलाकर देश में लोकतंत्र की नींव रखने का भरोसा दिलाया। आंग सान सू ने 1988 में हजारों छात्रों को साथ लेकर म्यांमार की तत्कालीन राजधानी यांगून में एक बड़ी रैली निकाली। लेकिन, सेना ने बड़ी बेरहमी से आंग सान सू की क्रांति का दमन कर दिया। मगर, आंग सान सू ने लोकतंत्र लागू करने की मांग का त्याग नहीं किया। वो लगातार सैन्य तानाशाहों के खिलाफ लड़ती रहीं।

1990 में म्यांमार में चुनाव हुए जिसमें आंग सान सू की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी को बहुमत भी मिला मगर सेना ने चुनावी नतीजों को मानने से इनकार करते हुए आंग सान सू को कई सालों तक नजरबंद रखा। अगले 22 सालों तक म्यांमार में सेना का ही शासन चला। लेकिन, आखिरकार आंस सान सू का संघर्ष कामयाब हो ही गया। साल 2010 में म्यांमार को आखिरका सैनिक शासन से मुक्ति मिल गई और म्यांमार में लोकतंत्र स्थापित हो गया।

AUNG SAN SUU

आंग सान सू को नोबेल पुरस्कार

सैनिक तानाशाही के चंगुल से मुक्त कराकर म्यांमार में लोकतंत्र का बीज बोने वाली आंग सान सू को उनके संघर्ष के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आंग सान सू ने म्यांमार को राजनीतिक विकल्प देने के लिए नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की स्थापना की। म्यांमार की जनता ने आंग सान सू की पार्टी पर भरोसा जताते हुए उन्हें पूर्ण बहुमत से जिताया।

म्यांमार का संघर्ष

1842 से 1948 तक म्यांमार में अंग्रेजों का शासन रहा। लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के अंत होते ही 1962 में म्यांमार सैन्य तानाशाहों के अधीन आ गया। सैन्य तानाशाहों के खिलाफ म्यांमार में विद्रोह का बिगूल तो कई बार फूंका गया मगर सैन्य तानाशाहों ने उसे बेरहमी से दबा दिया। सैन्य शासन के दौरान म्यांमार में मानवाधिकारों का बुरी तरह से दमन किया गया। 1988 में म्यांमार पर कब्जा जमाने वाले सैनिक शासन को जुंटा के नाम से जाना जाता हे। जिसे स्टेट पीस एंड डेवलपमेंट काउंसिल यानि SPDC भी कहा जाता है। इसी दौरान साल 1991 में मानवाधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाली नेता आंग सान सू को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया।

MYANMAR

2010 में म्यांमार में फिर से चुनाव हुए जिसमें एक बार फिर से आंग सान सू की पार्टी को जनता ने बहुमत से जिताया। जिसके बाद भारी अंतर्राष्ट्रीय दबावों की वजह से सैन्य तानाशाहों को आखिरकार आंग सान सू को नजरबंदी से रिहा करना पड़ा। 2011 में म्यांमार में पूर्णकालिक लोकतंत्र की बहाली के लिए एक कदम और बढ़ाते हुए सेना के पूर्व जनरल थियान सेन को राष्ट्रपति बनाकर देश में अर्थ असैन्य सरकार का गठन किया गया। मगर, इस सरकार में ज्यादादर मंत्री पदों पर सेना के ही बड़े अधिकारी बैठे हुए थे।

दिल्ली के आंग सान सू ने की पढ़ाई

ये बहुत कम लोग जानते होंगे कि म्यांमार में लोकतंत्र का दीप जलाने वाली नोबेल पुरस्कार से सम्मानित नेता आंग सान सू ने दिल्ली में रहकर लेडी श्रीराम कॉलेज से पढ़ाई की। आंग सान सू ने 1987 में कुछ वक्त शिमला के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी में फेल के तौर पर भी बिताया। आंग सान सू के पिता आंग सान थे जिन्हें म्यांमार के महान स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जाना जाता है। आंग सान सू के पिता आंग सान ने ही म्यांमार में सेना का नींव रखा था। साथ ही उनकी मां डाउ यीन खीं भारत में राजदूत थीं।

म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली होने के बाद आंग सान सू देश की संविधान की वजह से राष्ट्रपति नहीं पाईं। दरअसल, म्यांमार की संविधान के मुताबिक देश का वो नागरिक राष्ट्रपति नहीं बन सकता है जिसने किसी विदेशी से शादी की है। आंग सान सू ने ब्रिटिश नागरिक से शादी की है और उनके बच्चों के पास ब्रिटिश पासपोर्ट है। हालांकि, राष्ट्रपति बने बिना ही आंग सान सू ने देश की जिम्मेदारी अपने हाथों में रखी।

म्यांमार में फिर से मिलिट्री राज

2020 नवंबर-दिसंबर में हुए चुनाव में एक बार फिर से आंग सान सू की पार्टी ने देश में विशालकाय बहुमत हासिल किया। इस बार चुनाव जीतने के बाद पीएम मोदी ने 75 साल की आंग सान सू को बधाई दी थी। आंग सान सू की नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेटिक पार्टी को 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत मिली थी। जिसके बाद से ही सेना चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगा रही थी। हालांकि सत्ताधारी पार्टी का बार बार कहना था कि चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हुए हैं और कोई भी गड़बड़ी नहीं की गई है। म्यांमार फिर से सैन्य शासन की तरफ आगे नहीं बढ़े इसके लिए चुनी गई सरकार में कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी सेना के अधिकारियों के हाथ में ही दी गई मगर सेना ने चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर एक बार फिर से देश को सैन्य शासन की अंधेरी खाई में धकेल दिया है।

हालांकि, म्यांमार सेना को अमेरिका ने सीधी धमकी दी है तो भारत, ऑस्ट्रेलिया समेत यूनाइटेड नेशंस ने तख्तापलट की कड़ी आलोचना की है। ऐसे में देखना होगा कि इस बार सैन्य शासन कितने दिनों तक चलता है।

म्यांमार में 'मिलिट्री राज' का ऐलान: सबसे बड़ी नेता आंग सान सू गिरफ्तार, एक साल के लिए सेना का शासनम्यांमार में 'मिलिट्री राज' का ऐलान: सबसे बड़ी नेता आंग सान सू गिरफ्तार, एक साल के लिए सेना का शासन

Comments
English summary
Myanmar has been a country undergoing continuous military rule. Where in 1988 Myanmar leader Aung San Suu sowed the seeds of revolution.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X