क्यूबा क्या सीआईए और राजनयिकों की जासूसी कर रहा है?
एक रहस्यमयी परिस्थिति ने अमेरिका को परेशान कर रखा है. आख़िर वो क्या है जिसकी जांच के लिए अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन की खोज करने वाले सीआईए अधिकारी इसकी जांच की ज़िम्मेदारी सौंपी है.
दशकों की शत्रुता के बाद 2015 में अमेरिका और क्यूबा के बीच राजनयिक संबंध बहाल किए गए थे. लेकिन महज़ दो साल के भीतर हवाना सिंड्रोम की वजह से दूतावास को लगभग बंद कर दिया क्योंकि कर्मचारियों की सलामती को ध्यान में रखते हुए उन्हें वहां से हटा लिया गया.
हवाना सिंड्रोम पहली बार क्यूबा में 2016 में सामने आया. सबसे पहले मामले सीआईए अधिकारियों के थे, लिहाज़ा उन्हें गुप्त रखा गया. लेकिन बात बाहर निकल आई और फिर चिंता बढ़ गई. 26 लोगों और परिवारों ने विभिन्न प्रकार के इसके लक्षणों की रिपोर्ट की.
यह अक्सर एक आवाज़ के साथ शुरू होता जिसके बारे में बता पाना लोगों के लिए आसान नहीं होता था. वे बमुश्किल इसे भनभनाहट, धातुओं के पीटने या सूअर को भेदने पर निकलने वाली चीख जैसा कुछ बताते.
एक महिला ने इसे खोपड़ी में भनभनाने की धीमी आवाज़ के साथ बहुत तेज़ कसाव महसूस करने जैसा बताया. जिन लोगों को आवाज़ नहीं सुनाई पड़ती थी, उन्हें गर्मी और दबाव महसूस होता था. लेकिन जिन लोगों ने आवाज़ें सुनीं उन्होंने जब अपने कान ढके तो आवाज़ में कोई अंतर नहीं महसूस किया. इस सिंड्रोम का अनुभव करने वाले कुछ लोगों को महीनों तक चक्कर और थकान महसूस हुई.
शुरू-शुरू में ऐसी अटकलें थीं कि क्यूबा सरकार या दोनों देशों के संबंधों में सुधार का विरोध करने वाला एक कट्टर गुट इसके लिए ज़िम्मेदार हो सकता है जिसने किसी प्रकार का ध्वनि शस्त्र तैनात किया है, क्योंकि तब बड़ी तादाद में अमेरिकी लोगों के राजधानी में आने से घबराई क्यूबाई सुरक्षा सेवा शहर पर अपनी पकड़ मज़बूत बनाए रखना चाहती थी.
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दुनिया भर में पसरे अन्य मामलों के बीच वह सिद्धांत कहीं गुम पड़ गया.
लेकिन हाल ही में एक और संभावना सामने आई है जिसकी जड़ें न केवल शीत युद्ध तक पसरी हुई हैं बल्कि एक ऐसी जगह पर हैं जहां विज्ञान, चिकित्सा, जासूसी और भूराजनीति आपस में टकराती हैं.
जब इलिनॉय यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर जेम्स लिन ने हवाना में उन रहस्यमय आवाज़ों के बारे में पहली बार रिपोर्ट पढ़ी, तो उन्हें तुरंत संदेह हुआ कि इसके लिए माइक्रोवेव ज़िम्मेदार हैं. उनका यह विश्वास न केवल सैद्धांतिक शोध पर आधारित था बल्कि उनके प्रत्यक्ष अनुभव पर भी आधारित था. दशकों पहले उन्होंने ख़ुद ऐसी आवाज़ें सुनी थीं.
जब दूसरे विश्व युद्ध के आसपास इस तरह की आवाज़ें सुनने की पहली घटना हुई थी और ये ख़बरें आई थीं कि लोगों को कुछ सुनाई पड़ रहा है उस दौरान पास के एक रेडार को चालू करके आसमान में माइक्रोवेव भेजे गए थे. यह तब भी हुआ था जब कोई बाहरी शोर नहीं था. 1961 में डॉक्टर एलेन फ़्रे ने अपने एक शोध पत्र में यह तर्क दिया कि ये आवाज़ें इसलिए होती हैं क्योंकि माइक्रोवेव आपके नर्वस सिस्टम से बातें करते हैं. यहीं से फ़्रे इफे़क्ट शब्द का जन्म हुआ लेकिन इसके सटीक कारण और मायने अस्पष्ट रहे.
1978 में प्रोफ़ेसर लिन ने पाया कि वो अकेले नहीं हैं जो इसमें रुचि रखते हैं, उन्हें वैज्ञानिकों के एक समूह से अपने ताज़ातरीन पेपर पर चर्चा करने के लिए एक असामान्य निमंत्रण मिला. इस समूह के वैज्ञानिक अपना ख़ुद का प्रयोग कर रहे थे.
शीत युद्ध के दौरान, विज्ञान महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के केंद्र में था. यहां तक कि दिमाग़ को नियंत्रित करने जैसे विषयों पर भी शोध किए गए थे, दूसरी ओर किसी को बढ़त न मिल जाए इस आशंका के बीच माइक्रोवेव पर भी शोध किए गए थे.
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मास्को के दूतावास की वो घटना
बीबीसी ने 1976 में अमेरिकी रक्षा ख़ुफ़िया एजेंसी की रिपोर्ट ढूंढ निकाली जिसमें यह कहा गया है कि उसमें माइक्रोवेव हथियारों का कोई सुराग़ नहीं मिला. हालांकि इसमें ये कहा गया है कि माइक्रोवेव मेंढकों के गले पर तब तक कंपन करता है जब तक उनका दिल न रुक जाए.
इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि अमेरिका इस बात से चिंतित था कि सोवियत संघ कहीं माइक्रोवेव का उपयोग दिमाग़ को ख़राब करने या मनोवैज्ञानिक प्रभाव के लिए न कर ले.
उन्हें अपने शोध से यह पता चला कि सैन्य कर्मियों या राजनयिकों के व्यवहार के पैटर्न में बदलाव लाने या उसे बाधित करने के लिए इसके ज़रिए एक सिस्टम तैयार किया जा सकता है.
लगभग 25 वर्षों तक मास्को के 10 मंज़िला अमेरिकी दूतावास में एक निम्न-स्तरीय अदृश्य माइक्रोवेव बीम हमेशा बनाए रखी गई.
यह 'मास्को सिग्नल' के रूप में जानी जाने लगी. लेकिन कई वर्षों तक जो लोग उस इमारत में काम करते थे उनमें से ज़्यादातर को इसके बारे में कुछ पता नहीं था.
दूतावास के अधिकांश लोगों की नहीं थी जानकारी
यह बीम पास के सोवियत अपार्टमेंट की बालकनी पर एक एंटेना से आ कर दूतावास की ऊपरी मंज़िल से टकराते हुए जहां अमेरिकी राजदूत का ऑफ़िस था वहां तक जाती थी. इसे पहली बार 1950 के दशक में देखा गया था और बाद में 10वीं मंज़िल के एक कमरे से इसकी निगरानी की गई थी.
लेकिन इस रहस्य को अंदर काम करने वाले अधिकांश लोगों से पूरी तरह गुप्त रखा गया था, केवल कुछ लोगों को ही इसकी जानकारी थी.
लेकिन जब 1974 में नए राजदूत वाल्टर स्टोसेल जब यहां आए तो उन्होंने कहा कि इसे सब को बताया जाना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर उन्होंने इस्तीफ़ा देने की धमकी भी दी.
दूतावास के वो कर्मचारी जिनके बच्चे बेसमेंट की नर्सरी में थे वो इससे विशेष रूप से चिंतित हुए. लेकिन विदेश विभाग ने इससे किसी भी प्रकार के ख़तरे की आशंका को ख़ारिज कर दिया.
अमेरिकी राजदूत स्टोसेल ख़ुद बीमार पड़ गए. उनके लक्षणों में से एक उनकी आंखों से ख़ून का बहना था. 1975 में वॉशिंगटन में सोवियत संघ के राजदूत को अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने एक फ़ोन कॉल पर कहा कि स्टोसेल की बीमारी माइक्रोवेव से जुड़ी हुई है, "यह मानते हुए हम इस मामले को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं."
स्टोसेल की ब्लड कैंसर से 66 साल की उम्र में मौत हो गई. उनकी बेटी ने बीबीसी से कहा, "उन्होंने अच्छे सैनिक की भूमिका निभाने का फ़ैसला लिया और कोई हंगामा नहीं किया."
मॉस्को के सिग्नल किसके लिए थे?
1976 से दूतावास में लोगों की सुरक्षा के लिए स्क्रीन लगाई गई. लेकिन कई राजनयिक इससे नाराज़ थे क्योंकि विदेश विभाग इस पर पहले चुप रहा और यहां तक कहा कि इससे किसी भी प्रकार से स्वास्थ्य पर असर नहीं पड़ेगा. कई दशकों बाद हवाना सिंड्रोम में भी ऐसा ही दावा किया गया.
70 के दशक में अमेरिकी दूतावास में नंबर दो की भूमिका में जैक मैटलॉक थे. वे कहते हैं, ''मुझे पूरा यक़ीन है कि सोवियत संघ हमें नुकसान पहुंचाने के अलावा भी कुछ और करना चाहता था. वे सर्विलांस की तकनीक में हमसे आगे थे और तब के सिद्धांत में बातचीत सुनने के लिए माइक्रोवेव को खिड़कियों से उछाल दिया जाता था. दूसरा यह था कि वे बिल्डिंग के अंदर आवाज़ सुन सकने वाले डिवाइस को छिपा कर रख देते थे या अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को हिट करके (पीक ऐंड पोक तकनीक) माइक्रोवेव के ज़रिए जानकारी कैप्चर करते थे.''
सोवियत संघ ने एक बार मैटलॉक को बताया था कि इसका उद्देश्य वास्तव में दूतावास की छत पर अमेरिकी उपकरणों को जाम करना था जो मास्को में सोवियत संचार को बाधित करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे.
ब्रिटेन के एक ख़ुफ़िया अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि माइक्रोवेव का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से सिग्नल निकालने या उनकी पहचान करके ट्रैक करने के लिए किया जाता है.
अन्य यह अनुमान लगाते हैं कि शायद एक उपकरण ख़राब हो गया था और उसकी वजह से कुछ लोगों के शरीर में प्रतिक्रियाएं हुई हों.
हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों ने बीबीसी को बताया कि न तो कोई ऐसे उपकरणों की पहचान कर सका और न ही उन्हें बरामद ही किया गया.
थोड़ी ख़ामोशी के बाद, ऐसे मामले क्यूबा से बाहर भी मिलने लगे.
दिसंबर 2017 की घटना में, सीआईए के एक वरिष्ठ अधिकारी मार्क पॉलीमरियोपोलस मास्को के एक होटल के कमरे में अचानक जग गए. वे अपने रूसी समकक्ष से वहां मिलने आए थे.
उन्होंने बीबीसी को बताया, "मेरे कान में आवाज़ें आ रही थीं, सिर चकरा रहा था. मुझे लगा कि मैं उल्टी कर दूंगा. मैं खड़ा तक नहीं हो पा रहा था."
"यह डरावना था."
पहले हवाना केस के कई वर्षों बात यह देखने को मिला था, लेकिन सीआईए के एक मेडिकल ऑफ़िसर ने बताया कि उनके लक्षण क्यूबा के मामलों से मेल नहीं खाते. फिर शुरू हुआ एक लंबा चलने वाला इलाज. उनके सिर में तेज़ दर्द कभी ख़त्म नहीं हुआ और 2019 की गर्मियों में उन्हें अपनी नौकरी से जबरन रिटायर होना पड़ा.
पॉलीमरियोपोलस ने पहले सोचा कि वो किसी निगरानी उपकरण की चपेट में आ गए हैं, लेकिन जब और भी मामले सामने आए जो रूस में काम करने वालों से जुड़े थे तब उनका ये मानना था कि उन्हें एक हथियार से निशाना बनाया गया है.
जब चीन में यह घटना हुई
फिर चीन में 2018 की शुरुआत में ग्वांगझो के दूतावास में ऐसी ही घटना हुई.
चीन में प्रभावित कुछ लोगों ने कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन डिएगो की प्रोफ़ेसर बिट्रिस गोलोम्ब से संपर्क किया जो लंबे समय से माइक्रोवेव के स्वास्थ्य पर प्रभाव के साथ-साथ अन्य अस्पष्ट बीमारियों पर शोध कर रही हैं.
बीबीसी से वे बताती हैं कि उन्होंने जनवरी 2018 में स्टेट डिपार्टमेंट की मेडिकल टीम को इस पर विस्तार से लिखा था कि उन्हें क्यों लगा कि उस घटना के लिए माइक्रोवेव ज़िम्मेदार है.
गोलोम्ब कहती हैं कि ग्वांगझो में कर्मियों के परिवार के सदस्यों ने उच्चस्तरीय विकिरण को रिकॉर्ड किया था. जब यह रिकॉर्ड किया जा रहा था तब सुई मशीन में उपलब्ध टॉप रीडिंग से ऊपर पहुंच गई थी.
चीन के नौ मामलों में से केवल एक को शुरू में विदेश विभाग ने हवाना सिंड्रोम के मानदंडों से मेल खाता हुआ बताया. उस मामले में केस अभी जारी है.
क्या अमेरिका इसे गुप्त रखना चाहता है?
राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में विशेषज्ञता रखने वाले वकील और दो दर्जन सरकारी कर्मियों (जिनमें से आधे ख़ुफ़िया समुदाय से हैं) के लिए काम करने वाले मार्क ज़ैद सवाल करते हैं आख़िर सरकार इतने लंबे वक़्त से इसे स्वीकार करने में आनाकानी क्यों कर रही है. एक संभावना वे बताते हैं कि हो सकता है कि इससे उन घटनाओं का पिटारा खुल जाए जिसकी वर्षों से अनदेखी की गई है. एक कारण ये भी हो सकता है कि ख़ुद अमेरिका ने ऐसे उपकरण बनाए और उनकी तैनाती की हो और सरकार इसे गुप्त रखना चाहती हो.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 के दशक से अमेरिकी वायु सेना के पास हैलो नाम का एक प्रोजेक्ट था, यह देखने के लिए कि क्या माइक्रोवेव लोगों के दिमाग़ में परेशान करने वाली आवाज़ें पैदा करता है? इन्हें कोडनाम दिया गया था. 'गुडबाय' का उपयोग भीड़ को नियंत्रित करने में और 'गुडनाइट' का उपयोग लोगों को मारने के लिए किया जा सकता था.
एक दशक पुरानी रिपोर्ट में यह बताया गया है कि ये प्रयोग सफल नहीं रहे.
पेंटागन के सलाहकार और जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में न्यूरोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री के प्रोफ़ेसर जेम्स जियोर्डानो का तर्क है कि, "दुनिया 21वीं सदी में इंसानी दिमाग़ पर युद्ध में जुटी है. मस्तिष्क विज्ञान वैश्विक है. यह केवल पश्चिम तक ही नहीं सीमित है.
वे कहते हैं, ''चीन, रूस माइक्रोवेव पर शोध में जुटे हैं और इस बात की संभावना है कि औद्योगिक और व्यावसायिक उपयोग के लिए, जैसे कि वस्तुओं पर माइक्रोवेव के असर का परीक्षण करने के लिए, विकसित उपकरणों का फिर उपयोग किया जाए. लेकिन साथ ही कहीं इनका उद्देश्य कहीं व्यावधान पहुंचाना और डर फैलाना तो नहीं है.
यूसीएलए में न्यूरोलॉजी के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट डब्ल्यू बलोह लंबे वक़्त से अस्पष्ट स्वास्थ्य लक्षणों का अध्ययन कर रहे हैं. जब उन्होंने हवाना सिंड्रोम की रिपोर्ट देखी तो यह निष्कर्ष निकाला कि वो एक बड़े स्तर पर मनोवैज्ञानिक स्थिति थी. इसकी तुलना वो इससे करते हैं कि जब किसी को बताया जाता है कि उन्होंने ख़राब खाना खा लिया है और वे बीमार महसूस करने लगते हैं, जबकि खाने में ऐसा कुछ भी नहीं होता है.
वे कहते हैं, क्यूबा और दूतावास के कर्मचारियों के मामले में, ख़ास कर वो सीआईए एजेंट्स जो सबसे पहले प्रभावित हुए थे, वो निश्चित रूप से एक तनावपूर्ण स्थिति में थे.
मार्क ज़ैक सवाल करते हैं, "रूसियों ने हाल के वर्षों में रेडियोएक्टिव पदार्थों की मदद से ब्रिटिश धरती पर लोगों को मारने की कोशिश की है. फिर भी कोई मामला क्यों नहीं दर्ज किया गया."
जनवरी 2021 में इस्तीफ़ा देने से पहले अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी रह चुके बिल इवानिना कहते हैं, "मैं संभवतः इस बयान पर विराम लगा दूंगा कि यूके में कोई लक्षण नहीं मिले हैं."
वे बताते हैं कि अब मामलों का पता लगाने के लिए अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ सभी विवरण साझा कर रहा है.
इस मुद्दे पर बाइडन प्रशासन गंभीर
बाइडन प्रशासन ने संकेत दिए हैं कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहा है.
सीआईए और विदेश विभाग के अधिकारियों को सलाह दी जाती है कि किसी घटना पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए. विदेश विभाग ने कर्मचारियों की सहायता के लिए टास्क फ़ोर्स का गठन किया है. जिसे अब "अस्पष्ट स्वास्थ्य मामले" कहा जा रहा है.
इस साल ऐसे मामलों की एक नई लहर आई है जिसमें बर्लिन और वियना में मिला एक बड़ा समूह है. अगस्त में अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की वियतनाम यात्रा में हनोई के दूतावास में रिपोर्ट किए गए ऐसे ही एक मामले की वजह से तीन घंटे की देरी हुई.
अब विदेशी कार्यभार पर जाने से पहले राजनयिक अपने परिवारों को साथ ले जाने से पहले सवाल पूछ रहे हैं.
सीआईए ने ओसामा बिन लादेन की खोज करने वाले एक अनुभवी अधिकारी को इस मामले की तह तक पहुंचने का ज़िम्मा सौंपा है.
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