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गल्फ़ स्काईः कहानी उस जहाज़ की जो यूएई से लापता होकर ईरान में मिला

इस जहाज पर सवार चालक दल के सभी नाविक भारतीय नागरिक थे. उन्हें अग़वा करके ईरान ले जाया गया था.

By BBC News हिन्दी
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जुलाई 2020 में ऑयल टैंकर गल्फ़ स्काई संयुक्त अरब अमीरात के क़रीब समंदर में ग़ायब हो गया था. उसके चालक दल की भी कोई ख़बर नहीं थी.

कई दिन बाद ये ईरान में सामने आया. अब शक़ है कि ये 'घोस्ट शिप' की तरह काम कर रहा है और इसके ज़रिए ईरान प्रतिबंधों का उल्लंघन कर तेल निर्यात कर रहा है.

पहली बार इसके चालकदल में शामिल आठ लोगों ने बीबीसी से बात की है. इनमें से कैप्टन को छोड़कर सभी ने अपना नाम न छापने की गुज़ारिश की है.

संयुक्त अरब अमीरात के तट पर सांझ हो रही थी. कैप्टन जोगिंदर सिंह इंतज़ार कर रहे थे.

उनका जहाज़ गल्फ़ स्काई लंगर डाले खड़ा था. इसके मौजूदा और पूर्व मालिक के बीच क़ानूनी लड़ाई चल रही थी.

कैप्टन सिंह को जब इसकी कमान सौंपी गई थी तो उन्हें भरोसा दिया गया था कि जल्द ही ये जहाज़ फिर से सफ़र पर होगा.

दिनों का इंतज़ार हफ़्ते और फिर महीनों में बदल गया. चालक दल में शामिल सभी भारतीय नाविकों के लिए खाने-पीने की चीज़ों की किल्लत होने लगी, इंटरनेट बीच-बीच में कटने लगा.

महामारी का समय था. चालक दल को अरब अमीरात में दाख़िल होने की अनुमति भी नहीं थी.

चालक दल के लिए हालात तब और मुश्किल हो गए जब अप्रैल से उनका वेतन आना भी बंद हो गया.

उस दिन, पांच जुलाई को, कैप्टन सिंह नई शुरुआत का इंतज़ार कर रहे थे. जहाज़ के मालिकों ने टैंकर के सर्वेक्षण के लिए दल को बुलाया था ताकि उसे नए काम पर लगाया जा सके.

जब अंधेरे में एक छोटी नाव जहाज़ की तरफ़ बढ़ती दिखाई दी तो कैप्टन ने गैंगवे को नीचे उतरवा दिया और उन लोगों से मिलने की तैयारी की.

कैप्टन कहते हैं कि शुरुआत में सब सामान्य लग रहा था. उस दल में सात लोग थे जिनके हाथों में दस्तावेज़ थे. उन्होंने जहाज़ का निरीक्षण किया.

एक घंटे तक सर्वे करने के बाद उस समूह के प्रमुख ने चालक दल के सभी 28 सदस्यों से जहाज़ की मेस में इकट्ठा होने के लिए कहा. वो क़रीब 60 साल का दोस्ताना व्यवहार वाला व्यक्ति था.

सर्वे प्रमुख ने कहा कि जहाज़ को एक तेल भंडार कंटेनर में बदल दिया जाएगा. उन्होंने चालक दल को अतिरिक्त वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव भी दिया लेकिन दल के सिर्फ़ दो सदस्यों ने इसके लिए हामी भरी.

अब तक आधी रात हो चुकी थी. कैप्टन सिंह ने अपने दल के सदस्यों से सोने जाने के लिए कहा लेकिन तब ही अचानक काली पोशाक पहने और हाथों में राइफ़ल लिए तीन लोग हॉल में दाख़िल हुए और सभी से फ़र्श पर लेटने के लिए कहा.

सर्वे दल के प्रमुख ने कहा, ''हम आपको चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं लेकिन अगर जरूरी हुआ तो हम हिचकेंगे नहीं.''

उसने कहा, ''अमेरिका ने इस जहाज़ को चुरा लिया था और अब हम इसे वापस हासिल कर रहे हैं.''

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'तुम हमारी दया पर ज़िंदा हो'

एक नाविक बताते हैं, ''शुरुआत में हमें लगा कि वो समुद्री डाकू हैं लेकिन वो बहुत पेशेवर थे और वो अच्छी तरह जानते थे कि वो क्या कर रहे हैं.''

नाविकों के मुताबिक जल्द ही अपहरणकर्ताओं ने चालक दल के सदस्यों के हाथ बांध दिए और उनकी जेबों में जो कुछ भी था छीन लिया.

चालक दल के कुछ सदस्यों ने अपनी जान की गुहार लगाई तो उनके पेटों में लातें मारी गईं.

नाविक याद करते हैं, इसके क़रीब एक घंटे बाद जहाज़ का लंगर उठा लिया गया और उसके इंजन को स्टार्ट कर दिया गया. ये जहाज़ अब सफ़र पर था.

खोर फ़त्तन से लंगर उठाने के बाद गल्फ़ स्काई लगातार 12 घंटों तक चलता रहा. जब जहाज़ रुका तो चालक दल के सदस्यों के हाथ खोल दिए गए और उन्हें दूसरे कमरे में ले जाया गया. इसे ऑफ़िसर्स मेस कहते हैं. यहां खिड़कियां कार्डबोर्ड से बंद थीं.

चालक दल के सदस्यों के मुताबिक उन्हें कई दिन तक गार्डों की निगरानी में रखा गया जो अरबी भाषा बोल रहे थे. जब कई दिन बाद उन्हें कमरे से बाहर निकलने दिया गया और खाना बनाने की अनुमति मिली तो उन्होंने जहाज़ पर नए लोगों को देखा.

चालक दल के सदस्य के मुताबिक उसे किचन में एक व्यक्ति मिला जिसने बताया कि वो अज़रबैजान से है. कुछ का कहना है कि उन्होंने जहाज़ पर लोगों को फ़ारसी ज़बान में बात करते हुए सुना था.

चालक दल के कई सदस्यों का कहना है कि कुछ दिनों के लिए जहाज पर एक दूसरा साठ साल का व्यक्ति था जो उनके साथ मेस में खाना भी खाता था. वो किसी से बात नहीं करता था, ऐसा लगता था कि वो वो जहाज़ पर चीज़ों का प्रबंधन कर रहा था.

एक अन्य नाविक के मुताबिक उस व्यक्ति के पास बंदूक थी, लेकिन उसने कभी किसी को डराया नहीं.

चालक दल के एक सदस्य के मुताबिक एक बार उस व्यक्ति ने कहा था, 'हमें तुम लोगों से कोई शिकायत नहीं है. हमने पैसा चुकाया था और अब हमारा पैसा आना बंद हो गया है. ये हमारी ग़लती नहीं है.'

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''समस्या ये है कि कोई भी देश तुम्हें लेना नहीं चाहता है, तुम्हारा अपना देश भी तुम्हें स्वीकार नहीं कर रहा है. तुम अब हमारी दया पर ज़िंदा हो.''

दिन बीत रहे थे और चालक दल के सदस्यों का डर बढ़ता जा रहा था.

''कई बार हमें लगता था कि वो हमें मार देंगे और हम अपने परिवार को दोबारा नहीं देख पाएंगे.''

चालक दल के सदस्यों से ख़ामोश रहने के लिए कहा गया था, लेकिन वो समय काटने के लिए जहाज़ के गार्डों से बातें किया करते थे.

ऐसी ही एक बातचीत को याद करते हुए एक नाविक कहते हैं, ''मैं जानता हूं कि तुम बहुत अच्छे आदमी हो और तुम चालक दल के साथ रहते हो. लेकिन अगर तुमने कुछ ग़लत किया तो मैं वहीं करूंगा जो मुझे आदेश दिया गया है.''

''मैं तुम्हें पसंद करता हूं और इसलिए मैं तुम्हें ये तय करने का विकल्प दे सकता हूं कि तुम कैसे मरना चाहोगे. मैं तुम्हारा गला काट सकता हूं या सिर में गोली मार सकता हूं.''

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ख़ुशक़िस्मती से चालक दल के सदस्यों के सामने ये विकल्प चुनने का वक्त नहीं आया.

14 जुलाई के शुरुआती घंटों में गार्ड चालक दल के लोगों को डेक पर ले आए. नाविकों ने तट पर चमकती कृत्रिम रोशनी को तुरंत पहचान लिया. ये दक्षिणी ईरान का बंदर अब्बास शहर था.

चालक दल के आंखों पर पट्टी बांध दी गई और हाथ बांध दिए गए. उन्हें एक लकड़ी की नाव पर बिठाया गया. इससे पहले वो गल्फ़ स्काई के नाम पर पुती कालिख को देख चुके थे.

इन लोगों का कहना है कि तट पर पहुंचने के बाद उन्हें एक एयरफ़ील़्ड में ले जाया गया. जब उनकी आंखों से पट्टियां उतारी गई तो वो एक सैन्य विमान में थे. ये विमान उन्हें तेहरान लेकर गया.

यहां से उन्हें एक बस में भरकर इमाम ख़मेनई एयरपोर्ट के पास ले जाया गया. चालक दल के मुताबिक तीन आदमी उनकी बस में सवार हुए जिन्होंने अपना परिचय भारतीय दूतावास के अधिकारियों के रूप में देते हुए पूछा कि आप लोग कौन हैं और ईरान में क्या कर रहे हैं.

कैप्टन सिंह ने इन लोगों को हाइजैकिंग के बारे में बताया. चालक दल के सदस्य याद करते हं कि ये सुनकर ये तीनों लोग भौचक्के रह गए थे.

अधिकारियों ने चालक दल के सदस्यों को बताया कि उनके घर जाने के लिए टिकट की व्यवस्था कर दी गई है. दो को छोड़कर सभी को उनके पासपोर्ट दे दिए गए. इनके पासपोर्ट का नवनीकरण होना था.

ये दोनों लोग अधिकारियों के साथ चल गए जबकि बाकी नाविकों को उड़ान में बिठा दिया गया. ये सामान्य नागिक उड़ान थी. इन नाविकों ने आम यात्रियों के साथ बैठकर सफर किया.

15 जुलाई को ये नाविक दिल्ली पहुंचे. पीछे रह गए दोनों नाविक 22 जुलाई को भारत पहुंचे.

घर भेजे जाने से पहले भारतीय अधिकारियों ने उन्हें सुरक्षा कारणों से होटलों में रखा.

एक नाविक ने बीबीसी को बताया, ''हमसे कहा गया था कि हम होटल से बाहर नहीं जा सकते हैं क्योंकि जहाज़ पर सवार रहे लोग हमें खोज सकते हैं.''

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'सब जानते थे कि वो एक ईरानी जहाज़ है'

इस घटना को हुए एक साल से अधिक वक्त हो गया है. जहाज़ के चालक दल के सदस्य आज भी ये नहीं समझ पाए हैं कि इस जहाज़ को क्यों अग़वा किया गया था.

इन कर्मचारियों का दावा है कि जब से ये जहाज़ यूएई में खड़ा था तब से उनके क़रीब दो लाख डॉलर वेतन का भुगतान नहीं किया गया है.

ब्रितानी संस्थान ह्यूमन राइट्स एट सी से जुड़े डेविड हेमंड कहते हैं, ''नाविक इस चेन में सबसे नीचे होते हैं. उनके पास मौजूदा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत मूल मानवाधिकार और श्रम अधिकार होने चाहिए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय क़ानून को प्रभावी तरीके से लागू करने एक चुनौती है.''

जब जहाज़ को अग़वा किया गया था तब वह कॉमनवेल्थ ऑफ़ डोमीनिका के झंडे तले थे. डोमीनिका का कहना है कि वह नाविकों का बकाया वेतन दिलाने के लिए प्रयास कर रहा है. इन नाविकों को नौकरी पर रखने वाली कंपनी सेवन सीज़ नेविगेशन का भी कहना है कि वह उनका वेतन दिलवाने में जुटी है.

सवाल यह भी है कि गल्फ़ स्काई का क्या होगा. अभी ये स्पष्ट नहीं है कि ये जहाज़ कहां है या इसका किसलिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

लेकिन जो भी सीमित जानकारी इसके बारे में हमारे पास है उससे ये संकेत मिलते हैं कि इसे अग़वा क्यों किया गया था.

रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि हाईजैक के बाद कई सप्ताह तक इस जहाज़ के ट्रांस्पॉन्डर बंद रहे. अगस्त 2020 में जब इसके ट्रांस्पॉन्डर ऑन हुए तो ये फ़ारस की खाड़ी में था.

अब इस जहाज़ का नाम रीमा रख दिया गया है और ये डोमीनिका के बजाए ईरान के झंडे के साथ सफ़र कर रहा है. इसका मतलब ये है कि अब इस जहाज़ पर ईरान का क़ानून लागू है.

अब इसका मालिकाना हक़ भी बदल गया है और तेहरान स्थित एक खनन कंपनी इसकी स्वामी है- इस कंपनी का नाम एमटीएस या मोश्ताग तिजारत सनात है.

अगस्त 2020 में इस जहाज़ ने फ़ारस की खाड़ी में सफ़र किया और जब इसका ट्रांस्पॉन्डर बंद किया गया तो यह बंदर बुशहर से 60 किलोमीटर दूर दक्षिण में था. यह ईरान का प्रमुख बंदरगाह शहर है.

लॉयड्स लिस्ट इंटेलिजेंस से जुड़े माइकल बॉकमैन कहते हैं कि उन्हें लगता है कि ये जहाज़ अभी भी फ़ारस की खाड़ी में सक्रिय है और ईरान के घोस्ट फ़्लीट का हिस्सा है.

उनका मानना है कि इस जहाज़ के ज़रिए ईरान प्रतिबंधों का उल्लंघन करके दुनियाभर में तेल पहुंचा रहा है.

बोकमैन ने बीबीसी से कहा, 'इसका ट्रांस्पॉन्डर बंद है इसका मतलब ये है कि अब ये मदर शिप बन गया है. इसमें क्रूड ऑयल भरा जा रहा है और इससे दूसरे जहाज़ों के बीच क्रूड ऑयल पहुंचाया जा रहा है. यदि यह ईरान के जलक्षेत्र के बाहर आएगा तो इसकी पहचान हो जाएगी. सब जानते हैं कि यह अब एक ईरानी जहाज़ है.''

हालांकि हाइजैक किए जाने से पहले भी अमेरिकी अधिकारी मानते थे कि इस जहाज़ का संबंध ईरान से है.

इसके तत्कालीन स्वामी ताइफ़ माइनिंग सर्विसेज़ (टीएमएस) ने इसे ग्रीस की एक कंपनी से साल 2019 में ख़रीदा था. लेकिन इस जहाज़ को सौंपे जाने के बाद इसकी ख़रीद से जुटे सभी पैसे को अमेरिका ने ज़ब्त कर लिया था.

अमेरिका के न्याय विभाग ने दो ईरानी नागरिकों पर टीएमसी की तरफ़ से ईरान की सरकार के लिए जहाज़ ख़रीदने का मुक़दमा दर्ज किया है. ये ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन है.

इन ईरानी नागरिकों में से एक आमिर दियानात एमटीएस के निदेशक हैं. एमटीएस हाइजैकिंग प्रकरण के बाद से जहाज़ के नए मालिक हैं.

हमने टीएमएस और एमटीएस से प्रतिक्रिया लेनी चाही, लेकिन किसी ने भी जवाब नहीं दिया है.

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बीबीसी से बात में गल्फ़ स्काई के नाविकों का कहना था कि वो ऐसी शक्तियों के शिकार बने हैं जो उनके नियंत्रण से बाहर हैं.

अभी भी कई सवाल हैं जो उनके ज़ेहन में कौंधते हैं. उनका जहाज़ इतनी आसानी से यूएई के बाहर कैसे जा सका, ईरान ने उसे सुरक्षित ठिकाना क्यों दिया. यदि तत्कालीन मालिक कंपनी टीएमएस ने सर्वेक्षण करने वाले दल को बुलाया था तो क्या वह हाईजैक में शामिल थे.

सेवन सीज़ नेवीगेशन ने सवाल उठाया है कि यूएई को जहाज़ के लापता होने के बारे में जानकारी देने में इतना समय क्यों लगा?

निदेशक शेख़ शकील अहमद कहते हैं कि उसी रात उनका नाविकों से संपर्क टूट गया था और अगले दिन उन्होंने इस बारे में बंदरगाह के अधिकारियों को सूचना दी थी.

बीबीसी ने जो आदान-प्रदान देखा है उसके मुताबिक हाइजैक के कई दिन बाद भी उन्हें बंदरगाह के अधिकारियों ने बताया था कि जहाज़ अभी भी लंगर डाले खड़ा है. इसके तीन दिन बाद संयुक्त अरब अमीरात ने जहाज़ के लापता होने का मामला दर्ज किया.

यूएई के समुद्री परिवहन मामलों का विभाग के प्रमुख कैप्टन अब्दुल्ला अल हयास कहते हैं कि ये इस बात का सबूत नहीं है कि उनका देश भी इसमें शामिल था.

वो कहते हैं कि जब ये जहाज़ बंदरगाह प्रशासन के रडार से लापता हो गया तो इसे खोजने के लिए दस्तावेज़ों की जांच नहीं की गई थी.

नाविकों के अपने सवाल है, लेकिन हर किसी को उनकी बताई कहानी पर भरोसा नहीं है.

उन्हें लगता है कि ये नाविक भी पूरे प्रकरण का हिस्सा हो सकते हैं.

कैप्टन अब्दुल्ला कहते हैं, ''हम ख़ुश हैं कि वो अपने घर पहुंच गए हैं लेकिन अभी बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं.''

एक चिंता ये भी है कि ये जहाज़ कथित हाइजैक के बाद इतनी तेज़ी से सफ़र कैसे कर सका. आमतौर पर इतने बड़े जहाज़ का लंगर उठाने में और इंजन चालू करने में ही काफ़ी वक़्त लग जाता है.

शकील कहते हैं, ''जहाज़ का इंजन भी ख़राब हो गया था और उसकी कई महीनों से अधिकारिक तौर पर मरम्मत भी नहीं हुई थी.''

वो मानते हैं किसी भी हाइजैक करने वालों को इस जहाज़ को चालू करने में चालक दल के सदस्यों की मदद की ज़रूरत पड़ी होगी. इंजन को पहले से तैयार रखा गया होगा और ये जांचा परखा गया होगा कि ये जहाज़ ईरान तक पहुंच पाएगा या नहीं.

बीबीसी से बात करने वाले चालक दल के सदस्यों का कहना है कि उन्होंने हाइजैक करने वालों की कोई मदद नहीं की थी.

एक नाविक कहते हैं, ''ये शर्मनाक है. जिस आदमी का दिमाग़ ठीक होगा वो हम पर ऐसे आरोप नहीं लगाएगा. अगर हम शामिल थे और ईरान ने हमें पैसे दिए हैं तो फिर आज हम अपने वेतन के लिए क्यों लड़ रहे हैं.''

ग्लफ़ स्काई कहां है ये पता नहीं है और इसके पूर्व मालिक जवाब देने से बच रहे हैं. ऐसे में नाविकों का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि उन्हें कुछ ठोस हासिल हो पाएगा.

बीबीसी ने जिन नाविकों से बात की थी वो अब काम पर लौट चुके हैं. ये लोग दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जहाज़ों पर काम कर रहे हैं. लेकिन उनके लिए ये फ़ैसला लेना आसान नहीं रहा है.

कैप्टन सिंह कहते हैं, ''मैं चिंतित हूं. अब मैं कहीं भी सुरक्षित महसूस नहीं करता हूं. लेकिन मेरे पास अपने बच्चों का पेट भरने का और कोई रास्ता भी नहीं है. ये ही एक काम है जो मुझे आता है.''

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