
सोना समझकर जिस पत्थर को वर्षों तक सहेजकर रखा, वह और भी अनमोल और दुर्लभ निकला
ऑस्ट्रेलिया में एक व्यक्ति को सोने की खदान से 17 किलो का एक पत्थर मिला। उसपर सुनहरे रंग की मौजूदगी की वजह से उसे जरा भी संदेह नहीं था कि वह सोना नहीं है। उसे अपने हाथ सोने का खजाना लगने का अनुभव हो रहा था। लेकिन, वर्षों गुजर गए, वह उस चट्टान के टुकड़े को तोड़ नहीं पाया। उससे जितना भी जतन हो सकता था, सब किया लेकिन पत्थर नहीं तोड़ पाया। वर्षों बाद वह मायूस होकर उस टुकड़े को म्यूजियम वालों को देने पहुंचा। वहां मौजूद जियोलॉजिस्ट उसकी पड़ताल में जुटे। प्रोफेशनल तरीके से उसपर रिसर्च करना शुरू किया। अंत में पता चल गया कि वह चीज है क्या ? वह सोने से कहीं ज्यादा मूल्यवान चीज निकली, जो तीसरी दुनिया से धरती पर पहुंची है।

पत्थर से सोना निकालने की कोशिश में जुटा था शख्स
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के पास 2015 में डेविन होल नाम के एक शख्स अपने खोजी अभियान में लगे हुए थे। घटना मैरीबोरो रीजनल पार्क की है। वहां पर उन्हें एक असामान्य सा पत्थरनुमा कोई चीज दिखी। इस काम के लिए वह मेटल डिटेक्टर का इस्तेमाल करते थे। उन्हें वहां एक बड़ा लाल रंग का पत्थर जैसा कुछ मिला था, जिसपर पीले रंग जैसा कुछ फैला हुआ था। मैरीबोरो ऑस्ट्रेलिया की वह जगह है, जहां सोने की खदान है। 19वीं सदी में यहां खोने की खूब खुदाई होती थी। इसलिए उन्हें विश्वास हो गया कि यह पत्थर असल में सोना ही है। सोना निकालने के लिए वह तभी से इसे तोड़ने की कोशिशों में जुट गए।

अनमोल और दुर्लभ उल्का पिंड मिला
उन्होंने पार्क से मिले चट्टान के टुकड़े को आरी से काटना चाहा, ड्रिल करने की कोशिश की और यहां तक कि एसिड में भी डुबो दिया। लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिली। क्योंकि, वह गलत थे। उन्हें जो चीज मिली थी, वह इस दुनिया से बाहर की चीज थी। खैर, वर्षों बाद होल उस पत्थर की पहचान के लिए उसे मेलबर्न म्यूजियम लेकर पहुंचे। वहां उन्हें मालूम पड़ा कि वह जिस पत्थर से सोना निकालने के फिराक में थे, वह दरअसल उससे भी अनमोल और दुर्लभ चीज है। वह सोना नहीं, उससे भी मूल्यवान उल्का पिंड है। क्योंकि, उसमें जो तत्व मौजूद हैं, वह धरती पर नहीं मिलते।

460 करोड़ साल पुराना है उल्का पिंड
म्यूजियम के एक जियोलॉजिस्ट डर्मोट हेनरी ने दावा किया कि उनके 37 साल के कार्यकाल में उन्हें सिर्फ दो ही असली उल्का पिंड हाथ लगे हैं, जिसमें से एक होल लेकर पहुंचे थे। 460 करोड़ साल पुराने इस उल्का पिंड को मैरीबोरो नाम दिया गया, क्योंकि यह उसी स्थान से मिला था। इस खोज के बारे में शोधकर्ताओं ने एक वैज्ञानिक शोध प्रकाशित की है। शोधकर्ताओं ने इस उल्का पिंड की बनावट के बारे में जानने के लिए हीरे की आरी का इस्तेमाल किया। इसके पतले टुकड़े निकाले। मैरीबोरो एक विशाल एच5 ऑर्डिनरी क्रोंड्राइट (chondrite) है, जिसका वजन 17 किलो ग्राम है। इसकी परत निकालने पर धात्विक खनीजों के छोटे-छोटे क्रिस्टल ड्रॉप कोंडरुल्स (chondrules) दिखते हैं। इसमें लोहा भी है।

उल्का पिंड आकाशगंगा को समझने का जरिया- वैज्ञानिक
हेनरी के मुताबिक उल्का पिंड अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च करने के सबसे सस्ते साधन हैं। उनका दावा है कि कुछ उल्का पिंड हमें हमारे सोलर सिस्टम से भी पुराने अंतरिक्ष की जानकारी देते हैं। यह बता सकते हैं कि तारे कैसे पैदा हुए और कैसे उनका विकास होता है। एक्सपर्ट का मानना है कि मैरीबोरो उल्का पिंड का मूल्य सोने से कहीं ज्यादा हो सकता है, क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा दुर्लभ है। ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में अबतक सिर्फ 17 उल्का पिंड मिले हैं, जिसमें से यह दूसरा सबसे बड़ा क्रोंड्राइट का टुकड़ा है। 2003 में एक और उल्का पिंड मिला था, वह 55 किलोग्राम का था। (ऊपर की तस्वीरें- प्रतीकात्मक)
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इस उल्का पिंड पर और शोध की आवश्यकता
डर्मोट के मुताबिक उल्का पिंडों में कई बार जीवन के संकेत छिपे होते हैं, जो अमीनो एसिड के रूप में होते हैं। हालांकि, वैज्ञानिक अभी तक यह जानकारी नहीं जुटा पाए हैं कि मैरीबोरो उल्का पिंड आकाशगंगा के किस क्षेत्र से धरती पर आया है। वैसे अनुमान लगाया जा रहा है कि यह बृहस्पति और मंगल के बीच चक्कर काट रहे उल्का पिंडों के किसी समूह से छिटक कर धरती पर आ गिरा हो। लेकिन, इसकी पुष्टि के लिए अभी बहुत ज्यादा रिसर्च की आवश्यकता है।