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Global Warming का जवाब मिला, बड़ी टेंशन खत्म! जानें Brown Algae में है कितनी क्षमता ?

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ग्लोबल वार्मिंग का प्राकृतिक समाधान हो सकता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों की एक नई रिसर्च ने इसकी उम्मीद बढ़ा दी है। उन्होंने भूरे शैवाल की एक प्रजाति पर रिसर्च किया है, जो ना सिर्फ वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेता है, बल्कि वह उसे पोषक गुणों से भरपूर कार्बोबाइड्रेट में भी बदल देता है और वापस पानी में छोड़ता रहता है। अभी भूरे शैवाल की सिर्फ एक प्रजाति पर हुए शोध का ये नतीजा है। वैज्ञानिक बाकियों पर भी अलग-अलग क्षेत्रों में उनकी क्षमता परखने की कोशिश कर रहे हैं। अगर यह सफल रहा तो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु संकट जैसी परेशानियों से काफी हद तक राहत मिल सकती है।

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भूरा शैवाल कार्बन डाइऑक्साइड सोखने में सक्षम-रिसर्च

भूरा शैवाल कार्बन डाइऑक्साइड सोखने में सक्षम-रिसर्च

एएफपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी के वैज्ञानिकों ने हाल ही में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए हाल ही में एक शोध किया है। इसमें उन्हें भूरे शैवाल (Brown Algae) में बहुत ही ज्यादा क्षमता दिखी है। इस रिसर्च का नतीजा ये रहा है कि भूरे शैवाल में हर साल 0.55 गीगाटन तक वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की क्षमता है। जाहिर है कि इसपर रिसर्च ने दुनिया के हाथों में एक बहुत बड़ी संभावना थमा दी है। क्योंकि, जिसका हल खोजना लगभग नामुकिन हो गया था, उसका बहुत ही सामान्य उपाय प्रकृति ने ही इंसानों को दे रखा है।

समुद्री जलवायु में पैदा होता है भूरा शैवाल

समुद्री जलवायु में पैदा होता है भूरा शैवाल

भूरा शैवाल मूल रूप से समुद्री पर्यावरण में पैदा होता है। यह क्लोरोफिल और 'fucoxanthin' नाम के पिगमेंट से बना होता है। इसमें वातावरण से बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की क्षमता है, जिसे यह कार्बोहाइड्रेट में बदलकर वापस पानी में छोड़ देता है। बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को खत्म करने के गुण के कारण यह जलवायु संकट से निपटने के लिए बहुत बड़ा कारगर हथियार हो सकता है।

प्रतिदिन 0.3% बायोमास छोड़ता है

प्रतिदिन 0.3% बायोमास छोड़ता है

भूरे शैवाल में मौजूद CO2 खत्म करने की क्षमता की ज्यादा सटीक डेटा हासिल करने के लिए जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मरीन माइक्रोबायोलॉजी ने bladderwrack का सूक्ष्म विश्लेषण किया है। यह भूरे शैवाल की एक प्रजाति है, जो चट्टानों पर पाया जाता है और इसकी लंबाई 30 सेटींमीटर तक हो सकती है। यह रिसर्च फिनलैंड के दक्षिण-पश्चिम इलाके में स्थित Tvärminne जूलॉजिकल स्टेशन में की गई है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने पदार्थों को अलग करने वाली एक तकनीक का इस्तेमाल किया और पाया कि बाल्टिक सागर के पास यह प्रतिदिन अपना करीब 0.3% बायोमास fucoidan के रूप में छोड़ रहा था, जो कि एक पोषक तत्व है, जिसके कई तरह के लाभ हैं।

भूरा शैवाल एक साल में 55 करोड़ टन CO2 सोखने में सक्षम-रिसर्च

भूरा शैवाल एक साल में 55 करोड़ टन CO2 सोखने में सक्षम-रिसर्च

जब इस स्राव को सालाना आधार पर आंका गया तो पाया गया कि भूरा शैवाल एक साल में 55 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में बदलता है। एक बयान में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता और इस शोध के को-ऑथर हैगेन बक-वाइज ने कहा, 'हमने भूरे शैवाल की जिस प्रजाति ( bladderwrack) का अध्ययन किया, उसमें fucoidan लगभग आधा था.....' जर्मन फेडरल एंवाइरन्मेंट एजेंसी के अनुमानों के अनुसार 2020 में जर्मनी के सालाना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 0.74 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद था।

जलवायु संकट के लिए लंबे समय के लिए मददगार है भूरा शैवाल-शोधकर्ता

जलवायु संकट के लिए लंबे समय के लिए मददगार है भूरा शैवाल-शोधकर्ता

जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में यह भी कहा गया है कि भूरे रंग के शैवाल (Fucus vesiculosus) बिना अपने विकास को बाधित किए वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में सक्षम है। शोधकर्ता का तर्क है कि 'इसकी वजह से खासकर भूरा शैवाल वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड खत्म करने में लंबे समय तक या सैकड़ों-हजारों साल तक मददगार साबित हो सकता है।'

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'भूरे शैवाल में जो जलवायु संरक्षण की महान क्षमता है'

'भूरे शैवाल में जो जलवायु संरक्षण की महान क्षमता है'

अब शोधकर्ताओं की योजना है कि भूरे शैवाल की बाकी प्रजातियों पर भी अन्य स्थानों पर रिसर्च किया जाए। लक्ष्य सिर्फ एक है- 'भूरे शैवाल में जो जलवायु संरक्षण की महान क्षमता है' उसका पूर्ण इस्तेमाल किया जा सके। वैज्ञानिकों के इस प्रयास में काफी दम नजर आ रहा है। यह मानवता की रक्षा के लायक रिसर्च है। जिसपर आगे जल्द और तेजी से अमल शुरू किए जाने की आवश्यकता लग रही है।

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English summary
German scientists have found in a research that brown algae have great potential to absorb carbon dioxide from the environment and convert it into carbon dioxide. This is great research for global warming
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