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इमरान की ललकार, शहबाज शरीफ लाचार... क्या पाकिस्तान चुनाव कराने का जोखिम उठा सकता है?

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 3 अरब डॉलर के आसपास है और पिछले कई महीनों से पाकिस्तान ने विदेशी सामानों की खरीददारी बंद कर रखी है। कुछ मंत्री दबी जुबान देश के डिफॉल्ट होने की बात भी स्वीकार कर रहे हैं।

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Pakistan News: पाकिस्तान में आम चुनाव कराने की मांग लगातार जोर पकड़ती जा रही है और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों का मानना है, कि देश को गंभीर राजनीतिक और आर्थिक संकट से बाहर निकालने का एकमात्र तरीका देश में आम चुनाव कराना ही है। उनका तर्क है, कि एक राजनीतिक दल या गठबंधन के लिए एक नया जनादेश, देश का भला करेगा। हालांकि, क्या पाकिस्तान में चुनाव कराना इतना आसान है, जितनी आसानी से इमरान खान कह रहे हैं? क्या पाकिस्तान के पास चुनाव में खर्च करने के लिए पैसे हैं? या फिर शहबाज शरीफ का डर कुछ और है? आइये जानने की कोशिश करते हैं।

चुनाव से शहबाज को क्यों है डर?

चुनाव से शहबाज को क्यों है डर?

पिछले साल अप्रैल महीने में जब इमरान खान को सत्ता से बाहर किया गया था, उसके बाद से ही वो लगातार आम चुनाव की मांग को लेकर रैलियां निकाल रहे हैं। लेकिन, प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की अध्यक्षता वाली मौजूदा 'पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट' (PDM) सरकार, इमरान खान की मांग को स्वीकार करने के मूड में नहीं है, शायद इस डर से, कि पूर्व प्रधानमंत्री सत्ता में वापस आ सकते हैं। इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था और सत्ता से हटने से पहले इमरान खान ने भी जमकर ड्रामे किए थे, लेकिन अंत में उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा और अमेरिका पर उन्हें हटाने का आरोप लगाया।

वहीं, एक साल बाद जब देखते हैं, तो पता चलता है, कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के चेयरमैन और पूर्व क्रिकेट स्टार इमरान खान लोकप्रियता के घोड़े पर सवार हैं। ओपिनियन पोल्स में इमरान खान की पार्टी को बहुमत मिलता दिख रहा है। जबकि, दूसरी तरफ शहबाज शरीफ देश भी गंभीर आर्थिक संकट से निकालने के लिए संघर्ष करते दिख रहे हैं। अभी तक आईएमएफ से लोन को लेकर बातचीत फाइनल नहीं हो पाई है। लिहाजा, आर्थिक अराजकता, बढ़ती महंगाई, और देश में गैस और बिजली की भारी कमी ने शहबाज शरीफ की सरकार को जनता के बीच काफी अलोकप्रिय बना दिया है।

पाकिस्तान में आर्थिक संकट

पाकिस्तान में आर्थिक संकट

ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी के साथ-साथ रिकॉर्ड महंगाई ने कई बुनियादी खाद्य पदार्थों को लोगों की पहुंच से बाहर कर दिया है। पाकिस्तान के आर्थिक केंद्र कराची सहित प्रमुख शहरों में गैस स्टेशनों के बाहर कारों की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। कई घरों में वर्तमान में खाना पकाने के लिए गैस नहीं है, जबकि कारखाने बिजली की कमी और ईंधन की कमी के बीच ऑपरेशन को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। डॉन की एक रिपोर्ट में पता चला है, कि शहरी इलाकों में रहने वाले गरीब अब एक वक्त का ही खाना खा रहे हैं।

पाकिस्तान में अभी हर तरह की वस्तु की कमी है और जिस वस्तु की कमी नहीं है, उसे खरीदने के लिए लोगों के पास पैसे नहीं हैं। 26 जनवरी को, पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 9.6% गिर गया, जो दो दशकों में सबसे बड़ी एक दिवसीय गिरावट है। देश में भुगतान संकट का संतुलन इतना गंभीर है, कि खाद्य और चिकित्सा आपूर्ति करने वाले सैकड़ों विदेशी कंटेनर हफ्तों से बंदरगाहों में फंसे हुए हैं, क्योंकि अधिकारियों के पास भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं। और इन सबके बीच, शहबाज शरीफ की सरकार को अब कर्ज चुकाने में चूक से बचने के लिए कर्ज को रीस्ट्रक्चर करने और आईएमएफ को मनाने के लिए लगातार गिड़गिड़ाना पड़ रहा है।

क्या चुनाव कराना महंगा सौदा साबित होगा?

क्या चुनाव कराना महंगा सौदा साबित होगा?

इन स्थितियों में सवाल उठ रहे हैं, कि क्या नए चुनाव पाकिस्तान को इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं? पाकिस्तान के एक खोजी पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक जिया रहमान ने डीडब्ल्यू को बताया, कि "देश की आर्थिक स्थिति बहुत गड़बड़ है, और हमारे पास पैसा खत्म हो गया है। ऐसे में आम चुनाव कराना एक महंगा मामला है, और मुझे लगता है कि पाकिस्तान अभी इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता है।" रहमान ने कहा, कि "आगे बढ़ने का आदर्श तरीका यह है, कि राजनेताओं और सेना के शीर्ष अधिकारियों सहित सभी हितधारक एक साथ बैठें और एक राष्ट्रीय आम सहमति वाली सरकार पर सहमत हों, जिसका मुख्य काम अर्थव्यवस्था को ठीक करना होना चाहिए।" हालांकि, पाकिस्तान में कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का विचार है, कि राष्ट्रीय संवाद में सबसे बड़ी बाधा इमरान खान हैं, जिन पर आलोचक "अराजक" होने का आरोप लगाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार गाजी सलाहुद्दीन ने डीडब्ल्यू को बताया, कि "इमरान खान, राजनीति को खेल के रूप में लेते हैं, जहां एक खिलाड़ी का एकमात्र उद्देश्य प्रतिद्वंद्वी को किसी भी कीमत पर हराना है। राजनीति ऐसे नहीं चलती। राजनेताओं को हर किसी से, यहां तक कि अपने विरोधियों से भी बातचीत करनी होती है। और तभी देश चलता है।"

इमरान खान क्या चाहते हैं?

इमरान खान क्या चाहते हैं?

इमरान खान की पीटीआई का मानना है, कि शहबाज सरकार लगातार उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को निशाना बना रही है, लिहाजा ऐसे माहौल में राष्ट्रीय संवाद कायम करना संभव नहीं है। पिछले कुछ महीनों में सरकार ने इमरान खान की पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार किया है। जिसमें उनके पूर्व गृहमंत्री शेख रशीद और पूर्व सूचना मंत्री फवाद चौधरी भी शामिल हैं। खुद इमरान खान पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। फवाद चौधरी ने हाल ही में कहा है, कि सरकार आम चुनाव में देरी करने के बहाने बना रही है। उन्होंने कहा, कि सरकार के "दिन अब गिने हुए हैं।" हालांकि, इमरान खान खुद भी पर्दे के पीछे से आर्मी चीफ से मुलाकात करने बहाना खोज रहे हैं, लेकिन आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने उनसे मिलने से मना कर दिया। इमरान खान भले ही राजनेता हैं, लेकिन वो हर बात को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं, लिहाजा उनके लिए निगोसिएशन करना और भी मुश्किल होता है।

सुरक्षा भी है बहुत बड़ी समस्या

सुरक्षा भी है बहुत बड़ी समस्या

पाकिस्तान में आम चुनाव कराने में आर्थिक संकट ही एकमात्र बाधा नहीं है। बल्कि, प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से देश के अलग अलग हिस्सों में बम धमाकों को अंजाम दिया है, उससे सुरक्षा स्थिति पिछले कुछ हफ्तों में काफी खराब हो गई है। टीटीपी के आतंकी इस्लामाबाद तक पहुंच चुके हैं। फरवरी में कराची में एक पुलिस परिसर पर तालिबान के आत्मघाती दस्ते के हमले में पांच लोगों की मौत हो गई थी। जबकि, जनवरी महीने में पेशावर के पुलिसलाइन में स्थिति मस्जिद में आत्मघाती बम धमाके में कम से कम 100 लोगों की मौत हो गई थी। इनके अलावा, दक्षिण पश्चिम पाकिस्तान में सोमवार को एक आत्मघाती बम विस्फोट में कम से कम 10 अधिकारियों की मौत हो गई। बलूचिस्तान प्रांत में क्वेटा से 160 किलोमीटर (100 मील) पूर्व में सिबी शहर के पास एक पुलिस ट्रक को निशाना बनाया गया था। विश्लेषक रहमान कहते हैं, कि "पाकिस्तान के पास सुरक्षा चुनौती से निपटने के लिए धन नहीं है। यह देश की स्थिरता के लिए एक बड़ा जोखिम है।"

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सेना बनाम इमरान खान बनाम शहबाज

सेना बनाम इमरान खान बनाम शहबाज

शक्तिशाली सेना के लिए देश की सुरक्षा स्थिति चिंताजनक है, जिसकी इमरान खान और उनके समर्थकों ने भी तीखी आलोचना की है। इमरान खान लगातार सेना को निशाना बना रहे हैं और विदेश नीति को लेकर भी सेना को ही जिम्मेदार ठहराते हैं। सेना इससे तिलमिलाई हुई है और ऐसा पहली बार दिख रहा है, कि इमरान खान के सामने पाकिस्तान आर्मी घुटनों पर है, भले ही वो ऐसा दिखाए नहीं। इमरान खान असल में यही चाहते हैं। लिहाजा, विश्लेषकों का मानना है, कि केवल जल्दी चुनाव अकेले राजनीतिक रस्साकशी को समाप्त नहीं कर सकते हैं। अगर जल्द चुनाव होते हैं, तो पाकिस्तान के आर्थिक मुद्दों और जटिल हो सकते हैं, जिससे देश की सुरक्षा चुनौतियां मुश्किल होती जाएंगी और हालात और भी बिगड़ सकते हैं।

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English summary
Popularity of Imran Khan, or severe economic crisis... Why is Shehbaz Sharif afraid of holding elections in Pakistan?
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