WHO से मिली क्लीनचिट पर चीन पर अब भी शक, 18 टॉप वैज्ञानिकों ने की जांच की मांग
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एमआईटी यूनिवर्सिटी में काम करने वाले वैज्ञानिकों के समूह ने कहा है कि 'भविष्य में भी इस तरह के वायरस का अटैक ना हो और उसको लेकर एक वैश्विक रणनीति बने, इसलीए जांच हो।
नई दिल्ली, मई 15: डब्ल्यूएचओ ने भले ही चीन को क्लीनचिट दे दी हो लेकिन विश्व के 18 बड़े वैज्ञानिक अब भी चीन पर शक जताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। 18 टॉप वैज्ञानिकों के ग्रुप का कहना है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर अभी काफी जांच की जरूरत है और इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि क्या चीन के वुहान प्रयोगशाला से कोरोना वायरस निकला है? चीन पर सवाल उठाने वाले वैज्ञानिकों में भारतीय मूल के वैज्ञानिक रवीन्द्र गुप्ता भी शामिल हैं, जो कैम्ब्रीज विश्वविद्यालय में संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं। उन्होंने भी कहा है कि 'चीन के वुहान लैब से एक्सीडेंट के तहत कोविड 19 वायरस लीक हुआ है, इसकी जांच जरूरी है'।
चीन के खिलाफ जांच की मांग
18 वैज्ञानिकों के समूह ने 'साइंस' पत्रिका में प्रकाशित एक पत्र में चीन के खिलाफ जांच की मांग की है। हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एमआईटी यूनिवर्सिटी में काम करने वाले वैज्ञानिकों के समूह ने कहा है कि 'भविष्य में भी इस तरह के वायरस का अटैक ना हो और उसको लेकर एक वैश्विक रणनीति बने, लिहाजा कोविड-19 के उत्पत्ति की निष्पक्ष जांच जरूरी है। खासकर कोविड-19 क्या मानवनिर्मित वायरस है, इसको लेकर काफी जांच किए जाने की जरूरत है।' वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि 'जब तक पुख्ता और पूरी तरह से जांच खत्म नहीं हो जाए तब तक लैब से वायरस निकला है या नहीं, इस थ्योरी को इनकार नहीं कर सकते हैं'
गंभीरता से कोविड-19 को ले दुनिया
वैज्ञानिकों ने कहा है कि 'हम डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक, अमेरिका और 13 अन्य देशों के साथ यूरोपीयन यूनियन की इस बात से सहमत हैं कि महामारी की उत्पत्ति के बारे में और ज्यादा सटीक जानकारी हासिल करना बेहद जरूरी है और जब तक पर्याप्त आंकड़े नहीं आ जाएं तब तक प्राकृतिक तरीके से या फिर वुहान लैब से वायरस की उत्पत्ति को लेकर जो थ्योरी है, उसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है'।
चीन पर सवाल ही सवाल
वैज्ञानिकों ने कहा है कि 30 दिसंबर 2019 को चीन ने पहली बार प्रोग्राम फॉर मॉनिटरिंग इमर्जिंग डिजीज को लेकर पहली बार चीन ने दुनिया से एक अज्ञात निमोनिया के बारे में कहा था, जिसके बाद सार्स सीओवी-2 कोरोना वायरस की पहचान हुई थी। आपको बता दें कि मई 2020 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने डब्ल्यूएचओ से कोरोना वायरस की उत्पत्ति के बारे में पता लगाने की अपील की थी और फिर डब्ल्यूएचओ ने नवंबर 2020 में चीन-डब्ल्यूएचओ के संयुक्त अध्ययन के लिए संदर्भ की शर्तें जारी की थी। इस जांच के पहले चरण में जानकारी, आंकड़े और सैंपल्स इकट्ठे किए गये थे।
डब्ल्यूएचओ ने चीन को दिया 'क्लीनचिट'
डब्ल्यूएचओ की एक टीम ने चीन में जाकर कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने की कोशिश की थी और इस टीम ने कहा था कि 'हमारे हाथ ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जिससे हम कह सकें कि वुहान के लैब में कोविड-19 वायरस तैयार किया गया है'। इस टीम ने जांच के बाद संभावना जताई थी कि चमगादड़ के जरिए ही कोरोना वायरस इंसानों में फैला होगा। डब्ल्यूएचओ की टीम ने वुहान लैब से कोरोना वायरस की उत्पति की संभवान को 'बेहद असंभव' करार दिया था। हालांकि, चीन के ही कुछ वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को अधूरा होने की बात कहकर खारिज कर दिया था।
चीन की वैज्ञानिक ने उठाए सवाल
इंडिया टूडे से बात करते हुए चीन की मशहूर वायरोलॉजिस्ट ली मेंग येन ने कहा कि 'हां, ये दस्तावेज ये साबित करने के लिए काफी हैं कि चीन काफी लंबे वक्त से जैविक हथियार तैयार कर रहा था, ताकि वो युद्द में इसका इस्तेमाल कर सके और जैविक हथियार के जरिए चीन पूरी दुनिया पर अपना जीत हासिल करना चाहता था।' ली मेंग येन ने इंडिया टूडे से बात करते हुए कहा कि 'हां, आपने जिस डॉक्यूमेंट का हवाला दिया है और मैंने मार्च महीने में जिस डॉक्यूमेंट को दुनिया के सामने रखा था, वो यही कहता है कि चीन पारंपरिक युद्द से हटकर जैविक हथियारों का इस्तेमाल करने की कोशिश में था। इसके साथ ही चीन ने दुनिया के सामने कोरोना वायरस को लेकर गलत जानकारियां दी हैं, ताकि दुनिया को अंधेरे में रखा जा सके कि चीनी लैब से कोरोना वायरस नहीं निकला है'