जानिए हवा में कितने मीटर दूर तक रहता है कोरोना का खतरा, ताजा शोध ने उड़ाए सबके होश
बेगलुरु। कोरोना वायरस से निपटना दुनियाभर के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। सबसे अहम बात ये है कि ये वायरस कैसे पनपा और कैसे फैल रहा हैं इस पर लगातार शोध हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह वायरस तीन घंटे तक हवा में जीवित रह सकता है। ऐसे में यह भी नतीजा निकाला गया कि हवा के जरिये यह दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है। WHO ने इसे अर्ध सत्य करार दिया और बताया कि ये हवा में लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता। वहींअब तक यह जरूर कहा गया था कि यदि कोई कोरोना वायरस से संक्रमित है और वह खांसता या छींकता है तो उसके आसपास संक्रमण का खतरा रहता है लेकिन अब एक नई रिपोर्ट सामने आई है जिसने सबके होश उड़ा दिए हैं। जानिए क्या कहती हैं ये नई रिपोर्ट.....
इस शोध ने उड़ाए सबके होश
कोराना के संक्रमण हवा में फैलने को लेकर हाल ही में किए गए एक शोध का खुलासा इमर्जिंग इंफेक्सियस डिजीज नाम की पत्रिका में यह रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। यह पत्रिका द सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की है। इस रिपोर्ट के हाल ही में जो कोरोना के संक्रमण फैलने को लेकर शोध हुआ इसके बाद कोरोना से संक्रमित लोगों को होम आइसोलेशन में रखना खतरे से खाली नहीं है। इस नई रिपोर्ट ने कोरोना के संक्रमण के फैलने को लेकर नई बहस शुरु हो गई है।
हवा में भी चार मीटर तक कोरोना से है खतरा
यह शोध बीजिंग में सैन्य चिकित्सा विज्ञान अकादमी अस्पताल के आईसीयू और जनरल वार्ड में किया गया। ये शोध 19 फरवरी से 2 मार्च के बीच आईसीयू और जनरल वार्ड में किया गया। इस समय अस्पताल के आईसीयू में कोरोना वायरस के 15 मरीज थे,वहीं जनरल वार्ड में 14 मरीज थे। आईसीयू के भीतर हवा से लिए गए 40 में से 14 सैंपल में वायरस पाया गया, वहीं जनरल वार्ड के 16 नमूनों में से दो में वायरस मिला है। शोध में जो होश उड़ा देने वाला खुलासा हुआ है वो ये था कि इस शोध के दौरान मरीज से चार मीटर की दूरी पर भी हवा में कोरोना वायरस मिला है। इसलिए माना जा रहा कि अब घरों में आइसोलेशन में रखने में खतरा होगा।
पहले शोधकर्ता ने दी थी ये चेतावनी
गौरतलब है कि मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआईटी) के एक रिसर्चर ने पहले भी चेतावनी दी थी और कहा था कि कोरोना वायरस लगभग आठ मीटर की दूरी तक फैल सकता है। शोधकर्ता ने सोशल डिस्टेंसिंग के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और सीडीसी की तरफ से जारी पुरानी गाइडलाइंस में बदलाव करने की सलाह दी थी।
पुराने मॉडल पर आधारित है दो मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग
बता दें एमआईटी की शोधकर्ता लीडिया बोरोइबा ने ये शोध किया था। लीडिया पिछले कई सालों से जुकाम और खांसी के संक्रमण पर शोध कर रही हैं। एमआईटी की एसोसिएट प्रोफेसर लीडिया का यह शोध अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। प्रोफेसर लीडिया ने अपने शोध में जानकारी दी है कि दो मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग 1930 के पुराने मॉडल पर आधारित है जिसका कोरोना संक्रमण से बचने के लिए लागू किया गया हैं।
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