शवों को जमाकर सेकंड्स में बनाया जाएगा धूल...चीन में IceBurial टेक्नोलॉजी पर बवाल, जानें क्या है?
चीन लगातार कोविड से होने वाली मौतों को छिपाता आया है और आखिरकार WHO के दबाव में उसने एक महीने में 55 हजार लोगों की मौत की बात कबूली। लेकिन, आने वाले दिनों मे मौत का ग्राफ और बढ़ने वाला है।
IceBurial technology: चीन ने स्वीकार किया है, कि दिसंबर से लेकर जनवरी के बीच एक महीने में 55 हजार लोगों की मौत कोरोना वायरस की वजह से हुई है। वहीं, आशंका जताई गई है, कि चीन में हर दिन कोविड की वजह से मौतों का आंकड़ा अधिकतम 36 हजार तक जा सकता है, लिहाजा चीन के अंतिम संस्कार सेंटर्स पर लग रही भीड़ को कम करने के लिए नये तरीके का इजाद किया गया है और इस टेक्नोलॉजी का नाम है, आइसब्यूरियल टेक्नोलॉजी। आइये जानते हैं, कि ये टेक्नोलॉजी क्या है और इसे क्यों पेश किया गया है?
अंतिम संस्कार सेंटर्स पर भारी भीड़
चीन में कोविड की वजह से भारी संख्या में लोगों की मौत होने की आशंका जताई गई है और आने वाले वक्त में जब एक-एक दिन में हजारों लोगों की मौत होगी, तो फिर उनके अंतिम संस्कार में काफी वक्त लगेगा और शव दाह सेंटर्स पर भारी भीड़ होगी। जिसकी तस्वीरें जब मीडिया में आती हैं, तो चीन की काफी बेईज्जती होती है, लिहाजा चीन ने इस नई टेक्नोलॉजी को पेश किया है। माना जा रहा है, कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस टेक्नोलॉजी के सहारे आने वाले वक्त में लोगों की मौत पर बुरी तरह से झूठ बोलने वाली है। कई एक्सपर्ट्स का कहना है, कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की क्रूरता को अगर देखना हो, तो इस नये टेक्नोलॉजी के बारे में जरूर जानना चाहिए।
क्या है IceBurial टेक्नोलॉजी?
चीन पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट जर्नलिस्ट जेनिफर ज़ेंग ने अपने ट्वीट में कहा है, कि चीन के लिए लोगों की मौत एक असुविधाजनक सत्य है, जिसे बड़े पैमाने पर छिपाया जाएगा। उन्होंन अपने ट्वीट में कहा है, कि "इस प्रकार का अंतिम संस्कार परीक्षण के आधार पर वुहान शहर में चलाया गया है। इस तरीके में शवों को फौरन लिक्विड नाइट्रोजन में माइनस 196 डिग्री पर जमाया जा सकता है, और फिर उसे पाउडर के रूप में बदल दिया जाता है"। उन्होंने कहा, कि ये प्रक्रिया काफी तेज होती है और श्मशान में एक शव के संस्कार में जितना वक्त लगता है, उससे काफी ज्यादा तेजी से ये प्रक्रिया संपन्न होती है। लिहाजा, इस प्रक्रिया से शव के अंतिम संस्कार में काफी कम वक्त लगेगा।
क्या पहले भी हो चुका है इस्तेमाल?
चीन में इससे पहले इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर मार्च 2022 में भी एक रिपोर्ट आई थी। जेनिफर ज़ेंग ने आशंका जताई है, कि शायद चीन में इस टेक्नोलॉजी से पहले भी शवों के अंतिम संस्कार किए गये हो सकते हैं। जेनिफर ज़ेंग ने कहा, कि "शायद इसका इस्तेमाल पहले दौर के प्रकोप में दौरा किया गया होगा।" आपको बता दें, कि यह कोई पहली बार नहीं है, जब किसी मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए आइसब्यूरियल तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इससे पहले साल 2016 में एक स्वीडिश और एक आयरिश कंपनी ने दफनाने के नए रूपों का इजाद करने का दावा किया था और फिर विवादास्पद दफन विधि के लिए आइसब्यूरियल टेक्नोलॉजी को पेश किया था। जिसमें मृत शरीर को जमाने और गलाने के लिए लिक्विड नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है।
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काफी कम लगता है वक्त
आइसब्यूरियल टेक्नोलॉजी में काफी कम वक्त लगता है और ये पूरी प्रक्रिया प्रक्रिया एक कस्टम-निर्मित मशीन में होती है। इस प्रक्रिया के तहत मृतक के शव को डिवाइस में डाला जाता है और फिर मशीन उस शव के अंदर मौजूद पानी को पूरी तरह से सुखा देता है। फिर लिक्विड नाइट्रोजन से शव जम जाता है और कुछ मिनटों में डिवाइस के अंदर सिर्फ धूल बचता है। स्वीडन के प्रोमेसा ऑर्गेनिक ने जीवविज्ञानी सुज़ैन वाईघ-मसाक के नेतृत्व में प्रोमेसन नाम के इस विधि को विकसित किया था, जिसमें इंसानी शरीर को कार्बनिक पदार्थ में बदल दिया जाता है, जो एक साल के अंदर में मिट्टी में परिवर्तित हो जाता है।
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चीन क्यों कर रहा इसका इस्तेमाल?
चीन की अर्थव्यवस्था को कोविड ने काफी बड़े झटके दिए हैं और तीन सालों से चले आ रहे लॉकडाउन ने चीन की अर्थव्यवस्था को काफी कमजोर कर दिया है। चीन के सभी महत्वपूर्ण सेक्टर में बाजार का विश्वास गरा है और देश का वित्तीय क्षेत्र काफी कमजोर हुआ है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, चीन में कोविड बीमारी से पीड़ित हॉस्पीटल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या पिछले हफ्ते की तुलना में 70 प्रतिशत बढ़ गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गुरुवार को प्रकाशित एक साप्ताहिक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में 15 जनवरी के बाद से अस्पताल में भर्ती होने वाली लोगों की संख्या में भारी उछाल आई है, जो कोविड महामारी की शुरूआत के बाद से सबसे ज्यादा है।
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