एक कनफ्यूज देश को कैसे कुंडली में जकड़ रहा है ड्रैगन? जानिए एक डरपोक देश पर कब्जे का चीनी प्लान
इंडोनेशियाई समुद्री कानून प्रवर्तन अधिकारियों का दावा है कि, दिसंबर 2019 के बाद से ये घुसपैठ नहीं रुकी है और घुसपैठ का ये सिलसिया कम और ज्यादा होता रहता है।
जकार्ता, अगस्त 30: सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया को चीन ने समुद्री ग्रे जोन के अधीन करना शुरू कर दिया है और ये किसी युद्ध से कम नहीं है, लेकिन मुसीबत ये है, कि काफी कमजोर देश इंडोनेशिया चीन की इस आक्रामकता के खिलाफ मुकाबला भी नहीं कर सकता है। चीन सटीक रणनीति के साथ अपनी कुंडली को कसता जा रहा है और वो जानता है, कि इंडोनेशिया ठीक से प्रतिक्रिया नहीं कर पाएगा। दिसंबर 2019 से लेकर जनवरी 2020 के बीच उत्तरी नटुना सागर में चीन ने इंडोनेशिया के लिए कई बार संकट पैदा किया, जब चीनी तट रक्षक द्वारा समर्थित समुद्री मिलिशिया लगातार इंडोनेशिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में कई बार घुसपैठ किया और बहाना था मछली पकड़ने का। किसी और देश के क्षेत्र को हड़पने से पहले उस क्षेत्र को विवादित बनाने का ये तरीका चीन का काफी पुराना है और वो भारत के खिलाफ भी इसी का इस्तेमाल कर रहा है और इंडोनेशिया चीन की इस चाल में फंस भी गया है।
घुसपैठ बढ़ाते चला गया ड्रैगन
इंडोनेशियाई समुद्री कानून प्रवर्तन अधिकारियों का दावा है कि, दिसंबर 2019 के बाद से ये घुसपैठ नहीं रुकी है और घुसपैठ का ये सिलसिया कम और ज्यादा होता रहता है। वहीं, पिछले साल अगस्त महीने में चीन के एक सर्वेक्षण जहाज ने इंडोनेशिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में एक हफ्ते तक ठहरकर सीबेड मैपिंग की थी, जो सीधे तौर पर इंडोनेशिया की संप्रभुता का उल्लंघन और उसकी क्षेत्र में चीन की तरफ से डकैती थी। लेकिन, इंडोनेशिया की नौसेना और तट रक्षक गश्ती जहाज चीनी सर्वे जहाज के अतिक्रमण को लगातार चुपचाप देखती रही, क्योंकि उन्हें जकार्ता की तरफ से चुप रहने का आदेश दिया गया था, जिसने चीन के मनोबल को और भी ज्यादा बढ़ाना शुरू कर दिया।
इंडोनेशिया को चुप्पी पड़ी भारी
चीनी अतिक्रमण के खिलाफ इंडोनेशिया का चुप रहना उसपर भारी पड़ गया और दिसंबर 2021 की रॉयटर्स की रिपोर्ट बताती है, कि चीन ने वास्तव में इंडोनेशिया की "रेड लाइन" को पार कर लिया है और चीन अब ये धमकी दे रहा है, कि इंडोनेशिया इस क्षेत्र में फौरन ड्रिलिंग बंद कर दे। चीन धमकाकर कहता है कि, इंडोनेशिया के समुद्री हिस्से पर भी उसका ही अधिकार है, क्योंकि 1990 में जकार्ता के साथ उसकी एक अनौपचारिक समझ विकसित हुई थी और चीन इसकी व्याख्या इस तरह से करता है, कि सारे समुद्री क्षेत्र पर सिर्फ उसका ही अधिकार है। चीन इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक, या फिर कानूनी तौर पर भी इस विवाद को खत्म नहीं करना चाहता है, बल्कि चीन की कोशिस ये है, कि जकार्ता ये स्वीकार करे, तो सारा हिस्सा चीन का है, जो इंडोनेशिया के लिए बहुत बड़ा रणनीतिक धक्का है। अब जब चीन दक्षिण चीन सागर में प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने लगा है, तो फिर वो अपने एजेंडे को और अधिक आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ाने की तरफ आगे बढ़ा है।
...तो फिर कैसे रूकेगा चीन?
चीन जैसी शक्तियां कभी रूकती नहीं हैं, बल्कि जो क्षेत्र शांत रहता है, उनपर अधिकार जमाने के बाद ये शक्तियां आगे बढ़ जाती हैं और इन्हें रोकने का एक ही तरीका है, इनका पर्याप्त विरोध। लेकिन, इंडोनेशिया ये विरोध करने में नाकामयाब रहा है और चीनी आक्रामकता के खिलाफ उसकी कूटनीतिक प्रतिक्रिया भी काफी कमजोर रही है, भले ही इंडोनेशिया के अधिकारी ये दावा करें, कि उन्होंने निजी तौर पर चीन के सामने अपना विरोध दर्ज कराया है। इंडोनेशिया की सुरक्षा प्रतिक्रिया भी बेतरतीब, असंगत और काफी हद तक प्रतीकात्मक ही रही है। जकार्ता की तरफ से निश्चित तौर पर कोई मजबूत आर्थिक या राजनीतिक धक्का-मुक्की नहीं हुई है।
काफी कनफ्यूज रहा है इंडोनेशिया!
इंडोनेशियाई नीति निर्माता चीन के खिलाफ पीछे हटने या मजबूत मुकाबला करें, उस लक्ष्य के बारे में स्पष्ट नहीं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि, चीन से दक्षिण चीन सागर पर अपनी "नौ-डैश लाइन" के दावों को त्यागना उसके लिए असंभव है। इंडोनेशियाई राष्ट्रपति जोको विडोडो या कई अन्य नेताअपने घरेलू एजेंडे को बाहर करने वाले रणनीतिक शोर से बचने के लिए रोकथाम पर संकट समाधान पसंद करते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि चीन का व्यवहार केवल कानून-प्रवर्तन का मुद्दा है, रणनीतिक समस्या नहीं है। स्पष्टता का यह अभाव रणनीतिक विफलता का पहला संकेत है। उत्तरी नटूना सागर में चीन की अवैध घुसपैठ को रोकने के सीमित और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य का पीछा करने के बजाय, इंडोनेशियाई नीति निर्माताओं ने एक पतली प्रतिक्रिया के लिए समझौता किया। इंडोनेशिया की प्रतिक्रिया बस इतनी तक सीमित रही, कि सरकार ने अपनी कैबिनेट की बैठक युद्धपोत पर आयोजित किया और इंडोनेशिया की संप्रभुता को लेकर हल्ला किया, ताकि घरेलू राजनीति में नुकसान ना हो, इसके अलावा उन्होंने कुछ भी नहीं किया।
चीन के साथ कैसे हैं संबंध?
इंडोनेशिया के नीति निर्माता सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध दर्ज करवाकर शांत रह जाते हैं और उनकी ये खामोशी के कारण यही संदेश जाता है, कि साउथ चायना सागर में इंडोनेशिया अपना दावा नहीं करता है। इंडोनेशिया का चीन के साथ एक मजबूत द्विपक्षीय संबंध है और दक्षिण चीन सागर में इसकी स्थिति को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है। इसका मतलब यह है, कि इंडोनेशियाई नीति निर्माता चीन द्वारा व्यापक रणनीतिक जुआ के बजाय ग्रे-ज़ोन घुसपैठ को अल्पकालिक समुद्री कानून-प्रवर्तन समस्याओं के रूप में देखने के लिए बाध्य हैं, जिसका खामियाजा उसे आगे भुगतना होगा। चीन को सख्त संदेश देने के बजाए इंडोनेशिया ने चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को उत्तरी नटूना सागर मुद्दे, दक्षिण चीन सागर विवाद और महान शक्ति की राजनीति से अलग करके समस्या को विभाजित किया है। ये मुद्दे काफी जटिल हैं, लेकिन चीन को लेकर इंडोनेशिया की घरेलू राजनीति भी ध्रुवीकरण होती है, लिहाजा इंडोनेशिया और भी ज्यादा उलझा हुआ नजर आता है।
देश हित पर निजी लाभ का वर्चस्व
इंडोनेशियाई अभिजात वर्ग भी चीन द्वारा प्रदान किए जाने वाले निजी लाभों और सार्वजनिक वस्तुओं पर निर्भर हो रहा है, विशेष रूप से वे जो कोविड -19 महामारी के दौरान विस्तारित हुए हैं। लेकिन, चूंकि वे चीन के साथ व्यवहार पर सार्वजनिक जांच के बारे में अधिक चिंता करते हैं, लिहाजा इंडोनेशियाई रणनीतिक नीति कम पारदर्शी हो जाती है। इंडोनेशिया में पारदर्शिता की कमी होने पर चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीति सफल होती है। नीति निर्माता चुपचाप आत्मसमर्पण करने या मत्स्य पालन पर युद्ध करने के बीच विकल्पों की सीमा की कल्पना करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। ये खामियां बीजिंग की ग्रे-ज़ोन रणनीति के लिए सार्थक प्रतिक्रिया शुरू करने में जकार्ता की नाकामी को उजागर करती है। इंडोनेशियाई नीति निर्माताओं ने अभी तक उपलब्ध विभिन्न विकल्पों पर गंभीरता से विचार नहीं किया है, जैसे कि समुद्री गठबंधन स्थापित करना या चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजनाओं की समीक्षा करना।
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