वुसत का ब्लॉग: 'थैंक्यू डोनल्ड ट्रंप! ... दुनिया क्या से क्या हो गई'
किसी ने तसव्वुर किया था कि कनाडा एक दिन ये सोचे कि काश उसके पहिये लगे होते तो वो अमरीका से दूर कहीं जा बसता.
और जो अमरीका के दोस्त हैं, जैसे भारत - ऐसे देशों की लीडरशिप भले मुँह से कुछ भी कहती रहे, मगर दिल में ये ज़रूर सोचती होगी कि क्या मुसीबत है? जाने किस तरह के आदमी से पाला पड़ा गया? यही पता नहीं चलता कि आख़िर चाहता क्या है?
क्या गज़ब बेबसी है कि ईरान से भारत तेल लेता रहे तो ट्रंप जाता है और तेल न ले तो अर्थव्यवस्था जाती है.
अब तो मैं भी सोचने लगा हूँ कि जब तक डोनल्ड ट्रंप साहब अमरीका के राष्ट्रपति हैं, किसी और को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाथ-पाँव हिलाने की क्या ज़रूरत है.
भले ही वो अल-क़ायदा क्यों न हो. आप सोचिए कि 9/11 को अल-क़ायदा ने अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से विमान क्यों टकराया, ताकि अमरीका में और फिर बाकी दुनिया में चैन सुकून ख़त्म हो जाए.
उसके बाद भी अल-क़ायदा और फिर इस्लामिक स्टेट को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े!
मगर संसार फिर भी आतंकवाद के ख़िलाफ़ एकजुट ही रहा. वो अलग बात है कि इस चक्कर में इराक़, अफ़गानिस्तान, लीबिया और सीरिया की वाट लग गई.
और फिर देवताओं ने डोनल्ड ट्रंप को इस जगत में उतारने का फ़ैसला किया.
आज हर देश का लीडर इस चक्कर में अपना मोबाइल फ़ोन ऑन रखता है कि रात को सोने से पहले ट्रंप साहब किस पॉलिसी में कैसी तब्दिली का एलान करते हैं और सुबह उठते ही किस देश के किस लीडर को गाली ट्वीट करते हैं, धमकी देते हैं या उसका मज़ाक उड़ाते हैं.
रूस और अमरीका, चीन और अमरीका, अरब और अमरीका, ईरान और अमरीका में तू तू-मैं मैं के हम हमेशा से आदी हैं, लेकिन आपने कभी सोचा था कि कोई अमरीकी राष्ट्रपति यूरोपियन यूनियन को 'अमरीकी पैसे पर पलने वाला निखट्टू' कहे और फ़्री ट्रेड को लात मारकर यूरोपीय और फिर तुर्क स्टील आयात पर ड्यूटी दोगुनी कर दे.
अमरीका तमाम ऐसे अंतरराष्ट्रीय कनवेंशनों और माहिदों को एक के बाद एक लात मारता चला जाए जिनपर ख़ुद कभी अमरीका ने भी हस्ताक्षर किए हों.
आज अमरीका अपने ही हमसाये मेक्सिको की सीमा पर एक पक्की दीवार उठाना शुरू कर चुका है और वो सीमा लांघकर अमरीका पहुँचने वाली माँओं से उनके बच्चे अलग करके उन्हें कैंपों में भी रख चुका है.
और तो और अमरीका इसके पक्ष में बाइबल और रोमन साम्राज्य के क़ानूनों से ढूंढ-ढूंढ करके उदाहरण भी पेश कर चुका है.
किसी ने तसव्वुर किया था कि कनाडा एक दिन ये सोचे कि काश उसके पहिये लगे होते तो वो अमरीका से दूर कहीं जा बसता.
और जो अमरीका के दोस्त हैं, जैसे भारत - ऐसे देशों की लीडरशिप भले मुँह से कुछ भी कहती रहे, मगर दिल में ये ज़रूर सोचती होगी कि क्या मुसीबत है? जाने किस तरह के आदमी से पाला पड़ा गया? यही पता नहीं चलता कि आख़िर चाहता क्या है?
क्या गज़ब बेबसी है कि ईरान से भारत तेल लेता रहे तो ट्रंप जाता है और तेल न ले तो अर्थव्यवस्था जाती है.
तो क्या कभी किसी ने दिल्ली में बैठकर सोचा था कि एक दिन पाकिस्तान और रूस की सेना अरब सागर में जाकर सैन्य प्रदर्शन करेगी, रूसी कमांडो पाकिस्तान आकर ट्रेनिंग करेंगे, रूसी जनरल वज़ीरिस्तान का दौरा करेंगे, पाकिस्तानी सेना रूसी हथियार ख़रीदेगी और पाकिस्तानी अफ़सर अमरीकी मिलेट्री के कॉलेजों की बजाय रूस की वॉर अकादमी में बड़े सैन्य अफ़सरों से लेक्चर सुनेंगे.
थैंक्यू डोनल्ड ट्रंप! गॉड ब्लेस यू... दुनिया क्या से क्या हो गई.