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बेंजामिन नेतन्याहू: इजरायल की सभी विरोधी पार्टियां एक साथ, फिर भी कैसे जीत गये?

चुनाव में अरब पार्टियों की हार के पीछे इजरायली विशेषज्ञ मूल फिलिस्तीनी नागरिकों को दोष देते हैं।

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Benjamin Netanyahu: इजरायल की करीब करीब सभी महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों के गठबंधन के नेता और प्रधानमंत्री यैर लैपिड ने अब आधिकारिक तौर पर मान लिया है, कि आम चुनाव में उनकी पराजय हो गई है और उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू को जीत की बधाई भेज दी है। यानि, अब इजरायल के अगले प्रधानमंत्री एक बार फिर से बेंजामिन नेतन्याहू होंगे। बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बाहर रखने के लिए इजरायल की आठ राजनीतिक पार्टियों ने गठबंधन किया था, जिसमें दक्षिणपंथी, वामपंथी और अरब पार्टियां भी शामिल थीं। इस गठबंधन में कट्टरपंथी मुस्लिम पार्टियां भी थीं, लेकिन सभी मिलकर भी बेंजामिन नेतन्याहू के विजय रथ को रोक नहीं पाए। ऐसे में सवाल ये है, कि आखिर बेंजामिन नेतन्याहू में ऐसी क्या बात है, कि तमाम विरोधी भी उन्हें हरा नहीं पाए? आइये जानते हैं, कि इजरायल और बेंजामिन नेतन्याहू कैसे एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं।

इजरायल में राजनीतिक अस्थिरता

इजरायल में राजनीतिक अस्थिरता

हाल के कुछ वर्षों में इजरायल की राजनीति में अस्थिरता बनी रही और एक के बाद एक आम चुनाव होते रहे, मगर किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका। लगातार चार चुनाव करवाए गये और चारों चुनाव में करीब करीब एक ही जैसे परिणाम मिले, लिहाजा सरकार बनती और फिर बिगड़ जाती। हर चुनाव के बाद बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलती और बाकी सीटें दूसरी पार्टियों में बंट जातीं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, बेंजामिन नेतन्याहू को पूर्ण बहुमत नहीं मिलन के पीछे की सबसे बड़ी वजह उनके खिलाफ लगातार चलाया भ्रष्टाचार कैंपेन था, जिसमें उनपर रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था। ये मामला कोर्ट में भी पहुंचा और जनता के बीच उनकी छवि को ठेस पहुंची, लिहाजा 120 संसद सीटों वाले इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी 30 से 35 सीटों पर सिमटती रही, लेकिन इस बार एक बार फिर से बेंजामिन नेतन्याहू ने जबरदस्त वापसी की और इजरायली संसद, जिसे नेसेट कहा जाता है, उसमें बेंजामिन नेतन्याहू और उनके गठबंधन ने शानदार वापसी करते हुए 64 सीटें हासिल कर ली हैं। यानि, बेंजामिन नेतन्याहू एक बार फिर से इजरायल के केन्द्र में लौट चुके हैं।

वामपंथी पार्टी संसद से बाहर

वामपंथी पार्टी संसद से बाहर

इजरायल में हुए इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा दिलचस्प बात ये है, कि जो वामपंथी पार्टी ज़ायोनी मेरेट्ज़ लगातार सरकार बनाने और बिगाड़ने का काम कर रही थी, उसे संसद से ही बाहर कर दिया गया है। इजरायली संविधान के मुताबिक, संसद में किसी पार्टी को तभी मान्यता मिलती है, जब उस पार्टी को आवश्यक 3.25 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन, साल 1948 में स्थापित वामपंथी ज़ायोनी मेरेट्ज़ पार्टी को इतने प्रतिशत वोट भी नहीं मिले। यानि, इजरायली संसद से वामपंथी पार्टी इस बार बाहर कर दी गई है और माना जा रहा है, कि पिछले कुछ महीनों से वामपंथी पार्टियों ने जो राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश की, वो उसके ऊपर ही भारी पड़ गई है और दक्षिणपंथी पार्टियों को इसमें जबरदस्त फायदा मिल गया।

दक्षिणपंथ का फिर से उदय

दक्षिणपंथ का फिर से उदय

बेंजामिन नेतन्याहू का फिर से प्रधानमंत्री बनना उनके विरोधियों के लिए उतना बड़ा झटका नहीं है, क्योंकि वो पहले लगातार 15 सालों तक देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उनके विरोधियों के लिए सबसे बड़ा झटका ये है, कि इजरायल की धूर-दक्षिणपंथी पार्टी को इस चुनाव में भारी सफलता मिली है। इस पार्टी ने नेतन्याहू की पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा था। इस पार्टी का नाम है 'रिलिजियस जियोनिज्म' स्लेट, जो एक यहूदी वर्चस्ववादी और अरब विरोधी संगठन है, जिस इस चुनाव में आश्चर्यजनक सफलता मिली है। स्लेट तीन पार्टियों से मिलकर बना है। इतामार बेन ग्विर के नेतृत्व में ज्यूईस पॉवर, बेजेल स्मोट्रिच के नेतृत्व में नेशनल यूनियन और और एलजीबीटीक्यू विरोधी पार्टी, नोआम। पिछले लोकसभा चुनाव में इस तीनों पार्टियों के गठबंधन को महज 6 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार इस गठबंधन को 14 सीटें मिली हैं और यही वजह है, कि बेंजामिन नेतन्याहू के गठबंधन को पूर्ण बहुमत हासिल हो गई है। कट्टरपंथी दक्षिणपंथी पार्टियों के लिए ये एक आश्चर्यजनक उपलब्धि है।

क्यों हार रहे थे बेंजामिन नेतन्याहू?

क्यों हार रहे थे बेंजामिन नेतन्याहू?

तेल अवीव विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंटिस्ट उरीएल अबुलोफ ने कहा कि, "जब बेंजामिन नेतन्याहू ने पहली बार चुनाव जीता (1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन की हत्या के बाद) तो कई इजराइली लिबरल्स ने इस घटना को राबिन की फिर से हत्या के तौर पर देखा"। आपको बता दें कि, राबिन ने फिलिस्तीनियों के साथ एक शांति समझौता किया था और इसीलिए उनकी हत्या कर दी गई थी। लेकिन, साल 2021 में बेंजामिन नेतन्याहू ने यित्जाक राबिन के नाम पर एक बार फिर से राजनीति करने की कोशिश की और काफी आक्रामक प्रचार भी किया, लेकिन वो चुनाव हार गये, जबकि उनकी सहयोगी दक्षिणपंथी पार्टी 'रिलिजियस जियोनिज्म' जीत गई, जिसका नेतृत्व बेन ग्विर कर रहे थे। इस दौरान बेंजामिन नेतन्याहू ने चुनाव प्रचार के दौरान यह सुनिश्चित करने की कोशिश की थी, कि दक्षिणपंथी पार्टियां एक भी वोट नहीं खोएगी, ताकि सरकार बनाने में कोई दिक्कतन हीं आए। हालांकि, बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी ही हार गई। लेकिन, पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार नोआम शीज़ाफ़ ने कहा कि, इन चुनावों के बारे में चिंता करने वाली बात यह थी, कि युवा लोगों और पहली बार के मतदाताओं के बीच बेन ग्विर छा गये थे और उन्हें काफी वोट मिले थे।

क्या और आक्रामक हो रहा इजरायली समाज?

क्या और आक्रामक हो रहा इजरायली समाज?

बेन ग्विर को जैसी सफलता इजरायल में मिली है, उसे कई राजनीतिक एक्सपर्ट चिंता की तरफ देख रहे हैं। नोआम शीजाफ ने कहा कि, 'इजरायल में वोट डालने वाली जिस नई युवा आबादी का उदय हुआ है, वो बेंजामिन नेतन्याहू के शासनकाल में पली बढ़ी है और उनके मन में अरबों और पामपंथ के बारे में काफी जहर भरा गया है, वो जहरीले भाषण सुनते हुए बड़े हुए हैं।' उन्होंने कहा कि, 'बेन ग्विर को जो राजनीतिक सफलता मिलनी शुरू हुई है, वो मई 2021 में इजरायल में फिलिस्तीनी-यहूदी हिंसा के बाद मिलनी शुरू हुई है, जो इजरायल को और ताकतवर बनाने की बात करते हैं और जो इजरायल में रहने वाले मुस्लिमों के खिलाफ उसी तरह से व्यवहार करने की बात करते हैं, जैसा व्यवहार मुस्लिम यहूदियों के साथ करते हैं या करना चाहते हैं'। कई एक्सपर्ट का कहना है कि, ' बेन ग्विर मुसलमानों के साथ वही सलूक करना चाहते हैं या उसी तरह से पेश आना चाहते हैं, जिस तरह से मुसलमान यहूदी के साथ पेश आते हैं, लिहाजा जो नई आबादी है, वो उनकी बातों को काफी ध्यान से सुनती है।'

गठबंधन के बाद भी विपक्ष का विभाजन

गठबंधन के बाद भी विपक्ष का विभाजन

इस चुनाव में बेंजामिन नेतन्याहू को मिली जबरदस्त सफलता के पीछे एक और बड़ी वजह विपक्षी पार्टियों में गठबंधन के बावजूद बिखराव था। लेबर पार्टी और वामपंथी मेरेट्ज पार्टी एक संयुक्त प्लेटफॉर्म पर चलने के लिए सहमत नहीं हो सके और न ही इजराइल में फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधित्व करने वाली वो पार्टियां ही आपसी समन्वय के लिए सहमत हो सकीं। नतीजतन, मेरेत्ज और अरब बलाद पार्टी को संसद में एंट्री तक नहीं मिल सकी। इन दोनों को आवश्यक 3.25 प्रतिशत वोट नहीं मिल पाए। इसके अलावा, इजरायल की मध्यमार्गी राजनीतिक पार्टी येश अतीद, जिसके प्रमुख मौजूदा प्रधानमंत्री यैर लापिड हैं, उन्होंने चुनावी कैम्पेन में वामपंथी वोटरों को अपनी तरफ काफी सावधानी से खींचने का काम किया और उन्होंने छोटी राजनीतिक पार्टियों के वोट को भी अपनी ही झोली में डाल लिया।

अरब पार्टियों की हार की वजह

अरब पार्टियों की हार की वजह

चुनाव में अरब पार्टियों की हार के पीछे इजरायली विशेषज्ञ मूल फिलिस्तीनी नागरिकों को दोष देते हैं, क्योंकि वास्तव में फिलिस्तीनी मुसलमान वोटिंग में काफी कम हिस्सा लेते हैं, जबकि यहूदी नागरिक वोटिंग में भारी संख्या में भाग लेते हैं। इजरायल में रहने वाले फिलिस्तीन अभी भी एकजुट नहीं हुए हैं और कई सारे दल बनने की वजह से उनके मतों का भी विभाजन होता है। लिहाजा, बलाद पार्टी का संसद में खाता भी नहीं खुल सका। इसके साथ ही इस बार यहूदी वोटर्स ने इस सामान्य भावना के साथ वोट किया है, कि सरकार बनाने में किसी भी गठबंधन को अरब पार्टियों से समर्थन लेने की जरूरत ना पड़े और ना ही सरकार अरब पार्टियों पर निर्भर रहे। लिहाजा, इजरायल के यहूदियों ने पिछले चार सालों से चल रही राजनीतिक उठापटक को खत्म करने के लिए इस बार वोट डालाहै, ताकि देश में एक स्थिर सरकार का निर्माण हो सके और इसके लिए एक बार फिर से बेंजामिन नेतन्याहू ही उनके सर्वश्रेष्ठ पसंद बनकर उभरे हैं।

इतमार बेन-ग्विर कौन हैं, जिनकी चर्चा इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू से भी अधिक हो रही है?इतमार बेन-ग्विर कौन हैं, जिनकी चर्चा इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू से भी अधिक हो रही है?

English summary
How did Benjamin Netanyahu return to power and the Left Party in Israel was wiped out?
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