World War-3: महाशक्तियों का अहंकार, क्या QUAD, AUKUS और CHIP-4 बो रहे तीसरे विश्वयुद्ध का बीज?
एक तरह जहां क्वाड, ऑकस और चिप-4 हैं, वहीं दूसरी तरफ चीन और रूस अपनी दोस्ती की 'कोई सीमा नहीं है' की घोषणा कर चुके हैं। लिहाजा, धीरे धीरे दुनिया कई गुटों में बंटता जा रहा है।
Geo-Politics: दुनिया में महाशक्तियों के अहंकार की वजह से दो विश्वयुद्ध हो चुके हैं और इन दोनों विश्वयुद्ध में करोड़ों लोग मारे गये। दुनिया में अब तक हुए दोनों विश्वयुद्ध की तह में अगर देखा जाए, तो पता यही चलता है, कि गुटबाजी और वर्चस्व बनाने की चाहत ने दुनिया में करोड़ों लोगों को मरवा दिए। तो क्या दुनिया एक बार फिर से तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ बढ़ चली है और क्या एक बार फिर वैश्विक महाशक्तियों के बीच गुट बनने लगे हैं। हालांकि, पिछले दोनों विश्वयुद्ध में चीन नहीं था, लेकिन अगर तीसरा विश्वयुद्ध हुआ, तो इस बार चीन एक महाशक्ति बनकर सामने आएगा और युद्ध शुरू होने में सबसे बड़ा योगदान उसी का होगा। सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध होता है, तो युद्ध के नये-नये सेंटर्स बनेंगे और कई नये देशों को चाहते हुए, या ना चाहते हुए भी इसमें शामिल होना पड़ेगा। आखिर क्यों विश्वयुद्ध के हालात बन रहे हैं और क्यों दुनिया विनाश के रास्ते पर बढ़ चली है, आइये समझते हैं।
फिर से गुटों में बंटने लगी है दुनिया
पहले
और
दूसरे
विश्वयुद्ध
में
विश्व
कई
हिस्सों
में
बंट
चुका
था
और
अलग
अलग
विचारधारा
वाली
ताकतों
के
बीच
का
टकराव
हर
हद
को
पार
कर
गया
था।
दुनिया
के
ज्यादातर
देशों
पर
ब्रिटेन
का
राज
था
और
ब्रिटेन
ने
अपने
उपनिवेशों
को
भी
युद्ध
में
धकेला।
दोनों
विश्व
युद्धों
के
मामले
में,
युद्ध
की
सबसे
बड़ी
वजह
अलग
अलग
राष्ट्रों
के
बीच
बनने
वाले
गठबंधनों/संधियों
का
गठन
था,
जिसका
उद्देश्य
दूसरे
राष्ट्र/देशों
के
समूह
के
प्रभाव
का
विरोध
करना/रोकना
था।
सबसे
प्रसिद्ध
संधियों
में
से
एक
वर्साय
की
संधि
थी,
जिस
पर
1919
में
प्रथम
विश्व
युद्ध
को
समाप्त
करने
के
लिए
हस्ताक्षर
किए
गए
थे।
कई
इतिहासकारों
ने
कहा
है
कि
इस
संधि
ने
ही
दूसरे
विश्वयुद्ध
की
चिंगारी
फूंक
दी
थी।
इस
संधि
ने
जर्मनी
पर
इस
हद
तक
गंभीर
प्रतिबंध
लगाए,
कि
जर्मनों
ने
अपमानित
महसूस
किया,
जिससे
नाजी
संस्कृति
का
जन्म
हुआ
और
हिटलर
का
उदय
हुआ।
बाकी
इतिहास
है।
जापान
के
दो
शहरों
पर
परमाणु
बम
गिरने
के
साथ
ही
दूसरा
विश्वयुद्ध
खत्म
हो
गया।
लेकिन,
कई
सवाल
बाकी
रह
गये,
कि
आखिर
अमेरिका
ने
अपनी
मुख्य
भूमि
से
लगभग
3000
किमी
दूर
जापान
पर
बमबारी
क्यों
की?
संयुक्त
राज्य
अमेरिका
ने
धुरी
शक्तियों
के
नेता
जर्मनी
पर
बमबारी
करने
का
फैसला
क्यों
नहीं
लिया?
क्या
जापान
और
जर्मनी
के
बीच
'त्वचा
का
रंग'
एक
कारक
था?
दूसरे विश्वयुद्ध का परिणाम
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, तीन महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटनाएं हुईं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र का निर्माण हुआ और दो सबसे प्रमुख सैन्य गठबंधनों, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और वारसा संधि का जन्म हुआ। लेकिन, दूसरे विश्वयुद्ध के पचहत्तर सालों के बाद हम देखते हैं, कि संयुक्त राष्ट्र, ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय मामलों को निपटाने में पूरी तरह से नाकाम रहा है, लिहाजा अब संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व और उपयोगिता पर सवाल उठने लगे हैं। नाटो को लेकर जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजला मर्केल ने दावा किया था, कि ये एक 'ब्रेन डेड' संगठन है और सोवियत संघ के विघटन के बाद वारसॉ संधि समाप्त हो गई है। लिहाजा, अब दुनिया भर में कई नई संधियों और गठबंधनों ने जन्म लिया है, जिससे एक बार फिर से वर्चस्व कायम करने की प्रतियोगिता, प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा और जमीन हथियाने के लिए हर हद पार करने की नई धारा फूट पड़ी है, जो भविष्य के लिए खतरे पैदा करने लगा है।
फिर से बनने लगे नये नये गठबंधन
हाल के सालों में तीन ऐसे गठबंधन बने हैं, जिनका मुख्य मकसद चीन के प्रभाव को फैलने से रोकना है और ये तीन गठबंधन QUAD (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत), AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका), और CHIP-4 (जापान, कोरिया, ताइवान और अमेरिका) हैं। इन तीनों गठबंधन की सबसे बड़ी विशेषता अमेरिका की प्रेरक शक्ति है। अमेरिका को लगभग 'विलुप्त और मृत' QUAD को फिर से जीवंत करने के लिए भारत की जरूरत थी, लेकिन CHIP-4 गठबंधन बनाते समय अमेरिका ने काफी आसानी से भारत की अनदेखी कर दी। यानि, हर गठबंधन को लेकर अमेरिका अपना फायदा देख रहे है। QUAD एक दशक से ज्यादा वक्त से निष्क्रिय था और भारत का, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ QUAD का हिस्सा बनने में अब कोई दिलचस्पी नहीं थी। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की तीव्रता में धीरे-धीरे वृद्धि ने संयुक्त राज्य अमेरिका को जापान और ऑस्ट्रेलिया को बोर्ड पर लाने और भारत के साथ QUAD गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए राजी करने के लिए मजबूर किया।
भारत को जोड़ना अमेरिका की मजबूरी क्यों?
क्वाड
में
भारत
को
जोड़ना
अमेरिका
की
सबसे
बड़ी
मजबूरी
है,
क्योंकि
दुनिया
भर
के
सैन्य
रणनीतिकारों
के
सामने
एक
कड़वी
सच्चाई
यही
है,
कि
चीन
के
प्रभाव
को
उस
वक्त
तक
रोका
नहीं
जा
सकता
है,
जब
तक
की
भारत
को
इस
गठबंधन
का
प्रभावशाली
हिस्सा
ना
बनाया
जाए।
विश्व
में
भारत
का
अद्वितीय
स्थान,
भारत
की
शक्ति
है
और
संयुक्त
राज्य
अमेरिका
की
गठबंधन
की
नीति
हमेशा
से
यही
रही
है,
कि
'अगर
आप
हमारे
साथ
नहीं
हैं,
तो
आप
हमारे
खिलाफ
हैं।'
लेकिन,
भारत
ने
अमेरिका
की
इस
नीति
को
भी
हमेशा
से
किनारे
ही
रखा,
लेकिन
चीन
को
लेकर
भारत
की
अपनी
कुछ
समस्याएं
हैं,
लिहाजा
भारत
के
लिए
भी
क्वाड
जैसे
गठबंधन
में
शामिल
होना
जरूरी
है,
लेकिन
इसके
बाद
भी
भारत,
किसी
भी
प्लेटफॉर्म
पर
क्वाड
को
एक
सैन्य
गठबंधन
नहीं
कहता
है।
वहीं,
अब
तक
परमाणु
हथियारों
को
लेकर
ऑस्ट्रेलिया
पर
सख्त
रहने
वाला
अमेरिका,
अचानक
पिछले
साल
ऑस्ट्रेलिया
को
परमाणु
ऊर्जा
से
संचालित
पनडुब्बियों
के
निर्माण
में
मदद
करने
के
लिए
तैयार
हो
गया
और
ये
काफी
आश्चर्यजनक
था।
अमेरिका
ने
ब्रिटेन
और
ऑस्ट्रेलिया
के
साथ
मिलकर
एक
नया
गठबंधन
तैयार
किया,
जिसका
नाम
रखा
गया
AUKUS।
यानि,
अमेरिका
ने
चीन
को
रोकने
के
लिए
एक
और
गठबंधन
बना
लिया,
लिहाजा
क्वाड
की
उपयोगिता
पर
ही
सवाल
उठ
खड़े
हुए।
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AUKUS ने बोया तीसरे विश्वयुद्ध का बीज
ऑस्ट्रेलिया का फ्रांस से पारंपरिक पनडुब्बियों को लेकर पहले से ही करार था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने फ्रांस के साथ डील रद्द कर दिया और ऑस्ट्रेलिया ने AUKUS में शामिल होकर पूरी दुनिया को चौंका दिया। ऐसा करके उसने न केवल चीन के कोप को, बल्कि उसके 'भरोसेमंद दोस्त और सहयोगी' फ्रांस को भी झटका दिया है। यानि, AUKUS के गठन ने तीसरे विश्व युद्ध के बीज बो दिए हैं, जो अनजाने में हो सकता है। उम्मीद के मुताबिक, चीन ने कम से कम कूटनीतिक भाषा में हिंसक प्रतिक्रिया दी है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि ने तो यहां तक कह दिया, कि "अगर ऑस्ट्रेलिया चीन को इस वजह से और अधिक भड़काने की हिम्मत करता है, या, यहां तक कि सैन्य रूप से कोई गलती करता है, तो चीन बिना किसी दया के उसे दंडित करेगा"। यानि, चीन ने साफ कर दिया है, कि दक्षिण चीन सागर हो, या फिर इंडो-पैसिफिक, वो अपने आक्रामक रवैये को बरकरा रखेगा, जो क्वाड या ऑकस जैसे गठबंधन के होने की जरूरत की पुष्टि भी करते हैं। लिहाजा, आने वाले सालों में, जब चीन ताइवान पर हमला करेगा, उस वक्त दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की दिशा में जा सकती है।
QUAD में भारत का रोल क्या है?
QUAD में भारत की सक्रिय भागीदारीहै, लेकिन QUAD तीन अन्य राष्ट्रों के साथ एक सैन्य गठबंधन है, इसका भारत ने हमेशा से खंडन किया है। वहीं, भारत को छोड़कर क्वाड के तीन साथियों ने यूक्रेन में रूसी हमले की सख्त विरोध की है और रूस के खिलाफ प्रतिबंध भी लगाए हैं। वहीं, सामूहिक विनाश के हथियारों का इस्तेमाल करने वाला एकमात्र देश अमेरिका देश है। परमाणु हथियार से विनाश का सामना करने वाला एकमात्र देश होने के नाते परमाणु विकल्प का जापानी विरोध समझ में आता है। लेकिन, हिंद-प्रशांत शब्द सबसे अधिक चर्चित रणनीतिक मुद्दा बन गया है और आशंका यही है, कि अगर भविष्य में परमाणु युद्ध होता है, तो उसका केन्द्र इंडो-पैसिफिक ही हो सकता है।
तेजी से प्रमुख शक्ति बनता भारत
भौगोलिक परिस्थितियां, भारत को न केवल हिंद महासागर में अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाता है बल्कि दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्ग के माध्यम से यातायात को भी नियंत्रित करने में मदद करता है। यदि कोई खतरा है, तो वह पाकिस्तान के बंदरगाहों से विकसित होगा। चार महत्वपूर्ण पाकिस्तानी बंदरगाह, जिवानी, ग्वादर, पासनी और ओरमारा, भारत के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं, यदि पाकिस्तान भारतीय विरोधियों की नौसेनाओं को काम करने की अनुमति देता है। हालांकि, ये सभी चार बंदरगाह इंडियन एयरफोर्स के डायरेक्ट निशाने पर हैं और इन्हें किसी भी वक्त बेअसर किया जा सकता है। लेकिन, अमेरिका चीन को रोकने के लिए 'इंडियन शोल्डर' का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है, भारत के नीति बनाने वाले इसे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं, लिहाजा भारत ने हमेशा से साबित किया है, कि वो किसी कठपुतली नहीं है और भारत अपनी शर्तों पर अपने संबंध कायम करता है। लिहाजा, चीन अगर भारत के प्रभाव और शक्ति का सम्मान करते हुए, भारत से विवादों का शांतिपूर्वक निपटारा करता है, तो भारत उस संभावित विश्वयुद्ध की चपेट में आने से बच जाएगा, जिसमें फूंक अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और जापान जैसी शक्तियां लगा रही हैं।