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नज़रिया: सज गईं डिजिटल दुकानें, लेकिन सूने रह गए बाज़ार

छूट वगैरह तो मिलेगी ही. उम्मीद लगाए हैं कि अबकी दिवाली काफी अच्छी होगी. लेकिन इन दुकानदारों की परेशानी भी कम नहीं. एक तरफ जहां मार्जिन पर दवाब है, वहीं ज़्यादा छूट दे दिया तो बिल्कुल ना घाटा-ना मुनाफे पर सामान बेचना पड़ेगा.

पूंजी की लागत भी बढ़ी हुई है. अब ऐसे में डिजिटल दुकानों के मुक़ाबले ज़्यादा छूट या उससे कहीं ज़्यादा बड़ा ऑफर देना भी आसान नहीं. 

By शिशिर सिन्हा वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
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फिर सजी डिजिटल दुकान! मोबाइल मिलेगा, टीवी मिलेगा, कपड़े मिलेंगे और उपले भी!

माता के जयकारे लग रहे है. पूजा होनी है. हवन कराना है. उपले चाहिए. अरे वही, जिसे कहीं गोइठा तो कहीं कंडे के नाम से जाना जाता है. कहां मिलेगा?

पड़ोस की दुकान में, बड़ी-बड़ी दुकानों पर, मॉल में? शायद नहीं.

लेकिन डिजिटल दुकान अमेज़न पर जाएं, सर्च में काऊ डंग केक लिखिए. लीजिए हाजिर हैं देसी गाय के गोबर के उपले से लेकर ऑर्गेनिक उपले, हाथ की छाप वाले से लेकर मशीन के ज़रिए तैयार गोल-गोल उपले. थोड़ी कीमत ज़्यादा है, लेकिन घर पर पहुंचा दिया जाएगा, वो भी अच्छी पैकिंग के साथ.

खैर, ये तो एक बानगी है डिजिटल दुकान की बड़ी हो रही सामानों की सूची की. ये सूची और भी लुभाती है जब ये छूट और दूसरे आकर्षक प्रस्तावों के साथ पेश की जाती हैं.

त्यौहारों का मौसम आने पर तो ये कोशिश और भी तेज़ हो जाती है. ऐसा ही कुछ इस बार भी हो रहा है. फ्लिपकार्ट के बिग बिलियन डेज से लेकर अमेज़न के ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल के रूप में इंटरनेट पर बड़ी दुकानें सज गई हैं.

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ऑनलाइन बनाम ऑफ़लाइन की लड़ाई

एक ही जगह पर मोबाइल फ़ोन, टीवी भी, वाशिंग मशीनें भी, चादर-परदे भी, मां दुर्गा के साथ लक्ष्मी-गणेश जी भी और हां काजू-किशमिश के साथ मिठाई चाहिए तो उसका भी इंतजाम भी है. यानी घर बैठिए और करिए जमकर ख़रीदारी.

एक बात और, खास बैंकों के डेबिट या क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करेंगे तो कैश बैक यानी चुकाई गई कुल कीमत का एक हिस्सा वापस भी हो जाएगा. है ना मज़े?

आपके तो मज़े हैं, लेकिन ईट-पत्थर से बनी दुकान में बैठे दुकानदारों की पेशानी पर बल पड़ रहे हैं. साल में यही तो मौका होता है ज़्यादा कमाई का.

पहले से ही आपस में घमासान है, अब बीते कुछ सालों से डिजिटल दुकानों ने मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. तकनीक की भाषा में कहें तो ये ऑनलाइन बनाम ऑफ़लाइन की लड़ाई है.

वैसे ये कहा जाता है कि भारतीय ग्राहक ख़रीदारी का अनुभव सामान छू कर, कई दुकानों का चक्कर लगाकर, विंडो शॉपिंग के मज़े लेकर और कुछ मोलभाव कर सामान खऱीदना चाहते हैं.

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तेज़ी से बढ़ता ई-कॉमर्स का कारोबार

ऐसी कई बातों के लिए पारम्परिक दुकानों पर जाने की ज़रूरत ही नहीं. मसलन, डिजिटल दुकान से सामान मंगवाया, छू कर देखा, महसूस करके देखा, पसंद नहीं आया. कोई बात नहीं, वापस कर दिया, पूरा पैसा वापस और उसके लिए कहीं जाने की ज़रूरत भी नहीं.

घर पर आकर डिजिटल दुकान का कारिंदा सब काम पूरा कर देगा. और तो और क्रेडिड कार्ड, डेबिट कार्ड या नेट बैंकिंग का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं, कोई बात नहीं, घर पर आकर आपसे नकद ले सामान दे दिया जाएगा.

दुर्गा पूजा से लेकर दिवाली और छठ तक कुछ नया खरीदने का चलन सालों से है. इसी चलन को फ्लिपकार्ट ने बिग बिलियन डेज़, अमेज़न ने ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल के ज़रिए भुनाने की कोशिश है.

वैसे तो पूरे साल ही ये कंपनियां तरह-तरह के प्रस्तावों के ज़रिए आपको लुभाने में जुटी रहती हैं. अब इन सब से ग्राहकों को फायदा हुआ तो ई-कॉमर्स का कुल कारोबार भी बढ़ा और आगे भी तेज़ी से बढ़ने के आसार हैं.

इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की मानें तो ई-कॉमर्स बाज़ार का आकार 2017 के 38.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2026 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा.

केवल खुदरा बिक्री की बात करें तो इस साल ये 31 फीसदी की तेज़ी के साथ 32.7 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है. डिजिटल दुकान से होने वाली खरीद का करीब आधा (48 फीसदी) इलेक्ट्रॉनिक सामान (मोबाइल, टीवी वगैरह) के नाम है तो कपड़े 29 फ़ीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है.

यहां ये भी अहम है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की गिनती 50 करोड़ तक पहुंच गई है और अगले तीन सालों में ये संख्या 82 करोड़ से भी ज़्यादा हो जाएगी, यानी डिजिटल दुकान के लिए ज़्यादा से ज़्यादा संभावित ग्राहक.

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पारम्परिक दुकानदारों की आस

वैसे एक बात है, पारम्परिक दुकानदार भी अपनी तरफ से जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. कहीं एक ख़रीद पर एक मुफ़्त का वादा है तो कहीं लकी ड्रॉ में सोने-चांदी के सिक्के से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान देने की बात.

छूट वगैरह तो मिलेगी ही. उम्मीद लगाए हैं कि अबकी दिवाली काफी अच्छी होगी. लेकिन इन दुकानदारों की परेशानी भी कम नहीं. एक तरफ जहां मार्जिन पर दवाब है, वहीं ज़्यादा छूट दे दिया तो बिल्कुल ना घाटा-ना मुनाफे पर सामान बेचना पड़ेगा.

पूंजी की लागत भी बढ़ी हुई है. अब ऐसे में डिजिटल दुकानों के मुक़ाबले ज़्यादा छूट या उससे कहीं ज़्यादा बड़ा ऑफर देना भी आसान नहीं. मतलब ये हुआ कि पारम्परिक दुकानदारों के लिए चुनौतियां बड़ी हैं.

हालांकि पारम्परिक दुकानदारों के लिए अहम बात ये है कि आज भी देश में 90 फ़ीसदी से ज़्यादा लेन-देन नकद में होता है. दूसरी ओर समाज का एक बड़ा तबका डिजिटल दुकान पर अपने कार्ड या बैंक की जानकारी देने से हिचकता है.

ये अलग बात है कि ऐसे ग्राहकों के लिए कैश ऑन डिलिवरी की सुविधा मौजूद है, लेकिन इन सब में बाजार के माहौल की मस्ती कैसे मिलेगी.

बाजार जाना है, ग्राहकों की इसी सोच ने पारम्परिक दुकानदारों की आस को बंधाए रखा है और उन्हें लगता है कि ऐसी सोच और अपनी कोशिशों के ज़रिए वो बिग बिलियन डेज या ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल का मुक़ाबला कर पाएंगे.

खैर जो भी हो, ग्राहकों की तो चांदी है. तो लगाइए ज़ोर से जयकारा.

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English summary
Approximated Digital Shops But Sold Market
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