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अमेरिका चुनाव 2020: कमला हैरिस की जीत और अमेरिकी-भारतीयों का राजनीतिक प्रभाव

अमेरिका में साल 2020 के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जोसफ़ बाइडन अमेरिकी राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं और कमला हैरिस उप राष्ट्रपति चुनी गई हैं. इस जीत के साथ भारतीय मूल की कमला हैरिस ने इतिहास रचा है. वह पहली महिला, पहली भारतीय मूल की और पहली अश्वेत अमेरिकी उप राष्ट्रपति चुनी गई हैं.

By BBC News हिन्दी
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न्‍यूयॉर्क। अमेरिका में साल 2020 के चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जोसफ़ बाइडन अमेरिकी राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं और कमला हैरिस उप राष्ट्रपति चुनी गई हैं. इस जीत के साथ भारतीय मूल की कमला हैरिस ने इतिहास रचा है. वह पहली महिला, पहली भारतीय मूल की और पहली अश्वेत अमेरिकी उप राष्ट्रपति चुनी गई हैं.

भारतीय अमेरिकी
Sergio Flores/ Getty Images
भारतीय अमेरिकी

कैलिफ़ोर्निया के ऑकलैंड में जन्मीं कमला हैरिस की मां श्यामला गोपालन मूल रूप से भारत के चेन्नई की रहने वाली हैं और पिता डॉनल्ड हैरिस जमैका मूल के हैं. हैरिस अपनी मां के साथ भारत जाती रही थीं जहां अब भी उनके परिवार के लोग रहते हैं. कमला हैरिस की तरह ही अमेरिका में रहने वाले बहुत से भारतीय मूल के लोगों की भी यही कहानी है जिनके माता-पिता उन्हें शिक्षा और मेहनत पर ज़ोर देकर जीवन में आगे बढ़ते रहने का हौसला देते रहे हैं.

अमेरिका में रंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव का इतिहास भी रहा है और कुछ हद तक अब भी अश्वेत लोगों में यह भावना है कि उनके साथ उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है. लेकिन, अमेरिका 1960 के दशक के उस भयावह दौर से बहुत आगे आ चुका है जब अश्वेत लोगों को रंग और नस्ल के आधार पर नियमित तौर पर भेदभाव का निशाना बनाया जाता था.

और इसका सबसे बड़ा उदाहरण सन 2008 में दिखा जब एक अश्वेत अमेरिकी बराक हुसैन ओबामा को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया. ऐसे माहौल में कमला हैरिस ने एतिहासिक जीत दर्ज करके भारतीय मूल के लोगों को खासकर नई पीढ़ी को बहुत प्रोत्साहित किया है कि वह अमरीका में मेहनत करके उंचे से उंचे पद पर पहुंच सकते हैं.

कमला हैरिस
AFP
कमला हैरिस

अमेरिका में भारतीयों ने मनवाया लोहा

1960 के दशक में भारत से अमेरिका आकर बसने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी. फिर धीरे-धीरे अगले 4 दशकों में लाखों की संख्या में भारतीय लोग अमेरिका आकर बस गए. अमेरिका के जनगणना विभाग के 1980 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में करीब 3 लाख 60 हज़ार भारतीय मूल के लोग रहते थे. 1990 में उनकी संख्या बढ़कर 10 लाख के करीब हो गई और जब आईटी क्षेत्र में भारतीय मूल के लोगों ने अमेरिका में प्रवेश किया तो उसके साथ यह संख्या सन् 2000 तक करीब 20 लाख हो गई.

अमेरिकी जनगणना विभाग के अनुसार सन् 2010 में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ भारतीय मूल के लोगों की संख्या करीब 28 लाख 43 हज़ार हो गई थी. एक अंदाज़े के अनुसार अब अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की संख्या करीब 40 लाख है. भारतीय मूल के लोगों ने अमेरिका में आईटी क्षेत्र, मेडिकल, बिज़नेस, राजनीति और शिक्षा जैसे अहम क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाया है.

चाहे गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट जैसी आईटी कंपनियों के सीईओ की बात हो या पेप्सी जैसी मल्टीनेशन्ल कंपनियों में अहम पदों की बात हो, भारतीय मूल के लोगों ने अपनी काबलियत का डंका बजा दिया है. इसी तरह मेडिकल क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय मूल के लोग अहम पदों पर नज़र आते हैं.

इनमें अगले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के कोविड टास्क फ़ोर्स के मुखिया विवेक मुर्थी भी शामिल हैं इससे पहले भारतीय मूल के बॉबी जिंदल लुइज़ियाना में और निकी हेली साउथ केरोलाईना में गवर्नर के पदों पर रहे. जिंदल अमरीकी संसद के सदस्य भी रहे और निकी हेली संयुक्त राष्ट्र में अमरीका की दूत भी रह चुकी हैं. फ़िल्मों और कला की दुनिया में ऑस्कर, ग्रैमी पुरस्कार समेत हॉलीवुड में भी अब कई भारतीय कलाकारों ने अपनी छाप छोड़ी है.

राजनीति में आ रहे हैं आगे

अमेरिका में भारतीय समुदाय आर्थिक तौर पर काफ़ी मज़बूत है और विभिन्न राजनीतिक समुदाय के लोगों की चुनावी फ़ंडिंग में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता रहा है. अब भारतीय मूल के लोग अमेरिका भर में हर स्तर पर राजनीति में भी भाग ले रहे हैं. चाहे वह स्कूल बोर्ड का चुनाव हो या सिटी काउंसिल का, शहर के मेयर पद का चुनाव हो या प्रांतीय असेंबली का चुनाव, भारतीय मूल के लोग आगे आकर चुनाव भी लड़ रहे हैं.

अब इस समय अमेरिकी संसद में 4 सांसद भारतीय मूल के हैं! इस बार 2020 के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडन दोनों की चुनावी मुहिम ने भारतीय समुदाय को लुभाने की भी भरपूर कोशिश की थी और इसके लिए कुछ इलाकों में टीवी पर विशेष विज्ञापन भी चलाए जाते रहे. पिछले कई चुनावों के दौरान भारतीय मूल के लोग दोंनों ही पार्टियों की चुनावी मुहिम के लिए फंड जुटाने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित करते रहे हैं.

न्यूयॉर्क में डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनावी मुहिम के लिए फ़ंड इकट्ठा करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने में संत सिंह चतवाल जैसे भारतीय मूल के कई व्यवसायी भी काफ़ी सक्रीय रहे हैं संत सिंह चतवाल के फ़ंड इकट्ठा करने के कई कार्यक्रमों में जो बाइडन और हिलरी क्लिंटन समेत डेमोक्रेटिक पार्टी के कई दिग्गज नेता भी शामिल होते रहे हैं.

संत सिंह चतवाल ने जो बाइडन और कमला हैरिस की जीत पर कहा, "यह भारत और भारतीय मूल के लोगों के लिए बहुत ही खुशी की बात है. अब अमेरिका और भारत के बीच संबंध और गहरे होंगे. जो बाइडन तो हमारे दोस्त हैं, वह भारत के भी दोस्त हैं और भरतीय मूल के लोगों के भी दोस्त हैं."

तब से अब तक कई बदलाव

कई भारतीय मूल के अमेरिकी जो 3 या 4 दशक पहले भारत से अमेरिका आए थे वो अब अपने शुरूआती दिनों को याद करते हैं तो उन्हें दुनिया बदली हुई नज़र आती है. भारतीय मूल के अमेरिकी उपेंद्र चिवुकुला आंध्र प्रदेश के नेल्लोर में जन्मे थे और 1970 के दशक में भारत से अमेरिका आए थे.

1980 के दशक में न्यूयॉर्क में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद चिवुकुला ने एटी एंड टी कंपनी में इंजीनियर के तौर पर काम किया. न्यूजर्सी में चिवुकुला 1990 के दशक में राजनीति में शामिल हुए. उन्होंने स्थानीय स्तर पर कुछ काम करना शुरू किया.

उन दिनों भारत से आए लोगों में बहुत कम लोगों का रुझान राजनीति की तरफ़ होता था. चिवुकुला उन शुरुआती दिनों को याद करके कहते हैं, "मैं तो राजनीति के शुरुआती दौर में अकेले ही स्थानीय स्तर पर काम करता रहता था. उस समय भारतीय मूल के कम लोगों के पास ग्रीन कार्ड या अमरीकी नागरिक्ता होती थी."

चिवुकुला बताते हैं, "न्यूयजर्सी में 1992 में जब एक बार मैं भारतीय मूल के लोगों का वोटिंग के लिए पंजीकरण करवाने के लिए एक स्थानीय मंदिर में गया तो 4 घंटे बैठे रहने के बाद बस एक व्यक्ति ने पंजीकरण करवाया था." फिर कुछ वर्षों बाद वह फ़्रेंक्लिन टाउनशिप के मेयर चुने गए. उसके बाद सन् 2001 में चिवुकुला ने न्यूजर्सी की असेंबली का चुनाव जीता. उनके मुख्य बिलों में सौर उर्जा, ऑफ़शोर विंड, कैप एंड ट्रेड, आदि बिल शामिल थे. इंजीनियरिंग के बैकग्राउंड के साथ तकनीकि मामलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने के कारण उनके साथी उनको टेक असेंबलीमैन भी कहते थे.

चिवुकुला 2014 तक न्यूजर्सी की असेंबली के सदस्य रहे. उसमें 6 साल तक वह असेंबली के डिप्टी स्पीकर भी रहे. 2012 और 2014 में चिवुकुला ने न्यूजर्सी के संस्दीय क्षेत्र से अमेरिकी संसद का चुनाव भी लड़ा लेकिन डेमोक्रेटिक प्राईमरी में हार गए.

अब चिवुकुला न्यूजर्सी के यूटिलीटी बोर्ड के कमिश्नर हैं. चिवुकुला कहते हैं कि अब तो भारतीय मूल के लोग हर स्तर पर बढ़-चढ़ कर राजनीति में हिस्सा ले रहे हैं. कमला हैरिस के उप राष्ट्रपति बनने पर वह कहते हैं "हम सभी बहुत खुश हैं कि अब अपनी एक भारतीय मूल की महिला देश की उप राष्ट्रपति बनीं हैं. हैरिस तो बहुत महत्वाकांक्षी हैं और उनके लिए तो अपार संभावनाएं हैं. अब देखना यह है कि कब और कैसे वह अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर भी पहुंचेंगी."

भारत-अमेरिका परमाणु करार में भूमिका

इसी तरह इंडियाना में रहने वाले एक भारतीय अमेरिकी चिकित्सक ने अमेरिका में कई दशक गुज़ारे हैं और भारतीय समुदाय को अमेरिका में विकसित होते देखा है. गुजरात के बड़ौदा में जन्मे भारतीय मूल के अमेरिकी चिकित्सक भारत बराई पिछले 45 सालों से अमेरिका में रह रहे हैं. वह 1970 के दशक में भारत में ही मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके अमेरिका आ गए थे. भारत बराई ने अमेरिका में मेडिकल इंटर्नशिप से अपने करियर की शुरुआत की और दशकों बाद वह इंडियाना प्रांत के बोर्ड ऑफ़ फ़िज़िशियंस के चेयरमैन भी नियुक्त हुए. इस समय वह बोर्ड के सबसे लंबे समय से कार्यरत सदस्य हैं.

पिछले 45 वर्षों पर नज़र डालते हुए डॉक्टर बराई कहते हैं, "पिछले कई दशकों में भारतीय समुदाय सशक्त हुआ है और अमेरिका में अपनी मेहनत और लगन से इस समुदाय ने अपना असर भी बढ़ाया है." बराई बताते हैं कि अमेरिका में 1970 और 80 के दशकों के शुरुआती दौर में भारतीय मूल के डॉक्टरों को भी कुछ भेदभाव का सामना करना पड़ता था. वह कई अमेरिकी राजनीतिज्ञों से मुलाकात करके भारतीय समुदाय के लोगों और डॉक्टरों के अधिकारों को लेकर मदद भी हासिल करते रहे हैं.

धीरे-धीरे समुदाय का असर इतना बढ़ गया कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध और गहरे होने में भी भारतीय मूल के लोगों की भूमिका अहम हो गई थी. भारत बराई बताते हैं कि ऐसा ही एक मौका था कि जब भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार पर बातचीत चल रही थी तो उन्होंने भारत के साथ परमाणु करार के लिए अमेरिकी संसद में बिल पेश करने में प्रायोजक बनने के लिए उस समय के डेमोक्रेटिक सेनेटर जोसफ़ बाइडन से वॉशिंगटन में मुलाकातें की थीं.

सन् 2007 में जो बाइडन के साथ मुलाकात का ज़िक्र करते हुए बराई कहते हैं, "जब हमने उनको परमाणु करार के बारे में भारत और अमेरिका के सहयोग के बारे में विस्तार से बताया तो बाइडन ने फौरन हां कर दी थी और अमेरिका और भारत के बीच परमाणु करार पर बिल आसानी से पारित भी हुआ था."

'बाइडन और मोदी की भी दोस्ती हो जाएगी'

भारत बराई ने 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का न्यूयॉर्क के मैडिसन स्कवेयर गार्डेन में कार्यक्रम भी आयोजित करवाया था जिसमें करीब 19 हज़ार लोगों ने भाग लिया था. लेकिन, भारत बराई कहते हैं कि 2019 के ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में पीएम मोदी को "अबकी बार ट्रंप सरकार" का नारा नहीं लगाना चाहिए था. "मुझे नहीं लगता कि उनको किसी अन्य देश के चुनाव में दखलअंदाज़ी करनी चाहिए थी और वो ये बात अच्छी तरह समझते भी हैं."

बराई बताते हैं कि ट्रंप की जीत के बाद 2017 में ही मोदी ने उनसे पूछा था कि आख़िर ट्रंप जीत कैसे गए? बराई ने डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों को ही समर्थन दिया है लेकिन उन्होंने ट्रंप को 2020 के चुनाव में वोट नहीं दिया. बराई कहते हैं कि ट्रंप का व्यवहार और उनकी भाषा बेहूदा है और वह उनको समर्थन नहीं दे सकते थे.

उन्होंने यह भी बताया कि उनकी बेटियां और परिवार के अन्य सदस्य जो बाइडन के समर्थक हैं. उनकी एक बेटी इंडियाना प्रांत में जो बाइडन की चुनावी मुहिम की मुखिया थीं. बराई कहते हैं कि उनकी बेटियां कमला हैरिस के उप राष्ट्रपति बनने से बहुत प्रोत्साहित हुई हैं और उनमें जोश बढ़ गया है. भारत बराई कहते हैं कि अब जो बाइडन भी राष्ट्रपति के तौर पर भारत के साथ अच्छे रिश्ते बरकरार रखेंगे और पीएम मोदी से उनकी भी दोस्ती हो जाएगी.

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English summary
America Election 2020: Kamala Harris victory and American-Indian political influence
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